
- वेरिएबल रेपो रेट (VRR) एक liquidity adjustment tool (तरलता समायोजन साधन) है, जिसका उपयोग भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा किया जाता है।
- इसमें बैंक शॉर्ट टर्म (Short Term) के लिए बाजार-निर्धारित ब्याज दरों (market-determined interest rates) पर नीलामी प्रक्रिया (auction mechanism) के माध्यम से धन उधार लेते हैं।
VRR कैसे काम करता है? (How Does VRR Work?)
- RBI नीलामी आयोजित करता है – आमतौर पर 1 दिन से 14 दिन की मॅच्योरिटी (maturity) के लिए।
- बैंक बोली लगाते हैं (banks place bids) – वे बताते हैं कि वे कितनी राशि उधार लेना चाहते हैं और किस ब्याज दर पर लेना चाहते हैं।
- RBI सबसे अनुकूल बोली स्वीकार करता है – यानी सबसे अधिक लाभदायक/कम लागत वाली।
- प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया (competitive bidding) से जो दर निकलती है, वही VRR बनती है।
- न्यूनतम सीमा (Floor Limit): यह दर रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) से कम नहीं हो सकती, ताकि arbitrage (मुनाफाखोरी) से बचा जा सके।
वेरिएबल रेपो रेट (Variable Repo Rate - VRR) की आवश्यकता क्यों होती है?
- बाजार की स्थिति में असंतुलन (Market Imbalance):जब कभी-कभी कम अवधि की ब्याज दरें (short-term interest rates) RBI द्वारा तय की गई फिक्स्ड रेपो रेट (fixed repo rate) से नीचे चली जाती हैं,
तो बैंक सामान्य रेपो विंडो (regular repo window) से पैसे उधार लेने में संकोच करते (hesitate) हैं।
- बाजार के अनुरूप दरों की जरूरत (Need for Market-Compatible Rates):
ऐसी स्थिति में, RBI वेरिएबल रेपो रेट (VRR) की सुविधा शुरू करता है ताकि बैंक बाजार के अनुरूप ब्याज दर (market-compatible interest rate) पर धन प्राप्त कर सकें।
इससे बाज़ार में आसानी से तरलता प्रवाहित (inject liquidity) की जा सकती है।
- नीतिगत संतुलन बनाए रखना (Maintaining Policy Balance):
VRR की मदद से, बैंकों के लिए liquidity support (तरलता समर्थन) को अधिक आकर्षक (attractive) बनाया जाता है,
लेकिन साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाता है कि मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee - MPC) द्वारा तय की गई policy stance (नीति स्थिति) में कोई विकृति (distortion) न आए।
VRR बनाम Fixed Rate Repo
पैरामीटर (Parameter)
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वेरिएबल रेपो रेट (VRR)
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फिक्स्ड रेपो रेट (Fixed Rate Repo)
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ब्याज दर (Interest Rate)
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नीलामी द्वारा निर्धारित (auction-based)
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RBI द्वारा पूर्व-निर्धारित (pre-fixed by RBI)
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लचीलापन (Flexibility)
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अधिक – बैंक बाजार के अनुसार बोली लगाते हैं
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कम – एक ही दर सभी के लिए लागू होती है
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बाजार प्रतिक्रिया (Market Responsiveness)
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तरलता की स्थिति के प्रति अधिक संवेदनशील
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कम अवधि की अस्थिरता के प्रति कम संवेदनशील
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आवृत्ति (Frequency)
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अस्थिर स्थितियों में अधिक बार आयोजित होता है
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नियमित रूप से उपलब्ध RBI की लिक्विडिटी विंडो
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तरलता प्रबंधन (Liquidity Management) में VRR की भूमिका
वेरिएबल रेपो रेट (VRR), RBI की Liquidity Adjustment Facility (LAF) का एक प्रमुख हिस्सा है। यह निम्नलिखित में मदद करता है:
- बैंकों को कम अवधि की तरलता (short-term liquidity) प्रदान करना।
- वित्तीय स्थिरता (financial stability) बनाए रखना।
- बाजार ब्याज दरों (market interest rates) को नीति रेपो दर (policy repo rate) के करीब लाना।
- मौद्रिक नीति (monetary policy) के प्रभाव को बेहतर ढंग से प्रसारित करना।
VRR और VRRR (Variable Rate Reverse Repo) के बीच संबंध
- VRR के साथ-साथ, RBI "Variable Rate Reverse Repo" (VRRR) का उपयोग भी करता है ताकि अत्यधिक तरलता (excess liquidity) को बैंकों से सोखा (absorb) जा सके।
- VRRR में बैंक अपने अतिरिक्त फंड (surplus funds) RBI के पास नीलामी (auction) के जरिए जमा करते हैं।
- इस पर ब्याज दर प्रतिस्पर्धात्मक बोली (competitive bidding) से तय होती है, जो सामान्यतः रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) के करीब या उससे ऊपर होती है।
- जब बैंकिंग प्रणाली में बहुत अधिक पैसा होता है (liquidity flush होती है), तो VRRR महत्त्वपूर्ण उपकरण बन जाता है ताकि महंगाई के दबाव (inflationary pressures) को नियंत्रित किया जा सके।
VRR (वेरिएबल रेपो रेट) की प्रमुख विशेषताएँ (Key Features)
- लचीला कार्यकाल (Flexible Tenure)VRR की अवधि (tenure) बाजार की ज़रूरतों के अनुसार 1 दिन से 14 दिन या उससे भी अधिक हो सकती है।इससे यह बाजार की तरलता ज़रूरतों (liquidity needs) के अनुरूप ढल सकता है।
- नीलामी आधारित प्रणाली (Auction-based Mechanism):-बैंक अपनी आवश्यकता अनुसार धन के लिए बोली (bids) लगाते हैं।यह प्रतिस्पर्धा (competition) और पारदर्शिता (transparency) को बढ़ावा देता है।
- प्रभावी उपकरण (Effective Tool):-यह उपकरण अल्पकालिक (short-term) नकदी की ज़रूरतों और मौद्रिक स्थिरता (monetary stability) के बीच संतुलन बनाता है।यह विशेष रूप से तरलता समायोजन (Liquidity Adjustment) के लिए प्रभावी है।
- एल.ए.एफ. कॉरिडोर से जुड़ा (Linked to LAF Corridor):-VRR की ब्याज दरें हमेशा रेपो रेट (Repo Rate) और रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) के दायरे (corridor) में रहती हैं।इससे ब्याज दरें नीतिगत सीमाओं (policy limits) के भीतर बनी रहती हैं और ब्याज दरों की स्थिरता (rate stability) सुनिश्चित होती है।