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विलफुल डिफॉल्टर (Wilful Defaulters)

विलफुल डिफॉल्टर (Wilful Defaulter) 

  • विलफुल डिफॉल्टर उस व्यक्ति या संस्था को कहा जाता है, जिसने 25 लाख या उससे अधिक राशि का ऋण लिया हो और जानबूझकर उसका भुगतान न किया हो, जबकि उसके पास ऋण चुकाने की क्षमता मौजूद हो।

विलफुल डिफॉल्ट की पहचान इन बिंदुओं से की जाती है:

  • भुगतान करने की क्षमता के बावजूद चूक (Deliberate Default): उधारकर्ता के पास आर्थिक संसाधन होते हुए भी ऋण का पुनर्भुगतान न करना।
  • ऋण राशि का दुरुपयोग (Diversion of Funds): जिस उद्देश्य से ऋण प्राप्त किया गया था, उसके बजाय किसी अन्य कार्य में राशि का उपयोग करना।
  • गिरवी संपत्ति का विक्रय (Disposal of Secured Assets) : बैंक को बिना सूचित किए, ऋण के बदले गिरवी रखी संपत्ति को बेच देना या स्थानांतरित कर देना।
  • इक्विटी निवेश न करना (Failure to Infuse Equity): कर्जदार के पास अपनी कंपनी में पूंजी लगाने की क्षमता थी जिससे ऋण का भार कम किया जा सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।

बड़े डिफॉल्टर्स (Large Defaulters)

  • 1 करोड़ या उससे अधिक की बकाया राशि।
  • खाते को "संदिग्ध" (Doubtful) या "हानि" (Loss) की श्रेणी में रखा गया हो।
  • ऋण की वसूली के लिए कानूनी कार्रवाई प्रारंभ हो चुकी हो।

पहचान प्रक्रिया (Identification Process)

  • पहचान समिति (Identification Committee): बैंक या ऋणदाता एक समिति का गठन करते हैं जो दस्तावेजों की जाँच करती है।
  • कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice): उधारकर्ता को अपनी बात रखने का अवसर दिया जाता है।
  • पुनरीक्षण समिति (Review Committee): एक अलग समिति निर्णय की समीक्षा करती है।
  • समयसीमा (Timeframe): खाता NPA घोषित होने के 6 महीने के भीतर यह प्रक्रिया पूरी करनी होती है।

परिणाम (Consequences)

  • ऋण प्रतिबंध (Credit Restrictions): अन्य वित्तीय संस्थाओं से ऋण लेना प्रतिबंधित।
  • सार्वजनिक खुलासा (Public Disclosure): नाम सार्वजनिक किया जाता है ताकि अन्य बैंक सतर्क रहें।
  • प्रबंधन प्रतिबंध (Management Restrictions): कंपनियों में प्रबंधकीय पद धारण करने से रोक।
  • कानूनी कार्रवाई (Legal Actions): दिवानी व आपराधिक कार्यवाही शुरू की जाती है।
  • संपत्ति की कुर्की (Asset Recovery): बैंक गिरवी रखी संपत्ति जब्त कर सकता है।

नियामक ढाँचा (Regulatory Framework)

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा स्थापित दिशानिर्देश:
    • Master Circular on Wilful Defaulters: विस्तृत दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
    • Reporting Requirements: सभी जानकारियाँ क्रेडिट ब्यूरो (Credit Information Companies) को भेजी जाती हैं।
    • Timely Action: 6 महीने के भीतर वर्गीकरण ज़रूरी।
    • कानूनी निर्देश (Legal Directions): ऋण की वसूली हेतु सख्त कार्रवाई की सिफारिश।

हालिया घटनाक्रम (Recent Developments - July 2024)

  • उचित प्रक्रिया (Enhanced Due Process): उधारकर्ता को उत्तर देने का पूरा अवसर दिया जाए।
  • निगरानी व्यवस्था (Strengthened Monitoring): विशेष समिति गठित कर फॉलोअप और निगरानी।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems): संभावित डिफॉल्ट को पहले पहचानने की प्रणाली अनिवार्य।

चुनौतियाँ और आलोचनाएँ (Challenges and Criticisms)

  • पहचान में देरी (Delayed Identification): कई बार जानबूझकर चूक करने वाले देर से पकड़े जाते हैं।
  • कानूनी अड़चनें (Legal Hurdles): लंबे मुकदमेबाज़ी से वसूली में देरी होती है।
  • राजनीतिक और सामाजिक दबाव (Political & Social Influence): प्रभावशाली डिफॉल्टर्स के विरुद्ध कार्रवाई में बाधा।
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