राजस्थान के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में एक दुर्लभ कीटभक्षी पौधा ‘यूट्रीकुलेरिया’ को (Utricularia) बड़ी संख्या में पाया गया है।
यूट्रीकुलेरिया के बारे में
- क्या है : कीटभक्षी या मांसभक्षी पौधों (Carnivorous Plants) की एक प्रजाति
- महत्त्व : छोटे-छोटे कीड़ों का शिकार करके पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण
- इससे क्षेत्र में जैव विविधता को बढ़ावा भी मिलता है।
- अन्य नाम : ब्लैडरवॉर्ट्स (Bladderworts)
- कुल (Family) : लेंटिबुलरियासी (Lentibulariaceae)
- विस्तार : अंटार्कटिका को छोड़कर लगभग प्रत्येक महाद्वीप पर स्थलीय एवं जलीय पारितंत्रों में
- खेती : इसके फूलों के लिए
- इसके फूल स्नेपड्रैगन एवं ऑर्किड के फूलों की तरह दिखते हैं।
प्रमुख विशेषताएँ
- ये पौधे ब्लैडर जाल (Bladder Traps) के माध्यम से छोटे जीवों प्रोटोजोआ, कीड़े, लार्वा, मच्छर आदि को पकड़ते हैं।
- इनकी स्थलीय प्रजातियों में छोटे-छोटे जाल होते हैं जो जल-संतृप्त मिट्टी में तैरने वाले प्रोटोजोआ एवं रोटिफर्स जैसे सूक्ष्म जीवों का शिकार करते हैं।
- जलीय प्रजातियों में जाल आमतौर पर बड़े होते हैं जिससे वे अधिक बड़े कीटों, जैसे-पिस्सू (डैफ़निया), नेमाटोड एवं युवा टैडपोल को भी खा सकते हैं।
- ये असामान्य एवं अत्यधिक विशिष्ट पौधे होते हैं जो जड़ों, पत्तियों व तनों में स्पष्ट रूप से विभाजित नहीं होते हैं।
- ब्लैडर जाल को पौधे में सबसे परिष्कृत संरचनाओं में से एक माना जाता है।
- सामान्यतः यह पौधा मेघालय एवं दार्जिलिंग जैसे क्षेत्रों में पाया जाता है।
केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान
- अवस्थिति : भरतपुर (राजस्थान)
- पक्षी अभयारण्य : वर्ष 1976
- रामसर स्थल : वर्ष 1981
- राष्ट्रीय उद्यान : वर्ष 1982
- विश्व धरोहर स्थल : यूनेस्को द्वारा वर्ष 1985 में सूचीबद्ध
- नदियाँ : गंभीर एवं बाणगंगा
- अन्य प्रमुख बिंदु : बेसकिंग पाइथन, पेंटेड स्टॉर्क, हिरण, नीलगाय जैसे विभिन्न जानवरों और पक्षियों की 370 से अधिक प्रजातियों का आवासस्थल
- दुर्लभ साइबेरियन क्रेन का महत्वपूर्ण प्रजनन स्थल
|