(प्रारंभिक परीक्षा : नगर निकाय चुनाव, अनुच्छेद 371ए, पूर्वोत्तर भारत, महिला आरक्षण) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र- 2 : स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ)
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संदर्भ
स्वतंत्रता के बाद से नागालैंड भारत का एकमात्र ऐसा राज्य रहा है, जहां 74वें (संविधान) संशोधन के खंड IV के अनुसार शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित नहीं थी। नागालैंड में पहली बार स्थानीय निकाय चुनाव में महिला आरक्षण लागू करने का प्रयास है।
हालिया मुद्दा
- नागालैंड में जून में यू.एल.बी. के चुनाव प्रस्तावित है। पारंपरिक शीर्ष जनजातीय निकाय नागा होहो के विरोध के कारण अभी तक नागालैंड में महिला आरक्षण को स्थानीय स्तर पर लागू नहीं किया जा सका था।
- नागालैंड में पहली बार लगभग सर्वसम्मति से स्थानीय निकाय चुनावों में महिलाओं को प्रतिनिधित्व दिया गया है। हालांकि, राज्य के कुछ संगठन यू.एल.बी. चुनावों में भाग नहीं ले रहे हैं।
महिला आरक्षण विवाद का मुद्दा
- नागालैंड में पहला व एकमात्र नागरिक निकाय चुनाव वर्ष 2004 में महिला आरक्षण के बिना आयोजित किया गया था।
- राज्य सरकार ने वर्ष 2006 में 74वें संशोधन के अनुरूप महिलाओं के लिए 33% आरक्षण को शामिल करने के उद्देश्य से नगरपालिका अधिनियम, 2001 में संशोधन किया था।
- हालाँकि, व्यापक विरोध के कारण वर्ष 2009 में यू.एल.बी. चुनावों को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करना पड़ा।
- वर्ष 2012 में नागालैंड राज्य विधानसभा ने संविधान के अनुच्छेद 243T से छूट के लिए एक प्रस्ताव पारित किया।
- नवंबर 2016 में इस प्रस्ताव को रद्द करते हुए 33% महिला आरक्षण के साथ नगर निकाय चुनावों की अधिसूचना जारी की गई।
- इससे बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और फरवरी 2017 में चुनाव प्रक्रिया रोक दी गई।
- आदिवासी निकायों के अनुसार, नागा महिलाएं परंपरागत रूप से निर्णयकारी निकायों का हिस्सा नहीं रही हैं। साथ ही, किसी भी प्रकार का महिला आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 371ए का उल्लंघन होगा।
क्या आप जानते हैं?
- नागालैंड के लिए अनुच्छेद 371ए को संविधान में 13वें संशोधन के बाद वर्ष 1962 में जोड़ा गया। इसके अनुसार, संसद नागालैंड विधानसभा की मंजूरी के बिना नागा धर्म से संबंधित सामाजिक परंपराओं, पारंपरिक नियमों, कानूनों, नागा परंपराओं पर आधारित न्याय व्यवस्था एवं नागाओं की भूमि के मामलों में कानून का निर्माण नहीं कर सकती है।
- यह अनुच्छेद नागाओं एवं केंद्र सरकार के बीच हुए 16 सूत्री समझौते के बाद अस्तित्व में आया था। इसी अनुच्छेद के तहत नागालैंड के तुएनसांग जिले को भी विशेष दर्जा प्राप्त है।
- नागालैंड सरकार में तुएनसांग जिले के लिए एक अलग मंत्री भी बनाया जाता है। साथ ही, इस जिले के लिए एक 35 सदस्यीय स्थानीय परिषद् भी बनाई जाती है।
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स्वायत्त फ्रंटियर नागालैंड क्षेत्र परिषद की मांग
- छह जिलों के सात प्रमुख नागा समुदायों (चांग, खियामनुइंगन, कोन्याक, फोम, संगतम, तिखिर एवं यिमखिउंग) के संगठन वर्ष 2010 से फ्रंटियर नागालैंड (FNT) नामक एक अलग स्वायत्त क्षेत्र की मांग कर रहे हैं।
