(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2: शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएँ, सीमाएँ और संभावनाएँ; नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय।) |
संदर्भ
हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने “उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021” में संशोधन के लिए एक नया विधेयक पेश किया है जिसका उद्देश्य कानून को और अधिक सख्त एवं प्रभावी बनाना है।
संशोधन की आवश्यकता
कुछ विशेष समूह के व्यक्तियों की सुरक्षा
- वर्तमान संशोधन विधेयक कुछ समूहों के व्यक्तियों की सुरक्षा के उद्देश्य से पेश किया गया है, जिनमें नाबालिग, दिव्यांग, महिलाएँ और अनुसूचित जाति (SC) एवं अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों के लोग शामिल हैं।
- वस्तुतः मौजूदा अधिनियम के तहत दंडात्मक प्रावधान इन समूहों से संबंधित व्यक्तिगत धर्म परिवर्तन और सामूहिक धर्म परिवर्तन को रोकने तथा नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
- यह संशोधन इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा व्यक्त किए गए हालिया विचार को दर्शाता है।
- वस्तुतः मौजूदा अधिनियम के तहत एक आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि “अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों और आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों को ईसाई धर्म में धर्मांतरित करने की गैरकानूनी गतिविधि पूरे उत्तर प्रदेश राज्य में बड़े पैमाने पर की जा रही है”।
कानून की व्याख्या संबंधित कठिनाइयों को संबोधित करना
- विधेयक के "अधिनियम की धारा 4 के अनुसार यह कानूनी मामलों के संबंध में अतीत में उत्पन्न हुई कुछ कठिनाइयों का समाधान करेगा"।
- वर्तमान में अधिनियम की धारा 4 "किसी भी पीड़ित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई, बहन, या किसी अन्य व्यक्ति जो रक्त, विवाह या गोद लेने से उससे संबंधित है" को पुलिस में गैरकानूनी धर्म परिवर्तन के लिए FIR दर्ज करने की अनुमति देता है; जिसकी व्याख्या के संबंध में न्यायालय के समक्ष कठिनाई उत्पन्न हुई थी जैसे -
- वर्ष 2023 के अपने कुछ फैसलों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि वाक्यांश "कोई भी पीड़ित व्यक्ति" का मतलब यह नहीं है कि ‘कोई भी’ गैरकानूनी धर्म परिवर्तन के लिए FIR दर्ज कर सकता है।
- सितंबर 2023 में, जोस पापाचेन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में, न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि "कोई भी पीड़ित व्यक्ति" में केवल उस व्यक्ति का उल्लेखकिया जा सकता है जो "व्यक्तिगत रूप से अपने कपटपूर्ण धर्म परिवर्तन से पीड़ित है"।
- फरवरी 2023 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फ़तेहपुर सामूहिक धर्मांतरण मामले में भी धारा 4 का यही विश्लेषण दिया था।
संशोधन विधेयक द्वारा क्या बदलाव पेश किए गए हैं?
