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विधायिका के विशेषाधिकार का उल्लंघन

(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय राज्यतंत्र और शासन संविधान, राजनीतिक प्रणाली, लोकनीति, अधिकारों से सम्बंधित मुद्दे; मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: विषय- भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना। विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान। संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।)

हाल ही में,एक समाचार चैनल के प्रधान सम्पादक एवं अभिनेत्री के खिलाफ महाराष्ट्र विधान सभा में विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाया गया है।

विधायिका के विशेषाधिकारों की सुरक्षा के लिये प्रावधान (Provisions to protect the privileges of the legislature):

  • भारतीय संसद और उसके सदस्यों व समितियों की किसी भी सदन में शक्तियाँ, विशेषाधिकार और प्रतिरक्षा संविधान के अनुच्छेद 105 में दिये गए हैं।
  • अनुच्छेद 194 राज्य विधान सभाओं,उनके सदस्यों और उनकी समितियों की शक्तियों, विशेषाधिकारों और प्रतिरक्षा से सम्बंधित है।
  • संसदीय विशेषाधिकार विधायिकाओं द्वारा प्राप्त उन्मुक्ति को संदर्भित करता है, जिसमें विधायकों को उनके विधाई कर्तव्यों के दौरान किये गए कार्यों या बयानों के लिये नागरिक या आपराधिक दायित्व के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की जाती है।

विशेषाधिकारों का उल्लंघन क्या है? (What constitutes breach of privileges?):

  • यद्यपि संविधान ने सदनों की गरिमा और अधिकार बनाए रखने के लिये सांसदों और विधायकों को विशेषाधिकार और शक्तियाँ प्रदान किये हैं,लेकिन इन शक्तियों और विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध नहीं किया गया है।
  • इस प्रकार, यह तय करने के लिये कोई स्पष्ट, अधिसूचित नियम नहीं है कि विशेषाधिकार का उल्लंघन क्या होता है और इसके लिये क्या सज़ा दी जा सकती है या दी जानी चाहिये।
  • कोई भी कार्य जो राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन को उसके कार्यों को करने से रोकता है या जो सदन के किसी सदस्य या अधिकारी को उसके कर्तव्य के निर्वहन करने में बाधा उत्पन्न करता है या ऐसी प्रवृत्ति हो जिससे कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सदन की भावना के खिलाफ परिणाम प्राप्त हो, विशेषाधिकार का उल्लंघन माना जाता है।
  • यदि सदन या उसकी समितियों के चरित्र या कार्यवाही या सदन के किसी सदस्य पर या उसके चरित्र से सम्बंधित या आचरण से सम्बंधित किसी परिवाद को प्रकाशित किया जाता है तो यह सदन की अवमानना मानी जाती है और यह विशेषाधिकार का उल्लंघन माना जाता है।

कथित उल्लंघन के मामलों में पालन की जाने वाली प्रक्रिया (Procedure followed in cases of an alleged breach):

  • विधान सभा अध्यक्ष या विधान परिषद अध्यक्ष एक विशेषाधिकार समिति का गठन करते हैं, जिसमें यदि विधान सभा है तो 15 सदस्य होते हैं और विधान परिषद है तो 11 सदस्य होते हैं।
  • समिति के सदस्य जिनके पास अर्ध-न्यायिक शक्तियाँ हैं, उन्हें सदनों में पार्टी की ताकत के आधार पर नामित किया जाता है।
  • विधान सभा अध्यक्ष या विधान परिषद अध्यक्ष सबसे पहले प्रस्ताव पर निर्णय लेते हैं।
  • यदि विशेषाधिकार और अवमानना ​​को प्रथम दृष्टया सही पाया जाता है , तो अध्यक्ष उचित प्रक्रिया का पालन करके इसे विशेषाधिकार समिति को भेज देंगे।
  • वर्तमान में,राज्य विधान सभा के किसी भी सदन में विशेषाधिकार समिति नहीं है।
  • समिति सभी सम्बंधित व्यक्तियों/समूह/पार्टियों से स्पष्टीकरण मांगेगी तत्पश्चात जाँच करेगी और राज्य विधायिका को अपने निष्कर्षों के आधार पर सिफारिशें देगी।

इसके लिये क्या सज़ा है?

  • यदि समिति अपराधी को विशेषाधिकार ​​के उल्लंघन और अवमानना का दोषी पाती है तो वह सज़ा की सिफारिश कर सकती है।
  • सज़ा में अपराधी को राज्य विधायिका की नाराज़गी प्रेषित/ज़ाहिर करना,अपराधी को सदन के समक्ष बुलाना और चेतावनी देना और यहाँ तक ​​कि अपराधी को जेल भेजना भी शामिल हो सकता है।
  • मीडिया के मामले में,राज्य विधायिका की प्रेस सुविधाओं को वापस लिया जा सकता है और सार्वजनिक माफी मांगने को कहा जा सकता है।
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