संदर्भ
वैश्विक जल प्रणाली परियोजना (Global Water System Project) ने स्वच्छ जल के मानव-जनित परिवर्तन और पृथ्वी प्रणाली तथा समाज पर उसके प्रभाव को लेकर वैश्विक चिंता व्यक्त की है। वर्तमान में मीठे पानी के संसाधन बहुत दबाव में हैं, जिसका प्रमुख कारण विभिन्न मानवीय गतिविधियाँ हैं। उल्लेखनीय है कि ‘वैश्विक जल प्रणाली परियोजना’ को वर्ष 2003 में ‘अर्थ सिस्टम साइंस पार्टनरशिप’ (ESSP) और ‘ग्लोबल एनवायरनमेंटल चेंज’ (GEC) कार्यक्रम की संयुक्त पहल के रूप में लॉन्च किया गया था।
स्वच्छ जल की उपलब्धता का महत्त्व
- वर्ष 2007 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की चौथी रिपोर्ट में सामाजिक भेद्यता व जल-प्रणालियों में बदलाव के मध्य संबंधों पर प्रकाश डाला गया था।
- ऐसा अनुमान है कि यदि जल-प्रणालियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने वाली वर्तमान मानव-जनित गतिविधियाँ जारी रहती हैं तो वैश्विक स्तर पर ताजे पानी की माँग और आपूर्ति के बीच अंतर वर्ष 2030 तक 40% तक पहुँच सकता है।
- वर्ष 2008 में विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) के आह्वान पर जल संसाधन समूह-2030 का गठन किया गया तथा वर्ष 2018 से विश्व बैंक द्वारा इस समूह की गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जो इस समस्या की पहचान तथा सतत् विकास लक्ष्य-6 (स्वच्छ पेयजल कि उपलब्धता) की प्राप्ति में सहायक है।
- संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट, 2021 का शीर्षक ‘जल को महत्त्व’ (Valueing Water) है। इस रिपोर्ट में पाँच परस्पर संबंधित दृष्टिकोणों- जल स्रोत, जल बुनियादी ढाँचा, जल सेवाएँ, उत्पादन और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये एक इनपुट के रूप में जल तथा जल के सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों के उचित महत्त्व पर बल दिया गया है।
अंतर-बेसिन स्थानांतरण परियोजनाएँ (Inter-Basin Transfer: IBT Project)
- नदी प्रणालियों की पुनर्व्यवस्था, सिंचाई एवं अन्य जल उपभोग, व्यापक भूमि उपयोग में परिवर्तन, जलीय पारितंत्र में परिवर्तन तथा जल की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले बिंदु एवं गैर-बिंदु स्रोत प्रदूषण स्वच्छ जल प्रणाली को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने वाले मानवजनित कारक हैं।
- एक हालिया दस्तावेज़ के अनुसार, वर्तमान में विश्व स्तर पर लगभग 110 जल स्थानांतरण मेगा परियोजनाओं को या तो निष्पादित किया गया हैं या वे नियाजन/निर्माणाधीन स्थिति में हैं। भारत की ‘राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना’ भी निर्माणाधीन परियोजनाओं में से एक है।
- यदि इन परियोजनाओं को क्रियान्वित किया जाता है तो यह भू-मध्य रेखा की लंबाई के दोगुने से अधिक कृत्रिम जल-शृंखला का निर्माण करेंगी तथा प्रतिवर्ष लगभग 1910 घन मीटर जल को स्थानंतरित करेगी।
- ये परियोजनाएँ स्थानीय, क्षेत्रीय तथा वैश्विक स्तर पर अनेक उप-शाखाओं में वितरित होकर जलीय प्रणाली को पुनर्व्यवस्थित करेंगी।
- एक बहु-राष्ट्रीय केस स्टडी विश्लेषण के आधार पर वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर ने इन परियोजनाओं के क्रियान्वयन में विश्व बाँध आयोग द्वारा निर्धारित सतत् सिद्धांतों का पालन करने की आवश्यकता का सुझाव दिया है।
भारतीय परिदृश्य से संबंधित मुद्दे
नदी जोड़ो परियोजनाएँ
- बजट 2022 में केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के लिये किये गए प्रावधान के कारण पानी के अंतर-बेसिन स्थानांतरण ने ध्यान आकर्षित किया है, जो राष्ट्रीय नदी जोड़ों परियोजना का एक हिस्सा है।
