चर्चा में क्यों
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि जहां हिंदू विवाह 'सप्तपदी' (पवित्र अग्नि के समक्ष वर और वधू द्वारा संयुक्त रूप से सात कदम चलना) जैसे लागू संस्कारों या समारोहों के अनुसार नहीं किया जाता है, तो उस विवाह को हिंदू विवाह नहीं माना जाएगा।
हालिया मामला
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला दो प्रशिक्षित वाणिज्यिक पायलटों द्वारा दायर तलाक की डिक्री की याचिका पर सुनाया गया है, जिन्होंने हिंदू विवाह की वैधता की आवश्कताओं को पूरा ही नहीं किया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी पूर्ण शक्तियों का प्रयोग करते हुए माना कि दम्पति ने कानून के अनुसार विवाह नहीं किया था और हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत वैध समारोह बिना ही उन्हें जारी किए गए विवाह प्रमाण पत्र को अमान्य कर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय टिप्पणी
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि हिंदू विवाह कोई "नृत्य-गीत", "भोज-खानपान" या व्यावसायिक लेन-देन का आयोजन नहीं है, तथा हिंदू विवाह अधिनियम के तहत "वैध समारोह के अभाव में" इसे मान्यता नहीं दी जा सकती।
- न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह एक 'संस्कार' और एक धार्मिक अनुष्ठान है, जिसे भारतीय समाज में एक महान मूल्य की संस्था का दर्जा दिया जाना चाहिए।
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की प्रमुख विशेषताएं
- इस अधिनियम के लागू होने के बाद हिंदुओं के बीच विवाह से संबंधित कानून को संहिताबद्ध कर दिया गया था और इसमें न केवल हिंदू बल्कि लिंगायत, ब्रह्मसमाजी, आर्यसमाजवादी, बौद्ध, जैन और सिख भी शामिल हैं, जो हिंदू शब्द के व्यापक अर्थ के अंतर्गत आकर वैध हिंदू विवाह कर सकते हैं।
- हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत बहुपतित्व और बहुविवाह तथा इस प्रकार के अन्य सभी संबंधों को स्पष्ट रूप से खारिज किया गया है।
- अधिनियम के अनुसार, जब तक पक्षकार इस तरह के समारोह में शामिल नहीं हो जाते, तब तक (हिंदू विवाह) अधिनियम की धारा 7 के अनुसार कोई हिंदू विवाह वैध नहीं होगा और अपेक्षित समारोहों के अभाव में किसी संस्था द्वारा केवल प्रमाण पत्र जारी करने से न तो पक्षों की वैवाहिक स्थिति की पुष्टि होगी और न ही हिंदू कानून के तहत विवाह स्थापित होगा।
- शीर्ष अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला है यदि कोई विवाह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 के अनुसार नहीं हुआ है, तो पंजीकरण विवाह को वैधता प्रदान नहीं करेगा।
- न्यायालय ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत एक पुरुष और एक महिला उक्त अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार पति और पत्नी का दर्जा प्राप्त कर सकते हैं।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 केवल हिंदुओं तक सीमित नहीं है। कोई भी पुरुष और महिला, चाहे उनकी नस्ल, जाति या पंथ कुछ भी हो, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों के तहत पति और पत्नी होने का दर्जा प्राप्त कर सकते हैं।
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के तहत न केवल उक्त अधिनियम की धारा 5 के तहत निर्धारित शर्तों का अनुपालन होना चाहिए, बल्कि जोड़े को अधिनियम की धारा 7 के अनुसार विवाह भी करना चाहिए।