New
IAS Foundation Course (Pre. + Mains) - Delhi: 20 Jan, 11:30 AM | Prayagraj: 5 Jan, 10:30 AM | Call: 9555124124

उत्तर प्रदेश की जनसंख्या नीति से संबंधित विभिन्न पक्ष

(प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास- गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि )
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1 & 2:  जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, विकासात्मक विषय, सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय )

संदर्भ

उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग ने ‘जनसंख्या नीति’ जारी की है। इसमें वर्ष 2026 तक राज्य में ‘सकल प्रजनन दर’ को मौजूदा 2.7 के स्तर से 2.1 तक लाने का लक्ष्य घोषित किया गया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सरकार ने एक नए कानून की आवश्यकता जाहिर की है।

मसौदा विधेयक का उद्देश्य

  • ‘उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण और कल्याण) विधेयक, 2021’ शीर्षक वाला यह मसौदा कानून ‘दो बच्चों के मानदंड’ का पालन करने वाले परिवारों को प्रोत्साहन प्रदान करने का प्रयास करता है।
  • गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश ने पहली बार 2000 में अपनी जनसंख्या नीति घोषित की थी।
  • राज्य की नीति का उद्देश्य वर्ष 2030 तक जीवन प्रत्याशा को 64.3 से 69 तक तथा बाल लिंगानुपात (0-6 वर्ष) को 899 से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 919 करना है।
  • ऐसे परिवारों, जो इस मानदंड का उल्लंघन करते हैं, उन्हें विभिन्न सार्वजनिक लाभों और सब्सिडी से हतोत्साहित करने का भी प्रावधान किया गया है।
  • मसौदा विधेयक का उद्देश्य राज्य के ‘सीमित पारिस्थितिक और आर्थिक संसाधनों पर दबाव को कम करना है।
  • इसके अनुसार, जब तक जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित नहीं किया जाता, राज्य सभी नागरिकों को संविधान में उल्लिखित मूल अधिकारों की गारंटी देने में असमर्थ होगा।

प्रोत्साहन

  • यह मसौदा इस संदर्भ में चर्चाओं का आह्वान करता है कि सतत विकास के लक्ष्य को सरकार द्वारा लगाए गए जन्म नियंत्रण के बिना हासिल नहीं किया जा सकता है। 
  • उक्त उद्देश्यों के लिये मसौदा विधेयक उपायों की एक शृंखला निर्धारित करता है। यह उन लोक सेवकों को कई लाभ प्रदान करने का वादा करता है, जो नसबंदी (Sterilisation) तथा दो-बच्चे के मानदंड को अपनाने की वकालत करते हैं।
  • इनमें उनकी सेवा के दौरान दो वेतन वृद्धि, एक घर खरीदने के लिये सब्सिडी, पूरे वेतन और भत्ते के साथ मातृत्व या पितृत्व अवकाश, 12 महीने तक जीवनसाथी को मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल और बीमा कवरेज शामिल हैं।

हतोत्साहन

  • मसौदा मसौदा विधेयक में दंड की एक सूची भी है।
  • दो बच्चों के मानदंड का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को सरकार द्वारा प्रायोजित किसी भी कल्याणकारी योजना का लाभ प्राप्त करने से वंचित कर दिया जाएगा।
  • राज्य सरकार की किसी भी नौकरी के लिये आवेदन करने से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
  • नियम का उल्लंघन करने वाले मौजूदा सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति के लाभ से वंचित कर दिया जाएगा।
  • इसके अतिरिक्त, उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को स्थानीय प्राधिकार और निकायों के चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाएगा।

भारत सरकार का पक्ष

  • केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने विगत वर्ष के अंत में उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक शपथपत्र के माध्यम से अपना पक्ष रखा था।
  • केंद्र सरकार ने तर्क दिया था कि अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों से पता चलता है कि एक निश्चित संख्या में बच्चे पैदा करने के लिये कोई भी ज़बरदस्ती प्रतिकूल प्रतीत होती है तथा जनसांख्यिकीय विकृतियों की ओर ले जाती है।
  • सरकार ने आगे पुष्टि की कि भारत अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अपने दायित्वों के लिये प्रतिबद्ध है, जिसमें ‘जनसंख्या और विकास कार्यक्रम, 1994’ पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में निहित सिद्धांत शामिल हैं।

प्रजनन का अधिकार

  • उदारवादी लोकतांत्रिक सिद्धांतों में महत्त्वपूर्ण होता है कि जनसांख्यिकीय लक्ष्यों की बजाय प्रजनन स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी दी जाए।
  • भारत के उच्चतम न्यायालय ने उक्त अधिकार को एक ‘अविभाज्य वचन’ के रूप में मान्यता दी है।
  • ‘सुचिता श्रीवास्तव और एन.आर. बनाम चंडीगढ़ प्रशासन, 2009’ में, न्यायालय ने माना कि एक महिला की प्रजनन संबंधी निर्णय लेने की स्वतंत्रता, अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का एक अभिन्न पहलू है।
  • न्यायालय ने माना है कि प्रजनन विकल्पों का प्रयोग प्रजनन के साथ-साथ प्रजनन से दूर रहने के लिये किया जा सकता है।

