(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामायिक घटनाओं से सबंधित प्रश्न )
(मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र – गरीबी एवं भूख, बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा से सबंधित विषय )
संदर्भ
हाल ही में, प्रथम संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन (UNFSS) 2021 संपन्न हुआ। इसमें वैश्विक खाद्य प्रणालियों, उपभोग प्रवृत्तियों तथा बढ़ती भुखमरी को दूर करने में मदद करने वाली ‘बॅाटम-अप’ प्रक्रिया पर चर्चा की गई।
खाद्य प्रणाली शिखर सम्मलेन क्यों ?
- ‘सतत् विकास लक्ष्य 2030’ को प्राप्त करने हेतु खाद्य प्रणाली में परिवर्तन आवश्यक है क्योंकि 17 में से 11 सतत् विकास लक्ष्य (SDGs) सीधे खाद्य प्रणाली से संबंधित हैं।
- दुनिया ने खाद्य प्रणालियों की सुभेद्यता को देखा है, जो कोविड-19 महामारी के कारण सामने आई और जिसने वैश्विक भुखमरी के आँकड़ों को दुगुना कर दिया।
- वैश्विक खाद्य प्रणालियाँ भोजन के उत्पादन तथा परिवर्तन के लिये आवश्यक हैं। ये भोजन को ‘उत्पादन से प्लेट’ तक पहुँचाती हैं।खाद्य प्रणालियों में खामियाँ सभी को प्रभावित करती हैं, किंतु निर्धन राष्ट्रों में ये और भी भयावह स्थिति उत्पन्न करती हैं।
- ध्यातव्य है कि वैश्विक भुखमरी में खतरनाक वृद्धि हो रही है, जो मुख्यत: कोरोना महामारी के वैश्विक प्रसार का परिणाम थी। 'द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड' रिपोर्ट का अनुमान है कि पिछले साल वैश्विक आबादी का लगभग दसवाँ हिस्सा कुपोषित था।
- भुखमरी और खाद्य असुरक्षा दुनिया भर में संघर्ष और अस्थिरता के प्रमुख चालक हैं, ऐसे में वैश्विक स्थिरता हेतु इस मुद्दे पर चर्चा आवश्यक थी।
शिखर सम्मेलन में लिये गए निर्णय
- शिखर सम्मेलन में खाद्य प्रणाली से सबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श हेतु संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों, नागरिक समाज, गैर-सरकारी संगठनों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, व्यक्तियों और निजी क्षेत्र को शामिल करते हुए एक तंत्र का निर्माण किया गया, जो ऐसी खाद्य प्रणाली की परिकल्पना करेगा जो भविष्य की पीढ़ियों सहित सभी हितधारकों को संतुष्ट करती हो।
- इसमें पाँच प्रमुख क्षेत्रों यथा- सभी तक पौष्टिक तथा सुरक्षित पहुँच, सतत् उपभोग प्रवृत्तियों में बदलाव, सतत् उत्पादन को बढ़ावा देना, समान आजीविका सुनिश्चित करना तथा भेद्यता व तनाव की स्थिति में लचीलापन बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- शिखर सम्मेलन ने सभी को कोविड-19 महामारी से उबरने के लिये खाद्य प्रणालियों की सामर्थ्य का लाभ उठाने और वर्ष 2030 तक सभी 17 सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने का अवसर प्रदान किया है।
- शिखर सम्मलेन के निर्णयों ने कार्यवाई के लिये कुछ सिद्धांत तय किये जो कोविड-19 महामारी के बाद ‘बेहतर खाद्य प्रणाली निर्माण’ का वैश्विक आहवान करते हैं।
भारत द्वारा सम्मेलन में उठाए गए कदम
- भारत ने सतत् खाद्य प्रणाली हेतु एक अंतर-विभागीय समूह का गठन किया, जिसमें कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास तथा अन्य मंत्रालयों के प्रतिनिधि शामिल थे। साथ ही, संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों जैसे- खाद्य और कृषि संगठन (FAO), विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष (IFAD) भी संवाद प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल थे।
- समूह ने भारत में स्थायी और न्यायसंगत खाद्य प्रणाली स्थापित करने हेतु कृषि-खाद्य प्रणालियों के विभिन्न हितधारकों के साथ राष्ट्रीय संवाद आयोजित किये।
- ध्यातव्य है कि खाद्य प्रणालियों में सुधार हेतु बनाए गए पोर्टल में कई व्यक्तियों और नागरिक समाज संगठनों ने वैचारिक का योगदान दिया।
भारत से सबक
- खाद्य असुरक्षा के संदर्भ में भारत के प्रयासों से सीख मिलती है। शिखर सम्मेलन की चर्चाओं और संवादों से उभरे कई विषय भारत में खाद्य और आजीविका सुरक्षा को सुधारने की दिशा में चल रहे प्रयासों से मेल खाते हैं।
