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यूनिवर्सल बेसिक इनकम और उसके विभिन्न आयाम

 (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : सरकारी नीतियों एवं विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय) 

संदर्भ

हाल ही में, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की एक रिपोर्ट में ऑटोमेशन एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता में तीव्र प्रगति की तुलना में रोजगार सृजन की निम्न वृद्धि दर पर प्रकाश डाला गया है। इसने भारत में युवाओं के रोजगार को विशेष रूप से प्रभावित किया है क्योंकि इससे रोजगार सृजन में वृद्धि के बिना उत्पादकता बढ़ जाती है। यह घटना सामाजिक असमानता को बढ़ाती है जिससे सामाजिक सुरक्षा जाल के एक व्यवहार्य घटक के रूप में यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) में नए सिरे से रुचि पैदा होती है।

यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) से तात्पर्य 

  • यू.बी.आई. एक प्रस्तावित सामाजिक कल्याण तंत्र है, जिसके तहत सभी नागरिकों को सरकार से नियमित एवं बिना शर्त एक निश्चित राशि मिलती है, चाहे उनकी आय या रोजगार की स्थिति कुछ भी हो। 
  • इसका प्राथमिक उद्देश्य गरीबी एवं असमानता को कम करना और तेजी से स्वचालित व अनिश्चित नौकरी बाजार में सुरक्षा जाल प्रदान करना है।

यू.बी.आई. के लाभ

  • गरीबी उन्मूलन : भारत में जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करता है। यू.बी.आई. गरीबों को प्रत्यक्ष वित्तीय जीवनरेखा प्रदान कर सकता है। 
    • वर्ष 2011 में सेवा (SEWA) पायलट परियोजना को दिल्ली एवं मध्य प्रदेश में संचालित किया गया था। इसके निष्कर्षों से पता चलता है कि नकद हस्तांतरण से निम्न आय वाले परिवारों की पोषण व आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
  • आर्थिक स्थिरता एवं प्रोत्साहन : यू.बी.आई. से उपभोक्ता की क्रयशक्ति में वृद्धि हो सकती है जिससे वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग बढ़ सकती है। कोविड-19 महामारी के दौरान भारत सरकार ने पीएम गरीब कल्याण योजना के तहत गरीब परिवारों को प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण प्रदान किया था। 
    • इससे प्राप्तकर्ताओं के बीच व्यय में वृद्धि हुई, जिससे संकट के दौरान स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को स्थिर करने में मदद मिली।
  • नौकरशाही बाधाओं में कमी : यू.बी.आई. के माध्यम से कल्याण कार्यक्रमों के जटिल पात्रता मानदंड और नौकरशाही बाधाओं को कम करते हुए वित्तीय सहायता के वितरण को सुव्यवस्थित किया जा सकता है। इससे प्रशासनिक लागत एवं अक्षमताएँ कम हो सकती हैं।
    • उदाहरण के लिए, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) जैसे मौजूदा कार्यक्रम भ्रष्टाचार एवं अक्षमताओं की चुनौतियों का सामना करते हैं। यू.बी.आई. इनमें से कई लक्षित योजनाओं को प्रत्यक्ष नकद भुगतान प्रणाली से बदल सकता है, जिससे प्रक्रिया सरल हो जाएगी।
  • सामाजिक सशक्तिकरण : यू.बी.आई. हाशिए पर स्थित समूहों को वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान करके उन्हें सशक्त बना सकता है। यह महिलाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
  • स्वास्थ्य एवं शिक्षा के बेहतर परिणाम : यू.बी.आई. के माध्यम से अधिक वित्तीय स्थिरता से परिवार द्वारा स्वास्थ्य सेवा एवं शिक्षा में अधिक निवेश किया जा सकता है जिससे बच्चों व वयस्कों के लिए बेहतर समग्र परिणाम प्राप्त होते हैं।
    • उदाहरण के लिए, SEWA पायलट परियोजना के माध्यम से नकद हस्तांतरण ने स्कूल में नामांकन को 69.6% से 70.6% तक बढ़ाने में मदद की थी।
  • उद्यमिता को प्रोत्साहन : यू.बी.आई. महत्वाकांक्षी उद्यमियों के लिए एक सुरक्षा जाल प्रदान कर सकता है, जिससे उन्हें वित्तीय बर्बादी के डर के बिना जोखिम उठाने में सहायता मिलती है। 
    • इससे नवाचार एवं रोज़गार सृजन को बढ़ावा मिल सकता है।

