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शहरी बाढ़ से संबंधित विभिन्न आयाम

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1 : शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय)

संदर्भ

वर्तमान में भारत के कई शहर बाढ़ की समस्या का सामना कर रहे हैं। भारत में शहरी बाढ़ के लिये जलवायु परिवर्तन सहित प्राकृतिक एवं मानवीय कारण उत्तरदाई हैं। ऐसे में बाढ़ से संबंधित विभिन्न आयामों पर चर्चा करना आवश्यक है।

शहरी बाढ़

शहरी क्षेत्र में पृथ्वी के भू-तल पर जल के असामान्य संचय को शहरी बाढ़ कहा जाता है। यह नदियों के प्रवाह में परिवर्तन, उच्च ज्वार की स्थिति, भारी वर्षा, हिमगलन तथा जल संरचनाओं के क्षतिग्रस्त होने के कारण हो सकती है।

शहरी बाढ़ के कारक

प्राकृतिक कारक 

  • मौसम प्रणाली में परिवर्तन के कारण 
    • दक्षिण पश्चिम मानसून द्वारा कम समयावधि में अत्यधिक वर्षा 
    • चक्रवाती तूफ़ान के कारण भारी वर्षा 
    • ऊपरी क्षेत्रों में हिमगलन के कारण नदियों के जलप्रवाह में वृद्धि
    • ज्वारीय गतिवधि के कारण तटीय शहरी क्षेत्रों में जलभराव
  • प्राकृतिक प्रणाली में परिवर्तन के कारण 
    • प्रारंभिक काल में अधिकांश शहरों या बस्तियों की स्थापना कृषि उर्वरता के लिये बाढ़ के मैदानों के साथ की गई थी। उच्च निर्वहन के दौरान इन बाढ़ के मैदान में अधिशेष जल एकत्र हो जाता है।
    • मिट्टी की नमी का स्तर, भूजल स्तर और अवशोषण क्षमता, अतिप्रवाह की उपस्थिति आदि।
    • वैश्विक तापन में वृद्धि से समुद्री जलस्तर में वृद्धि के कारण तटीय शहर बाढ़ के प्रति संवेदनशील हो जाते है।
  • मानवजनित कारक
    • शहरी क्षेत्रों में विविध मानवजनित गतिविधियों के कारण सामान्य ताप में अत्यधिक वृद्धि होती है जो अनियमित वर्षा प्रतिरूप को बढावा देता है, जिसके कारण शहर बाढ़ के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
    • बढ़ती जनसंख्या के कारण भूमि उपयोग में परिवर्तन बाढ़ की तीव्रता व बारंबारता में वृद्धि करती है।
    • वनों की अनियमित कटाई के कारण मृदा क्षरण में वृद्धि के साथ ही जल के प्रवाह में भी वृद्धि होती हैं। 
    • वर्षा जल संचयन प्रणाली के अभाव के कारण भी शहरी बाढ़ की तीव्रता में वृद्धि होती है।
    • प्राकृतिक जल निकासी मार्गों में परिवर्तन, आर्द्रभूमि की संख्या में गिरावट आदि कारण भी इसके लिये जिम्मेदार हैं।
    • समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग एवं प्रवासी आदि प्राय: नदी तट के किनारों पर निवास करते है। प्राकृतिक जल-निकास मार्गों में अवरोध के कारण इन क्षेत्रों में बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
    • नालियों में घरेलू, वाणिज्यिक और औद्योगिक कचरे के अँधाधुंध निपटान के परिणामस्वरूप उसकी क्षमता कम हो जाती है, फलस्वरुप जल नालियों से बाहर प्रवाहित होने लगता है, जो बाढ़ का कारण बनता है।

शहरी बाढ़ की विभिन्न श्रेणियां 

  • जलोढ़ बाढ़ : नदियों के अति प्रवाह के कारण मुख्य रूप से बाढ़ के मैदानों में स्थित शहरी क्षेत्रों में यह परिघटना होती है।
  • तटीय बाढ़ : ज्वार या तूफ़ान के कारण तटीय या डेल्टाई क्षेत्रों में स्थित शहरों में।
  • प्लावनीय बाढ़ : तीव्र तथा लंबे समय तक जल निकासी क्षमता से अत्यधिक वर्षा।
  • भारी बाढ़ : अत्यधिक ढलान के कारण अल्पकालिक जलधाराओं की तीव्र प्रतिक्रिया।

प्रभाव 

  • सार्वजनिक संपत्तियों व बुनियादी ढाँचा अवसंरचनाओं की क्षति।
  • उद्योग, व्यापार तथा दिहाड़ी मजदूरों की कमाई पर प्रतिकूल प्रभाव।
  • रोडवेज, रेलवे व अन्य सेवाओं में बाधा से राजस्व की हानि।
  • पुनर्निर्माण गतिविधियों से राज्य की आर्थिक क्षति।
  • बाढ़ के कारण पलायन से मानव तस्करी में भी वृद्धि।

शहरी बाढ़ का प्रबंधन 

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा वर्ष 2010 में शहरी बाढ़ प्रबंधन के लिये दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।
  • शहरी बाढ़ से निपटने के लिये शहरी विकास मंत्रालय को नोडल मंत्रालय घोषित किया गया है।
  • पूर्वानुमान प्रणाली की स्थापना : वर्षा के पूर्वानुमान भारत के मौसम विभाग द्वारा जारी किये जाते हैं जबकि बाढ़ से संबंधित चेतावनी केंद्रीय जल आयोग द्वारा की जाती है। इसके लिये एकीकृत प्रणाली की आवश्यकता है। 
  • शहरी बाढ़ प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली तथा राष्ट्रीय मौसम जल नेटवर्क की स्थापना।
  • तमिलनाडु के समान ही अन्य राज्यों में भी भवनों पर वर्षा जल संचयन प्रणाली की स्थापना को प्रोत्साहन दिये जाने की आवश्यकता है।
  • अतिरिक्त जल के बहिर्वाह के लिये चैनल निर्माण के साथ-साथ वंचित समूहों को वैकल्पिक आवास सुविधा उपलब्ध कराके नदी जल क्षेत्रों तथा तटीय क्षेत्रों से अतिक्रमण को हटाना आवश्यक है।
  • आपदा के दौरान सूचना का प्रसार और अन्य संचार माध्यमों से संवाद बेहतर प्रबंधन में मदद करता है।
  • चीन के शहरों के अनुरूप ‘स्पंज‘ शहरों का विकास : इसमें सतही जल का बेहतर रिसाव या अवशोषण सुनिश्चित करने के लिये कंक्रीट के फर्शों को रंध्रयुक्त फुटपाथों से प्रतिस्थापित करने की परिकल्पना की गई है। इसका उद्देश्य वर्षा जल के बेहतर अंतः शोषण के लिये आर्द्रभूमि को बहाल करना, वर्षा उद्यान और छत उद्यान विकसित करना है।
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