(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, आर्थिक और सामाजिक विकास ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 ; भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।)
संदर्भ
- हाल ही में, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने ‘विश्व आर्थिक आउटलुक रिपोर्ट’ जारी की है। रिपोर्ट में कोविड महामारी के बाद रोज़गार सृजन में सुधार की संभावना व्यक्त की गई है।
- यह रिपोर्ट रोज़गार वृद्धि में धीमी गति के कारणों को रेखांकित करती है। साथ ही, रिपोर्ट में भारत के संदर्भ में उपस्थित चिंताओं का उल्लेख भी किया गया है।
- उल्लेखनीय है कि उक्त रिपोर्ट वर्ष में दो बार - अप्रैल और अक्तूबर माह में - जारी की जाती है। यह रिपोर्ट कई मापदंडों के विस्तृत सेट पर आधारित है, जिसमें कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतें आदि के आधार पर अर्थव्यवस्थाओं के मध्य तुलना करने के लिये बेंचमार्क निर्धारित किया जाता है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु
- रिपोर्ट में वैश्विक अर्थव्यवस्था की संवृद्धि दर वर्ष 2021 के लिये 5.9 तथा वर्ष 2022 के लिये 4.9 प्रतिशत तक रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है। अन्य अनुमान निम्नलिखित हैं-
देश/ क्षेत्र
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वर्ष 2021
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वर्ष 2022
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विकसित अर्थव्यवस्थाएँ
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5.2%
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4.5%
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विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ
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6.4%
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5.1%,
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चीन
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8%
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5.6%
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भारत
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9.5%
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8.5%
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- वर्ष 2022 तक विकसित अर्थव्यवस्थाओं की सकल उत्पादकता महामारी के पूर्व की स्थिति में आ जाएगी तथा वर्ष 2024 तक इसमें 0.9 प्रतिशत की वृद्धि होने अनुमान है।
- उभरते बाज़ार और विकासशील अर्थव्यवस्था समूह (चीन को छोड़कर) की सकल घरेलू उत्पादन की स्थिति महामारी के पूर्व के स्तर से 5.5 प्रतिशत कम रहने की आशंका है।
वैश्विक आर्थिक आउटलुक रिपोर्ट : प्रमुख चिंताएँ
- इस रिपोर्ट में आई.एम.एफ. ने देशों के मध्य बढ़ती असमानताओं और आर्थिक संभावनाओं में विचलन।
- उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में आंशिक रूप से आपूर्ति में व्यवधान।
- निम्न आय वाले विकासशील देशों में महामारी जनित परिस्थितियों एवं कोविड वैक्सीन की कम पहुँच।
रोज़गार में कमी के कारण
- गहन संपर्क आधारित व्यवसायों में श्रमिकों के मध्य संक्रमण की आशंका।
- चाइल्डकेयर की कमी।
- कुछ क्षेत्रों में ऑटोमेशन से श्रम की मांग में परिवर्तन।
- अवैतनिक अवकाश योजनाओं/ बेरोज़गारी भत्ते के माध्यम से आय प्रतिस्थापन के फलस्वरूप रोज़गार की आवश्यकता में कमी महसूस होना।
भारत के लिये निहितार्थ
- रिपोर्ट के अनुसार, जी.डी.पी. के संदर्भ में भारत की संवृद्धि दर अधिक बुरी स्थिति में नहीं है क्योंकि आई.एम.एफ. के अतिरिक्त कई अन्य महत्त्वपूर्ण संकेतक भी यह बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था रिकवर कर रही है।
- लेकिन आई.एम.एफ. के अनुमान यह स्पष्ट करते हैं कि भारत रोज़गार और उत्पादन (GDP) जैसे मुद्दों पर अभी भी पीछे है, जो कि चिंता का प्रमुख विषय है।
- उदाहरणस्वरूप ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ (CMIE) के आँकड़ों के अनुसार, मई-अगस्त 2021 तक भारतीय अर्थव्यवस्था में कार्यशील लोगों की कुल संख्या 394 मिलियन थी, जो मई-अगस्त 2019 के स्तर से 11 मिलियन कम है। हालाँकि, मई-अगस्त 2016 में कार्यशील लोगों की संख्या 408 मिलियन थी।
- यद्यपि भारत कोविड-19 महामारी के पहले से ही रोज़गार संकट का सामना कर रहा था किंतु महामारी के कारण यह संकट और भी गहरा हो गया है। रोज़गार में कमी यह स्पष्ट करती है कि आबादी के एक बड़े हिस्से को सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि और इसके लाभों से बाहर रखा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि रोज़गार के अभाव से समग्र मांग में कमी आती है, जिससे संवृद्धि दर भी प्रभावित होती है।
भारत में रोज़गार सृजन में कमी के कारण
- भारत की अर्थव्यवस्था K- आकार की रिकवरी प्रदर्शित कर रही है। इसका आशय है कि अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्र अलग-अलग दरों पर रिकवरी कर रहे हैं और यह न केवल संगठित क्षेत्र और असंगठित क्षेत्रों के बीच है बल्कि संगठित क्षेत्र के भीतर भी रिकवरी दर में अंतर है।
- हालाँकि, आई.टी. सेवा क्षेत्र जैसे कुछ क्षेत्र महामारी से अप्रभावित रहे हैं और ई-कॉमर्स उद्योग भी उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहा है। परंतु कई संपर्क-आधारित सेवाओं, जहाँ रोज़गार अधिक सृजित होता है, में सुधार की दर अत्यंत निम्न है। इसी प्रकार, सूचीबद्ध फर्मों ने गैर-सूचीबद्ध फर्मों की तुलना में बेहतर रिकवरी प्रदर्शित की है।
- भारत का अधिकांश कार्यबल असंगठित अथवा अनौपचारिक क्षेत्र में संलग्न है। अनौपचारिक क्षेत्र में संलग्न श्रमिक सामान्यतया लिखित अनुबंध, सवैतनिक अवकाश, स्वास्थ्य लाभ या सामाजिक सुरक्षा जैसे लाभों से वंचित रहते हैं। वहीं संगठित क्षेत्र उन फर्मों को संदर्भित करता है, जो पंजीकृत हैं और औपचारिक रोज़गार प्रदान करते हैं।
- असंगठित क्षेत्र में सुधार का निम्न स्तर अर्थव्यवस्था पर रोज़गार के नए अवसर सृजित करने या पुराने अवसरों को पुनर्जीवित करने की क्षमता को प्रभावित करता है।
भारत की अर्थव्यवस्था : कितनी अनौपचारिक
- वर्ष 2019 मे प्रकाशित ‘मेजरिंग इनफॉर्मल इकोनॉमी इन इंडिया' नामक अध्ययन में अनौपचारिक क्षेत्र से संबंधित आँकड़ों में मुख्य रूप से दो घटकों को प्रदर्शित किया गया है; समग्र रूप से ‘सकल मूल्य वर्धित’ (GVA) में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की हिस्सेदारी तथा इसमें असंगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी।
- जी.वी.ए. में असंगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी अखिल भारतीय स्तर पर 50% से अधिक है और कुछ क्षेत्रों में, जो निम्न-कौशल स्तरीय रोज़गार सृजित करते हैं, यह हिस्सेदारी और भी अधिक है। इसमें विशेष रूप से निर्माण, व्यापार, मरम्मत, आवास एवं खाद्य सेवाएँ शामिल हैं।