निजता का अधिकार

  • प्रजनन के अधिकार का उच्चतम न्यायालय के 9 न्यायाधीशों की खंडपीठ ने ‘पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ वाद, 2017 में समर्थन किया था।
  • इस निर्णय से संबंधित विचारों से निष्कर्ष निकलता है कि संविधान किसी व्यक्ति की अपनी शारीरिक स्वायत्तता को निजता के अधिकार के विस्तार के रूप में देखता है।
  • न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने माना कि निजता के अलग-अलग अर्थ होते हैं।  इनमें ‘निर्णयात्मक स्वायत्तता’ शामिल है, जो अन्य बातों के अतिरिक्त अंतरंग व्यक्तिगत विकल्पों, जैसे प्रजनन को नियंत्रित करने वाली स्वतंत्रता की वकालत करते हैं।
  • न्यायमूर्ति एस.के. कौल ने इसी तरह कहा था कि प्रजनन का अधिकार ‘घर की गोपनीयता’ का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
  • हालाँकि, अन्य सभी मौलिक अधिकारों की तरह निजता का अधिकार असीमित नहीं है। लेकिन, जैसा कि पुट्टस्वामी निर्णय स्पष्ट करता है कि अधिकार पर लगाए गए किसी भी प्रतिबंध को ‘आनुपातिकता के सिद्धांत’ के अनुरूप होना चाहिये। इसके लिये आवश्यक है-
  1. सीमा क़ानून में निहित हो;
  2. कानून का उद्देश्य एक वैध सरकारी लक्ष्य पर आधारित है;
  3. समान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये कोई वैकल्पिक और कम दखल देने वाले उपाय उपलब्ध नहीं हैं;
  4. आरोपित सीमा और क़ानून के उद्देश्यों के मध्य एक तर्कसंगत संबंध मौजूद है।

आशंकाएँ

  • जनहित को आगे बढ़ाने के लिये, यह आवश्यक है कि सरकारें सुनिश्चित करें कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का यथासंभव न्यूनतम स्तर तक अतिक्रमण किया जाए।
  • उत्तर प्रदेश के मसौदे कानून के सरल पठन से परिलक्षित है कि यदि इसे अधिनियमित किया जाता है, तो यह प्रजनन की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
  • सरकार यह तर्क दे सकती है कि यह निजता का कोई उल्लंघन नहीं है, क्योंकि नसबंदी संबंधी कोई भी निर्णय स्वैच्छिक होगा।
  • लेकिन, जैसा कि अब तक ज्ञात है कि लोक कल्याण को सशर्त बनाना, बलात प्रक्रियाओं को मान्यता देना है।
  • एक कल्याणकारी राज्य के रूप में भारत के विचार का कुछ भी अर्थ हो, फिर भी अपनी शारीरिक स्वायत्तता का त्याग करने वाले व्यक्ति पर बुनियादी वस्तुओं के प्रयोग के अधिकार को अनंतिम नहीं बनाया जा सकता।

नकारात्मक परिणाम

  • नया प्रस्ताव इसलिये भी चिंताजनक है क्योंकि इससे कई अन्य हानिकारक परिणाम आने की आशंका है। उदाहरणार्थ, पहले से ही विषम लिंगानुपात को उन परिवारों द्वारा जोड़ा जा सकता है, जो दो बच्चों के मानदंड के अनुरूप एक पुत्र होने की आशा में बेटी का गर्भपात करा रहे हैं।
  • सौदा कानून, नसबंदी शिविरों के प्रसार का कारण बन सकता है, जिसे उच्चतम न्यायालय ने पहले ही हटा दिया है।
  • ‘देविका बिस्वास बनाम भारत संघ, 2016’ में न्यायालय ने बताया कि कैसे इन शिविरों का अल्पसंख्यकों और अन्य कमज़ोर समूहों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है।
  • जैसा कि अक्सर भारत में खराब कानूनों के मामले में होता है, इस मसौदा विधेयक को उच्चतम न्यायालय के पिछले कुछ निर्णयों से समर्थन मिल सकता है।
  • इस मामले में, सरकार ‘जावेद और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य, 2003 के फैसले की ओर इशारा कर सकती है, जहाँ न्यायालय ने एक कानून को बरकरार रखा है, जिसमें दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया गया है।
  • किंतु वर्तमान प्रस्ताव अधिक अनुपातहीन है। इसमें यह उन लोगों के नागरिक अधिकारों के उल्लंघन को मंजूरी देता है, जो इसके द्वारा तय किये गए मानदंडों का उल्लंघन करते हैं। 

निष्कर्ष

प्रजनन क्षमता के प्रतिस्थापन स्तर तक गिरावट को तेज़ करने के लिये, राज्यों को जनसंख्या नियंत्रण पर ‘नव-माल्थुसियन दृष्टिकोण’ की तलाश करने की बजाय भारत की बड़े पैमाने पर युवा जनसांख्यिकी का सामना करने वाले सामाजिक-आर्थिक मुद्दों से निपटना चाहिये।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR