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जापान-भारत सहयोग

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2: विषय- भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से सम्बंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार, भारत एवं इसके पड़ोसी- सम्बंध।)

  • हाल ही में, भारतीय और जापानी युद्धपोतों ने जापानी समुद्री आत्मरक्षा बल के साथ मिलकर हिंद महासागर में नौसेना अभ्यास किया। यह अभ्यास "आपसी समझ को बढ़ावा देने" के लिये आयोजित किया गया था।
  • अभ्यास में चार युद्धपोत शामिल थे; भारत से आई.एन.एस. राणा व आई.एन.एस. कुलुश और जापान से जे.एस. काशिमा व जे.एस. शिमायुकी (JS Kashima and JS Shimayuki)।
  • ध्यातव्य है कि पिछले 3 वर्षों में यह 15 वाँ अभ्यास है।
  • जिमेक्स शिन्यू मैत्री और धर्म गार्जियन सहित अन्य कई द्विपक्षीय युद्धाभ्यासों में जापानी नौसेना भारतीय नौसेना के प्रमुख भागीदारों में से एक रही है। इसके अलावादोनों देश संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मालाबार युद्धाभ्यास में भी भाग लेते हैं।

भारत-जापान सम्बंध

  • भारत और जापान ने वर्ष 2014 में 'विशेष रणनीतिक और वैश्विक भागीदारी (Special Strategic and Global Partnership) के बाद से अपने सम्बंधों कोसुदृढ़ करने की दिशा में अनेक प्रयास किये हैं।
  • रेल-संचार क्षेत्र में मुम्बई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेलवे (MAHSR),भारत और जापान के बीच सहयोग का एक विशेष उदाहरण है।
  • अक्टूबर 2018 में "भारत-जापान डिजिटल भागीदारी" (I-JDP)  भारत के प्रधानमंत्री की जापान यात्रा के दौरान शुरू किया गया था, जिसमेंआपसी सहयोग द्वारा अन्य मौजूदा क्षेत्रों में सहयोग को आगे बढ़ाने की नई पहलके साथ ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी –आई.सी.टी. पर अधिक ध्यान केंद्रित करना प्रमुख लक्ष्य था।
  • अगस्त 2011 में लागू हुआ भारत-जापान व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (India-Japan Comprehensive Economic Partnership Agreement -CEPA) माल, सेवाओं, व्यक्तियों की आवा जाही, निवेश, बौद्धिक सम्पदा अधिकार, कस्टम प्रक्रियाओं और व्यापार से सम्बंधित अन्य मुद्दों में जापान और भारत के बीच व्यापारिक साझेदारी की बात करता है।

भारत और जापान के साझा हित :

  • दोनों देश जी-4 समूह के सदस्य राष्ट्र हैं।
  • नौसैनिक अभ्यासों के अलावा दोनों देश साथ में सैन्य, तट रक्षक और वायु सेना अभ्यास भी करते हैं।
  • भारत और जापान दोनों समुद्री क्षेत्र में वर्तमान समय में चीन का अधिक प्रभुत्त्व होने के कारण तमाम कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं और हाल ही में दोनों देशों के बीच किया गया नौसेना अभ्यास अपरोक्ष रूप से लद्दाख में भारत और चीन के बीच सैन्य गतिरोध से सम्बंधित था।
  • महासागरीय क्षेत्र में चीन की बढ़ती पहुँच और शक्ति से भारत और जापान को एक समान दिक्कत है तथा यह बात दोनों देशों को रणनीतिक मुद्दों पर औरमज़बूत कदम उठाने के लिये अभिप्रेरित कर रही है।
    • दोनों देशों ने चीन द्वाराएकक्षत्र ध्रुवीकरण किये जाने के विरोध में हमेशा से आवाज़ उठाई है।
  • चीन की दुविधा: यद्यपि चीन ने दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में हमेशा से आक्रामक मुद्रा दिखाई है, लेकिन साथ ही वह समुद्र में अपनी सुभेद्यता को लेकर चिंतित भी रहा है इसे मलक्का दुविधा के रूप में भी जाना जाता है।
    • इसे संज्ञान में लेते हुए, भारत और जापान मुख्य रूप से हिंद महासागर में होर्मुज़ जलडमरू मध्य, बाब-अल-मंदब, मलक्का जलडमरू मध्य क्षेत्र में अपनी साझा समुद्री क्षमता का विकास कर सकते हैं।

चीन एक खतरे के रूप में:

  • समुद्री क्षेत्र में चीन का दबदबा आर्थिक विकास के मामले में भारत तथा जापान दोनोंके लिये भी गम्भीर खतरा है।
  • नाइन-डैश लाइन के कारण चीन के इंडोनेशिया, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया, फिलीपींस, वियतनाम और ताइवान आदि से सम्बंध भी खराब चल रहे हैं।
  • इसके अलावा, चीन ने हाल ही में भूटान के ट्रशिगंग जिले के पूर्वी क्षेत्र में खुद का दावा भी किया है।

