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चीन-प्लस-वन रणनीति की भारत के लिए उपयोगिता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 : आर्थिक विकास एवं व्यापार नीति संबंधित मुद्दे)

संदर्भ

भारत चीन-प्लस-वन दृष्टिकोण के माध्यम से चीन से परे विविधता लाने के लिए उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के प्रयास का लाभ उठाना चाहता है। आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में भी यह संकेत दिया गया है कि भारत ‘चीन से कुछ चुनिंदा आयातों को निवेश के साथ प्रतिस्थापित करके’ अधिक लाभ उठा सकता है, जिससे भारतीय विनिर्माण को बढ़ावा मिलेगा और भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में जोड़ने में मदद मिलेगी।

चीन-प्लस-वन का आर्थिक सर्वेक्षण में संदर्भ

  • आर्थिक सर्वेक्षण 2024 में 'मध्यम अवधि परिदृश्य : नए भारत के लिए विकास रणनीति' (Medium Term Outlook : A growth strategy for New India) अध्याय में चीन से निवेश प्रवाह पर प्रतिबंधों की समीक्षा करने के लिए उद्योग की अपील का समर्थन किया गया है। 
    • भारत सरकार ने 2020 में चीन से निवेश प्रवाह पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिबंधों की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य कोविड-19 महामारी के मद्देनजर भारतीय कंपनियों को अवसरवादी अधिग्रहण से बचाना था।
  • भारत-चीन आर्थिक संबंधों की गतिशीलता अत्यंत जटिल और अंतर्संबंधित बनी हुई है तथा चीन की विकास दर से आगे निकलने के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी चीन की अर्थव्यवस्था का केवल एक अंश मात्र है। 

क्या है चीन-प्लस-वन रणनीति

  • चीन-प्लस-वन या सिर्फ़ प्लस वन से तात्पर्य ऐसी रणनीति से है जिसमें कंपनियाँ सिर्फ़ चीन में निवेश करने से बचती हैं और अपने कारोबार को वैकल्पिक गंतव्यों तक विस्तारित करने का प्रयास करती हैं।
  • इस रणनीति की शुरुआत वर्ष 2013 में एक वैश्विक व्यापार रणनीति रूप में हुई थी।

चीन-प्लस-वन रणनीति आवश्यकता  

  • विगत तीन दशकों में पश्चिमी कंपनियों ने चीन में भारी निवेश किया है। कंपनियां चीन में कम श्रम और उत्पादन लागत के साथ-साथ घरेलू उपभोक्ता बाजार के बड़े और बढ़ते आकार से आकर्षित थी।
    • परिणामस्वरूप इन कंपनियों के व्यापारिक हितों का चीन में अत्यधिक संकेन्द्रण हो गया है।
  • भारत, अमेरिका और यूरोपीय संघ सहित 18 अर्थव्यवस्थाओं ने सामूहिक आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करने के लिए एक रोडमैप प्रस्तुत किया है, जो दीर्घकालिक रूप से लचीला होगा।
    • रोडमैप में आपूर्ति श्रृंखला निर्भरता और कमजोरियों का मुकाबला करने के लिए कदम भी शामिल थे। इसे समग्र चीन-प्लस-वन रणनीति के एक हिस्से के रूप में देखा गया।

चीन-प्लस-वन रणनीति  का भारत के लिए महत्त्व 

  • भारत का आकर्षण इसके बड़े घरेलू उपभोक्ता बाजार में निहित है, जो कंपनियों के लिए यहां परिचालन स्थापित करना आकर्षक बनाता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में, स्मार्टफोन निर्माण और असेंबली पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
    • कर छूट और सब्सिडी सहित सरकार की पी.एल.आई. योजना कंपनियों को आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 
    • भारत की घरेलू स्मार्टफोन मांग में वृद्धि भी कंपनियों के वहां निवेश करने के निर्णयों में एक महत्वपूर्ण कारक है।
  • फॉक्सकॉन ने कर्नाटक और तमिलनाडु में एप्पल मोबाइल फोन का उत्पादन शुरू कर दिया है। 
    • वित्त वर्ष 2024 के दौरान एप्पल ने भारत में 14 बिलियन डॉलर के आईफोन बनाए, जो उसके वैश्विक आईफोन उत्पादन का 14% है।
  • हालाँकि भारत को चीन से व्यापार में होने वाले बदलाव का तत्काल लाभ नहीं मिल सकता है, लेकिन समय के साथ इसके इलेक्ट्रॉनिक निर्यात में पर्याप्त वृद्धि देखी गई है।