'कोई भी पीड़ित व्यक्ति' वाक्यांश का विस्तार
- वर्तमान अधिनियम की धारा 4 के शब्द ‘कोई भी पीड़ित व्यक्ति’ को नए संशोधन विधेयक में ‘कोई भी व्यक्ति' से बदल दिया गया है।
- इस प्रकार संशोधित प्रावधान के अनुसार, ‘कोई भी व्यक्ति’ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के तहत गैर-कानूनी गतिविधियों के मामले में FIR दर्ज कर सकता है।
- BNSS की धारा 173 FIR दर्ज करने से संबंधित है। इसके तहत किसी अपराध के बारे में जानकारी पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को दी जा सकती है; "अपराध चाहे किसी भी क्षेत्र में हुआ हो"।
- वस्तुतः कोई भी व्यक्ति अधिनियम के तहत कथित अपराधों के लिए FIR दर्ज करने के लिए किसी भी पुलिस स्टेशन से संपर्क कर सकता है।
जमानत की सख्त शर्तें
- वर्तमान अधिनियम की धारा 3 “गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी भी धोखाधड़ी के माध्यम से” धर्म परिवर्तन को दंडित करती है, जिसमें सूचीबद्ध अवैध साधनों के उपयोग के माध्यमों में “विवाह या विवाह की प्रकृति में संबंध के द्वारा धर्मांतरण” भी शामिल है।
- धारा 3 के तहत आरोपियों के लिए विधेयक में कठोर जमानत शर्तों को पेश करने का प्रस्ताव है जो धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत जमानत शर्तों के समान हैं।
- नई प्रस्तावित धारा 7 के तहत, किसी आरोपी को तब तक जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता जब तक कि निम्नलिखित दो शर्तें पूरी न हो जाएं-
- सरकारी वकील (अपराध पर मुकदमा चलाने वाले राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील) को जमानत आवेदन का विरोध करने का अवसर दिया जाना चाहिए।
- अदालत को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि "यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि वह इस तरह के अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर रहते हुए उसके द्वारा कोई अपराध करने की संभावना नहीं है"।
दण्डों में वृद्धि
- वर्तमान में धारा 3 का उल्लंघन करने पर निम्नलिखित सजा का प्रावधान है -
- मूल अपराध के लिए 1-5 वर्ष की कैद और कम से कम 15,000 रु का जुर्माना।
- यदि पीड़ित नाबालिग, महिला या SC अथवा ST समुदाय से संबंधित व्यक्ति है तो 2-10 वर्ष की कैद और कम से कम 20,000 रु. का जुर्माना।
- सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में 3-10 साल की सज़ा और कम से कम 50,000 रु. का जुर्माना।
- संशोधन विधेयक में उपरोक्त जेल की अवधि और जुर्माने को बढ़ाने का प्रस्ताव है जैसे–
- मूल अपराध के लिए 3-10 वर्ष की कैद और कम से कम 50,000 रु. का जुर्माना।
- यदि पीड़ित नाबालिग, महिला या SC अथवा ST समुदाय से है, शारीरिक रूप से विकलांग है अथवा किसी मानसिक बीमारी से ग्रसित है तो ऐसी स्थिति में 5-14 वर्ष की कैद और कम से कम 1,00,000 रु. का जुर्माना।
- सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में 7-14 साल की कैद और कम से कम 1,00,000 रु. का जुर्माना।
अपराधों की दो नई श्रेणियां
- नए विधेयक में अपराधों की दो नई श्रेणियां जोड़ी गई हैं , जिनमे शामिल हैं-
- यदि आरोपी ने अवैध धर्मांतरण के सिलसिले में “विदेशी या अवैध संस्थानों” से धन प्राप्त किया है, तो उसे 7-14 साल की कैद और कम से कम 10,00,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है।
- यदि आरोपी किसी व्यक्ति को
- "उसके जीवन या संपत्ति का भय उत्पन्न करता है।
- हमला करता है या बल का प्रयोग करता है।
- शादी का वादा करता है या बहकाता है।
- किसी नाबालिग, महिला या व्यक्ति की तस्करी करने या अन्यथा उन्हें बेचने के लिए षड्यंत्र करता है या प्रेरित करता है।
- उपरोक्त परिस्थितियों में उसे न्यूनतम 20 वर्ष कारावास की सजा दी जाएगी, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
- वर्तमान अधिनियम में विवाह के द्वारा गैरकानूनी रूप से धर्म परिवर्तन के लिए अधिकतम 10वर्तमान की कैद की सजा का प्रावधान है।
आगे की राह
- भारत के अन्य राज्यों जैसे उत्तराखंड, गुजरात और मध्य प्रदेश ने भी इसी तरह के धर्मांतरण विरोधी कानून बनाए हैं।
- वस्तुतः उत्तर प्रदेश विधानसभा द्वारा धर्मांतरण विरोधी संशोधन विधेयक को अन्य राज्यों द्वारा भी अपनाया जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार धर्मांतरण विरोधी कानून तब तक संवैधानिक हैं जब तक वे किसी व्यक्ति के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को प्रभावित नहीं करते हैं।