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परिसंपत्ति मुद्रीकरण (Asset Monetization) क्या है ?

  • परिसंपत्ति मुद्रीकरण (Asset Monetization) एक ऐसी आर्थिक रणनीति है, जिसके माध्यम से सरकारें और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयाँ (PSUs) अपनी गैर-प्रमुख, कम उपयोग या अप्रयुक्त संपत्तियों को वित्तीय संसाधनों में परिवर्तित करती हैं। 
  • इसका उद्देश्य राजस्व उत्पन्न करना, बुनियादी ढांचा विकास के लिए धन जुटाना, और सार्वजनिक सेवाओं में सुधार लाना है। 
  • यह प्रक्रिया संपत्तियों के स्वामित्व को बेचे बिना उनके उपयोग अधिकारों को एक निर्धारित समय के लिए निजी कंपनियों को सौंपने पर आधारित होती है, जिससे सरकार को एकमुश्त या नियमित राजस्व प्राप्त होता है।

परिसंपत्ति मुद्रीकरण की आवश्यकता और अवधारणा:

  • भारत जैसे विकासशील देश में जहां अवसंरचना विकास के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है, परिसंपत्ति मुद्रीकरण एक व्यवहार्य विकल्प बनकर उभरा है। 
  • सरकार के पास रेलवे, सड़कों, बंदरगाहों, हवाई अड्डों, भूमि, भवनों, गोदामों और अन्य अचल परिसंपत्तियों का विशाल भंडार है, जिनमें से कई का समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है। 
  • इन परिसंपत्तियों को निष्क्रिय रखकर राजस्व की संभावनाएं खो दी जाती हैं। अतः परिसंपत्ति मुद्रीकरण के माध्यम से इनका व्यावसायिक दोहन कर वित्तीय पूंजी सृजित की जा सकती है। 
  • यह प्रक्रिया सरकार को नई परिसंपत्तियाँ विकसित करने की आवश्यकता के बिना मौजूदा संसाधनों से आर्थिक लाभ प्राप्त करने की सुविधा देती है।

मुख्य उद्देश्य:

  • परिसंपत्ति मुद्रीकरण का मुख्य उद्देश्य मौजूदा संपत्तियों से अधिकतम आर्थिक मूल्य प्राप्त करना है। 
  • इस प्रक्रिया से न केवल सरकारी राजस्व में वृद्धि होती है, बल्कि निजी क्षेत्र की दक्षता का लाभ भी मिलता है। इसके प्रमुख उद्देश्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • राजस्व सृजन: सार्वजनिक संपत्तियों के मौद्रिक उपयोग से सरकार को तात्कालिक और दीर्घकालिक आय होती है, जिससे वित्तीय घाटे को कम किया जा सकता है।
    • अवसंरचना विकास हेतु पूंजी जुटाना: मुद्रीकरण से प्राप्त पूंजी को नए बुनियादी ढाँचे जैसे सड़कों, रेलवे, अस्पतालों, स्कूलों और ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश किया जाता है।
    • निजी निवेश को आकर्षित करना: यह प्रक्रिया निजी कंपनियों को आकर्षित करती है, जिससे नवाचार, दक्षता और तकनीकी निवेश को बढ़ावा मिलता है।
    • बेकार पड़ी परिसंपत्तियों का पुनर्प्रयोग: जिन संपत्तियों का सरकार द्वारा प्रयोग नहीं हो रहा है या जो राजस्व उत्पन्न नहीं कर रही हैं, उन्हें उत्पादक आर्थिक गतिविधियों में लगाया जा सकता है। 

