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शहरी बुनियादी ढांचा वित्तपोषण : चुनौतियाँ एवं समाधान

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन : बुनियादी ढाँच)

संदर्भ 

भारत की शहरी आबादी विगत दशक के 400 मिलियन से बढ़कर अगले तीन दशकों में 800 मिलियन होने की संभावना है। यद्यपि यह भारत के शहरी परिदृश्य को बदलने का भी महत्वपूर्ण अवसर उपलब्ध कराता है किंतु इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय चुनौतियों का समाधान आवश्यक है।  

विश्व बैंक के प्रमुख आँकड़े 

  • विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2036 तक भारत के शहरों में 600 मिलियन लोग निवास कर रहे होंगे, जो कि कुल आबादी का 40% होगा। इससे भारतीय शहरों के पहले से ही तनावग्रस्त शहरी बुनियादी ढांचे एवं सेवाओं पर अतिरिक्त दबाव पड़ने की संभावना है जिनमें स्वच्छ पेयजल, विश्वसनीय बिजली आपूर्ति, कुशल एवं सुरक्षित सड़क परिवहन आदि शामिल हैं। 
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत को अपनी शहरी बुनियादी ढांचे की जरूरतों को पूरा करने के लिए वर्ष 2036 तक लगभग 70 लाख करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी। हालांकि, शहरी बुनियादी ढांचे पर वर्तमान सरकारी निवेश वार्षिक लगभग 1.3 लाख करोड़ रुपए है। इसमें लगभग 50% बुनियादी शहरी सेवाओं के लिए अनुमानित है जबकि शेष आधा शहरी परिवहन के लिए है।

शहरी बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण से संबंधित चुनौतियाँ

  • नगर पालिकाओं की खराब वित्तीय स्थिति : वर्ष 2002 से नगरपालिका वित्त सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1% रहा है। नगर निकाय शहरी निवेश में 45% का योगदान करते हैं। हालांकि, केंद्रीय एवं राज्य हस्तांतरण में 37% से 44% की वृद्धि के बावजूद भी नगर पालिकाओं की वित्तीय स्थिति अनिश्चित बनी हुई है।
  • नगर निकायों की राजस्व क्षमता में कमी : वर्ष 2010 से 2018 के बीच नगर निकायों के कर राजस्व में केवल 8%, अनुदान में 14% और गैर-कर राजस्व में 10.5% की वृद्धि हुई। हालाँकि, नगरपालिकाओं के स्वयं के राजस्व स्रोतों का हिस्सा 51% से घटकर 43% हो गया है जो राजस्व क्षमता में कमी को दर्शाता है।
  • कमजोर कर संग्रह क्षमताएं : वर्तमान में शहरी स्थानीय निकायों (ULB) में कर संग्रह अक्षमताएँ मौजूद हैं। उदाहरण के लिए, बेंगलुरु एवं जयपुर में ULB अपने संभावित कर राजस्व का केवल 5%-20% ही एकत्र करते हैं। राष्ट्रव्यापी स्तर पर संपत्ति कर संग्रह मात्र 25,000 करोड़ है जो सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.15% है। 
    • इसके अलावा, सेवाओं के लिए लागत वसूली 20% से 50% तक है, जो शहरी सेवाओं की लागत और उनसे उत्पन्न राजस्व के बीच महत्वपूर्ण अंतर को उजागर करता है।
  • अनुप्रयुक्त निधियां : पंद्रहवें वित्त आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, नगरपालिकाओं द्वारा अपने कुल राजस्व का लगभग 23% हिस्सा व्यय नहीं किया जाता है जो नगरपालिका प्रणाली में अधिशेष की स्थिति को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, हैदराबाद एवं चेन्नई जैसे शहर भी वर्ष 2018-19 में अपने पूंजीगत व्यय बजट का केवल 50% ही व्यय कर पाए।
  • निम्न अवशोषण क्षमता : भारतीय शहरों की अवशोषण क्षमता कम है जिसका अर्थ है कि परियोजनाएं क्रियान्वित करने की उनकी क्षमता कमजोर है। ऐसा कई कारकों के कारण हुआ है, जिनमें शहरी संस्थागत क्षमता की कमज़ोरी और वित्तीय प्रबंधन का अभाव आदि शामिल है। 
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी में कमी : शहरी बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) एक महत्वपूर्ण साधन हैं। हालांकि, पिछले दशक में इसमें उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। शहरी बुनियादी ढांचे में पी.पी.पी. निवेश वर्ष 2012 में जहां 8,353 करोड़ के उच्चतम स्तर पर था, वहीं वर्ष 2018 तक घटकर केवल 467 करोड़ रह गया है। 
  • विश्व बैंक के अनुसार, भारतीय शहरों की बुनियादी ढांचे की आवश्यकताओं का केवल 5% ही निजी स्रोतों से वित्तपोषित किया जा रहा है।

