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अमेरिका द्वारा वीज़ा प्रतिबंध: कारण, प्रभाव व प्रतिक्रिया

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय)

चर्चा में क्यों?

अमेरिका ने 24 जून से विभिन्न प्रकार के ग़ैर-आप्रवासी कार्य वीज़ा की प्रक्रिया और उनको जारी करने पर लगी रोक को बढ़ाने का निर्णय लिया है। इसके तहत दिसम्बर 2020 तक अमेरिका द्वारा किसी भी प्रकार के ‘कार्य वीज़ा’ (Work Visa) जारी नहीं किये जाएंगे। अप्रैल में, अमेरिका ने वैधानिक रूप से प्रवास करने सम्बंधी नियमों को 60 दिनों के लिये रोक दिया था, जिसका सीधा मतलब ‘ग्रीन कार्ड’ जारी करने पर प्रतिबंध से था।

पृष्ठभूमि

‘संरक्षणवाद’, ‘व्हाइट सुप्रीमेसी’ और ‘अमेरिका फर्स्ट’ जैसे नारों के बीच तथा कोविड-19 के कारण आर्थिक संकट व रोज़गार की कमी के कारण एच-1बी (H-1B) वीज़ा पर प्रतिबंध लगाए गए हैं। इसके अतिरिक्त, एच-2बी (H-2B) वीज़ा के साथ-साथ एल-1 (L-1), एल-2 (L-2) तथा जे-1 (J-1) जैसे वीज़ा पर भी सभी प्रकार से रोक लगा दी गई है। ट्रम्प प्रशासन द्वारा वीज़ा नीति में इस बदलाव के कारण कई प्रकार के प्रश्न उभरकर सामने आए हैं। इन प्रश्नों में सबसे महत्त्वपूर्ण भारतीय आई.टी. सेवाओं के निर्यात और भारत-अमेरिका सम्बंधों पर पड़ने वाला प्रभाव है। साथ ही, यह भी देखना होगा की इस कदम से उन भारतीय फर्मों पर क्या प्रभाव पड़ेगा जो श्रमिकों को अमेरिका भेजती हैं। अन्य प्रश्नों में अमेरिकी अर्थव्यवस्था व रोज़गार पर पड़ने वाले प्रभाव तथा अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिये चुनावी रणनीति के रूप में इसके प्रयोग पर भी सवाल हैं।

एच-1बी वीज़ा (H1B Visa)

  • एच-1बी अमेरिका द्वारा ग़ैर-आप्रवासियों (Non-Immigrants) के लिये जारी किया जाने वाला एक कार्य वीज़ा (Work Visa) है, जो सूचना प्रौद्योगिकी, अभियांत्रिकी, गणित, विज्ञान, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले पेशेवरों हेतु जारी किया जाता है।
  • यह वीज़ा अमेरिका के ‘आप्रवासी और राष्ट्रीयता अधिनियम (INA), 1952’ के तहत ‘संयुक्त राज्य नागरिकता और आप्रवासी सेवा’ (USCIS) द्वारा जारी किया जाता है।
  • एच-1बी वीज़ा की अधिकतम वैधता अवधि 6 वर्ष हो सकती है। दरअसल, यह वीज़ा सामान्यतः 3 वर्ष की अवधि के लिये जारी किया जाता है, परंतु आवश्यकता पड़ने पर इसकी अवधि को 3 अतिरिक्त वर्षों के लिये बढ़ाया भी जा सकता है। इसके अलावा, इस वीज़ा के लिये आवेदन करने वाले व्यक्ति की ‘न्यूनतम अनिवार्य योग्यता स्नातक’ है।
  • उल्लेखनीय है कि एच-1बी वीज़ा धारक अमेरिका में ग्रीन कार्ड के लिये आवेदन करने का भी पात्र होता है। वस्तुतः अमेरिकी ग्रीन कार्ड वहाँ स्थाई रूप से निवास करने व कार्य करने का वैधानिक प्रमाण-पत्र होता है।
  • एच-1बी वीज़ा धारकों के लिये एक विशेष सुविधा यह होती है कि वे अपने ऊपर आश्रित परिवार के सदस्यों जैसे- पति/पत्नी, 21 वर्ष से कम उम्र के बच्चे आदि को भी अपने साथ ले जा सकते हैं। हालाँकि, प्रत्येक आश्रित सदस्य के लिये एच-4 वीज़ा लेना अनिवार्य होता है।

