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साइबर फ्रॉड से निपटने के लिए वॉयस बायोमेट्रिक तकनीकी

(प्रारंभिक परीक्षा: साइबर फ्रॉड, वॉयस बायोमेट्रिक तकनीक)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र:3- संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में RBI की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में साइबर फ्रॉड के मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी देखी जा रही है। ऐसे में इसके बचाव के लिए विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल होता रहा है जिसमें वॉयस बायोमेट्रिक तकनीकी भी एक उपाय हो सकती है। 

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रिपोर्ट के प्रमुख बिन्दु 

  • भारतीय रिज़र्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, पिछले सात वर्षों में साइबर धोखाधड़ी से देश में प्रतिदिन अनुमानित रूप से ₹100 करोड़ की हानि हो रही हैं। 
  • 2021-22 में साइबर फ्रॉड के मामले पिछले वर्ष की तुलना में 23.69% अधिक थे 2020-21 में 9,103 की तुलना में केवल 7,359 मामले दर्ज किए गए। 

धोखाधड़ी में वृद्धि के कारण

  • धोखाधड़ी में वृद्धि के मुख्य कारणों में डिजिटल भुगतान, मोबाईल बैंकिंग के साथ  ऑनलाइन बैंकिंग सेवाओं का अधिक उपयोग करना शामिल है। 

क्या है साइबर अपराध और वॉयस बायोमेट्रिक तकनीकी?

साइबर अपराध

  • साइबर अपराध ऐसे गैर-कानूनी कार्य हैं जिनमें कंप्यूटर एवं इंटरनेट नेटवर्क का प्रयोग एक साधन या लक्ष्य अथवा दोनों के रूप में किया जाता है।
  • ऐसे अपराधों में हैकिंग, चाइल्ड पॉर्नोग्राफी, साइबर स्टॉकिग, सॉफ्टवेयर पाइरेसी, क्रेडिट कार्ड फ्रॉड, फिशिंग आदि को शामिल किया जाता है।

वॉयस बायोमेट्रिक तकनीकी

  • यह तकनीक, पहचान के रूप में किसी व्यक्ति की आवाज़ (वॉयस रिकग्निशन टेक्नोलॉजी) का उपयोग करती है। इसके लिए यह तकनीक एक डिजिटल वॉयसप्रिंट बनाती है और इसकी तुलना कॉलर की आवाज से करती है। 
  • फरवरी 2019 में, HSBC मोबाइल बैंकिंग ग्राहकों के लिए वॉयस रिकग्निशन की शुरुआत करने वाला पहला बैंक बन गया इससे HSBC बैंक के बैंकिंग फ्रॉड के मामलों में 50% से अधिक की गिरावट आई।

वॉयस बायोमेट्रिक तकनीकी
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अन्य तकनीकों से बेहतर कैसे?

  • अन्य बायोमेट्रिक्स की तुलना में, वॉयस बायोमेट्रिक (VT) सबसे सस्ती तकनीक है, इसके लिए किसी रीडर या विशेष उपकरण की आवश्यकता नहीं होती है।
  • यह गैर-आक्रामक, पोर्टेबल भी है और दूरस्थ पहचान प्रदान करता है। 
  • साइबर सुरक्षा के मामलों में पासवर्ड, सुरक्षा में सबसे कमजोर कड़ी हैं (81% हैकिंग से संबंधित उल्लंघनों में कमजोर पासवर्ड शामिल हैं)। 
  • इसमें पासवर्ड के विपरीत, उपयोगकर्ता की आवाज की नकल करना या हैक करना लगभग असंभव है। 
  • VT कॉल करने वाले की आवाज का विश्लेषण करके और संदिग्ध कॉलों को चिह्नित करके सेकंड में एक कॉलर को तेजी से सत्यापित करता है।
  • VT गोपनीयता की अनुमति देता है क्योंकि इसमें उपयोगकर्ताओं को व्यक्तिगत जानकारी (मेल ID वगैरह) प्रकट करने की आवश्यकता नहीं होती है।

