(प्रारंभिक परीक्षा- भारतीय राज्य तंत्र और शासन- संविधान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान )
संदर्भ
वर्तमान में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच जल संसाधनों के बंटवारे को लेकर पुनः विवाद आरंभ हो गया है।
ताजा विवाद
- वर्ष 2015 में नागार्जुन सागर जलाशय से पानी छोड़ने को लेकर दोनों राज्यों के अधिकारियों के बीच विवाद हो गया था। हालाँकि, वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी के मुख्यमंत्री बनने के बाद दोनों राज्यों के संबंधों में कुछ सुधार हुआ है।
- कृष्णा नदी जल-बंटवारे पर जारी असहमति इस क्षेत्र में राजनीति को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है। साथ ही, राजनीतिक लाभ के लिये भी जल-विवाद को समय-समय पर हवा दी जाती रही है।
- आंध्र प्रदेश का आरोप है कि तेलंगाना, जल विद्युत उत्पादन के लिये ‘कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड’ से अनुमोदन के बिना ही चार परियोजनाओं- जुराला, श्रीशैलम, नागार्जुन सागर और पुलीचिंताला से पानी का प्रयोग कर रहा है। विदित है कि ‘कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड’ राज्य के विभाजन के बाद कृष्णा नदी बेसिन में जल-प्रबंधन और विनियमन करने के लिये स्थापित एक स्वायत्त निकाय है।
- आंध्र प्रदेश के अनुसार, बिजली उत्पादन के लिये प्रयोग होने वाला जल बंगाल की खाड़ी में छोड़ने से बर्बाद हो रहा है, जबकि कृष्णा डेल्टा के किसानों ने अभी तक खरीफ फसल की बुवाई शुरू नहीं की है।
- तेलंगाना का कहना है कि वह अपनी विद्युत ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पनबिजली उत्पादन जारी रखेगा। साथ ही, इसने आंध्र प्रदेश सरकार की सिंचाई परियोजनाओं (विशेष रूप से रायलसीमा लिफ्ट सिंचाई परियोजना) का कड़ा विरोध किया है। तेलंगाना ने कृष्णा नदी से जल के 50:50 आवंटन की माँग की है।
कृष्णा नदी : संबंधित तथ्य
- पूर्व की ओर बहने वाली इस नदी की उत्पत्ति महाराष्ट्र में सह्याद्रि के महाबलेश्वर से होती है। गोदावरी के बाद पूर्व दिशा में बहने वाली यह दूसरी बड़ी प्रयद्वीपीय नदी है।
- यह नदी चार राज्यों (महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश) से बहती हुई बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
- कृष्णा की सहायक नदियाँ तुंगभद्रा, मालप्रभा, कोयना, भीमा, घाटप्रभा, यरला, वरुणा, दिंडी, मूसी और दूधगंगा हैं।
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जल बंटवारे का वर्तमान प्रारूप
- तेलंगाना के आंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद दोनों राज्यों ने ‘कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-2’ द्वारा जल आवंटन पर अंतिम फैसला आने तक अनौपचारिक/तदर्थ रूप से जल को 66:34 के आधार पर विभाजित करने पर सहमत हुए हैं।
- संयुक्त रूप से दोनों राज्यों को आवंटित 811 टी.एम.सी. (हजार मिलियन क्यूबिक) फीट पानी में से वर्तमान में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को क्रमशः 512 टीएमसी फीट और 299 टीएमसी फीट पानी मिलता है।
तेलंगाना द्वारा बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं पर जोर
- ‘कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई परियोजना’ को गोदावरी नदी से पानी के लिये भारी मात्रा में विद्युत की आवश्यकता होती है। इस परियोजना का उद्घाटन वर्ष 2019 में किया गया था। साथ ही, तेलंगाना को नेट्टमपाडु, भीमा, कोइलसागर और कलवाकुर्थी लिफ्ट सिंचाई परियोजनाओं को बिजली देने के लिये जल विद्युत की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त, तेलंगाना ने पनबिजली स्टेशनों को पूरी क्षमता से संचालित करने का विकल्प चुना है, क्योंकि पनबिजली सस्ती है।
- तेलंगाना चाहता है कि ‘कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-2’ जल विवाद को स्थायी रूप से सुलझाए और बोर्ड इसके लिये पारस्परिक रूप से सहमत एक पूर्ण बैठक बुलाए।
जल विवाद और संवैधानिक पक्ष
- संविधान के अनुच्छेद-262 के अंतर्गत संसद किसी अंतर्राज्यीय नदी व नदी घाटी जल के उपयोग, वितरण तथा नियंत्रण से संबंधित विवाद या शिकायत के समाधान के लिये कानून का निर्माण कर सकती है। संसद ने अनुच्छेद-262 के तहत दो कानून, यथा- ‘नदी बोर्ड अधिनियम,1956’ और ‘अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम,1956’ पारित किये हैं।
- नदी बोर्ड अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा अंतर्राज्यीय नदी और नदी घाटियों के विनियमन और विकास हेतु नदी बोर्ड के गठन का प्रावधान किया गया है। नदी बोर्ड का गठन राज्य सरकारों के आग्रह पर उन्हें सलाह देने के लिये किया जाता है।
- अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम केंद्र सरकार को अंतर्राज्यीय नदी या नदी घाटी के जल को लेकर दो या दो से अधिक राज्यों के मध्य विवाद के समाधान हेतु एक तदर्थ न्यायाधिकरण (Ad-hoc Tribunal) की स्थापना का अधिकार प्रदान करता है। हालाँकि इस अधिनियम में निर्णय देने की अधिकतम समय सीमा निर्धारित नहीं है।
- अधिकरण का निर्णय विवाद से संबंधित पक्षकारों के लिये अंतिम एवं बाध्यकारी होता है। इस अधिनियम के तहत स्थापित अधिकरण के समक्ष प्रस्तुत किये गए जल विवाद न तो सर्वोच्च न्यायलय और न ही किसी अन्य न्यायालय के क्षेत्राधिकार में आते हैं।
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विवाद निपटारे का प्रयास
- कृष्णा नदी जल विवाद समाधान के लिये वर्ष 1969 में ‘कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण’ (Krishna Water Disputes Tribunal-KWDT) का गठन किया गया। इस न्यायाधिकरण ने वर्ष 1973 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- न्यायाधिकरण ने महाराष्ट्र के लिये 560 TMC, कर्नाटक के लिये 700 TMC और आंध्र प्रदेश के लिये 800 TMC जल निर्धारित किया। साथ ही, 31 मई, 2000 के बाद इसकी समीक्षा और अपेक्षित संशोधन की भी बात कही गई।
- राज्यों के मध्य विवाद बढ़ने पर वर्ष 2004 में ‘कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-2’ स्थापित किया गया, जिसने वर्ष 2010 में अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की। यह अंतिम फैसला वर्ष 2050 तक मान्य रहेगा।
- हालाँकि, तेलंगाना के गठन के बाद आंध्र प्रदेश न्यायाधिकरण के फैसले पर पुनर्विचार करने और जल विवाद में तेलंगाना को एक पक्ष बनाने पर जोर दे रहा है। जल एक राष्ट्रीय संपत्ति है। नदी जल पर प्रादेशिक संप्रुभता की बात अतार्किक है। कोई भी राज्य नदी के स्वामित्व को लेकर दावा नहीं कर सकता है। नदी जल विवाद समाधान के लिये जल के ‘न्यायसंगत वितरण या उपयोग’ के सिद्धांत पर बल देने की आवश्यकता है।