ट्रम्प प्रशासन द्वारा आव्रजन नीति में परिवर्तन का आर्थिक कारण

  • वीज़ा प्रतिबंध की नीति का घोषित उद्देश्य अमेरिकी नौकरियों और रोज़गार के क्षेत्र में विदेशी श्रमिकों की संख्या कम करना है क्योंकि कोविड-19 के चलते अमेरिका में रोज़गार की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है।
  • उल्लेखनीय है कि वर्तमान कोरोना काल में अमेरिका में बेरोज़गारी दर लगभग 14% हो गई है, जो वर्ष 1929 की वैश्विक आर्थिक मंदी के बाद सर्वाधिक मानी जा रही है।
  • ट्रम्प प्रशासन ने इससे पूर्व कुछ मुस्लिम-बाहुल्य देशों से आने वाले पर्यटकों पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। इसके अलावा, अमेरिका में उसकी दक्षिणी सीमा से प्रवेश करने वाले ग़ैर-अधिकृत कामगारों को रोकने के लिये सीमा पर दीवार बनाने सम्बंधी घोषणाएँ कई बार सार्वजानिक रूप से की गईं हैं।

अमेरिका द्वारा जारी किये जाने वाले कुछ प्रमुख वीज़ा:

  • अमेरिका अपनी श्रम आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये विभिन्न प्रकार के कार्य वीज़ा जारी करता है। इनमें से कुछ प्रमुख कार्य वीज़ा इस प्रकार हैं-

a) G-1 वीज़ा: शोधार्थियों व अध्येताओं (Researchers and Scholars) के लिये।
b) H-1A वीज़ा: नर्सों के लिये
c) H-1B वीज़ा: तकनीकी क्षेत्र के पेशेवरों के लिये
d) H-2A व H-2B वीज़ा: कृषि व ग़ैर-कृषि कार्यों सम्बंधी मौसमी गतिविधियों से जुड़े कामगारों (Seasonal Workers) के लिये।
e) H-4 वीज़ा: H-1B वीज़ा धारक के आश्रितों, यथा- पति/पत्नी, 21 वर्ष से कम आयु के बच्चों आदि के लिये।
f) J वीज़ा: विद्यार्थियों के लिये।
g) L-1 वीज़ा: सात वर्ष तक की अवधि हेतु किसी कम्पनी के अत्यधिक कुशल कर्मचारियों के लिये, जिन्हें उस कम्पनी ने किसी अन्य देश से अमेरिका स्थित इकाई में स्थानांतरित किया हो।
h) P वीज़ा: कलाकारों (Artists) के लिये।