- खाद्यान्न कमी से अधिशेष खाद्य उत्पादक तक भारत की लंबी यात्रा अन्य विकासशील देशों के भूमि सुधार, सार्वजनिक निवेश, संस्थागत बुनियादी ढाँचे, नई नियामक प्रणाली, सार्वजनिक समर्थन और हस्तक्षेप, कृषि बाज़ार कीमतें तथा कृषि अनुसंधान एवं विस्तार के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सबक प्रदान करती है।
- वर्ष 1991-2015 की अवधि तक भारत ने ‘कृषि-विविधीकरण’ में खेतों की फसलों से बागवानी, डेयरी, पशुपालन और मत्स्य क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया। शिक्षा में भी पोषण स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा मानकों, स्थिरता और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग जैसे विषय शामिल थे।
भारत का खाद्य सुरक्षा संजाल
- भारत की खाद्य समता में सबसे बड़ा योगदान राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 है जो लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS), मध्याह्न भोजन (MDM) और एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) का आधार है। इसके माध्यम से भारत का खाद्य सुरक्षा संजाल एक अरब से अधिक लोगों को कवर करता है।
- खाद्य सुरक्षा संजाल और समावेशन, सार्वजनिक खरीद और बफर स्टॉक नीति से जुड़े हुए हैं। इसकी झलक वैश्विक खाद्य संकट (2008- 2012) तथा हाल ही में कोरोना महामारी के दौरान दिखाई दी, जब भारत ने कमज़ोर तथा हाशिये पर स्थित परिवारों को अपनी मज़बूत लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा खाद्यान्न के बफर स्टॉक द्वारा खाद्य उपलब्धता को बनाए रखा।
खाद्य सुरक्षा के समक्ष चुनौतियाँ
- जलवायु परिवर्तन, भूमि तथा जल संसाधन का असंधारणीय उपयोग आज खाद्य प्रणालियों के सामने सबसे विकट चुनौती है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की नवीनतम रिपोर्ट ने भी तत्काल कार्यवाई के लिये प्रेरित किया है।
- आहार विविधता, पोषण और संबंधित स्वास्थ्य परिणाम चिंता का एक अन्य क्षेत्र है क्योंकि चावल और गेहूँ पर ध्यान केंद्रित करने से पोषण संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं।
- समग्र रूप से शुद्ध खाद्य निर्यातक तथा अधिशेष उत्पादन के बावजूद भारत में कुपोषण वैश्विक औसत की तुलना में 50% अधिक है। इस विरोधाभासी स्थिति के कारण भारत सरकार व विभिन्न राज्य गंभीर रूप से चिंतित हैं।
- भोजन की बर्बादी को कम करना एक बड़ी चुनौती है और यह खाद्य आपूर्ति श्रृंखला की दक्षता से जुड़ा हुआ है।
आगे की राह
- भारत ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से ‘फोर्टीफाइड राइस’ वितरित करने का साहसिक निर्णय लिया है, जिसमें लौह तत्त्व की मात्रा अधिक है।
- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने अल्पपोषण तथा कुपोषण से निपटने के लिये अनेक उच्च पोषण वाली फसलों का विकास किया है।
- भारत सरकार कई पोषण हस्तक्षेपों जैसे ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ तथा ‘पोषण अभियान’ में फोर्टिफाइड चावल की आपूर्ति के माध्यम से कुपोषण की चुनौतियों से निपटने का प्रयास कर रही है।
- सरकारों,नागरिकों, नागरिक संगठनों तथा निजी क्षेत्रों को समान आजीविका, खाद्य सुरक्षा और पोषण सुनिश्चित करने के लियेसतत्कृषि में निवेश, नवाचार और स्थायी समाधान के लिये सहयोग करना चाहिये।
- विकास और स्थिरता को संतुलित करने, जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने;स्वस्थ, सुरक्षित, गुणवत्तापूर्ण और किफायती भोजन सुनिश्चित करने;जैव-विविधता को बनाए रखने;छोटे हितधारकों और युवाओं को आकर्षक आय और कार्य वातावरण प्रदान करने के लक्ष्य की दिशा में खाद्य प्रणाली को पुन: व्यवस्थित करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
समान आजीविका तथा वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लक्ष्य को सुनिश्चित करने हेतु खाद्य प्रणाली में परिवर्तन करते हुए छोटी व मध्यम उत्पादन इकाईयों, छोटे किसानों तथा महिलाओं को भी खाद्यआपूर्ति श्रृंखला से जोड़ने की आवश्यकता है ताकि ‘समान आजीविका’ सुनिश्चित करते हुए वर्ष 2030 तक ‘सतत् विकास लक्ष्यों’ को प्राप्त किया जा सके।