चीन का "मलक्का दुविधा"(China’s “Malacca Dilemma”):

  • पिछले कई वर्षों में चीनी सरकार के लिये ऊर्जा सुरक्षा और विशेष रूप से तेल आपूर्ति सुरक्षा एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। इस चिंता का केंद्र बिंदु समुद्री ऊर्जा आयात से जुड़ा डर है।
  • चीन के पास अपने समुद्री लेन संचार (sea lanes of communication -SLOC) की सुरक्षा के लिये आवश्यक नौसैनिक शक्ति का अभाव है। उसे यह डर है कि राष्ट्रीय सुरक्षा संकट के दौरान ऊर्जा संसाधनों को ले जाने वाले जहाज़ों को उसके शत्रु देशों के नौसैनिक बलों द्वारा रोका या नष्ट किया जा सकता है।
  • चीन में ऊर्जा संसाधनों के मुक्त प्रवाह में किसी भी प्रकार का कोई व्यवधान वहाँ की आर्थिक वृद्धि को पटरी से उतार सकता है।
  • दक्षिण पूर्व एशिया में मलक्का और लोम्बोक/मकास्सर जलडमरूमध्य (Malacca and Lombok/Makassar straits) क्षेत्र का चीन द्वारा अधिकाधिक उपयोग किया जाना चीन के लिये चिंता की प्रमुख वजह है। मलक्का जलडमरूमध्य इंडोनेशिया और मलेशिया को अलग करने वाला एक संकीर्ण और व्यस्त जलमार्ग है, जिसके दक्षिणी सिरे पर सिंगापुर स्थित है।

नाइन-डैश लाइन

नाइन-डैश लाइन दक्षिण चीन सागर के प्रमुख हिस्से पर अपने दावों के लिये पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पी.आर.सी.) और चीन गणराज्य (आर.ओ.सी.) द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली अपरिभाषित व अस्पष्ट सीमांकन रेखा को संदर्भित करती है।

जी -4

यह चार देशों यानी ब्राजील, जर्मनी, भारत और जापान का एक समूह है जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थाई सीटों के लिये एक-दूसरे का समर्थन करते हैं।

निष्कर्ष:

  • चीन अपनी अस्थिर रणनीति और सामरिक शक्ति के साथ कई राष्ट्रों को जवाब देने में सक्षम है और इसके अलावा वह प्रत्येक देश के साथ व्यक्तिगत रूप से बात करके उस देश से अपने सम्बंधों पर काम कर रहा है, चाहे दोस्ती हो या दुश्मनी।
  • चीन ने कई देशों का विरोध किया है, जिसेएक लाभ के रूप में भारत देख सकता है और इंडोनेशिया, वियतनाम, ताइवान और फ्रांस जैसे देशों से सहयोग के लिये सम्पर्क कर सकता है।
  • चीन जितना भी मज़बूत हो उस पर रणनीतिक रूप से आक्रामक रुख अपना कर लगाम लगाईं जा सकती है इसके लिये भारत को अपने सामान दृष्टिकोण वाले देशों से बात कर उन्हें अपने पक्ष में लेना होगा।
  • चीन पर हावी होने के लियेभारत के पास पहले से ही क्वाड जैसा रणनीतिक समूह है इसके अलावा मध्य एशिया और मध्य यूरोप के उन देशों के साथ भी भारत को बात करने की ज़रुरत है जिनके सम्बंध चीन से अच्छे नहीं चल रहे।

आगे की राह:

  • भारत और जापान के बीच सहयोग के अन्य सम्भावित क्षेत्र भी हैं जिन पर कार्य किये जाने की ज़रुरत है:
    • आधारभूत संरचना, प्रौद्योगिकी और दूरसंचार का क्षेत्र।
    • भारत और जापान को पारस्परिक लाभ प्राप्त करने के लिये भारत-प्रशांत क्षेत्र में एक साथ काम करने की आवश्यकता है।
    • जापान की मदद से, भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के लिये अपना मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
    • चौथी औद्योगिक क्रांति के द्वारा आई.टी.- सेक्टर में और ज़्यादा निवेश करने और लाभ को बढ़ाने के लियेभारत और जापान को सहयोग करना चाहिये।
    • रक्षा क्षेत्र में युद्धपोतों, हथियारों, पनडुब्बियों आदि के निर्माण में सहायता प्रदान करने के लिये जापान से सम्पर्क किया जा सकता है।
  • जापान से सहायता लेने के अलावा, भारत को यह भी सोचना चाहिये कि भारतीय उत्पाद जापान तक कैसे पहुँच सकते हैं, और उन्हें जापान में लाभांश कैसे मिल सकता है: इसके तहत आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को भी बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है।
  • भारत को कोविड के बाद के सम्बंधों पर भी ध्यान देना चाहिये ताकि दुनिया के दूसरे हिस्सों के साथ भी अच्छे सम्बंध सुनिश्चित किये जा सकें।
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