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उत्तर प्रदेश विशेष सुरक्षा बल अधिनियम : आवश्यकता, महत्त्व और चिंताएँ

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : विभिन्न सुरक्षा बल और संस्थाएँ तथा उनके अधिदेश)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘उत्तर प्रदेश विशेष सुरक्षा बल अधिनियम’ (Uttar Pradesh Special Security Force Act: UPSSF) से सम्बंधित अधिसूचना जारी की है।

पृष्ठभूमि

31 अगस्त को अधिसूचित किये गए इस अधिनियम के कुछ प्रावधानों, जैसे- ‘बिना वारंट’ या ‘बिना मजिस्ट्रेट के आदेश’ के गिरफ्तारी की अनुमति को लेकर विवाद है। हालाँकि, उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि यह सुरक्षा बल केंद्र सरकार के केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल ( Central Industrial Security Force: CISF) और ओडिशा व महाराष्ट्र जैसे राज्यों के विशेष बलों से अलग नहीं है। ऐसी स्थिति में उत्तर प्रदेश विशेष सुरक्षा बल अधिनियम, 2020 के प्रावधानों की तुलना केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल अधिनियम,1968 और महाराष्ट्र राज्य सुरक्षा निगम अधिनियम, 2010 से करना आवश्यक है।

उत्तर प्रदेश विशेष सुरक्षा बल : पृष्ठभूमि और स्थापना

  • उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा महत्त्वपूर्ण संस्थानों और व्यक्तियों की सुरक्षा के लिये CISF जैसे सुरक्षा बल के तर्ज़ पर जून 2020 में इसकी घोषणा की गई।
  • प्रस्तावित बल की परिकल्पना एक ‘उच्च-स्तरीय कौशल से युक्त पेशेवर’ के रूप में की गई थी, जो प्रांतीय सशस्त्र पुलिस दल ( Provincial Armed Constabulary: PAC) पर पड़ने वाले बोझ को कम करेगा। इससे PAC कानून और व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित कर सकती है।
  • जुलाई में राज्य मंत्रिमंडल ने पहले चरण में लगभग 9,900 कर्मियों वाली पाँच बटालियन के साथ, एक आठ-बटालियन वाले सुरक्षा बल के निर्माण को हरी झंडी दे दी।
  • इस सुरक्षा बल की स्थापना की अधिसूचना 31 अगस्त को जारी की गई और इसके गठन को सुनिश्चित करने के लिये पुलिस महानिदेशक को तीन महीने की समय-सीमा दी गई है।
  • UPSSF का नेतृत्व अतिरिक्त महानिदेशक स्तर के एक अधिकारी द्वारा किया जाएगा, जिसके बाद इसमें एक महानिरीक्षक, उप महानिरीक्षक, कमांडेंट और डिप्टी कमांडेंट शामिल होंगे।

ऐसे सुरक्षा बल की आवश्यकता का कारण

  • UPSSF अधिनियम के अनुसार, इस बल का गठन राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किसी निकाय या व्यक्ति या आवासीय परिसर को ‘बेहतर सुरक्षा’ प्रदान करने के लिये किया गया है।
  • इसके अतिरिक्त, अदालतों सहित महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठान, प्रशासनिक कार्यालय, मंदिर, मेट्रो रेल, हवाई अड्डे, बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान व औद्योगिक उपक्रमों की सुरक्षा भी इसी बल के ज़िम्मे रहेगी।
  • केंद्र और अन्य राज्यों की तरह, महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठानों और अधिसूचित व्यक्तियों की सुचारु और मज़बूत सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखना इस अधिनियम का उद्देश्य है, क्योंकि पूर्व में उत्तर प्रदेश में कोई विशेष सुरक्षा बल स्थापित नहीं किया गया था।
  • अभी ऐसे स्थानों और व्यक्तियों की सुरक्षा का कार्य राज्य पुलिस और प्रांतीय सशस्त्र पुलिस बल द्वारा किया जा रहा है, जो इस कार्य के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षित और कुशल नहीं हैं।
  • साथ ही इसके गठन के लिये उच्च न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश के सभी न्यायालय परिसरों में सुरक्षा की स्थिति के सम्बंध में स्वत: संज्ञान लेते हुए दिये गए एक निर्देश का भी हवाला दिया है।