- इन सभी जनजातियो का नेतृत्व ईस्टर्न नागालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन (ENPO) कर रही है।
- प्रस्तावित सीमांत नागालैंड क्षेत्र राज्य के भीतर एक स्वायत्त क्षेत्र होगा।
- हालाँकि, मांग पूरी न होने के विरोध में वर्ष 2024 के लोक सभा चुनावों में पूर्वी नागालैंड के मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया।
नागालैंड नगरपालिका अधिनियम, 2023
- इस अधिनियम में यू.एल.बी. चुनावों का मार्ग प्रशस्त करने के लिए 33% आरक्षण का प्रावधान जारी रखा गया।
- इस अधिनियम ने आठ प्रकार के कर, शुल्क व पथकर (Tolls) को बरकरार रखते हुए नगर निकाय अध्यक्ष पद के लिए महिला आरक्षण एवं अचल संपत्ति पर कराधान को समाप्त कर दिया है।
- वर्तमान में शीर्ष जनजातीय निकायों एवं ग्राम प्रधानों ने बड़े पैमाने पर संशोधित नगरपालिका अधिनियम के प्रावधानों को स्वीकार कर लिया है।
- 30 अप्रैल, 2024 की अधिसूचना के अनुसार, यू.एल.बी. चुनाव नागालैंड नगरपालिका अधिनियम, 2023 के तहत ही आयोजित किए जाएंगे।
भारत में महिला आरक्षण की स्थिति
- भारत में 106वें संविधान संशोधन के माध्यम से लोकसभा, राज्य विधानसभाओं एवं दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है।
- यह प्रावधान लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित सीटों पर भी लागू होता है।
- संविधान में 73वें एवं 74वें संशोधन अधिनियम (1992) ने पंचायती राज संस्थानों तथा शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों का आरक्षण अनिवार्य किया था।
- संविधान का अनुच्छेद 243(d) एवं अनुच्छेद 243(t) क्रमशः पंचायतों व शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए कम-से-कम 1/3 आरक्षण अनिवार्य करता है।
केंद्रीय निकायों के स्तर पर महिला प्रतिनिधित्व
- विगत लोकसभा में 542 सदस्यों में से 78 महिला सदस्य थी।
- वर्तमान में राज्यसभा में कुल 224 सदस्यों में से 24 सदस्य महिलाएँ हैं।
राज्य विधान सभाओं में महिला प्रतिनिधित्व
- भारत में केवल 10 राज्यों में 10% से अधिक महिला विधायक है, जबकि 19 राज्य विधानसभाओं में 10% से कम महिला विधायक हैं।
- विधानमंडलों में 10% या अधिक महिला विधायकों वाले राज्य हैं :
- छत्तीसगढ़ (14.44%), पश्चिम बंगाल, झारखंड, राजस्थान, बिहार, पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली व हरियाणा (10%)।
स्थानीय निकायों में महिला प्रतिनिधित्व
- सांख्यिकी एवं कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार, पंचायती राज संस्थानों में वर्ष 2014 में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 46.14% था, जो वर्ष 2019 में 44.37% रह गया।
- शहरी निकायों में वर्ष 2019 में महिलाओं की हिस्सेदारी 43.16% पाई गई।
- भारत के 14 राज्यों में पंचायत स्तर पर महिला भागीदारी 50% से अधिक है।
- महिलाओं का सर्वाधिक प्रतिनिधित्व (59%) झारखण्ड में तथा न्यूनतम दमन एवं दीव में (29%) है। इस रिपोर्ट में नागालैंड शामिल नहीं है ।
निष्कर्ष
- भारत में महिला आरक्षण स्थानीय शासन, सतत विकास और लैंगिक समानता के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है। हालाँकि, देश में स्थानीय स्वशासन में महिला योगदान को कम महत्व दिया गया है।
- वर्तमान में व्यवहारिक स्तर पर महिलाओं में निर्णयन क्षमता विकसित करने की आवश्यकता है, जिससे वे स्वयं स्थानीय समुदाय की महिलाओं के मुद्दों को समाधान कर सकें।