(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।) |
संदर्भ
प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है।

विश्व गौरैया दिवस 2025
- आरंभ : विश्व गौरैया दिवस की शुरुआत वर्ष 2010 में भारत की नेचर फॉरएवर सोसायटी और फ्रांस की इको-सिस एक्शन फाउंडेशन की पहल पर की गई।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य गौरैया की घटती आबादी के बारे में जागरूकता प्रसार एवं उनके संरक्षण के प्रयासों को बढ़ावा देना है।
- वर्ष 2025 के लिए थीम : ‘प्रकृति के नन्हे दूतों को सम्मान’ (A tribute To Nature's Tiny Messengers)।
- यह थीम पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में गौरैया की महत्त्वपूर्ण भूमिका को उजागर करने के साथ ही संरक्षण प्रयासों को प्रोत्साहित करती है।
अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु
- अन्य नाम : हिंदी में “गोरैया” , तमिल में “कुरुवी” और उर्दू में “चिरिया”
- पारिस्थिकी महत्त्व : पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में गौरैया की महत्त्वपूर्ण भूमिका है:
- प्राकृतिक कीट नियंत्रण: वे कीटों को खाते हैं, जिससे कीटों के नियंत्रण में मदद मिलती है।
- परागण और बीज फैलाव: उनकी गतिविधि विभिन्न पौधों की वृद्धि में मदद करती है।
- जैव विविधता संवर्धन: शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र के सूचक के रूप में कार्य करती है।
- राज्य पक्षी : वर्ष 2012 में, घरेलू गौरैया को दिल्ली का राज्य पक्षी बनाया गया।
गौरैया के तेजी से लुप्त होने कारण :
- तेजी से शहरीकरण और आवास विखंडन : तेजी से बढ़ते शहरीकरण से हरे-भरे क्षेत्र कंक्रीट की इमारतों, सड़कों और कांच के टावरों आदि के निर्माण से गौरैया के पास घोंसले बनाने और भोजन प्राप्त करने के लिए क्षेत्र कम होते जा रहे हैं।
- भोजन स्रोतों में कमी: सीसा रहित पेट्रोल के उपयोग से जहरीले यौगिक से उन कीटों की संख्या में कमी जिन पर गौरैया भोजन के लिए निर्भर होती हैं। इसके अलावा आधुनिक खेती में रासायनिक कीटनाशकों के कारण कीड़ों की आबादी कम हो गई है।
- मोबाइल टावर और विकिरण : शोध से पता चलता है कि वाई-फाई और मोबाइल टावरों से निकलने वाले विकिरण गौरैया के प्रजनन स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। विद्युत चुंबकीय तरंगें उनकी नेविगेशन और भोजन खोजने की क्षमता को बाधित करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनकी आबादी में गिरावट आती है।
- जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण: बढ़ते तापमान और प्रदूषण ने भी गौरैया के लिए जीवित रहना चुनौतीपूर्ण बना दिया है। वायु प्रदूषण उनकी सांस लेने में बाधा डालता है, जबकि ध्वनि प्रदूषण संचार और साथी खोजने को जटिल बनाता है।
संरक्षण प्रयास
- "गौरैया बचाओ" अभियान : पर्यावरण संरक्षणकर्ता जगत किंखाबवाला के नेतृत्व में "गौरैया बचाओ" अभियान का संचालन किया जा रहा है। वे विकास एवं पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता पर बल देते हैं।
- चेन्नई में कुडुगल ट्रस्ट द्वारा स्कूली बच्चों को गौरैया के घोंसले बनाने में शामिल किया जिससे गौरैया को भोजन और आश्रय मिलता है।
- कर्नाटक के मैसूर में "अर्ली बर्ड" अभियान बच्चों को पक्षियों की दुनिया से परिचित कराता है। इस कार्यक्रम में एक पुस्तकालय, गतिविधि किट और पक्षियों को देखने के लिए गांवों की यात्राएँ शामिल हैं। ये शैक्षिक प्रयास बच्चों को प्रकृति में गौरैया और अन्य पक्षियों के महत्त्व को पहचानने और समझने में मदद कर रहे हैं।