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शहरों का ऊर्ध्वाधर विकास

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय)

संदर्भ 

  • नेचर सिटीज़ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में शहरों के परिधीय (Outwards) विस्तार की तुलना में उर्ध्वाधर (Upwards) विस्तार तेजी से हो रहा है। इसका अर्थ है कि शहरों के क्षेत्रीय विस्तार की तुलना में गगनचुंबी इमारतों का निर्माण अधिक हो रहा है।
  • यह प्रवृत्ति विशेष रूप से एशिया में अधिक देखी जा रही है। वस्तुतः एशिया के शहर अपनी बढ़ती आबादी और सीमित भूमि संसाधनों को समायोजित करने के लिए तेजी से ऊर्ध्वाधर विकास रणनीतियों को अपना रहे हैं। 
  • एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 1990 से 2020 तक शहरी आबादी में लगभग 2 बिलियन लोगों की वृद्धि हुई है।

शहरों के ऊर्ध्वाधर विकास के संबंध में शोध एवं निष्कर्ष 

  • पृथ्वी एवं शहरी वैज्ञानिकों की एक टीम ने 1990 के दशक से 2010 के दशक तक दुनिया के 1,500 से अधिक शहरों का निरीक्षण किया। उन्होंने शहरों के ऊर्ध्वाधर विकास एवं द्वि-आयामी (2D) प्रसार के बारे में जानकारी एकत्रित करने के लिए रिमोट-सेंसिंग उपग्रह डाटा का उपयोग किया।
  • इसके अलावा, शहर की संरचनाओं में हुए बदलाव को समझने के लिए ‘स्कैटरोमीटर (Scatterometer)’ या ‘प्रसारमापी (Diffusionmeter)’ से भी डाटा का उपयोग किया गया।  
    • स्कैटरोमीटर उपग्रह-जनित सेंसर होता है, जो पृथ्वी की सतह पर माइक्रोवेव के स्पंदन भेजते हैं और परावर्तित डाटा को एकत्र करते हैं। 
  • शोध निष्कर्ष के अनुसार, शहरों में भवनों के साथ-साथ भूमि को कवर करने की दर में तेजी नहीं आ रही है किंतु निर्माण की मात्रा में वृद्धि हो रही है। 
    • इस प्रकार, यह शहरों के ऊर्ध्वाधर विकास को इंगित करता है।
  • 10 मिलियन से अधिक आबादी वाले शहरों में ऊर्ध्वाधर वृद्धि ज़्यादा देखी गई है और 2010 के दशक में यह प्रभाव अत्यधिक स्पष्ट हो गया है।
  • शोधकर्ताओं के अनुसार, दुनिया भर के शहरों में ऊर्ध्वाधर वृद्धि हो रही है, जिसमें कुछ पूर्वी एशियाई शहर, विशेषकर चीन के शहर सबसे आगे हैं। 

एशियाई शहरों में ऊर्ध्वाधर विकास के उदाहरण

  • हांगकांग : यह दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों के साथ अपने सघन इमारतों के लिए जाना जाता है।
    • वस्तुतः यहाँ सीमित भूमि उपलब्धता के कारण आवासीय एवं वाणिज्यिक स्थानों के ऊर्ध्वाधर निर्माण को बढ़ावा मिलता है।
  • शंघाई (चीन) : यहाँ शंघाई टॉवर जैसी प्रतिष्ठित गगनचुंबी इमारतें है, जो दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची इमारत है।
    • चीन की उच्च जनसंख्या घनत्व और तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण इमारतों के ऊर्ध्वाधर विकास के लिए प्रमुख कारक है। 
  • टोक्यो (जापान) : आवासीय, वाणिज्यिक एवं मिश्रित उपयोग वाली ऊंची इमारतों का मिश्रण यहाँ के परिदृश्य में अधिक व्यापक है।
    • इस देश के प्राकृतिक भूगोल एवं उच्च जनसंख्या घनत्व के कारण सीमित स्थान के चलते ऊर्ध्वाधर विस्तार को बढ़ावा मिलता है।

भारत के संबंध में 

  • तीव्र शहरीकरण, जनसंख्या वृद्धि एवं प्रमुख शहरों में सीमित भूमि उपलब्धता के कारण भारत में शहरी विकास की प्रवृत्ति उर्ध्वाधर होती जा रही है।
  • भारतीय शहरों में एक समान ऊर्ध्वगामी वृद्धि नहीं देखी गई है। केवल 50 लाख से अधिक जनसंख्या वाले बड़े शहरों में ही ऊर्ध्वगामी या परिधीय या केवल परिधीय वृद्धि देखी गई है। यह प्रवृत्ति अधिकतर 2010 के दशक में देखी गई।

