(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 – सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय से संबंधित प्रश्न)
संदर्भ
- केंद्र सरकार ने वेतन पर संहिता और अन्य तीन संहिताओं (औद्योगिक संबंध संहिता; व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता और सामाजिक सुरक्षा पर संहिता) को सितंबर 2020 में अधिनियमित किया था।
- इसके पश्चात सभी संहिताओं के तहत अपूर्ण रूप से मसौदा नियम तैयार किये गए थे क्योंकि नियमों में संहिताओं के कुछ पहलुओं को शामिल नहीं किया गया था। उदाहरण के लिये, ‘केंद्रीय व्यापारिक संघों’ की मान्यता के संबंध में अभी तक नियम नहीं बनाए गए हैं।
जल्दबाज़ी में प्रयोग
- संहिताओं के अधिनियमन और नियम बनाने की प्रक्रियाओं को लेकर विवाद हैं।
- सरकार ने केंद्रीय व्यापार संघों के साथ केवल प्रतीकात्मक और आंशिक परामर्श किया है।
- संसद में तीनों संहिताओं के पारित होने के समय विपक्षी दलों ने कार्यवाही का बहिष्कार किया था।
- कोविड-19 की अवधि के दौरान सरकार ने तेज़ी से सुधार किये, जिससे नियोक्ताओं और संभावित निवेशकों में उत्साह बढ़ा।
- सरकार ने 1 अप्रैल, 2021 से इन संहिताओं को लागू करने की घोषणा की, जबकि राज्य सरकारें नियमों के साथ पूरी तरह से सहमत नहीं थीं।
- इसके अलावा, प्रमुख राजनीतिक दलों ने इन संहिताओं के कार्यान्वयन की बजाय क्षेत्रीय चुनावों के लिये अपनी ऊर्जा का पुन: उपयोग किया।
- चूँकि, सरकारों ने इन संहिताओं को लागू करने के लिये कोई गंभीर मंशा नहीं दिखाई, इसलिये वर्तमान सरकार ने यह दावा करने के लिये सुधार किये कि उसने लंबे समय से लंबित सुधारों को क्रियान्वित किया है।
- सीधे शब्दों में कहें तो यह एक सार्थक की बजाय प्रतीकात्मक प्रयास अधिक है।
न्यायालय का निर्देश
- केंद्र सरकार ने इन संहिताओं को लागू करने की संभावित तारीख को पुनः अस्थायी रूप से 1 अक्तूबर, 2021 तक के लिये टाल दिया है।
- इस बीच, सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य दोनों सरकारों पर 'एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड' (O.N.O.R.) योजना को लागू करने और सभी असंगठित श्रमिकों को, ‘असंगठित श्रमिकों के लिये राष्ट्रीय डेटाबेस’ (N.D.U.W.) के तहत 31 जुलाई, 2021 तक पंजीकृत किये जाने का दबाव डाला है।
- सरकारी एजेंसियाँ न्यायालय के निर्देशों का पालन करने में जल्दबाज़ी कर रही हैं, जबकि ओ.एन.ओ.आर. में, आधार सीडिंग और इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट ऑफ सेल (E.P.O.S.) सिस्टम की सार्वभौमिक उपलब्धता आवश्यक है।
- इसके अलावा, एन.डी.यू.डब्ल्यू. के लिये, उसे लगभग 400 मिलियन श्रमिकों में से प्रत्येक को पंजीकृत करना होगा, जो एक रूढ़िवादी आँकड़ा है।
- शायद, उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय तालाबंदी के बाद प्रवासी पीड़ित कामगारों को राहत प्रदान करने के लिये ऐसा आदेश दिया।
सरकार की पद्धति बनाम सत्यता
- सरकार ने कहा कि के संहितताएँ सार्वभौमिक न्यूनतम मज़दूरी और सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करेंगी। इसके अलावा, अन्य चीज़ों के साथ-साथ औद्योगिक सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा के प्रावधान को मज़बूत बनाएंगी।
