(प्रारंभिक परीक्षा के लिए - समान नागरिक संहिता)
(मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)
संदर्भ
- हाल ही में उच्चतम न्यायालय में दायर की गयी एक याचिका में, बच्चों को गोद लेने और उनके अभिभावकत्व के लिए 'अव्यवस्थाओं' को दूर करने और एक समान तलाक कानून तैयार करने के लिए न्यायालय द्वारा सरकार को निर्देश देने की मांग की गयी थी।
- इस याचिका के संबंध में केंद्र सरकार ने कहा, कि कानून बनाने की शक्ति विशेष रूप से विधायिका की है, न्यायालय कानून बनाने के लिए संसद को निर्देश नहीं दे सकती है।
समान नागरिक संहिता (यूसीसी)
- समान नागरिक संहिता, सभी नागरिकों के लिए (चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित हों) विवाह, तलाक, गोद लेने, विरासत और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक समूह को संदर्भित करती है।
- भारत में गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसने समान नागरिक संहिता को लागू किया है।
संवैधानिक प्रावधान
- संविधान के अनुच्छेद 44 के अनुसार राज्य भारत के समस्त नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा।
- अनुच्छेद 44 भारतीय संविधान के अंतर्गत राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों मे से एक है।
- अनुच्छेद 37 में परिभाषित है, कि राज्य के नीति निदेशक तत्त्व संबंधी प्रावधानों को किसी भी न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसमें निहित सिद्धांत शासन व्यवस्था में मौलिक प्रकृति के होंगे।
पक्ष में तर्क
- एक धर्मनिरपेक्ष देश को धार्मिक प्रथाओं के आधार पर विभेदित नियमों की जगह पर, सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून की आवश्यकता है।
- यूसीसी धार्मिक आधार पर लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने, और राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को मजबूत करने में मदद करेगी।
- धार्मिक रुढ़ियों की वजह से समाज के किसी वर्ग के अधिकारों का हनन रोका जाना चाहिये । साथ ही 'विधि के समक्ष समता' की अवधारणा के तहत सभी के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिये
- इससे महिलाओं के साथ उचित व्यवहार करने और उन्हे समान अधिकार प्राप्त करने के लक्ष्य की दिशा में अग्रसर होने मे सहायता मिलेगी
- समान नागरिक संहिता से विभिन्न समुदायों में प्रचलित अन्यायपूर्ण और तर्कहीन रीति-रिवाजों और परंपराओं को समाप्त करने में मदद मिलेगी।
- समान नागरिक संहिता पूरे देश में समान नागरिक कानूनों को लागू करने में सक्षम होगी।
- यूसीसी भारत के विशाल जनसंख्या आधार को प्रशासित करना आसान बनाएगी, इससे देश का कानूनी एकीकरण होगा।
- उच्चतम न्यायालय ने भी अपने कई निर्णयों में विशेष रूप से शाह बानो मामले में दिए गए अपने निर्णय में कहा है, कि सरकार को एक ‘समान नागरिक संहिता’ लागू करने की दिशा में अग्रसर होना चाहिए।
- अनुच्छेद 25 के तहत किसी व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता सार्वजनिक व्यवस्था एवं सदाचार के अधीन है, इसीलिए इसके उल्लंघन के आधार पर समान नागरिक संहिता का विरोध नहीं किया जा सकता।
विपक्ष में तर्क
- भारत में व्यक्तिगत कानूनों का लंबा इतिहास रहा है, इन्हे सरलता से समाप्त नहीं किया जा सकता है।
- धार्मिक संस्थाएं इस आधार पर एक समान नागरिक संहिता का विरोध करती हैं, कि यह धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप होगा, जो संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
- इससे भारत की विविधता, रीति-रिवाज और क्षेत्रीय परंपराओं को खतरा हो सकता है।
- भारतीय समाज की बहुसांस्कृतिक पहचान में कमी या सकती है।
- इससे विभिन्न समुदायों की धार्मिक पहचान के कमजोर हो जाने की संभावना पैदा हो सकती है।
आगे की राह
- समान नागरिक संहिता, हालांकि अत्यधिक वांछनीय है, परंतु इसे जल्दबाजी में लागू करना देश के सामाजिक सौहार्द के लिए प्रतिकूल हो सकता है।
- इसे धीरे-धीरे क्रमिक सुधारों के रूप में लागू किया जाना चाहिये।
- सर्वप्रथम रीति-रिवाजों और परंपराओं के उन तत्वों को एक एकीकृत कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए, जो व्यक्तियों के अधिकारों का अतिक्रमण करते हैं।
- विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों में भी कुछ अच्छे और न्यायसंगत प्रावधान हैं, उन्हे एकीकृत कानून में शामिल किये जाने पर विचार किया जाना चाहिये।
- विभिन्न समुदायों की संस्कृति को बचाए रखने के लिए, उनसे संबंधित अच्छे रीति-रिवाजों और परंपराओं का संरक्षण किया जाना चाहिए।
- इससे भारत को अपनी ताकत यानी विविधता में एकता की रक्षा करने में मदद मिलेगी।
- समान नागरिक संहिता जैसी गंभीर प्रभाव वाली नीतियों को लागू करने के लिए सभी हितधारकों की आम सहमति बनाने का प्रयास किया जाना चाहिये।