भारतीय शहरों में ऊर्ध्वाधर विकास के उदाहरण

  • मुंबई : इस शहर में कई ऊँची इमारतें है। तटीय अवस्थिति के कारण सीमित भूमि एवं घनी आबादी इस शहर के ऊर्ध्वाधर विस्तार को बढ़ावा देता है।
  • दिल्ली : दिल्ली में 1990 और 2000 के दशक में अधिकांश वृद्धि परिधीय थी किंतु 2010 के दशक में कुछ ऊर्ध्वाधर वृद्धि हुई। 
    • वर्ल्ड ट्रेड सेंटर एवं अन्य ऊँची वाणिज्यिक व आवासीय परियोजनाएँ ऊर्ध्वाधर विकास को दर्शाती हैं।
  • बेंगलुरु : एक प्रमुख आई.टी. हब के कारण रूप में यहाँ ऊंची-ऊंची कार्यालय इमारतों और आवासीय परिसरों के निर्माण को बढ़ावा दिया है।

ऊर्ध्वाधर विकास के लाभ

  • भूमि का दक्षतापूर्ण उपयोग : ऊंची इमारतों से सीमित भूमि का अधिक गहन उपयोग किया जा सकता है। साथ ही, ऊर्ध्वाधर विकास शहरी केंद्रों के आसपास खुले स्थानों व प्राकृतिक क्षेत्रों को संरक्षित करने में मदद करता है।
  • आर्थिक लाभ : गगनचुंबी इमारतों से प्राय: संपत्ति के मूल्यों में वृद्धि होती हैं और व्यवसाय केंद्रित होते हैं। इससे निवेश आकर्षित होता है तथा आर्थिक गतिविधियों व रोज़गार को बढ़ावा मिलता है।
  • बुनियादी ढांचे की दक्षता : ऊँची इमारतें उपयोगिता सेवाओं (जैसे- पानी, बिजली) को अधिक कुशल एवं केंद्रीकृत बना सकती हैं। इसके अलावा, उच्च घनत्व के कारण बेहतर सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों के विकास को बढ़ावा मिल सकता है।

ऊर्ध्वाधर विकास के नुकसान

पर्यावरण संबंधी चिंताएँ

  • ऊर्जा की उच्च खपत : ऊँची इमारतों में प्राय: प्रकाश, हीटिंग एवं कूलिंग के लिए अधिक ऊर्जा की खपत होती है।
  • निर्माण प्रभाव : इमारतों के निर्माण में महत्वपूर्ण संसाधनों का उपयोग होता है और काफी अपशिष्ट उत्पन्न होता है।

सामाजिक मुद्दे 

  • सामुदायिक संपर्क : ऊँची इमारतों में रहने से सामुदायिक संपर्क में कमी आ सकती है और अलगाव की भावना पैदा हो सकती है।
  • वहनीयता : ये इमारतें प्राय: अधिक महंगी होती हैं, जो आवास वहनीयता के मुद्दों में वृद्धि कर सकती हैं।

बुनियादी ढांचे पर दबाव

  • उच्च घनत्व : घनत्व बढ़ने से मौजूदा बुनियादी ढांचे पर दबाव पड़ सकता है, जिससे यातायात एवं अन्य सार्वजनिक सेवाओं पर दबाव बढ़ सकता है।
  • जीवन की गुणवत्ता : उच्च घनत्व वाले वातावरण से ध्वनि प्रदूषण एवं वायु की गुणवत्ता में कमी जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

आगे की राह 

टिकाऊ भवन निर्माण

  • हरित प्रमाणन : पर्यावरण अनुकूल प्रथा सुनिश्चित करने के लिए हरित भवन प्रमाणन के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जैसे- GRIHA एवं LEED आदि। 
  • ऊर्जा दक्षता : ऊंची इमारतों के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों एवं डिजाइन सुविधाओं पर जोर दिया जाना चाहिए, जैसे- इंदिरा पर्यावरण भवन। 
  • GRIHA एक रेटिंग टूल है जो लोगों को राष्ट्रीय स्तर पर कुछ स्वीकार्य मानकों के आधार पर उनके भवन के प्रदर्शन का आकलन करने में मदद करता है।
  • LEED (लीडरशिप इन एनर्जी एंड एनवायरनमेंटल डिज़ाइन) दुनिया की सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली हरित भवन रेटिंग प्रणाली है।