यू.बी.आई. के नुकसान

  • उच्च लागत एवं वित्तपोषण चुनौतियाँ : भारत जैसे सघन आबादी वाले देश में यू.बी.आई. कार्यक्रम को वित्तपोषित करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होगी।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 के अनुसार, गरीबी को 0.5% तक कम करने वाली यू.बी.आई. की लागत सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 4-5% के बीच होगी। 
  • संभावित मुद्रास्फीति : अर्थव्यवस्था में नकदी के प्रवाह से आपूर्ति में वृद्धि के बिना मांग में वृद्धि होने के परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति होती है। 
  • निर्भरता जोखिम : यू.बी.आई. निर्भरता को बढ़ावा दे सकता है और रोजगार की तलाश करने के बजाय केवल इस आय पर निर्भरता से समग्र उत्पादकता प्रभावित होती है।
  • संसाधनों का दुरूपयोग : आर्थिक रूप से अति सक्षम व्यक्तियों सहित सभी नागरिकों को यू.बी.आई. प्रदान करना संसाधनों का अकुशल उपयोग है।
  • सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रतिरोध : काम व व्यक्तिगत जिम्मेदारी के प्रति सांस्कृतिक दृष्टिकोण के आधार पर यू.बी.आई. का सामाजिक प्रतिरोध हो सकता है, जहां वित्तीय सहायता को अधिकार के बजाय दान के रूप में देखा जा सकता है।
  • कार्यान्वयन जटिलता : भारत की विविध आबादी और मौजूदा कल्याण ढांचा यू.बी.आई. जैसे सार्वभौमिक कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से लागू करने में महत्वपूर्ण चुनौतियां प्रस्तुत करता है।
    • उदाहरण के लिए, वस्तु एवं सेवा कर (GST) जैसे राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम के कार्यान्वयन के दौरान ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। 

भारत में UBI को लागू करने संबंधी चुनौतियाँ 

  • बैंकिंग सेवा तक सीमित पहुँच : यद्यपि आधार एवं JAM (जनधन-आधार-मोबाइल) ने बैंकिंग सेवा पहुँच में सुधार किया है किंतु ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों का निम्न घनत्व कई लाभार्थियों के लिए वित्त तक पहुँच को सीमित करता है।
  • ऑनलाइन लेनदेन : ऑनलाइन लेनदेन से जुड़ी लागतें (जैसे- डाटा शुल्क एवं डिजिटल सेवाओं के लिए संभावित शुल्क) ग्रामीण परिवारों के लिए ऑनलाइन लेनदेन को हतोत्साहित करने वाली हो सकती है।
  • गरीबी रेखा की गणना : यू.बी.आई. योजना के वित्तीय मापदंड प्राय: तेंदुलकर समिति द्वारा स्थापित गरीबी रेखा पर आधारित होते हैं। यह रेखा शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के बीच अलग-अलग होती है जिससे एक समान दृष्टिकोण अपनाना मुश्किल हो जाता है। 
    • इसके अलावा, आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस रेखा से नीचे जीवनयापन करता है। 
  • अनौपचारिक क्षेत्र की चुनौतियाँ : भारत के कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जहाँ आय का स्तर प्राय: अघोषित एवं अनियमित होता है। 
    • विश्वसनीय आय आधारित डाटा की कमी यू.बी.आई. के लिए गरीबी की प्रभावी जाँच एवं पात्रता निर्धारण के लिए एक चुनौती है।
  • कल्याणकारी परिवर्तनों का प्रतिरोध : यू.बी.आई. मॉडल में परिवर्तन को विशेष रूप से मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं को बंद करने के संबंध में, महत्वपूर्ण प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है।
    • उदाहरण के लिए, मनरेगा, विभिन्न सब्सिडी योजनाओं एवं स्वास्थ्य पहलों को बंद करना पड़ सकता है। 
  • कल्याण को पूरक बनाना बनाम प्रतिस्थापित करना : इस विषय पर स्पष्टता की आवश्यकता है कि क्या यू.बी.आई. मौजूदा कल्याण कार्यक्रमों का पूरक बनेगी या उन्हें पूरी तरह से प्रतिस्थापित करेगी। 
    • यदि यू.बी.आई. को मौजूदा कल्याण पहलों के साथ लागू किया जाता है तो इससे सरकारी बजट पर अस्थिर वित्तीय बोझ पड़ सकता है जिससे दीर्घकालिक व्यवहार्यता एवं संसाधन आवंटन के बारे में चिंताएँ बढ़ सकती हैं।
  • अनुकूलित समाधान की आवश्यकता : भारत की जनसंख्या एवं क्षेत्रीय आर्थिक स्थितियों की विविधता को ध्यान में रखते हुए यू.बी.आई. के माध्यम से सभी के लिए एक तरह का दृष्टिकोण प्रभावी नहीं हो सकता है।
    • विभिन्न क्षेत्रों को ऐसी अनुकूलित योजनाओं की आवश्यकता हो सकती है जो स्थानीय आवश्यकताओं एवं परिस्थितियों को संबोधित करती हों।

