(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारत का भूगोल) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 : दक्षिण एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप को शामिल करते हुए विश्व भर के मुख्य प्राकृतिक संसाधनों का वितरण, भारत सहित विश्व के विभिन्न भागों में प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र के उद्योगों को स्थापित करने के लिये ज़िम्मेदार कारक) |
संदर्भ
अरुणाचल प्रदेश के पर्यावरण कार्यकर्ताओं एवं स्थानीय समुदायों द्वारा प्रस्तावित ऊपरी सियांग बहुउद्देशीय मेगा परियोजना का लगातार विरोध किया जा रहा है।
ऊपरी सियांग परियोजना के बारे में
- यह परियोजना अरुणाचल प्रदेश के सियांग जिले में सियांग नदी पर प्रस्तावित 11,000 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना है।
- इसका निर्माण भारत की अग्रणी जलविद्युत कंपनी ‘राष्ट्रीय जलविद्युत निगम (NHPC) द्वारा किया जा रहा है।
- निर्माण के बाद यह भारत की अब तक की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना होगी जिसका आधिकारिक नाम 'अपर सियांग बहुउद्देशीय भंडारण' परियोजना है।
- इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य चीन द्वारा यारलुंग त्सांगपो नदी के जल के प्राकृतिक बहाव को मोड़ने की योजना का मुकाबला करना है। यारलुंग त्सांगपो अरुणाचल में सियांग के रूप में और असम में ब्रह्मपुत्र के रूप में प्रवाहित होती है।
- इसके अतिरिक्त ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ प्रबंधन भी इसका एक उद्देश्य है।
- जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना में 9 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी का भंडारण किया जाएगा।
- चीन द्वारा नदी के प्रवाह को मोड़ने कि स्थिति में इस परियोजना से निर्मित विशाल जलाशय अरुणाचल प्रदेश एवं असम में की सिंचाई आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम होगा।
अरुणाचल प्रदेश मे जल विद्युत की संभावनाएँ
- अरुणाचल प्रदेश की पहाड़ी स्थलाकृति एवं उच्च वार्षिक वर्षा जलविद्युत परियोजनाओं के विकास के लिए आदर्श स्थिति दर्शाती है।
- राज्य में आठ प्रमुख नदी घाटियाँ हैं : तवांगचू, कामेंग, डिक्रोंग, सुबनसिरी, सियांग, दिबांग, लोहित एवं तिरप।
- अरुणाचल प्रदेश मे कई सहायक नदियाँ एवं वितरिकाएँ हैं, जो जलविद्युत परियोजनाओं के विकास के लिए उपयुक्त स्थल प्रदान करती हैं।
- देश में अनुमानित कुल जलविद्युत क्षमता में से लगभग 40% अरुणाचल प्रदेश राज्य में है।
- रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण अरुणाचल प्रदेश राज्य में 58,000 मेगावाट से अधिक जलविद्युत क्षमता है किंतु अभी तक इस क्षमता का केवल 1.00% ही दोहन किया जा सका है।
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अरुणाचल प्रदेश की अन्य जल विद्युत परियोजनाएं
- कामेंग जल विद्युत परियोजना : कामेंग नदी पर (ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी)
- सुबनसिरी अपर जल विद्युत परियोजना : सुबनसिरी नदी पर (ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी)
- सियांग लोअर जल विद्युत परियोजना : सियांग नदी (ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी)
- हिरोंग जल विद्युत परियोजना : सियोम नदी पर (ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी)
परियोजना के विरोध के कारण
भारतीय हिमालयी क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाओं को लेकर हुए अध्ययनों में से अधिकांश सामाजिक ताने-बाने में परिवर्तन; जनसांख्यिकी बदलाव; वन, जैव विविधता व कृषि भूमि को क्षति के साथ-साथ स्थानीय लोगों की समस्याओं पर केंद्रित रहे है। वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश मे होने वाला विरोध भी इन्हीं मुद्दों के इर्द गिर्द है।
आवास विनाश एवं विस्थापन
- प्रस्तावित सियांग मेगा बांध परियोजना स्थानीय समुदायों के निवास को खतरे में डाल सकता है।
- यह परियोजना अत्यधिक विस्थापन को बढ़ावा देगी जिसके कारण अदी जनजाति के कई गांव जलमग्न हो जाएंगे। इनमें यिंगकियोंग का ऊपरी सियांग जिला मुख्यालय भी शामिल है।
पर्यावरणीय प्रभाव
- प्रस्तावित परियोजना में भूमि की अत्यधिक आवश्यकता के कारण बड़े पैमाने पर वनों की कटाई से कार्बन उत्सर्जन को बढ़ावा मिलेगा।
- इस परियोजना से पारिस्थितिकी तंत्र, वन्यजीव आवास व जैव विविधता नकारत्मक रूप प्रभावित होगी।
- उदाहरण के लिए, उत्तराखंड राज्य में जल विद्युत परियोजनाएं पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को बढ़ा रही हैं जो हाल के वर्षों में बादल फटने एवं फ्लश फ्लड (Flash Floods) का कारण बन रही हैं।
आर्थिक प्रभाव
यहाँ के समुदाय अपनी आजीविका एवं सांस्कृतिक प्रथाओं आदि के लिए इन नदियों पर निर्भर रहे हैं। प्रस्तावित बांध से उनकी जीवन शैली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
विरोध के अन्य उदाहरण
- हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड में जलविद्युत परियोजनाओं के अंधाधुंध निर्माण से पहाड़ियां खिसक रही हैं, जिससे इस क्षेत्र को भारी नुकसान हो रहा है।
- हिमाचल प्रदेश में 'किन्नौर बचाओ अभियान' एवं 'नो मीन्स नो' सहित कई स्थानीय अभियान इस क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाओं के और अधिक प्रसार को रोकने के लिए शुरू किए गए थे।
निष्कर्ष
पर्यावरणीय संगठनों के अनुसार सरकार को नदियों का और अधिक दोहन करने के बजाए सौर एवं पवन ऊर्जा जैसे टिकाऊ विकल्पों की खोज की जानी चाहिए। साथ ही, सरकार को स्वदेशी लोगों के साथ अधिकार-आधारित ऊर्जा साझेदारी के लिए छोटे व मध्यम सामाजिक उद्यमों का समर्थन करना चाहिए। वृहत परियोजनाओं के बजाए भारत सरकार को वैकल्पिक ऊर्जा समाधानों की खोज करनी चाहिए जो राज्य के अद्वितीय पारिस्थितिक संदर्भ के साथ संरेखित हों।