(प्रारम्भिक परीक्षा) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन- 3 : पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी)
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संदर्भ
इंडोनेशिया के बाली में 18 से 25 मई तक 10वें विश्व जल शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जा रह है।
विश्व जल शिखर सम्मेलन के बारे में
- आयोजन : वर्ष 1997 से त्रैवार्षिक रूप से अलग-अलग देशों में आयोजित।
- उद्देश्य : सभी स्तरों एवं क्षेत्रों के प्रतिभागियों को एक साथ लाना।
- इसमें राजनीतिका कार्यकर्त्ता, बहुपक्षीय संस्थान, शिक्षाविद, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र आदि शामिल हैं।
- आयोजनकर्ता : वर्ष 2024 में इंडोनेशिया एवं विश्व जल परिषद द्वारा संयुक्त रूप से
- विषय : साझा समृद्धि के लिए जल
- छह उप-विषय : जल सुरक्षा एवं समृद्धि; मानव एवं प्रकृति के लिए जल; आपदा जोखिम न्यूनीकरण एवं प्रबंधन; शासन, सहयोग एवं जल-कूटनीति; सतत जल वित्त; और ज्ञान एवं नवाचार।
- प्रकाशित रिपोर्ट : साझा समृद्धि के लिए जल शीर्षक से।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
- पेयजल अनुपलब्धता : वर्ष 2022 में 2.2 बिलियन लोगों के पास सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल सेवाओं तक पहुंच नहीं थी।
- वहीं 3.5 बिलियन लोगों के पास सुरक्षित रूप से प्रबंधित स्वच्छता तक पहुंच नहीं थी।
- ग्रामीण- शहरी असमानता : बुनियादी पेयजल एवं स्वच्छता सेवाओं तक पहुंच के अभाव वाले दस में से आठ लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं।
- निम्न आय वाले देशों में इस ग्रामीण-शहरी पहुंच अंतर को कम करने के प्रयासों के बाद भी बहुत कम प्रगति हुई है।
- निम्न आय वाले देश ज्यादा प्रभावित : वर्ष 2000 के बाद से अतिरिक्त 197 मिलियन लोगों के पास सुरक्षित पेयजल की पहुंच नहीं है।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव : वर्ष 2000 से 2021 के बीच विकासशील देशों ने उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक गंभीर सूखे और दीर्घकालिक बाढ़ का सामना किया था।
- प्रभावस्वरूप पोषण, स्कूल में उपस्थिति एवं आर्थिक कल्याण पर दीर्घकालिक परिणाम हुए।
- विश्व स्तर पर 800 मिलियन से अधिक लोग सूखे के उच्च जोखिम में हैं जबकि उनसे दोगुने लोग बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में रहते हैं।
- इसके अलावा इस रिपोर्ट ने लिंग, स्थान, जातीयता, नस्ल, राजनीतिक मान्यताओं और अन्य सामाजिक पहचान के आधार पर हाशिए पर रहने वाले समूहों के बीच जल सेवाओं तक असमान पहुंच के साक्ष्य की पहचान की है।
रिपोर्ट में समृद्धि के चार घटक
- रिपोर्ट में समृद्धि के चार परस्पर जुड़े घटकों की पहचान : ‘स्वास्थ्य एवं शिक्षा (मानव पूंजी)’, ‘नौकरियां एवं आय’, ‘शांति तथा सामाजिक एकजुटता (सामाजिक पूंजी)’ और ‘पर्यावरण (प्राकृतिक पूंजी)’।
- स्वास्थ्य एवं शिक्षा : जल, स्वास्थ्य एवं शिक्षा के अवसर की समानता के मूल में है। कई अध्ययनों ने सुरक्षित एवं विश्वसनीय जलापूर्ति और स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं के बीच कारण-संबंध स्थापित किया है।
- उदाहरण के लिए, शैशवावस्था में सूखे का झटका झेलने वाली पीढ़ियां गरीबी एवं कुपोषण में फँस सकती हैं।
- नौकरियां एवं आय : पानी भी उत्पादन में एक महत्वपूर्ण इनपुट है और निरंतर आपूर्ति का आर्थिक विकास, रोजगार सृजन एवं मजदूरी पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
- कम आय वाले देशों में जल-सघन क्षेत्रों में 56% नौकरियाँ हैं किंतु उच्च आय वाले देशों में यह केवल 20% है।
- उप-सहारा अफ्रीका में पानी पर निर्भर नौकरियां कुल रोजगार का 62% है।
- सामाजिक एकजुटता : प्रभावी ढंग से एवं न्यायसंगत ढंग से प्रबंधित किए जाने वाले जल संसाधन सामुदायिक विश्वास, समावेशिता व सहयोग को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे अंततः शांति स्थापित हो सकती है।
- हालाँकि, कुप्रबंधन से मौजूदा संघर्ष बढ़ सकता है या नए संघर्षों का जन्म हो सकता है।
- पर्यावरण : जल जलीय जीवन के लिए आवास प्रदान करता है, जैव विविधता को बढ़ावा देता है और पारिस्थितिक तंत्र के भीतर तथा उनके बीच पोषक तत्वों के परिवहन की अनुमति देता है।
- साथ ही, यह मौसम एवं जलवायु पैटर्न को प्रभावित या परिभाषित करता है।
आगे की राह
- जलापूर्ति की संपूर्ण मूल्य श्रृंखला में, स्रोत से वितरण तक, तीन प्रकार के हस्तक्षेप से जल सुरक्षा में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है। साथ ही, गरीबी भी कम हो सकती है और साझा समृद्धि बढ़ सकती है।
- इन हस्तक्षेपों के लक्ष्यों में शामिल है :
- अत्यधिक जल-जलवायु जोखिमों के प्रति लचीलापन
- जल संसाधनों का विकास और विभिन्न जल उपयोगों के लिए समन्वित आवंटन
- जल सेवाओं की न्यायसंगत और समावेशी डिलीवरी हासिल करना