वीज़ा प्रतिबंध सम्बंधी राजनीतिक दृष्टिकोण

  • कार्य वीज़ा पर प्रतिबंध द्वारा अमेरिकी व्यक्तियों की आजीविका की रक्षा जैसे तर्क दिये जा रहे हैं परंतु अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि इस प्रकार के वास्तविक आर्थिक लाभ इस समय हासिल किये जा सकते हैं। इसका कारण है कि ये नवीनतम प्रतिबंध ऐसे वीज़ा धारकों पर लागू नहीं होते है जो पहले से ही अमेरिका में रह रहे है या ऐसे लोग जो अमेरिका से बाहर है परंतु उनको पहले से ही वैध वीज़ा जारी किया जा चुका है।
  • यह प्रतिबंध वर्ष 2020 के अंत तक लागू रहेगा। इस कारण से यू.एस. में काम करने वाले कुशल विदेशी कर्मचारियों पर निर्भर फ़र्में नए लोगों की नियुक्ति नहीं कर सकती हैं। इसी आधार पर कहा जा रहा है कि इससे अमेरिकियों के लिये रोज़गार को सुरक्षित किया जा सकेगा।
  • हालाँकि, आर्थिक रूप से कमज़ोर वातावरण में इस वर्ष के अंत तक बहुत कम फर्मों द्वारा लोगों के नियोजन की सम्भावना है। ऐसी स्थिति में वीज़ा प्रतिबंधों से अमेरिकियों के लिये रोज़गार को सुरक्षित करने में बहुत कम फर्क पड़ने की उम्मीद है। अतः इस नीति को काफी हद तक राजनीति से प्रेरित माना जा रहा है।

भारत पर प्रभाव

  • भारतीय आई.टी. कम्पनियाँ एच-1बी वीज़ा के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक हैं और वर्ष 1990 के बाद से प्रत्येक वर्ष जारी किये गए वीज़ा की कुल संख्या के एक बड़े हिस्सेदार रहे हैं।
  • कुशल श्रमिकों (पेशेवरों) के लिये एच-1बी (H-1B) वीज़ा का एक बड़ा हिस्सा भारतीयों को जारी किया जाता है। साथ ही, एच-4 (H-4) वीज़ा पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  • आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, 1 अप्रैल, 2020 तक, ‘यू.एस. सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज’ (USCIS) को लगभग 2.5 लाख एच-1बी वर्क वीज़ा आवेदन प्राप्त हुए थे। इसमें भारतीयों ने करीब 1.84 लाख या 67% वीज़ा के लिये आवेदन किया था।
  • अमेरिका में कुल 4 लाख से अधिक एच-1बी वीज़ा धारक हैं जिसमें तीन-चौथाई से अधिक भारतीय हैं। अमेरिका में भारतीय एल-1 वीज़ा धारकों की भी एक महत्त्वपूर्ण संख्या है।
  • संयुक्त राज्य नागरिकता और आप्रवासी सेवा (USCIS) नामक संस्था द्वारा प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार, अमेरिका द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 85000 एच-1बी वीज़ा जारी किये जाते हैं। इनमें से तकरीबन 70% वीज़ा भारतीयों को प्राप्त होते हैं।
  • इसमें से 65,000 एच-1बी वीज़ा अत्यधिक कुशल विदेशी श्रमिकों को जारी किये जाते हैं, जबकि बाकी 20,000 को उच्च कुशल विदेशी श्रमिकों को आवंटित किया जा सकता है, जिनके पास अमेरिकी विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा या स्नातकोत्तर की डिग्री है।
  • इंफोसिस, टी.सी.एस. और विप्रो जैसी कम्पनियाँ पारम्परिक रूप से 80:20 के 'ऑफसाइट-ऑनसाइट' कर्मचारी अनुपात का पालन करती हैं। इसका मतलब यह है कि यदि किसी विशेष परियोजना को 10 कर्मचारियों को सौंपा जाता है, तो उसमें से आठ कर्मचारी भारत से और दो को अमेरिका में काम करने की आवश्यकता होती है। इसलिये इस मॉडल को लागू करने के लिये एच-1बी और अन्य वीज़ा की आवश्यकता होती है।
  • एच-1बी वीज़ा भारतीय सेवा उद्योग के लिये महत्त्वपूर्ण है जो यू.एस. में लगभग 29.6 बिलियन (वर्ष 2018 में) मूल्य की सेवाओं का निर्यात करता है।
  • दरअसल, भारतीय लोग काम की गुणवत्ता को बरक़रार रखते हुए अमेरिकी नागरिकों की अपेक्षा कम वेतन में कार्य करने को तैयार रहते हैं। परिणामस्वरूप कम्पनियों के खर्च में कमी व मुनाफ़े में वृद्धि होती है। अतः अमेरिकी कम्पनियाँ नियोजन में भारतीयों को प्राथमिकता देती हैं।
  • इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक असर पड़ता है क्योंकि अमेरिका में नियोजित भारतीय लोग भारत में भी धनराशि प्रेषित करते हैं। इससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होती है और भुगतान संतुलन खाता अनुशासित रहता है।