समाधान 

दीर्घकालिक समाधान

  • नगर निकायों में संरचनात्मक सुधार करना
  • राज्य वित्त आयोगों की स्थिति को मजबूत करना 
  • बेहतर वित्तीय प्रबंधन के लिए स्वायत्तता व क्षमता बढ़ाना
  • प्रशासनिक स्वायत्तता के साथ नगरपालिका सरकारों को सशक्त बनाना 
  • शहरी विकास के लिए संसाधनों का अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधन एवं आवंटन करने में सक्षम बनाना
  • ऋण उधार एवं नगरपालिका बांड जैसे तंत्रों के माध्यम से निजी पूंजी को आकर्षित करना 

मध्यम अवधि समाधान

  • परियोजनाओं की एक मजबूत पाइपलाइन का विकास 
  • परियोजना की तैयारी को वित्तीय सहायता से अलग करना 
  • बेहतर संचालन के लिए डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) का लाभ उठाना
  • परिवहन परियोजनाओं में भूमि मूल्य को शामिल करना

प्रमुख योजनाएँ एवं कार्यक्रम

  • राष्ट्रीय सतत पर्यावास मिशन : यह मिशन शमन रणनीति के तहत भारत सरकार के आठ जलवायु मिशनों में से एक है। इस नीति को भवन ऊर्जा क्षमता के सुधार, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन तथा यातायात प्रकारों में परिवर्तन के उद्देश्य से तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य वाणिज्यिक एवं आवासीय क्षेत्रों में वैकल्पिक प्रौद्योगिकी व ऊर्जा संरक्षण प्रथाओं को बढ़ावा देकर ऊर्जा मांग को कम करना है।
  • आत्मनिर्भर भारत के तहत मंत्रालय की योजना : कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप देश में शहरी प्रवासियों/गरीबों के पलायन के कारण उनके कार्यस्थलों पर किराए के उचित आवास की आवश्यकता को पूरा करने के लिये आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी के तहत एक उप-योजना के रूप में किफायती किराये के आवास परिसरों (ARHC) की शुरुआत की है।
  • स्मार्ट सिटी : स्मार्ट सिटी मिशन 25 जून, 2015 को शुरू किया गया। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य उन शहरों को बढ़ावा देना है जो बुनियादी ढांचा, स्वच्छ एवं टिकाऊ वातावरण प्रदान करते हैं और स्मार्ट समाधानों के माध्यम से अपने नागरिकों को जीवन की अच्छी गुणवत्ता प्रदान करते हैं। साथ ही, इसका उद्देश्य शहर के सामाजिक, आर्थिक, भौतिक एवं संस्थागत स्तंभों पर आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
  • राष्ट्रीय विरासत शहर विकास एवं वृद्धि योजना (हृदय) : यह भारत सरकार की एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है जिसे 21 जनवरी, 2015 को शहरी नियोजन, आर्थिक विकास एवं विरासत संरक्षण के उद्देश्य से शुरू किया गया था। इस योजना के तहत 12 शहरों- अजमेर, अमृतसर, अमरावती, बादामी, द्वारका, गया, कांचीपुरम, मथुरा, पुरी, वाराणसी, वेलंकन्नी व वारंगल को विकास के लिये चिन्हित किया गया है। हृदय योजना की मिशन अवधि 31 मार्च, 2019 को समाप्त हुई।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र के शहरी विकास कार्यक्रम (NERUDP) : इसको शहरी विकास मंत्रालय द्वारा एशियाई विकास बैंक (ADB) की वित्तीय सहायता से शुरू किया गया है। इसमें ए.डी.बी. का योगदान भारत सरकार को ऋण के रूप में लागत का 70% है। यह योजना क्षमता निर्माण, संस्थागत एवं वित्तीय सुधारों के अलावा प्राथमिक शहरी सेवाओं, जैसे- जलापूर्ति, सीवरेज व स्वच्छता और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को कवर करते हुए 5 उत्तर-पूर्वी राज्यों की राजधानियों अगरतला (त्रिपुरा), आइजोल (मिजोरम), गंगटोक (सिक्किम) एवं कोहिमा (नागालैंड) में लागू की जा रही है।