चीन-प्लस-वन रणनीति से लाभ उठाने के लिए भारत के पास विकल्प 

  • चीन-प्लस-वन रणनीति से लाभ उठाने के लिए भारत दो विकल्पों पर विचार कर सकता है :
    • वह चीन की आपूर्ति श्रृंखला में एकीकृत हो सकता है। 
    • चीन से एफ.डी.आई. को बढ़ावा दे सकता है। 
  • इन विकल्पों में से, चीन से एफ.डी.आई. पर ध्यान केंद्रित करना अमेरिका को भारत के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए अधिक आशाजनक लगता है, जैसा कि पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं ने अतीत में किया था।
  • इसके अलावा, चीन-प्लस-वन दृष्टिकोण से लाभ उठाने के लिए एफ.डी.आई. को रणनीति के रूप में चुनना व्यापार पर निर्भर रहने से अधिक फायदेमंद प्रतीत होता है। 
    • इससे चीन के साथ भारत अपने घाटे को भी प्रतिसंतुलित कर सकता है।
  • कई उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को चीन के 'विनिर्माण महाशक्ति' (manufacturing juggernaut) से निपटने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण उनके घरेलू उद्योगों का विकास बाधित हो रहा है और वे कम लागत वाले चीनी आयातों के प्रति संवेदनशील हो गए हैं। 
    • इन देशों को अपनी नीतियों में इस तरह से बदलाव करने की जरूरत है, जिससे कुछ आयातों पर शुल्क बढ़ाया जा सके और साथ ही चीनी निवेश एवं प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया जा सके।
  • चीन से कुछ चुनिंदा आयातों को निवेश के साथ बदलने से भविष्य में घरेलू ज्ञान के निर्माण की संभावना बढ़ जाती है।

भारत के लिए चीन-प्लस-वन रणनीति संभावित चुनौती  

  • भारत के चीन-प्लस-वन रणनीति की दिशा में आगे बढ़ने के परिणामस्वरूप चीन के व्यापारिक संबंध पूरी तरह अवरुद्ध होने का जोखिम हो सकता है। 
  • हालाँकि, इसकी सम्भावना बहुत ही कम है। क्योंकि मेक्सिको, वियतनाम, ताइवान और कोरिया जैसे देश चीन से अमेरिका के व्यापार विचलन के प्रत्यक्ष लाभार्थी हैं।
    • इन देशों ने अमेरिका को अपना निर्यात बढ़ाया, लेकिन साथ ही चीनी एफ.डी.आई. में भी वृद्धि देखी गई है।
  • इसलिए, विश्व चीन को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं कर सकता, भले ही वह चीन-प्लस-वन का पीछा कर रहा हो। 

आगे की राह 

  • अमेरिका और यूरोप अपनी तात्कालिक आपूर्ति चीन से हटा रहे हैं, इसलिए यह अधिक प्रभावी है कि चीनी कंपनियां भारत में निवेश करें और फिर यूरोपीय बाजारों में उत्पादों का निर्यात करें। 
    • यह चीन से भारत में आयात करके और उसका मूल्य वर्द्धन करके पुनः निर्यात करने से बेहतर विकल्प हो सकता है।
  • ब्राजील और तुर्की ने चीनी ईवी के आयात पर अवरोध बढ़ाए हैं, लेकिन इस क्षेत्र में चीनी एफ.डी.आई. को आकर्षित करने के लिए उपाय किए हैं। यूरोपीय देशों ने भी इसी तरह का दृष्टिकोण अपनाने का फैसला किया है। 
  • इसलिए, यह जरूरी है कि भारत चीन से माल आयात करने और चीन से पूंजी (FDI) आयात करने के बीच सही संतुलन बनाए।
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