सम्बंधित विवाद और आलोचना

  • UPSSF अधिनियम की धारा 10 की उपधारा (1) (बिना वारंट गिरफ्तारी की शक्ति) के अनुसार, ‘यह बल किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकेगा जो उसे प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के दौरान कर्तव्यों का पालन करने से रोकता है, वहाँ हमला करने, हमला करने की धमकी देने, आपराधिक बल का प्रयोग करने की कोशिश करता है’।
  • इसके लिये बल के सदस्यों को किसी मजिस्ट्रेट के वारंट की ज़रूरत नहीं होगी। संदेह के आधार पर बिना वारंट तलाशी भी ली जा सकेगी। हालाँकि, ऐसा करने के लिये इसके जवान के पास पुख्ता सुबूत होने चाहिये।
  • हालाँकि, गिरफ्तारी के बाद वरिष्ठ अधिकारियों को जानकारी देनी होगी और गिरफ्तार व्यक्ति को थाने के हवाले करना होगा।
  • इस बल को सुरक्षा के तहत परिसरों और अचल सम्पतियों से अतिक्रमण को हटाने का भी अधिकार होगा।
  • पैसे देकर निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठान भी इसकी सेवाएँ ले सकेंगे और उन परिस्थितियों में भी पुलिस बल के ये असीमित अधिकार बने रहेंगे।
  • हालाँकि, इस धारा के तहत जिस तरह से शक्तियों का प्रयोग किया जाएगा, वह ‘निर्धारित नियमों द्वारा शासित’ होगा। पुलिस महानिदेशक को रोडमैप तैयार करने और सम्बंधित नियमों को प्रस्तावित करने के लिये कहा गया है।

अन्य अधिनियमों से तुलना : समानता

  • UPSSF अधिनियम की धारा 10 CISF अधिनियम 1968 की धारा 11 के समान है, जो ‘बिना वारंट के गिरफ्तारी की शक्ति’ देती है।
  • महाराष्ट्र राज्य सुरक्षा निगम अधिनियम, 2010 में भी ‘बिना वारंट के गिरफ्तारी की शक्ति’ का प्रावधान है। हालाँकि, गिरफ्तारी की प्रक्रिया और शक्ति का प्रयोग सुरक्षा बलों द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के तहत किया जाएगा।
  • UPSSF अधिनियम और CISF अधिनियम की तरह महाराष्ट्र अधिनियम में भी आवश्यक है कि किसी गिरफ्तार व्यक्ति को एक पुलिस अधिकारी या निकटतम पुलिस स्टेशन को सौंप दिया जाए।
  • ओडिशा औद्योगिक सुरक्षा बल अधिनियम, 2012 ‘बिना वारंट के गिरफ्तारी की शक्ति’ को भी परिभाषित करता है। यह CISF और UPSSF अधिनियमों के समान है।
  • इन अधिनियमों में न केवल गिरफ्तारी के सम्बंध में एक समान प्रावधान हैं, बल्कि ‘बिना वारंट के तलाशी’ के सम्बंध में भी एक समान प्रावधान हैं।

अन्य अधिनियमों से तुलना : असमानता

  • यू.पी. का अधिनियम ‘बिना वारंट के गिरफ्तारी और तलाशी’ के प्रावधानों में दूसरों के समान है, परंतु सुरक्षा किये जाने वाले संस्थानों और बल के सदस्यों को प्राप्त संरक्षण के सम्बंध में कई विभिन्नताएँ हैं।
  • CISF और ओडिशा औद्योगिक सुरक्षा बल ‘औद्योगिक उपक्रमों’ की सुरक्षा करने के लिये हैं। UPSSF का क्षेत्र काफी व्यापक है। यह न केवल एक निकाय को बल्कि व्यक्ति और ‘आवासीय परिसर’ को भी सुरक्षा प्रदान करेगा।
  • महाराष्ट्र राज्य अधिनियम के अनुसार, महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठानों में ऐसे प्रतिष्ठानों को शामिल किया गया है, जिनके क्षतिग्रस्त करने या उनमें तोड़फोड़ करने से देश या राज्य की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा प्रभावित होती है।
  • इसके विपरीत, UPSSF में ‘स्थापना’ की परिभाषा में प्रतिमा और स्मारक भी शामिल हैं। यू.पी. का अधिनियम ‘प्रतिष्ठान’ को सार्वजनिक और निजी दोनों भवनों के रूप में परिभाषित करता है।

UPSSF व ऐसे ही अन्य बलों के अधिकारों की तुलना

  • इस बल का प्रत्येक सदस्य हमेशा ऑन ड्यूटी माना जाएगा और उसे प्रदेश में कहीं भी तैनाती दी जा सकती है। इस बल के किसी सदस्य द्वारा ड्यूटी के दौरान किये जाने वाले किसी भी कार्य को लेकर न्यायालय बिना सरकार की मंज़ूरी के उसके खिलाफ अपराध का संज्ञान नहीं ले पाएगा।
  • CISF के मामले में, यदि कोई ‘मुकदमा या कार्यवाही’ बल के किसी भी सदस्य के खिलाफ लम्बित है, तो उसे यह अनुरोध करने का अवसर मिलता है कि उसकी कार्रवाई एक सक्षम अधिकारी के आदेश के तहत हुई थी। इस तरह की दलील उसे आदेश के निर्देशन के सम्बंध में साबित करनी होगी।
  • ओडिशा औद्योगिक सुरक्षा बल अधिनियम, 2012 UPSSF के समान ही अपने सदस्यों को सुरक्षा प्रदान करता है।
  • महाराष्ट्र राज्य सुरक्षा निगम अधिनियम के तहत, कोई भी सदस्य या अधिकारी कर्तव्यों के निर्वहन में अच्छी नियत से किये गए कार्यों के लिये किसी भी ‘मुकदमे या कार्यवाही’ में किसी भी आपराधिक या नागरिक कार्रवाई के लिये उत्तरदायी नहीं होता है।
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