(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1 : महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन)
संदर्भ
परंपरागत रूप से भारतीय संस्कृति में महिलाओं को बहुत सम्मान दिया गया है। प्राचीन काल से स्त्रियों को आदरणीय और पूजनीय माना जाता रहा है। हालाँकि, आधुनिक समय में उन्हें लैंगिक भेदभाव का शिकार होना पड़ रहा हैं।
लैंगिक असमानता की पृष्ठभूमि
भारत का उदाहरण
- भारत में लैंगिक मुद्दे और शिक्षा में भेदभाव का प्रत्यक्ष मामला सर्वप्रथम वर्ष 1933 में सुर्खियों में आया। सर सी.वी. रमन ने महिला होने के कारण कमला सोहोनी के मार्गदर्शन में भौतिकी में अनुसंधान करने के अनुरोध को ठुकरा दिया था।
- वर्ष 1937 में भौतिकी के प्रोफेसर डी.एम. बोस ने बिभा चौधरी को अपने शोध समूह में शामिल करने पर अनिच्छा व्यक्त की थी।
- मेसॉन के द्रव्यमान को निर्धारित करने में कॉस्मिक किरणों की भूमिका पर बिभा चौधरी का काम अतुलनीय है।
- मेसॉन हैड्रोनिक उप-परमाणु कण होते हैं जो समान संख्या में क्वार्क और एंटीक्वार्क से बने होते हैं।
वर्तमान वैश्विक उदाहरण
- वर्ष 2018 में प्रोफेसर एलेसेंड्रो स्ट्रुमिया ने सर्न (CERN), स्विट्जरलैंड में एक कार्यशाला में दावा किया कि भौतिकी का आविष्कार और निर्माण पुरुषों ने किया। अर्थात् महिलाएँ भौतिकी अनुसंधान में पुरुषों की तुलना में कम सक्षम हैं।
- इसके एक दिन बाद ही डोना स्ट्रिकलैंड को लेज़र पर उनके काम के लिये भौतिकी का नोबेल प्रदान किया गया। वह वर्ष 1903 में मैरी क्यूरी और वर्ष 1963 में मारिया गोएपर्ट मेयर के बाद भौतिकी का नोबेल जीतने वाली तीसरी महिला बनीं।
सरकार द्वारा प्रयास
प्रमुख पहल
- जेंडर एडवांसमेंट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंस्टीट्यूशंस (GATI)- ब्रिटिश काउंसिल की मदद से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के तहत इस क्षेत्र में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिये एक पायलट परियोजना।
‘एथेना स्वान चार्टर’ (Athena Swan Charter) फ्रेमवर्क का प्रयोग उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में लैंगिक समानता का समर्थन करने और परिवर्तन लाने के लिये दुनिया भर में किया जाता है।
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- यह महिलाओं के नामांकन और उनके करियर को प्रोत्साहन देने पर आधारित एक ग्रेडिंग प्रणाली है। यह प्रणाली यूनाइटेड किंगडम के एथेना स्वान चार्टर पर आधारित है।
- शिक्षण के माध्यम से अनुसंधान प्रगति में ज्ञान भागीदारी (Knowledge Involvement in Research Advancement through Nurturing : KIRAN)- डी.एस.टी. के तहत इस क्षेत्र में महिला वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने और पारिवारिक कारणों से महिला वैज्ञानिकों को शोध छोड़ने से रोकने के लिये।
अन्य उपाय
- कुछ संस्थान शिशुगृह स्थापित कर रहे हैं ताकि वैज्ञानिक माताएं अपने शोध कार्य को निर्बाध रूप से जारी रख सकें। साथ ही, विश्वविद्यालय भी समान अवसर प्रदान करने वाले नियोक्ता बनने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
- पिछले कुछ दशकों में उच्च शिक्षा और कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। हालाँकि, भेदभाव अभी भी देखा जा सकता है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) के क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अभी भी वैश्विक स्तर पर बहुत कम हैं।
STEM क्षेत्र में महिलाएँ
वैश्विक परिदृश्य
- कुछ चुनिंदा देशों के लिये उपलब्ध यूनेस्को के आँकड़ों के अनुसार, भारत में केवल 14% महिला शोधकर्ता ही एस.टी.ई.एम. (STEM) क्षेत्रों में संलग्न हैं।
- इस क्षेत्र में शोध कार्य में संलग्न महिलाओं की स्थिति कुछ अन्य प्रमुख देशों इस प्रकार है-