- पिछले सात दशकों से श्रमिक अपने श्रम अधिकारों से वंचित रहे हैं। परंतु, वर्तमान में ‘औद्योगिक संबंध संहिता’ के तहत नियोक्ताओं द्वारा व्यापार संघों को मान्यता प्रदान की जा रही है।
- 3 अगस्त, 2021 को संहिता के तहत नियमों के संबंध में राज्य सरकारों के आँकड़ों का आकलन करने के पश्चात् यह देखा गया है कि-
- तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली जैसे प्रमुख राज्यों ने किसी भी संहिता के तहत मसौदा नियम जारी नहीं किये हैं।
- कर्नाटक, गुजरात और झारखंड ने मज़दूरी संहिता और औद्योगिक संबंध संहिता के लिये नियम बनाए है।
- इसके अलावा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब ने उक्त सभी संहिताओं के लिये नियम बनाए हैं।
- यद्यपि, वेतन पर संहिता को अगस्त 2019 में लागू किया गया था, लेकिन मार्च 2021 में ही केंद्र सरकार ने एक सलाहकार समिति के गठन की अधिसूचना जारी की।
- 3 जून, 2021 को न्यूनतम मज़दूरी पर परामर्श देने के लिये तीन साल के कार्यकाल के साथ एक विशेषज्ञ समिति की भी घोषणा की गई।
- गौरतलब है कि सरकार ने 12 जुलाई, 2021 को, न्यूनतम मज़दूरी निर्धारित करने वाले वेतन सूचकांक के आधार वर्ष को 1965 से बदलकर वर्ष 2019 किये जाने की घोषणा की।
ख़राब सुरक्षा आँकड़े
- कोविड-19 की अवधि में तालाबंदी के बावज़ूद भी औद्योगिक दुर्घटनाओं में कमी नहीं आई है। उदाहरण के लिये, औद्योगिक रिपोर्ट में बताया गया कि मई से जून के मध्य, भारत में 32 बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाएँ हुईं, जिनमें 75 श्रमिक मारे गए। साथ ही, मीडिया ने वर्ष 2020 के दौरान वैज़ाग (विशाखापत्तनम) में चार दुर्घटनाओं की सूचना दी।
- वर्ष 2019 और 2020 के लिये भारत की सुरक्षित CRUSHED वार्षिक रिपोर्ट, गुरुग्राम क्षेत्र में ऑटोमोबाइल उद्योग में औद्योगिक दुर्घटना की तस्वीर प्रस्तुत करती है।
- संहिता लागू होने के बाद भी व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य की दशाओं के साथ-साथ औद्योगिक सुरक्षा एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है।
- कई शोध रिपोर्टों के अनुसार, कोविड-19 ने अनौपचारिकता को तेज़ कर दिया, जिससे श्रम बाज़ार से श्रमिकों की वापसी हुई, कमाई कम हुई, बेरोज़गारी बढ़ी और साथ ही असमानता में इज़ाफ़ा हुआ।
- गैर-सांविधिक न्यूनतम वेतन अभी भी 178 रुपए है, जबकि थोक मूल्य सूचकांक-मुद्रास्फीति की दर जून 2021 में बढ़कर 12% हो गई है।
कमियाँ
- भारत में श्रम बाज़ार शासन से संबंधित दो पहलुओं को देखा जाता हैं। पहला, सरकार दशकों बाद भी और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद, लाखों असंगठित और प्रवासी श्रमिकों को कानूनी दृश्यता प्रदान करने में विफल रही है।
- दूसरा, चार संहिताओं के राजपत्रित होने के बावजूद सदियों पुराने कानून लागू हैं।
- इस प्रकार, वे न केवल सरकारों की शासन क्षमताओं पर बल्कि विपक्षी दलों की प्रतिकार शक्ति पर भी खराब प्रदर्शन करते हैं।
- नियोक्ता और कर्मचारी, संहिता द्वारा विस्तारित तथाकथित लाभों का लाभ नहीं ले सकते हैं।