- आई.बी.टी. का मूल आधार अतिरिक्त जल वाले बेसिन से कम जल वाले बेसिन में जल का स्थानांतरण करना है। हालाँकि, अतिरिक्त और कम जल वाले बेसिन की अवधारणा पर ही विवाद है।
- वर्तमान और भविष्य के भूमि उपयोग, विशेष रूप से फसल प्रतिरूप, जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, औद्योगीकरण, सामाजिक-आर्थिक विकास और पर्यावरणीय प्रवाह को ध्यान में रखते हुए दाता बेसिन के भीतर जल की मांग पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
- साथ ही, अतिरिक्त जल वाले कई बेसिनों में वर्षा में गिरावट दर्ज़ की गई है। यदि इन मुद्दों पर विचार किया जाए तो अतिरिक्त जल वाले बेसिन की वस्तुस्थिति में परिवर्तन आ सकता है।
जल उपयोग दक्षता
- देश में सृजित जल संसाधनों के वर्तमान क्षमता उपयोग को लेकर चिंता है। वर्ष 2016 तक भारत ने 112 मिलियन हेक्टेयर सिंचाई क्षमता विकसित की, किंतु सकल सिंचित क्षेत्र केवल 93 मिलियन हेक्टेयर था। यह अंतर नहर सिंचाई के मामले में अधिक है। वर्ष 1950-51 में शुद्ध सिंचित क्षेत्र में 40% योगदान नहरों का था, परंतु वर्ष 2014-15 तक यह 24% से भी कम हो गया।
- वर्तमान में शुद्ध सिंचित क्षेत्र में भू-जल से होने वाली सिंचाई का योगदान का लगभग 62.8% है। विकसित देशों में सिंचाई परियोजनाओं की औसत जल उपयोग दक्षता 50%-60% है जबकि भारत में यह केवल 38% ही है।
कृषि क्षेत्र और ग्रे वाटर उपयोग की स्थिति
- भारत में फसलों के उत्पादन में भी वैश्विक औसत से अधिक पानी का उपभोग होता है। कुल कृषि उत्पादन में 75% से अधिक का योगदान देने वाली दो प्रमुख फसलों-चावल और गेहूँ में क्रमशः 2,850 और 1,654 घन मी./टन जल का उपयोग होता है, जबकि इस संदर्भ में वैश्विक औसत 2,291 घन मी./टन और 1,334 घन मी./टन है।
- भारत में कुल जल उपयोग का लगभग 90% हिस्सा कृषि क्षेत्र में प्रयुक्त होता है। साथ ही, भारत के औद्योगिक संयंत्रों में अन्य देशों की तुलना में 2 से 3.5 गुना अधिक जल की खपत होती है। इसी तरह, रिसाव (Leakage) के कारण घरेलू क्षेत्र को 30% से 40% जल की हानि होती है।
- भारत में घरेलू अपशिष्ट से उत्पन्न होने वाले जल (Grey Water) का पुन: उपयोग न के बराबर होना भी चिंता का विषय है। एक अनुमान के अनुसार, घरेलू जल उपयोग का 55% से 75% हिस्सा ग्रे वाटर में परिवर्तित हो जाता है।
- वर्तमान में भारत के शहरी क्षेत्रों में घरेलू उपयोग में पानी की औसत खपत प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 135 से 196 लीटर है। यदि ग्रामीण क्षेत्रों पर विचार किया जाए तो ग्रे वाटर की मात्रा बहुत अधिक होगी।
- मीठे पानी के जलाशयों में ग्रे वाटर और औद्योगिक अपशिष्टों का अनुपचारित प्रवाह चिंता का विषय है। इस स्थिति में यदि भू-जल पर प्रभाव पड़ता है तो स्थिति और भी विकट हो जाएगी।
- वर्तमान में सभी क्षेत्रों में पानी के अकुशल उपयोग के अतिरिक्त प्राकृतिक जल भंडारण क्षमता में कमी और जलग्रहण क्षेत्रों की क्षमता में गिरावट भी आई है।
निष्कर्ष
विभिन्न हितधारक समूहों द्वारा जलीय-प्रणाली के संदर्भ में विभिन्न विचारों का एक व्यापक मिश्रण तैयार करना आवश्यक है। विश्व स्तर पर जल प्रणालियों से संबंधित मुख्य चुनौतियों के रूप में ‘प्रबंधन’ और ‘शासन’ को स्वीकार किया गया है। इसके लिये एक हाइब्रिड जल प्रबंधन प्रणाली आवश्यक है, जहां पेशेवरों एवं नीति-निर्माताओं के साथ व्यक्ति, समुदाय और समाज की निश्चित भूमिका हो। साथ ही, प्रमुख समस्या ‘तकनीक केंद्रित होना नहीं’ बल्कि ‘मानवजनित’ है। इस संदर्भ में जल-सामाजिक चक्र दृष्टिकोण एक उपयुक्त ढाँचा प्रदान कर सकता है। यह मानव-प्रकृति की पारस्परिक संरचना में प्राकृतिक जल विज्ञान चक्र को पुनर्स्थापित करता है।