यू.बी.आई. संबंधी कुछ अंतर्राष्ट्रीय उदाहरण

  • अलास्का : वर्ष 1982 में शुरू किया गया अलास्का स्थायी निधि लाभांश (PFD), तेल राजस्व द्वारा वित्तपोषित पात्र निवासियों को वार्षिक नकद भुगतान प्रदान करता है।
    • ये भुगतान सार्वभौमिक एवं बिना शर्त वाले होते हैं और बाजार के रिटर्न के आधार पर उतार-चढ़ाव करते हैं। हालांकि, ये गरीबी के स्तर की तुलना में अपेक्षाकृत कम होते हैं।
  • ईरान : वर्ष 2010 में ईरान ने तेल राजस्व द्वारा वित्तपोषित एक बिना शर्त नकद हस्तांतरण कार्यक्रम लागू किया, जो नागरिकों को लगभग US$40-45 मासिक प्रदान करता है। 
    • हालाँकि, इस कार्यक्रम को बजट घाटे के साथ-साथ धनी लोगों को हटाने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिससे वर्ष 2016 तक प्राप्तकर्ताओं में महत्वपूर्ण कमी आई।
  • ब्राजील : ब्राजील वर्ष 2003 में बोल्सा फ़मिलिया कार्यक्रम के साथ यू.बी.आई. का कानून बनाने वाला पहला देश बन गया। 
    • इस कार्यक्रम ने गरीबी को कम किया है और रोजगार को प्रोत्साहित किया है।
  • नामीबिया : ओटजीवेरो में एक पायलट परियोजना ने सभी निवासियों को यू.बी.आई. प्रदान की, जिसके परिणामस्वरूप बाल कुपोषण में कमी आई, निवास की स्थिति में सुधार हुआ और उद्यमिता में वृद्धि हुई। 
    • इसकी सफलता के बावजूद इस कार्यक्रम को हरामबी समृद्धि योजना (Harambee Prosperity Plan) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।
  • स्विट्जरलैंड : जून 2016 में स्विट्जरलैंड ने वयस्कों के लिए 2,500 स्विस फ़्रैंक और बच्चों के लिए 625 फ़्रैंक की बिना शर्त मासिक आय का प्रस्ताव करते हुए एक जनमत संग्रह आयोजित किया। 
    • इस प्रस्ताव को भारी बहुमत से खारिज कर दिया गया, जिसमें बजट निहितार्थों और बिना काम के आय प्रदान करने के सिद्धांत पर चिंताएं विरोध के प्राथमिक कारण थे।

भारत में गरीबी उन्मूलन रणनीति के हिस्से के रूप में आय हस्तांतरण योजनाएँ

भारत ने गरीबी उन्मूलन रणनीतियों के हिस्से के रूप में आय हस्तांतरण योजनाएँ लागू की हैं और ये योजनाएँ विशेषकर कृषि क्षेत्र से संबंधित है। इनमें से कुछ योजनाएँ इस प्रकार हैं-

  • रायथु बंधु योजना (RBS) : वर्ष 2018 में तेलंगाना में शुरू की गई इस योजना में किसानों को प्रति एकड़ 4,000 की पेशकश की गई है।
  • KALIA योजना : ओडिशा में आजीविका एवं आय वृद्धि कार्यक्रम के लिए KALIA या कृषक सहायता पहल आर.बी.एस. के समान दृष्टिकोण रखता है। 
  • पीएम-किसान : वर्ष 2018-19 में शुरू की गई इस राष्ट्रीय योजना में शुरुआत में छोटे किसानों को वार्षिक 6,000 प्रदान किए गए। हालाँकि, बाद में सभी किसानों (उच्च आय वाले करदाताओं को छोड़कर) तक इसका विस्तार किया गया।
  • वर्ष 2020-21 तक पीएम-किसान का लक्ष्य लगभग 10 करोड़ कृषक परिवारों को कवर करना था, जिसकी अनुमानित लागत 75,000 करोड़ (जी.डी.पी. का 0.4%) है।

