( मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2: विषय- ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएँ, सीमाएँ और सम्भावनाएँ; न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य)
पृष्ठभूमि
- हर क्षेत्र की तरह कोविड-19 महामारी का भारत की कानूनी व्यवस्था पर भी उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा है। हाल ही में, देशव्यापी लॉकडाउन लागू होने के बाद उच्चतम न्यायालय समेत कई उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ अदालतों ने अगले कुछ दिनों के लिये न्यायिक कार्यवाही को रोक दिया था या किसी विशेष वजह से ही अदालतों को खोलने की घोषणा की थी।
- उच्चतम न्यायालय ने देश भर की सभी अदालतों को न्यायिक कार्यवाही के लिये व्यापक रूप से वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करने के निर्देश दिये थे। ध्यातव्य है कि कोविड-19 महामारी के दौरान सोशल-डिस्टेंसिंग को बनाए रखने के लिये वकीलों, अभियुक्तों और वादियों की भीड़ को रोका जाना ज़रूरी था।
- इसी के अनुपालन में उच्चतम न्यायालय में 25 मार्च से वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की जा रही है। साथ ही, न्यायालय ने महामारी के दौरान कार्यवाहियों के लिये प्रौद्योगिकी के उपयोग सम्बंध में सभी उच्च न्यायालयों को एक विशेष तंत्र तैयार करने के लिये आवश्यक निर्देश भी दिये।
- मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सूचना-प्रौद्योगिकी के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए स्थिति सामान्य होने के बाद भी वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग जैसी ई-प्रक्रियाओं को संस्थागत रूप से अपनाने की बात की।
- उल्लेखनीय है कि वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये उच्चतम न्यायालय ने न सिर्फ अपने कामकाज का सफल परीक्षण किया, बल्कि तीन लम्बित मामलों की सुनवाई भी की। इस सुनवाई के दौरान न्यायाधीश न्यायालय के स्थान विशेष से वकीलों की दलीलें सुन रहे थे, जबकि वकील अन्य स्थानों से अपने तर्क दे रहे थे।
- बम्बई और कर्नाटक के उच्च न्यायालयों ने भी 17 और 21 मार्च को वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं का उपयोग करके आभासी अदालतों के संचालन सम्बंधी अधिसूचना जारी की।
- ऐसे महत्त्वपूर्ण समय पर न्यायिक कार्यवाही के लिये सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग एक अभूतपूर्व कदम है।
- सर्वोच्च न्यायालय के महासचिव संजीव कलगाँवकर ने वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के लिये “विदयो” (Vidyo) एप के उपयोग की अधिसूचना जारी की।
- यद्यपि नेटवर्क न होने की स्थिति में न्यायालय ने व्हाट्सएप, फेसटाइम और स्काइप जैसे विकल्पों को भी खुला रखा है।
- वरिष्ठ वकील के.वी. विश्वनाथन के शब्दों में “यह एक बहुत ही शानदार अनुभव था। भविष्य के लिये यह आदर्श साबित होगा। सबसे ख़ास बात यह थी कि बिना किसी अड़चन और रुकावट के 45 मिनट लम्बी सुनवाई बिल्कुल सुचारू रूप से चली।”
आभासी अदालत की चुनौतियाँ
- वर्तमान व्यवस्था में वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा सुनवाई में सबसे बड़ी समस्या साक्ष्यों की स्वीकार्यता और उनकी प्रमाणिकता जैसी महत्त्वपूर्ण कानूनी और व्यावहारिक समस्याओं की है।
- साथ ही, गवाहों की पहचान एवं सुनवाई की गोपनीयता जैसी चुनौतियाँ भी सामने आ सकती हैं।
- इंटरनेट कनेक्शन की खराब गुणवत्ता, खराब और पुराने ऑडियो-वीडियो उपकरण का प्रयोग किया जाना, असमय बिजली का कट जाना, विशेष समय पर इंटरनेट द्वारा सम्पर्क स्थापित करने में असमर्थता तथा सुनवाई में अन्य पक्षों को शामिल किये जाने जैसी व्यावहारिक समस्याएँ भी सामने आ सकती हैं।
- दुभाषियों की स्थिति, उनकी उपलब्धता तथा कमज़ोर या ऐसे गवाहों को प्रस्तुत करना जिनकी सुरक्षा को खतरा हो, जैसी समस्याएँ भी आ सकती हैं।
- यदि दोनों पक्षों को आमने-सामने खड़े करके तर्क-वितर्क हों तो वो ज़्यादा प्रभावी होते हैं। साथ ही, किसी अपराध और उसकी प्रवृत्ति को जानने के बहुत से पक्ष होते हैं, जैसे मानसिक पक्ष या अपराधी का इरादा क्या था इत्यादि, ये ऑनलाइन सुनवाई में स्पष्ट नहीं हो पाता।
- एक चुनौती यह भी है कि तकनीक से अनभिज्ञ लोग वीडियो लिंक के माध्यम से खुलकर या स्पष्टता के साथ अपने विचार नहीं रख पाएंगे।
- इसके आलावा, यदि कोई अभियुक्त पुलिस स्टेशन में बैठकर कार्यवाही से जुड़ेगा तो हो सकता है वह अधिक दबाव में हो और पुलिस के डर से बहुत कुछ स्वीकार ले।
आभासी अदालत के लाभ
भवन, कर्मचारी, आधारभूत संरचना, सुरक्षा, परिवहन की लागत से लेकर अदालती कार्यवाही तक, विशेष रूप से जेलों से कैदियों के स्थानांतरण आदि में अदालतों की लागत बहुत कम हो सकती है।
वैश्विक स्तर पर आभासी अदालत की व्यवस्था
- 24 मार्च को अपने सहयोगियों को लिखे एक पत्र में दक्षिण अफ्रीका के मुख्य न्यायाधीश ने इस व्यवस्था की खुलकर तारीफ की। उनके अनुसार, यह आधुनिक समय की आवश्यकता है।
- यूनाइटेड किंगडम, द कोरोनावायरस बिल (2020) नाम से एक आपातकालीन कानून ला रहा है, जिसमें ऑडियो और वीडियो के माध्यम से जनता को अदालत और न्यायाधिकरणों की कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति मिलेगी।
क्या हो आगे की राह ?
- भविष्य में बेहतर परिणामों के लिये निम्नलिखित उपायों पर विचार किया जा सकता है -
- न्यायालयी सूचना-प्रौद्योगिकी की अवसंरचना में ज़्यादा निवेश।
- उन मामलों का स्पष्ट वर्गीकरण किया जा सकता है जिनका आभासी माध्यम द्वारा आसानी से निस्तारण किया जा सके।
- वर्तमान समय में चल रहे सभी मामलों के रिकॉर्ड को डिजिटल बनाना होगा।
- नई तकनीक और सुदूर पहुँच (New Techniques and Remote Access) के लिये नए कानून बनाए जाने की आवश्यकता होगी।
- कार्यवाही के विवरणों को विशेष रूप से सुरक्षित रखे जाने की आवश्यकता है ताकि इनका दुरुपयोग न हो सके।
- न्यायालय को यह ध्यान रखना होगा कि निर्णयों में भले विलम्ब हो, किंतु यह निष्पक्ष और गुणवत्तापूर्ण होना चाहिये।
- न्यायलय की न्यायिक दक्षता को बढ़ावा मिले यह तकनीक का मुख्य उद्देश्य होना चाहिये।