(प्रारंभिक परीक्षा के लिए – पायरोफिलाइट, सिलिकोसिस, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग)
(मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 - जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि एवं संस्थान)
सन्दर्भ
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने उन महिलाओं के दुख और निराशा पर चिंता व्यक्त की है, जिनके पति की मौत ओडिशा के क्योंझर जिले के मदरंगाजोड़ी गांव में एक पीरोफिलाइट पीसने वाली इकाई में हानिकारक कणों के संपर्क में आने के बाद फेफड़ों की बीमारियों से पीड़ित होने के कारण हुई थी।
महत्वपूर्ण तथ्य
- झारखंड स्थित एक कंपनी ने क्योंझर से करीब 25 किलोमीटर दूर मदरंगाजोड़ी गांव में 53.8 हेक्टेयर पर पाइरोफिलाइट खनन अधिकार प्राप्त किया था।
- इस स्वास्थ्य संकट की शुरुआत तब हुई, जब खनन इकाई के श्रमिकों को क्रिस्टलीय सिलिका के बार-बार संपर्क में आने के कारण सांस लेने में समस्या की शिकायत होने लगी, जिससे सिलिकोसिस हो गया।
- एक अनुमान के अनुसार, मदरंगाजोड़ी में 40 से कम आयु के लगभग 40 पुरुषों की मौत हो गई है।
- इस गांव ने तब से 'विधवाओं के गांव' की संदिग्ध पहचान हासिल कर ली है।
पायरोफिलाइट
- पाइरोफिलाइट एल्युमिनियम सिलिकेट हाइड्रॉक्साइड से बना एक खनिज है।
- पायरोफिलाइट में मोती या ग्रीस की चमक होती है।
- पाइरोफिलाइट का उपयोग पहली बार नक्काशी के लिए एक औद्योगिक उत्पाद के रूप में किया गया था।
- आधुनिक उद्योग के विकास के साथ, पायरोफिलाइट का उपयोग अग्नि रोधक सामग्री, सिरेमिक, पेपरमेकिंग, कीटनाशक तथा रबर एवं प्लास्टिक के उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
- पाइरोफिलाइट की कॉम्पैक्ट किस्म का उपयोग स्लेट पेंसिल और टेलर्स चाक ( फ्रेंच चाक ) के निर्माण के लिए भी किया जाता है।
सिलिकोसिस
- ‘सिलिकोसिस’ मानव फेफड़ों को प्रभावित करने वाली एक बीमारी है।
- जब धूल में उपस्थित सिलिका के कण श्वसन के माध्यम से फेफड़ों तक पहुँचते हैं और वहाँ निरंतर जमा होते रहते हैं, तब यह बीमारी उत्पन्न होती है।
- सीने में दर्द, साँस लेने में तकलीफ, बुखार, वजन घटना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं।
- यह एक लाइलाज बीमारी है, किंतु समय पर इसकी पहचान होने पर एक्स-रे, सी.टी.स्कैन, बलगम जाँच आदि विधियों द्वारा इसका उपचार सम्भव है।
- मुख्यतः यह बीमारी खनन क्षेत्र, सीमेंट उद्योग, काँच उद्योग आदि में कार्यरत लोगों या इन उद्योगों के समीप बसे लोगों को प्रभावित करती है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना अनुच्छेद 338 में संशोधन करके संविधान 89 वाँ संसोधन अधिनियम, 2003 के माध्यम से संविधान में एक नया अनुच्छेद 338क अंतःस्थापित करके की गयी थी।
- अनुच्छेद 338A अन्य बातों के साथ-साथ आयोग को संविधान के तहत या किसी अन्य कानून के तहत या सरकार के किसी अन्य आदेश के तहत जनजातियों को प्रदान किये गए विभिन्न सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन की निगरानी करने और ऐसे सुरक्षा उपायों के कामकाज का मूल्यांकन करने की शक्ति प्रदान करता है।
- इस आयोग के सदस्यों में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन पूर्णकालिक सदस्य ( एक महिला सदस्य सहित ) शामिल हैं।
- इस आयोग के अध्यक्ष को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री तथा उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है, जबकि अन्य सदस्यों को भारत सरकार के सचिव पद का दर्जा दिया गया है।
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के कार्य –
- अनुसूचित जनजातियों के लिए इस संविधान या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या सरकार के किसी आदेश के अधीन उपबंधित सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण और अनुवीक्षण करना तथा ऐसे सुरक्षा उपायों के कार्यकरण का मूल्यांकन करना।
- अनुसूचित जनजातियों को उनके अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित करने से संबंधित विशिष्ट शिकायतों की जांच करना।
- अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और सलाह देना तथा संघ और किसी राज्य के अधीन उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।
- अनुसूचित जनजातियों के कल्याण एवं सामाजिक-आर्थिक विकास से संबंधित कार्यक्रमों/स्कीमों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अपेक्षित सुरक्षा उपायों के कार्यकरण के बारे में प्रतिवर्ष या ऐसे अन्य समयों पर, जो आयोग ठीक समझे, राष्ट्रपति को प्रतिवेदन पेश करना।
- अनुसूचित जनजातियों के संबंध में अन्य ऐसे कार्यों का निपटान करना जो राष्ट्रपति, संसद द्वारा बनाए गए किसी विधि के उपबंधो के अधीन रहते हुए, नियम द्वारा विनिर्दिष्ट करें।
- वन क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों के लिए गौण वन उत्पाद के संबंध में स्वामित्व अधिकार प्रदान करने की आवश्यकता हेतु उपाय किए जाने चाहिए।
- खनिज संसाधनों, जल संसाधनों आदि पर कानून के अनुसार जनजातीय समुदायों को सुरक्षा अधिकार प्रदान करने के लिए उपाय करना।
- भूमि से जनजातीय लोगों के हस्तान्तरण को रोकने संबंधी उपाय करना और ऐसे व्यक्तियों को प्रभाव पूर्ण तरीके से पुनर्स्थापित करना, जिनके मामले में हस्तान्तरण पहले ही हो चुका है।
- पंचायत ( अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार ) अधिनियम ,1996 के उपबंधों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के उपाय करना।
आगे की राह
- इस गांव को एक विशेष मामले के रूप में लिया जाना चाहिए, और सरकार को एक व्यापक योजना तैयार करनी चाहिए।
- चूँकि इन मृतकों की पत्नियाँ या विधवायें समाज के वंचित एवं हाशिए के वर्ग से सम्बंधित हैं, और वे कानूनी सहारा लेने में असमर्थ है।
- इसीलिए नुकसान की भरपाई के लिए तथा इनके समग्र विकास के लिये, सरकार को किसी संवैधानिक मंच से निर्देशों का इंतजार नहीं करना चाहिए। और यथाशीघ्र इनकी समस्याओं को हल करना चाहिए।