भारत में यू.बी.आई. को लागू करने के लिए सुझाव

  • पायलट कार्यक्रमों के माध्यम से क्रमिक कार्यान्वयन : राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने से पूर्व प्रभाव, व्यवहार्यता एवं सार्वजनिक स्वीकार्यता का आकलन करने के लिए चुनिंदा राज्यों या जिलों में पायलट यू.बी.आई. कार्यक्रमों से शुरुआत किया जाना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए, सरकार मध्यप्रदेश एवं दिल्ली में पायलट यू.बी.आई. परियोजना को दोहरा सकती है तथा राष्ट्रव्यापी शुरुआत से संबंधित चुनौतियों का आकलन कर सकती है। 
  • मौजूदा कल्याणकारी कार्यक्रमों के साथ एकीकरण : पूर्णतया नई प्रणाली के बजाय लाभों को सुव्यवस्थित करने और अतिरेक को कम करने के लिए यू.बी.आई. को मौजूदा कल्याण योजनाओं के साथ एकीकृत किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए, यू.बी.आई. को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) जैसे कार्यक्रमों के साथ जोड़ा जा सकता है। 
  • कुशल वितरण के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग : लाभार्थियों को निर्बाध एवं पारदर्शी नकद हस्तांतरण सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी व बैंकिंग बुनियादी ढांचे का लाभ उठाया जाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए, सब्सिडी भुगतान के लिए पहले से ही उपयोग की जाने वाली प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) प्रणाली को यू.बी.आई. तक विस्तारित किया जा सकता है।
  • स्थायी वित्तपोषण तंत्र : यू.बी.आई. को स्थायी रूप से वित्तपोषित करने के लिए प्रगतिशील कराधान, संपत्ति कर और निगमों के लिए कर छूट को कम करने जैसे अभिनव वित्तपोषण स्रोतों का पता लगाया जाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए, आर्थिक रूप से अधिक सक्षम व्यक्तियों एवं निगमों पर लक्षित नए कर ढांचे का विकास किया जा सकता है, जो मध्यम व निम्न वर्गों पर अधिक बोझ डाले बिना यू.बी.आई. को वित्तपोषित करने में मदद करता है।
  • कमज़ोर समूहों के लिए लक्षित समर्थन : यद्यपि यू.बी.आई. को सार्वभौमिक होना चाहिए किंतु व्यापक कल्याण सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट कमजोर समूहों के लिए अतिरिक्त लक्षित समर्थन प्रदान किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए, राज्य यू.बी.आई. ढांचे के हिस्से के रूप में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों जैसे हाशिए पर स्थित समुदायों के लिए अतिरिक्त लाभ प्रदान कर सकते हैं।
  • हितधारकों के साथ जुड़ाव : यू.बी.आई. के डिजाइन एवं कार्यान्वयन में अर्थशास्त्रियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं व सामुदायिक नेताओं सहित विभिन्न प्रकार के हितधारकों को शामिल किया जाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए, यू.बी.आई. के बारे में जानकारी जुटाने और आम सहमति बनाने के उद्देश्य से कौशल विकास के लिए राष्ट्रीय नीति के प्रारूपण के दौरान अपनाए गए बहु-हितधारक दृष्टिकोण के समान कार्यशालाएँ एवं परामर्श आयोजित किया जा सकता है। 
  • जन जागरूकता अभियान : यू.बी.आई. के लाभों एवं उद्देश्य के बारे में नागरिकों को शिक्षित करने के लिए व्यापक जन-जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।
    • उदाहरण के लिए, भारत सरकार स्वच्छ भारत मिशन अभियान के समान अन्य पहल शुरू कर सकती है। 
  • नियमित मूल्यांकन एवं अनुकूलन : यू.बी.आई. के प्रभाव की निरंतर निगरानी एवं मूल्यांकन के लिए तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए, जिससे फीडबैक व बदलती आर्थिक स्थितियों के आधार पर समायोजन में मदद मिल सके। 
    • उदाहरण के लिए, भारत सरकार राष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त एवं नीति संस्थान (NIPFP) के समान एक स्वतंत्र निकाय स्थापित कर सकती है।
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