(प्रारंभिक परीक्षा : रिपोर्ट एवं सूचकांक) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र- 3 : प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव-विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन)
संदर्भ
विश्व बैंक द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत को वर्ष 2047 तक उच्च आय वाली स्थिति तक पहुंचने की देश की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अगले 22 वर्षों में औसतन 7.8% की वृद्धि दर की आवश्यकता होगी।
इस रिपोर्ट का शीर्षक ‘भारत-देशीय आर्थिक उद्देश्य पत्रिका : एक पीढ़ी में उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था का निर्माण करना’ (India-Country Economic Memorandum: Becoming a High-Income Economy in a Generation) है।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
भारत को वर्ष 2047 तक उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था बनने के लिए प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) को वर्ष 2023 के 2,540 डॉलर से लगभग आठ गुना बढ़ाना होगा।
विश्व बैंक की वर्गीकरण पद्धति के अनुसार, वर्ष 2023 में 14,005 डॉलर से अधिक प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय वाले देश उच्च आय वाले श्रेणी में होंगे, जबकि 4,516 डॉलर से 14,005 डॉलर के बीच वाले देश उच्च मध्यम आय वाले होंगे।
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, निम्न अनुकूल बाह्य वातावरण को देखते हुए, भारत को न केवल जारी पहलों को चालू रखना होगा, बल्कि सुधारों को विस्तारित एवं तीव्र करना होगा।
सामान्य परिदृश्य में वर्ष 2035 तक निवेश, सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के 37% के उच्चतम स्तर पर पहुंच जाएगा तथा विकास दर प्रतिवर्ष औसतन 6.6% रहेगी। दूसरी ओर, रिपोर्ट में कहा गया है कि त्वरित सुधारों के साथ वर्ष 2035 तक सकल घरेलू उत्पाद में निवेश का हिस्सा 40% तक पहुंच जाएगा और अर्थव्यवस्था 7.8% की दर से बढ़ेगी।
मौजूदा कीमतों पर वर्ष 2023-24 में सकल पूंजी निर्माण की दर जी.डी.पी. के मुकाबले 31.4% थी।
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने वर्ष 2023-24 के लिए वास्तविक जी.डी.पी. वृद्धि दर को संशोधित कर 9.2% कर दिया और 2024-25 में 6.5% वृद्धि का अनुमान व्यक्त किया है।
इस रिपोर्ट में पेट्रोलियम, कंप्यूटर एवं संचार उपकरण तथा सीमेंट जैसे अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों के बाजार में महत्वपूर्ण संकेन्द्रण तथा अपेक्षाकृत बड़ी सरकारी उपस्थिति के कारण निजी निवेश हतोत्साहित होने की संभावना है।
रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें
MSME को मजबूत करना: इस रिपोर्ट में अच्छी गुणवत्ता वाली नौकरियों के लिए, श्रम-प्रधान क्षेत्रों में मजबूत विकास को लक्षित करने और एम.एस.एम.ई. को बढ़ाने की सिफारिश की गई है। इसके लिए कुशल ऋण आवंटन सुनिश्चित करने और जोखिमों को न्यूनतम करने के लिए वित्तीय क्षेत्र में निम्न सुधार अपेक्षित हैं-
कॉर्पोरेट बांड बाजार को मजबूत बनाना
MSME के लिए ऋण तक अधिक पहुँच को सुविधाजनक बनाना
विनिर्माण क्षेत्र के लिए :मध्यवर्ती विनिर्माण क्षेत्र के लिए श्रम विनियमन एवं भूमि उपलब्धता को लक्षित करने वाली महत्वपूर्ण नीतियां तथा लॉजिस्टिक्स बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता में सुधार की सिफारिश की गई है।
राज्य विशिष्ट नीतियों की आवश्यकता :आय असमानता को पाटने एवं समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए राज्य-विशिष्ट नीतियों की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया है। चूंकि प्रति व्यक्ति आय के मामले में राज्यों के बीच अंतर हैं अत: एक ही नीति सभी के लिए उपयुक्त नहीं होगी।
अल्प विकसित राज्यों को विकास के मूल सिद्धांतों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जबकि अपेक्षाकृत अधिक विकसित राज्य को अगली पीढ़ी के सुधारों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
निजी निवेश को बढ़ावा देना : भारत में निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए अधिक सुधारों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। हालाँकि, इस संदर्भ में जो भी सुधार किए गए हैं वे स्पष्ट रूप से पर्याप्त नहीं हैं।
रिपोर्ट के अनुसार टैरिफ कम करने तथा व्यापार एवं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में बाधाओं को दूर करने से आर्थिक विकास को और बढ़ावा मिलेगा तथा वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (GVCs) में एकीकरण के उद्देश्य से आयात के लिए अर्थव्यवस्था को खोलने से उत्पादकता में वृद्धि होगी और निर्यात में भी वृद्धि होगी।
सार्वजनिक निवेश के क्षेत्र :रिपोर्ट में उन क्षेत्रों में अधिक सार्वजनिक निवेश पर जोर दिया गया है जो निजी निवेश को आकर्षित करते हैं। इनमें कृषि एवं संबद्ध गतिविधियां, शहरी विकास व परिवहन आदि क्षेत्र शामिल हैं।
संरचनात्मक परिवर्तन, व्यापार भागीदारी एवं प्रौद्योगिकी अपनाने को बढ़ावा देना : वर्तमान में रोजगार में कृषि की हिस्सेदारी 45% है। विनिर्माण और सेवाओं जैसे अधिक उत्पादक क्षेत्रों में भूमि, श्रम व पूंजी का आवंटन, फर्म एवं श्रम उत्पादकता बढ़ाने में मदद कर सकता है।
अधिक एवं बेहतर नौकरियाँ सृजित करने के लिए वातावरण को बढ़ावा देना : वियतनाम (73%) और फिलीपींस (60%) जैसे देशों की तुलना में भारत में कुल श्रम शक्ति भागीदारी दर 56.4% ही रही है।
रिपोर्ट में कृषि-प्रसंस्करण विनिर्माण, आतिथ्य, परिवहन एवं देखभाल अर्थव्यवस्था जैसे नौकरी-समृद्ध क्षेत्रों में निवेश करने के लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने की सिफारिश की गई है।
जनसांख्यिकीय लाभांश :भारत मानव पूंजी में निवेश करके, अधिक एवं बेहतर नौकरियों के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करके और वर्ष 2047 तक महिला श्रम बल भागीदारी दर को 35.6% से बढ़ाकर 50% तक करके अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा उठा सकता है।