  • शहरी परिवहन : शहरी विकास मंत्रालय का शहरी परिवहन विंग केंद्रीय स्तर पर मेट्रो रेल परियोजनाओं सहित शहरी परिवहन मामलों के समन्वय, मूल्यांकन एवं अनुमोदन के लिए नोडल प्रभाग है। शहरी विकास मंत्रालय द्वारा शहरी परिवहन में सभी हस्तक्षेप, जैसे- बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (BRTS), शहरी ट्रांजिट इंफ्रास्ट्रक्चर या मेट्रो रेल परियोजनाओं का वित्तपोषण आदि राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति, 2006 के प्रावधानों के अनुसार किए जाते हैं।
  • अमृत मिशन : इसका शुभारंभ जून 2015 में किया गया। इस मिशन का उद्देश्‍य 500 शहरों/कस्‍बों की बुनियादी शहरी अवसंरचना में सुधार करना है। इस केंद्र प्रायोजित योजना के तहत छावनी बोर्ड तथा राजधानी कस्‍बों जैसे कुछ अन्‍य शहरों, प्रमुख नदियों के उद्गम स्‍थलों पर बसे शहरों एवं पर्यटन व पर्वतीय दर्शनीय स्‍थलों तथा अधिसूचित नगरपालिकाओं सहित एक लाख से अधिक जनसंख्‍या वाले सभी शहरों व कस्‍बों को शामिल करना है।
  • स्वच्छ भारत अभियान : भारत सरकार द्वारा स्वच्छ भारत अभियान 2 अक्तूबर, 2014 को आरंभ किया गया। यह राष्ट्रीय स्तर का अभियान है जिसका उद्देश्य गलियों, सड़कों तथा अधोसंरचना को साफ-सुथरा करना है।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना : भारत सरकार के एक प्रमुख कार्यक्रम प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी (PMAY-U) को 25 जून, 2015 को लॉन्च किया गया था। यह सभी पात्र शहरी परिवारों को पक्का घर सुनिश्चित करके स्लम निवासियों सहित आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग/निम्न आय समूह तथा माध्यम आय समूह श्रेणियों के मध्य शहरी आवास की कमी को संबोधित करता है।

आगे की राह 

  • भारत में शहरों को हरित, स्मार्ट, समावेशी और संधारणीय शहरीकरण को बढ़ावा देने के लिए बड़ी मात्रा में वित्तपोषण की आवश्यकता है। इसलिए, निजी स्रोतों से अधिक उधार लेने के लिए यू.एल.बी., विशेष रूप से बड़े एवं ऋण योग्य यू.एल.बी. के लिए अनुकूल वातावरण बनाना महत्वपूर्ण होगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शहर अपनी बढ़ती आबादी के जीवन स्तर को संधारणीय तरीके से सुधारने में सक्षम हों। 
  • इसके अलावा संस्थागत निवेशकों के वित्तपोषण के प्रवाह को सुरक्षित करने के लिए ठोस परियोजना पाइपलाइनों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने के साथ विनियामक बाधाओं को समाप्त करने की अवश्यकता होगी। 
  • भारत का शहरी भविष्य इन वित्तीय एवं संरचनात्मक चुनौतियों के समाधान क्षमता पर टिका है। ऐसे में तत्काल एवं दीर्घकालिक दोनों रणनीतियों का पालन करके भारत शहरों की बढती मांगों को पूरा करने वाले शहरी बुनियादी ढांचे का निर्माण कर सकता है जिससे आने वाले दशकों के लिए टिकाऊ और समावेशी विकास सुनिश्चित हो सके। इसके लिए सरकारी स्तरों पर सहयोग, निजी क्षेत्र की भागीदारी और नवाचार और शासन दक्षता पर निरंतर ध्यान देने की आवश्यकता होगी।
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