भारत में प्रयास:-

  • भारत सरकार ने 2021 में राष्ट्रीय परिसंपत्ति मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) की शुरुआत की, जिसका लक्ष्य 2025 तक 6 लाख करोड़ जुटाना है। 
  • इस योजना के अंतर्गत सड़कों, रेलवे, हवाई अड्डों, बिजली पारेषण, प्राकृतिक गैस पाइपलाइनों, बंदरगाहों, गोदामों और खेल सुविधाओं जैसी प्रमुख अवसंरचना संपत्तियों को मुद्रीकृत करने की योजना है।
    उदाहरणस्वरूप:
  • भारतीय रेलवे ने विभिन्न प्रमुख रेलवे स्टेशनों को पुनर्विकसित करने और उनके वाणिज्यिक उपयोग के लिए निजी कंपनियों को लीज़ पर देना प्रारंभ किया है।
  • NHAI (राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण) ने टोल मार्गों के संचालन और रखरखाव के अधिकार ‘Toll Operate Transfer’ (TOT) मॉडल के अंतर्गत निजी कंपनियों को सौंपे हैं।
  • हवाई अड्डों का निजीकरण: 2023 में जयपुर, अहमदाबाद, लखनऊ, मैंगलोर, तिरुवनंतपुरम और गुवाहाटी जैसे छह हवाई अड्डों का परिचालन अडानी समूह को सौंपा गया। इससे सरकार को तत्काल राजस्व प्राप्त हुआ और सेवाओं में निजी दक्षता का समावेश हुआ।

लाभ:

  • आर्थिक विकास में तेजी: मुद्रीकरण से प्राप्त धन का उपयोग औद्योगिक क्षेत्रों, स्मार्ट सिटी, और परिवहन नेटवर्क जैसी परियोजनाओं में किया जा सकता है, जिससे समग्र आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिलता है।
  • रोजगार के अवसर: निर्माण, रखरखाव और प्रबंधन के कार्यों में निजी कंपनियों की भागीदारी से विभिन्न स्तरों पर रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं।
  • सार्वजनिक सेवाओं में सुधार: मुद्रीकरण से प्राप्त राजस्व का उपयोग स्वास्थ्य, शिक्षा, जल आपूर्ति और यातायात जैसी मूलभूत सेवाओं में सुधार लाने में किया जा सकता है।
  • प्रौद्योगिकीय नवाचार: निजी कंपनियाँ आमतौर पर नवीनतम तकनीकों का उपयोग करती हैं, जिससे परिसंपत्तियों की उत्पादकता और सेवा गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
  • संपत्ति पुनर्चक्रण: इस प्रक्रिया के माध्यम से सरकार कम उपयोग की गई संपत्तियों से मूल्य निकालती है और उसे नई परियोजनाओं में निवेश करके आर्थिक प्रवाह को चक्रात्मक बनाती है।

चुनौतियाँ और चिंताएं:

  • नियामक बाधाएं: भूमि अधिग्रहण, पर्यावरणीय स्वीकृति, और नीति अस्पष्टता जैसी बाधाएं मुद्रीकरण को प्रभावित कर सकती हैं। उदाहरणस्वरूप, भारतमाला परियोजना में भूमि अधिग्रहण की जटिलताओं के कारण कई मार्गों का विकास रुका हुआ है।
  • एकाधिकार और प्रतिस्पर्धा की कमी: एक ही निजी कंपनी द्वारा कई परिसंपत्तियों का अधिग्रहण बाजार में प्रतिस्पर्धा को सीमित कर सकती है। जैसे, अडानी समूह द्वारा कई हवाई अड्डों के अधिग्रहण से प्रतिस्पर्धा की संभावनाओं पर प्रश्नचिह्न लगा।
  • लाभ अधिकतमीकरण: निजी कंपनियाँ लाभ को अधिकतम करने के लिए सेवा गुणवत्ता से समझौता कर सकती हैं या उपयोगकर्ताओं पर अधिक शुल्क लगा सकती हैं। इससे आम नागरिकों पर आर्थिक बोझ बढ़ सकता है।
  • उपभोक्ता अधिकारों की उपेक्षा: कुछ मामलों में उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को प्राथमिकता नहीं दी जाती, जिससे सेवा वितरण प्रभावित हो सकता है।
  • संवेदनशील परिसंपत्तियों का नियंत्रण: जैसे- रक्षा से जुड़ी भूमि या रणनीतिक परिसंपत्तियाँ यदि निजी हाथों में जाती हैं, तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
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