(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र- 3 : पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
संदर्भ
हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा अभिसमय (UNFCCC) को सूचित करने के लिये भारत के अद्यतन ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (Nationally Determined Contribution : NDC) को मंजूरी दी है। यह पेरिस जलवायु समझौते के तहत जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिये वैश्विक प्रतिक्रिया को मजबूत करने की दिशा में भारत के योगदान में वृद्धि का प्रयास है।
भारत का राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एन.डी.सी.)
- भारत ने 2 अक्टूबर, 2015 को यू.एन.एफ.सी.सी.सी. को अपना एन.डी.सी. प्रस्तुत किया था। इसमें आठ लक्ष्य शामिल थे, जिनमें से तीन वर्ष 2030 तक के लिये मात्रात्मक लक्ष्य हैं, जैसे-
- गैर-जीवाश्म स्रोतों से विद्युत उत्पादन की संचयी स्थापित क्षमता को बढ़ाकर 40% तक करना।
- वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 33 से 35% तक कम करना।
- अतिरिक्त वन व वृक्षावरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाईऑक्साइड के अतिरिक्त कार्बन सिंक का निर्माण करना।
अद्यतन एन.डी.सी.
अद्यतन एन.डी.सी. के अनुसार, भारत अब वर्ष 2030 तक वर्ष 2005 के स्तर से अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करने और वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 50% संचयी विद्युत शक्ति की स्थापित क्षमता प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है।
अद्यतन एन.डी.सी. के निहितार्थ
- 'पंचामृत' को उन्नत जलवायु लक्ष्यों में परिवर्तित करना।
- भारत ने यू.एन.एफ.सी.सी.सी. के कॉप-26 (ग्लासगो) सम्मेलन में जलवायु कार्रवाई को तेज करने के लिये पाँच अमृत तत्वों (पंचामृत) को पेश किया था।
- गरीबों और कमजोर समूहों को जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से बचाने के लिये ‘टिकाऊ जीवनशैली’ (लाइफ मूवमेंट) और ‘जलवायु न्याय’ के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाना।
- भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा कॉप-26 के दौरान प्रस्तुत ‘लाइफ’ दृष्टिकोण एक ऐसी जीवनशैली अपनाने से संबंधित है जो पृथ्वी के अनुरूप हो और इसे क्षति न पहुंचाए।
- भारत के वर्ष 2070 तक नेट-जीरो के दीर्घकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण।
- हरितगृह गैस उत्सर्जन से आर्थिक विकास को अलग करने, निम्न कार्बन उत्सर्जन की दिशा में काम करने और सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये भारत की उच्च प्रतिबद्धता की पुष्टि करना।
- वर्ष 2021-2030 की अवधि के लिये भारत के ‘स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण’ की रूपरेखा का भी प्रतिनिधित्व करना।
- यह ढाँचा सरकार की अनेक पहलों के साथ (जिसमें कर रियायतें और प्रोत्साहन शामिल हैं, जैसे नवीकरणीय ऊर्जा के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना) भारत की विनिर्माण क्षमताओं और निर्यात को बढ़ाने का अवसर प्रदान करेगी।
- ‘ग्रीन जॉब्स’ में समग्र वृद्धि करना।
- इसके माध्यम से अक्षय ऊर्जा, स्वच्छ ऊर्जा उद्योग (ऑटोमोटिव), कम उत्सर्जन वाले उत्पादों (जैसे इलेक्ट्रिक वाहन) और कुशल उपकरणों के निर्माण व हरित हाइड्रोजन जैसी नवीन तकनीकों आदि से यह संभव होगा।
भारत द्वारा प्रयास
- अद्यतन एन.डी.सी. को संबंधित मंत्रालयों/विभागों के माध्यम से तथा राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के उचित समर्थन के साथ वर्ष 2021-2030 की अवधि में लागू किया जाएगा।
- सरकार ने जलवायु अनुकूलन और शमन के लिये कई योजनाएं व कार्यक्रम शुरू किये हैं।
- जल, कृषि, वन, ऊर्जा और उद्यम के साथ-साथ सतत गतिशीलता आवास, अपशिष्ट प्रबंधन, चक्रीय अर्थव्यवस्था और संसाधन दक्षता आदि सहित कई क्षेत्रों में उचित उपाय किये जा रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप, भारत उत्तरोत्तर आर्थिक विकास में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम कर रहा है।
- अकेले भारतीय रेलवे द्वारा वर्ष 2030 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य से उत्सर्जन में सालाना 60 मिलियन टन की कमी आएगी।
- भारत का एल.ई.डी. (LED) बल्ब वितरण अभियान सालाना 40 मिलियन टन उत्सर्जन को कम कर रहा है।
निष्कर्ष
भारत का एन.डी.सी. इसे किसी क्षेत्र विशिष्ट शमन दायित्व या कार्रवाई के लिये बाध्य नहीं करता है। भारत का लक्ष्य समग्र उत्सर्जन तीव्रता को कम करना और समय के साथ अपनी अर्थव्यवस्था की ऊर्जा दक्षता में सुधार करते हुए अर्थव्यवस्था के कमजोर क्षेत्रों की रक्षा करना है। हालाँकि, नए और अतिरिक्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने, वैश्विक जलवायु परिवर्तन चुनौती से निपटने के लिये प्रौद्योगिकी हस्तांतरण यू.एन.एफ.सी.सी.सी. और पेरिस समझौते के तहत विकसित देशों की प्रतिबद्धताओं व जिम्मेदारियों में से एक है। भारत को ऐसे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संसाधनों और तकनीकी सहायता से अपने उचित हिस्से की भी आवश्यकता होगी।