बेहतर शहरी नियोजन

  • मिश्रित-उपयोग विकास : ऐसे नियोजन को बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता है जो आवसीय क्षमता बढ़ाने और आवागमन को कम करने के लिए आवासीय, वाणिज्यिक व मनोरंजक स्थानों को एक ही स्थान पर उपलब्ध कराते हैं।
  • हरित स्थान : जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए उच्च घनत्व वाले क्षेत्रों के भीतर और आसपास हरित स्थानों एवं सार्वजनिक पार्कों को एकीकृत किया जाना अत्यावश्यक है।

उन्नत बुनियादी ढाँचा

  • सार्वजनिक परिवहन में निवेश को बढ़ावा : उच्च घनत्व वाले क्षेत्रों से बढ़ती माँग को समायोजित करने के लिए सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों में निवेश किए जाने की जरूरत है।
  • उपयोगिता उन्नयन : ऊर्ध्वाधर विकास जनित उच्च माँगों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण आवश्यक है।

सामुदायिक फ़ोकस

  • सामाजिक एकीकरण के लिए प्रयास : निवासियों के बीच सामाजिक संपर्क को बढ़ावा देने के लिए सामुदायिक स्थानों एवं सुविधाओं के साथ इमारतों को डिज़ाइन किया जाना चाहिए।
  • किफ़ायती आवास सुविधा : सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करने के लिए ऊँची इमारतों के भीतर किफायती आवास विकल्पों को शामिल किया जाना आवश्यक है।

शहरी क्षेत्र में विकास एवं स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए सरकार के प्रयास

  • भारतीय संविधान की 12वीं अनुसूची के अनुसार, शहरी नियोजन राज्य का विषय है। 
  • भारत सरकार योजनाबद्ध हस्तक्षेप या सलाह के माध्यम से राज्यों के प्रयासों में मदद करती है और राज्यों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करती है।
  • इसी क्रम में, भारत सरकार का आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय शहरी क्षेत्र में विकास  व संधारणीयता को बढ़ावा देने के लिए कई पहल कर रहा है।
    • स्वच्छ भारत मिशन : यह मिशन घर-घर संग्रहण/पृथक्करण, अपशिष्ट प्रसंस्करण आदि पर ध्यान केंद्रित करने के साथ सुरक्षित स्वच्छता व अपशिष्ट प्रबंधन के लिए बदलाव में तेजी ला रहा है।
    • स्मार्ट सिटी मिशन : इसका उद्देश्य ऐसे शहरों को बढ़ावा देना है जो बुनियादी ढांचे, स्वच्छ एवं टिकाऊ वातावरण प्रदान करते हैं और स्मार्ट समाधानों के अनुप्रयोग के माध्यम से अपने नागरिकों को एक उचित जीवन स्तर प्रदान करते हैं।
    • राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन : इस मिशन का उद्देश्य शहरी बेघरों को चरणबद्ध तरीके से आवश्यक सेवाओं से सुसज्जित आश्रय प्रदान करना है और शहरी स्ट्रीट वेंडरों की आजीविका संबंधी चिंताओं का भी समाधान करना है।
    • पीएम स्वनिधि (PM SVANidhi) योजना : यह योजना फुटपाथ विक्रेताओं को किफायती ऋण प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई एक विशेष माइक्रो-क्रेडिट सुविधा है।
    • प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) मिशन : इस मिशन का उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में आवास उपलब्ध कराना है। यह मिशन पक्के मकान सुनिश्चित करके झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों सहित आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS), निम्न आय वर्ग (LIG) और मध्यम आय वर्ग (MIG) श्रेणियों के बीच शहरी आवास की कमी को दूर करता है।
    • अमृत ​​मिशन (AMRUT Mission) : 25 जून, 2015 को देश भर के चुनिंदा 500 शहरों व कस्बों में अटल कायाकल्प एवं शहरी परिवर्तन मिशन (AMRUT) की शुरुआत की गई। 
      • इस मिशन का उद्देश्य चयनित शहरों व कस्बों में जलापूर्ति, सीवरेज एवं सेप्टेज प्रबंधन, वर्षा जल निकासी, हरित क्षेत्र तथा पार्क और गैर-मोटर चालित शहरी परिवहन के क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित करना है।
  • शहरी नियोजन सुधारों के उद्देश्य से राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए दो योजनाएँ शुरू की गईं हैं :
    • शहरी नियोजन में सुधार के उद्देश्य से पूंजी निवेश के लिए राज्यों को विशेष सहायता योजना, 2022-23 (6000 करोड़ रुपए का आवंटन)। 
    • शहरी नियोजन में सुधार के उद्देश्य से पूंजी निवेश के लिए राज्यों को विशेष सहायता योजना, 2023-24 (15000 करोड़ रुपए का आवंटन)। 
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