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वेलि-अक्कुलम झील

केरल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के एक नए अध्ययन के अनुसार ‘वेलि-अक्कुलम झील’ में आक्रामक प्रजातियों के कारण महत्वपूर्ण पारिस्थितिक क्षरण हुआ है। 

वेलि-अक्कुलम झील के बारे में

  • वेलि-अक्कुलम झील केरल के दक्षिण-पश्चिमी तट पर स्थित है, जो अपने पश्चिमी किनारे पर रेत की पट्टी द्वारा अरब सागर से अलग होती है और केवल मानसून के दौरान समुद्र से जुड़ी रहती है।
  • वेलि-अक्कुलम के दो भाग है, जो एक बांध द्वारा अलग हैं। इस झील का पश्चिमी भाग समुद्र की ओर है, जो वेलि झील का निर्माण करता है, जबकि उत्तर-पूर्वी भाग अक्कुलम झील कहलाता है।  

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष 

  • संबंधित शोध में पारिस्थितिकी दक्षता एवं खाद्य जाल संरचना का आकलन करने के लिए इकोपैथ मॉडल का उपयोग किया गया, जिसमें विगत तीन दशकों में झील की पोषण स्थिति एवं खाद्य जाल में आए नाटकीय बदलावों पर प्रकाश डाला गया।
  • अध्ययन के अनुसार वेलि-अक्कुलम झील की स्वदेशी जलीय प्रजातियों में गिरावट एवं आक्रामक प्रजातियों में वृद्धि हुई है। 
    • केरल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा 1990 के दशक में पहली बार पारिस्थितिकी तंत्र का मानचित्र तैयार किया था, जिसमें झींगा, देशी सिक्लिड, बार्ब और कैटफिश जैसी देशी प्रजातियों की बहुलता थी। 
  • हालांकि, मौजूदा अध्ययन ने झींगा, सिक्लिड जैसी प्रजातियों के बायोमास (जैवभार) में गिरावट संबंधी चिंताओं को भी उजागर किया है। 
    • उदाहरण के लिए, झींगों का बायोमास 57.60 टन प्रति वर्ग किमी. से घटकर मात्र 0.110 टन/वर्ग किमी. रह गया है, जबकि देशी सिक्लिड का बायोमास 41.6 टन प्रति वर्ग किमी. से घटकर 0.350 टन रह गया है। 
  • इससे पहले हुए एक अध्ययन में अमायिझांजन नहर में प्रदूषण के कारण भी अक्कुलम-वेली झील के पारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण पर प्रकाश डाला गया था। 

आक्रामक प्रजातियाँ (Invasive species)

  • अध्ययन के अनुसार, 2000 के दशक तक देशी प्रजातियों को विदेशी एवं आक्रामक (Exotic and Invasive) प्रजातियों ‘मोजाम्बिक तिलापिया’ (ओरेओक्रोमिस मोसाम्बिकस), ‘नील तिलापिया’ (ओरेओक्रोमिस निलोटिकस) आदि ने प्रतिस्थापित कर दिया था। 
  • पारिस्थितिकी तंत्र को अधिक जटिल बनाने वाली अन्य आक्रामक प्रजातियों में अमेज़न अफ़्रीकी कैटफ़िश (क्लेरियस गैरीपिनस) और अमेज़न सेलफ़िन कैटफ़िश (पेरीगोप्लिचथिस पार्डलिस) आदि शामिल हैं।
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