- कम भागीदारी वाले देश- जापान (16%), नीदरलैंड (26%), अमेरिका (27%) और यूनाइटेड किंगडम (39%)।
- लगभग सामान भागीदारी वाले देश- दक्षिण अफ्रीका (45%), मिस्र (45%) तथा क्यूबा (49%)।
- सर्वाधिक भागीदारी वाले देश- ट्यूनीशिया (55%), अर्जेंटीना (53%) और न्यूजीलैंड (52%)।
भारतीय परिदृश्य
- भारत में एस.टी.ई.एम. स्नातकों में लगभग 43% महिलाएँ हैं, जो दुनिया के शीर्ष देशों में से एक है।
- हालाँकि, इसका एक नकारात्मक पहलू यह है कि इनमें से केवल 14% महिलाएँ ही शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों से संलग्न होतीं हैं।
- अनुसंधान में महिलाओं की भागीदारी में काफी गिरावट दर्ज़ की गई है, जहाँ 73% पुरुषों की तुलना में केवल 27% महिलाएँ हैं। विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों में भी महिला फैकल्टी काफी कम है।
- उच्च पदों वाली फैकल्टी के साथ-साथ निर्णय लेने वाले उच्च पदों पर महिलाओं का प्रतिशत कम होने लगता है।
भारतीय संस्थानों की स्थिति
- भारत की तीन विज्ञान अकादमियों में अध्ययनरत महिला अध्येताओं की संख्या इस प्रकार है-
- भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (स्थापना 1935) में केवल 5%
- भारतीय विज्ञान अकादमी (स्थापना 1934) में केवल 7%
- नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज इंडिया (स्थापना 1930) में केवल 8%
- हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश एस.टी.ई.एम. संस्थानों में प्रोफेसरों के कुल पदों केवल 20% ही महिलाएँ हैं।
- संस्थान जितना अधिक प्रतिष्ठित होगा, महिला कर्मचारियों की संख्या उतनी ही कम होगी।
- उदाहरण के लिये आई.आई.टी. मद्रास में केवल 10.2% और आई.आई.टी. बॉम्बे में केवल 17.5% महिलाएँ प्रोफेसर हैं।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के एक सर्वेक्षण के अनुसार महिला कुलपतियों की संख्या इस प्रकार है-
- 54 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 7 (13%)
- 456 राज्य विश्वविद्यालयों में 52 (11%)
- 126 डीम्ड विश्वविद्यालयों में 10 (8%)
- 419 निजी विश्वविद्यालयों में 23 (6%)
कॉरपोरेट क्षेत्र में महिला भागीदारी
- शैक्षणिक क्षेत्र की तुलना में कॉर्पोरेट क्षेत्र में नेतृत्व और निर्णय लेने वाले पदों पर महिलाओं की भागीदारी अधिक है। भारत में कॉर्पोरेट क्षेत्र में वरिष्ठ प्रबंधन पदों पर महिलाओं की संख्या 39% है। यह वैश्विक औसत से अधिक है।
- फॉर्च्यून 500 कंपनियों में महिला सी.ई.ओ. (CEO) की संख्या 15% है। निजी उद्यमों के प्रबंधन बोर्ड में महिला सदस्यों की संख्या वर्ष 2016 में 15% से बढ़कर वर्ष 2022 में 19.7% हो गई हैं।
- एक अनुमान के अनुसार, यदि यही प्रवृत्ति जारी रहती है, तो वर्ष 2045 तक यह अनुपात समता के निकट पहुँच जाएगा।
- निजी क्षेत्र में कर्मियों का चयन और पदोन्नति ज्यादातर क्षमता या योग्यता पर आधारित है क्योंकि यह अकादमिक संस्थानों की तुलना में अधिक परिणामोन्मुख/बाजारोन्मुख है तथा तुलनात्मक रूप से निजी क्षेत्र अनुभवजन्य रूप से अधिक उचित निर्णय लेता है।
- सरकार द्वारा की गई पहलों की तुलना में निजी क्षेत्र में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी के लिये प्रोत्साहन बहुत पहले ही शुरू हो चुका था।
आगे की राह
- यह उम्मीद की जाती है कि कार्यबल में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये सरकार द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रम वर्ष 2047 तक लैंगिक समानता की शुरुआत करेंगे, जो भारतीय स्वतंत्रता की शताब्दी का प्रतीक होगा।
- लैंगिक समानता के लिये संस्थाओं द्वारा महिलाओं को एक महत्वपूर्ण संपत्ति के रूप में स्वीकार करने तथा मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता है।