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IMPORTANT TERMINOLOGY

पाठ्यक्रम में उल्लिखित विषयों की पारिभाषिक शब्दावलियों एवं देश-दुनिया में चर्चा में रही शब्दावलियों से परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाने का चलन तेजी से बढ़ा है। यह खंड वस्तुनिष्ठ और लिखित दोनों परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है। शब्दावलियों से परिचय अभ्यर्थियों को कम परिश्रम से अधिक अंक लाने में मदद करता है। इस खंड में प्रतिदिन एक महत्वपूर्ण शब्दावली से परिचय कराया जाता है।

प्रतिदिन की सबसे महत्वपूर्ण News पढ़ने के लिए यहाँ Click करें

1. अत्यांतिक वीटो (Absolute Veto)

16-May-2024

इसका संबंध राष्ट्रपति की उस शक्ति से है, जिसमें वह संसद द्वारा पारित किसी विधेयक को अपने पास सुरक्षित रख लेता है और यह विधेयक अधिनियम नहीं बन पाता है। सामान्यतः यह वीटो दो मामलों में प्रयोग किया जाता है; पहला, संसद के गैर-सरकारी सदस्यों (जो मंत्री न हो ) के विधेयक के संबंध में और दूसरा, सरकारी विधेयक के संबंध में जिस पर राष्ट्रपति की अनुमति शेष हो और मंत्रिमंडल त्यागपत्र दे दे और नया मंत्रिमंडल, राष्ट्रपति को ऐसे विधेयक पर अपनी सहमति न देने की सलाह दे।

2. पीरियड पॉवर्टी (Period poverty)

14-May-2024

यह शब्द गरीबी के एक विशिष्ट स्तर को संदर्भित करता है। इसमें पैसे की कमी के कारण महिलाओं और लड़कियों को मासिक धर्म के दौरान पैड/सेनेटरी नैपकिन, दर्द निवारक दवाओं, स्वच्छता सुविधाओं आदि की प्राप्ति नहीं हो पाती है। इस प्रकार की गरीबी अनेक गंभीर स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं का कारण बनती है।

3. शक्ति का पृथक्करण (Separation of power)

13-May-2024

यह सिद्धांत सरकार के विधायी, कार्यकारी और न्यायिक कार्यों के पृथक्करण से सम्बंधित है। इसका उद्देश्य सरकार के किसी भी एक अंग में शक्ति के केन्द्रीकरण को रोकना है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 50 में भी उल्लेख है कि राज्य न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक करने के लिए कदम उठाएगा ताकि सरकार के अंगों में अंतर्संबंध, नियंत्रण और संतुलन बना रहे।

4. सामूहिक उत्तरदायित्व (Collective Responsibility)

10-May-2024

यह संसदीय सरकार का एक सिद्धांत है। इसके अनुसार मंत्रिपरिषद एक टीम की तरह कार्य करती है। भारतीय संदर्भ में मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। भारतीय संविधान में इसका उल्लेख अनुच्छेद 75 में किया गया है। यह सिद्धांत इस रूप में प्रभावी होता है कि लोकसभा, प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद को अविश्वास प्रस्ताव पारित कर हटा सकती है।

5. डाइक (Dike)

09-May-2024

जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के लगभग समकोण होता है और अगर लावा इसी अवस्था में ठंडा हो जाए तो एक दीवार की तरह संरचना बन जाती है, जो डाइक कहलाती है। पश्चिम महाराष्ट्र क्षेत्र की अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों में यह संरचनाएं बहुतायत में पाई जाती है। ज्वालामुखी उद्गार से बने दक्कन ट्रेप के विकास में डाइक उद्‌गार की विशेष भूमिका है।

6. ग्रेशम का नियम (Gresham's law)

08-May-2024

इस मौद्रिक सिद्धांत के अनुसार जब सरकार दो मुद्राओं के बीच विनिमय दर को तय कर देती है, तब "कम मूल्य वाली मुद्रा अधिक मूल्य वाली मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है" क्योंकि लोग अधिक मूल्य वाली मुद्रा को जमा करते हैं वहीं कम वाली मूल्य मुद्रा को व्यय करते हैं।

7. पार्टिसिपेटरी नोट्स {Participatory Notes (P-Notes)}

07-May-2024

यह ऑफशोर डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट्स (ODI) यानी विदेशी निवेशकों का निवेश माध्यम है। यह पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) आदि द्वारा उन विदेशी निवेशकों को जारी किए जाते हैं, जो सीधे खुद को पंजीकृत किए बिना भारतीय शेयर बाजारों का हिस्सा बनना चाहते हैं।

8. ज़ेनोफ़ोबिक देश (xenophobic country)

06-May-2024

ज़ेनोफ़ोबिक यूनानी मूल का शब्द है, जिसका अर्थ अजनबियों या विदेशी लोगों के प्रति अत्यधिक नापसंदगी या डर दिखाना होता है। इसी प्रकार ज़ेनोफ़ोबिक देश आप्रवासियों को अपने देश में नहीं आने देना चाहते हैं या इन देशों में आप्रवासियों के प्रति डर का माहौल पैदा किया जाता है।

9. प्रबंधकीय लचीली विनिमय दर

04-May-2024

यह विनिमय दर (घरेलू मुद्रा के रूप में विदेशी मुद्रा की एक इकाई की कीमत) मूलतः लचीली होती है। इसका निर्धारण मांग और आपूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर केन्द्रीय बैंक द्वारा हस्ताक्षेप किया जाता है। वर्तमान भारत में यही प्रणाली प्रचलन में है। इसे मैनेज्ड फ्लेक्स्बिलिटी रेट, फ्लोटिंग एक्सचेंज रेट आदि नामों से भी जाना जाता है।

10. जनहित याचिका (Public interest litigation)

03-May-2024

जनहित याचिका (PIL) न्यायिक सक्रियता का एक उत्पाद है। इसका तात्पर्य ‘सार्वजनिक हित’ की सुरक्षा के लिए अदालत में दायर की गई याचिका से है। इसके तहत कोई भी ‘जनभावना’ वाला व्यक्ति या सामाजिक संगठन किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूहों के अधिकार दिलाने के लिए न्यायालय जा सकता है। न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर तथा न्यायमूर्ति पी. एन. भगवती इस अवधारणा के प्रवर्तक हैं।

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