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IMPORTANT TERMINOLOGY

पाठ्यक्रम में उल्लिखित विषयों की पारिभाषिक शब्दावलियों एवं देश-दुनिया में चर्चा में रही शब्दावलियों से परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाने का चलन तेजी से बढ़ा है। यह खंड वस्तुनिष्ठ और लिखित दोनों परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है। शब्दावलियों से परिचय अभ्यर्थियों को कम परिश्रम से अधिक अंक लाने में मदद करता है। इस खंड में प्रतिदिन एक महत्वपूर्ण शब्दावली से परिचय कराया जाता है।

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1. प्रबंधकीय लचीली विनिमय दर

04-May-2024

यह विनिमय दर (घरेलू मुद्रा के रूप में विदेशी मुद्रा की एक इकाई की कीमत) मूलतः लचीली होती है। इसका निर्धारण मांग और आपूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर केन्द्रीय बैंक द्वारा हस्ताक्षेप किया जाता है। वर्तमान भारत में यही प्रणाली प्रचलन में है। इसे मैनेज्ड फ्लेक्स्बिलिटी रेट, फ्लोटिंग एक्सचेंज रेट आदि नामों से भी जाना जाता है।

2. जनहित याचिका (Public interest litigation)

03-May-2024

जनहित याचिका (PIL) न्यायिक सक्रियता का एक उत्पाद है। इसका तात्पर्य ‘सार्वजनिक हित’ की सुरक्षा के लिए अदालत में दायर की गई याचिका से है। इसके तहत कोई भी ‘जनभावना’ वाला व्यक्ति या सामाजिक संगठन किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूहों के अधिकार दिलाने के लिए न्यायालय जा सकता है। न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर तथा न्यायमूर्ति पी. एन. भगवती इस अवधारणा के प्रवर्तक हैं।

3. भुगतान संतुलन खाता (Balance of payments account)

02-May-2024

यह किसी राष्ट्र द्वारा निश्चित अवधि में शेष विश्व के साथ किए जाने वाले आर्थिक लेनदेन का लेखांकन होता है। इस खाते में दो प्रकार की प्रविष्टियाँ (Entries) की जाती है, जिन्हें क्रेडिट (राष्ट्र को भुगतान की प्राप्ति ) और डेबिट (राष्ट्र का भुगतान व्यय) के नामों से संबोधित किया जाता है। डेबिट और क्रेडिट में संतुलन न होने पर इस खाते में अधिशेष या घाटा हो सकता है।

4. ब्याज दर मध्यस्थता (Interest Rate Arbitrage)

01-May-2024

मध्यस्थता (आर्बिट्रेज) अलग-अलग बाजारों में प्रचलित कीमत अंतरों का लाभ उठाने की एक प्रक्रिया है। इसी प्रकार ब्याज दर मध्यस्थता दो स्थानों (सामान्यतः देशों) में ब्याज दरों के अंतर से, लाभ अर्जित करने को संदर्भित करती है । ऐसा देखा जाता है कि विकसित राष्ट्रों के निवेशक विकासशील राष्ट्रों की ऊंची ब्याज दरों का लाभ उठाने की कोशिश करते हैं।

5. त्रिस्तरीय सरकार (Three Tier Government)

30-Apr-2024

मूल रूप से अन्य संघीय संविधानों की तरह भारतीय संविधान में भी दो स्तरीय शासन व्यवस्था (केंद्र सरकार व राज्य सरकार) का प्रावधान था, जिसे बाद में वर्ष 1992 में 73वें संविधान संशोधन (ग्रामीण स्थानीय सरकार) तथा 74वें संविधान संशोधन (शहरी स्थानीय सरकार) के माध्यम से त्रिस्तरीय कर दिया गया। इस प्रकार वर्तमान समय में भारत में त्रिस्तरीय शासन व्यवस्था (केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय सरकार) है।

6.  सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (Universal Adult Suffrage)

29-Apr-2024

इसके तहत प्रत्येक वह व्यक्ति जिसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है, उसे धर्म, जाति, लिंग, साक्षरता अथवा संपदा इत्यादि के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना मतदान करने का अधिकार है। वर्ष 1989 में 61वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1988 के द्वारा मतदान करने की उम्र को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया था।

7. बाँस कूटनीति (Bamboo Diplomacy)

27-Apr-2024

वियतनाम अपनी विदेश नीति के संतुलित दृष्टिकोण को ‘बांस कूटनीति’ शब्द से प्रदर्शित करता है। वियतनाम का मानना है कि विश्व के प्रति उसका दृष्टिकोण बाँस की शाखाओं के समान नरम होने के साथ-साथ इसके तने की तरह दृढ़ भी है। पहली बार यह अवधारणा वर्ष 2016 में वियतनाम की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव गुयेन फु ट्रोंग ने प्रस्तावित की थी।

8. राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)

26-Apr-2024

यह घाटा कुल सरकारी व्यय (राजस्व और पूंजीगत) और कुल प्राप्तियों (राजस्व और पूंजीगत) का अंतर है, जहाँ पूंजीगत प्राप्तियों में बाजार से उधार और अन्य देयताओं को सम्मिलित नहीं किया है। इसे निम्नलिखित सूत्र से भी समझ सकते हैं-
राजकोषीय घाटा= कुल सरकारी व्यय- (राजस्व प्राप्तियां+ गैर ऋण पूंजीगत प्राप्तियाँ)

9. प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (Priority Sector Lending)

25-Apr-2024

वाणिज्यिक बैंकों को अपनी कुल उधारियों का एक निश्चित भाग सरकार और रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित किए गए विशेष क्षेत्रों (कृषि, शिक्षा, नवीकरणीय ऊर्जा आदि) के लिए आवंटित करना पड़ता है। इसे प्राथमिकता क्षेत्र ऋण कहते है। सामान्य बैंकों के लिए ये हिस्सा 40% है, जबकि छोटे वित्त बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए 75% है। इसे निर्देशित उधार के नाम से भी जाना जाता है।

10. मंदी और महामंदी (Recession and Depression)

24-Apr-2024

किसी देश की GDP (सकल घरेलू उत्पाद) की वृद्धि दर लगातार दो तिमाहियों या उससे अधिक समय तक नकारात्मक रहती है, तो इस स्थिति को मंदी कहा जाता है। यदि मंदी की स्थिति में वस्तुओं की कीमते भी गिरने लगें तो यह स्थिति महामंदी कहलाती है।

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