अमेरिका पर असर

  • वास्तव में, एच-1बी की व्यवस्था द्वारा अमेरिका को विश्व के श्रेष्ठ विशेषज्ञों की सेवाएँ प्राप्त होती हैं, जिससे उसकी आर्थिक संवृद्धि की राह आसान हो जाती है। साथ ही, इसके द्वारा अमेरिका को तकनीक, अनुसंधान और नवोन्मेष में अधिक लाभ मिलता है।
  • उदाहरण के लिये सत्य नडेला, सुंदर पिचाई जैसे विश्व विख्यात भारतीयों ने अमेरिका को वैश्विक सिरमौर बनाने में महती भूमिका अदा की है।
  • ‘अमेरिकी आव्रजन लॉयर एसोसिएशन’ (AILA) ने कहा है कि H-1B, H-2B, J-1 और L-1 वीज़ा न जारी करने से नियोक्ताओं, परिवारों, विश्वविद्यालयों के साथ-साथ अस्पतालों व समुदायों को नुकसान होगा और अमेरिका की आर्थिक रिकवरी में देरी होगी।

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भारत-अमेरिका सम्बंध

  • फरवरी 2020 में ही भारत और अमेरिका ने ‘वैश्विक रणनीतिक भागीदारी समझौते’ पर हस्ताक्षर किये थे। हालाँकि, आर्थिक मुद्दे दोनों देशों के मध्य सम्बंधों को आगे बढ़ाने के साथ-साथ बातचीत को भी प्रभावित करते हैं।
  • भारत से जी.एस.पी. (Generalized System of Preferences) के तहत प्राप्त लाभ को वापस लेने और एच-1बी वीज़ा जैसे मुद्दे अमेरिका को भारत के एक अस्थिर सहयोगी के रूप में सामने लाता है।

आगे की राह

  • अमेरिका में फ़रवरी और अप्रैल 2020 के मध्य प्रमुख उद्योगों में 20 मिलियन से ज़्यादा कामगारों को नौकरियाँ गँवानी पड़ी हैं, जबकि नियोक्ता अभी भी वर्तमान में H-1B और L वीज़ा के माध्यम से पदों को भरने का अनुरोध कर रहे हैं।
  • ये नीतियाँ अमेरिका इंक, वाल स्ट्रीट से लेकर सिलिकॉन वैली तक को प्रभावित कर सकती हैं। साथ ही, ये कम्पनियाँ बड़े स्तर की नियोक्ता हैं जिस कारण से लाखों ग़ैर-आप्रवासी विदेशी श्रमिकों को नुकसान पहुँच सकता है।
  • महामारी के कारण पहले से ही आर्थिक मंदी की मार झेल रहा कॉरपोरेट अमेरिका शायद ही कार्य बलों के आधार पर होने वाले नुकसान का बोझ उठा पाने में सक्षम हो।
  • भारत सरकार को भी इस अवसर का लाभ उठाना चाहिये और विभिन्न परियोजनाओं जैसे स्मार्ट सिटी परियोजना, स्किल इंडिया मिशन और प्रौद्योगिकी में वैश्विक नेता बनने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • सरकार को इस अवसर का उपयोग ‘प्रतिभा पलायन’ (Brain Drain) को रोक कर नए भारत के निर्माण में भारतीयों की भागीदारी को बढ़ाने में करना चाहिये, जो कि 'आत्मनिर्भर भारत' के लिये भी आवश्यक है।
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