वॉयस बायोमेट्रिक तकनीकी के सकारात्मक पक्ष

  • VT फोरेंसिक और कानून प्रवर्तन के लिए एक आवश्यक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। 
  • पुलिस जांच दक्षता में सुधार करने, अपराधियों की पहचान करने, अपराधियों को ट्रैक करने और बेहतर प्रतिक्रिया देने के साथ-साथ अपराधों को रोकने के लिए वॉयस बायोमेट्रिक्स का इस्तेमाल कर सकती है।
  • हवाई अड्डे की सुरक्षा में वॉयस बायोमेट्रिक्स का उपयोग किया जा रहा है। 
  • VT सरकार के लिए विभिन्न योजनाओं के लिए धन वितरित करने और पेंशनरों के जीवन के प्रमाण को उनके घरों से सत्यापित करने का एक उत्कृष्ट साधन हो सकता है।
  • तकनीक यह पता लगाने के लिए पर्याप्त सक्षम है कि- 
    • क्या कोई उपयोगकर्ता का प्रतिरूपण कर रहा है या रिकॉर्डिंग चला रहा है। 
    • उपयोगकर्ता को सर्दी या गले में खराश है या नहीं। 
  • वॉयस बायोमेट्रिक्स वित्तीय संस्थानों को ग्राहकों और कर्मचारियों के लिए उच्च स्तर की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है।

नकारात्मक पक्ष

  • कोई भी तकनीक 100% फुलप्रूफ नहीं हो सकती है, इसकी सटीकता 90% और 99% के बीच है। 
    • हालांकि, कुछ हालिया सिस्टम जो लिंग और उम्र की पहचान के अलावा वॉयस एनालिटिक्स के साथ आते हैं, 100% सत्यापन सटीकता का दावा करते हैं।

साइबर अपराधों से निपटने की दिशा में भारत के प्रयास-

  • भारत में ‘सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000’ पारित किया गया जिसके प्रावधानों के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता के प्रावधान सम्मिलित रूप से साइबर अपराधों से निपटने के लिये पर्याप्त हैं। इसके अंतर्गत 2 वर्ष से लेकर उम्रकैद तथा दंड अथवा जुर्माने का भी प्रावधान है।
  • सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति, 2013’ जारी की गई जिसके तहत सरकार ने अति संवेदनशील सूचनाओं के संरक्षण के लिये ‘राष्ट्रीय अतिसंवेदनशील सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र (National Critical Information Infrastructure protection centre-NCIIPC) का गठन किया।
  • सरकार द्वारा ‘कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (CERT-In)का स्थापना की गई जो कंप्यूटर सुरक्षा के लिये राष्ट्रीय स्तर की मॉडल एजेंसी है।
  • विभिन्न स्तरों पर सूचना सुरक्षा के क्षेत्र में मानव संसाधन विकसित करने के उद्देश्य से सरकार ने ‘सूचना सुरक्षा शिक्षा और जागरूकता’ (Information Security Education and Awareness: ISEA) परियोजना प्रारंभ की है।
  • भारत सूचना साझा करने और साइबर सुरक्षा के संदर्भ में सर्वोत्तम कार्य प्रणाली अपनाने के लिये अमेरिका, ब्रिटेन और चीन जैसे देशों के साथ समन्वय कर रहा है।
  • अंतर एजेंसी समन्वय के लिये ‘भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र’ (Indian Cyber Crime Co-ordination Centre-I4C) की स्थापना की गई है।

आगे की राह 

  • साइबर फ्रॉड के संदर्भ में, सरकार को धोखाधड़ी निवारक के रूप में धोखाधड़ी की जांच और मुकदमा चलाने के लिए वित्तीय संस्थानों और पुलिस के बीच उचित समन्वय के लिए एक तंत्र विकसित करने और ऐसे अपराधियों का एक व्यापक डेटाबेस बनाए रखने की आवश्यकता है।
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