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श्रम संहिता विधेयक

(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्य तंत्र और शासन – अधिकार सम्बंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा; सामान्य अध्ययन प्रश्पत्र -3 : उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव)

चर्चा में क्यों

हाल ही में, भारत की संसद ने देश के 50 करोड़ से अधिक संगठित और असंगठित श्रमिकों को समाविष्ट करते हुए श्रम कल्याण सुधार के उद्देश्य से 3 श्रम संहिता विधेयक पारित किये हैं। इसमें गिग श्रमिकों तथा प्लेटफॉर्म श्रमिकों को भी शामिल किया गया है। साथ ही, ये बिल स्वरोज़गार क्षेत्र में सामाजिक सुरक्षा की बात भी करते हैं।

सम्बंधित बिंदु

  • स्थायी समितियों द्वारा दी गई 233 सिफारिशों में से 174 को शामिल करने के बाद इन तीन बिलों को पुनः पेश किया गया है।
  • ये तीन विधेयक चार श्रम संहिताओं का हिस्सा हैं जिसमें 29 श्रम कानूनों को शामिल किया गया है। मजदूरी पर प्रथम कोड पहले ही अधिनियमित किया जा चुका है।
  • ये तीन विधेयक निम्नलिखित हैं:

1. औद्योगिक सम्बंध संहिता,2020 (Industrial Relations Code, 2020)

2. व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य की स्थिति संहिता , 2020 (Code on Occupational Safety, Health & Working Conditions Code, 2020 )

3. सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 (Social Security Code, 2020)

  • ध्यातव्य है कि नए श्रम संहिता विधेयक पूर्व के तीन श्रम कानूनों (i) औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947, (ii) ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 और (iii) औद्योगिक रोज़गार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946 का स्थान लेंगे।

प्रमुख प्रस्ताव (Key Proposals):

औद्योगिक सम्बंध संहिता विधेयक, 2020 में सरकार ने निम्नलिखित बातें प्रस्तावित की हैं :

  • कानूनी हड़ताल की नई शर्तें - नए विधेयक के अनुसार, किसी औद्योगिक प्रतिष्ठान में कार्यरत श्रमिक अगर हड़ताल पर जाना चाहते हैं तो उन्हें कम-से-कम 14 दिन पहले नोटिस देना होगा। इसके अलावा, कोई भी व्यक्ति किसी न्यायाधिकरण के समक्ष लम्बित कार्यवाही के दौरान या ऐसी किसी कार्यवाही के समापन के 60 दिनों तक हड़ताल पर नहीं जा सकता है। पहले इस तरह के प्रतिबंध केवल सार्वजनिक उपयोगिता से जुड़ी सेवाओं (public utility services) पर लागू होते थे।
  • इसके तहत औद्योगिक विवाद निपटान प्रणाली को सुगम बनाने की कोशिश की गई है।
  • संविदा वाले कर्मचारियों की सेवा-शर्तों, वेतन, छुट्टी और सामाजिक सुरक्षा को नियमित कर्मचारियों के समान किया जाएगा।
  • श्रमिकों के लिये आचार संहिता लागू करने के लिये औद्योगिक प्रतिष्ठानों में श्रमिकों की संख्या को 100 से बढ़ाकर 300 कर दिया गया है।
  • री-स्किलिंग फंड - ऐसे कर्मचारी जिनकी छंटनी (Retrenchment) कर दी गई है या जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं, उनके प्रशिक्षण हेतु री-स्किलिंग फण्ड की स्थापना का प्रस्ताव।

सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2020 में निम्नलिखित प्रावधान किये गए हैं- 

  • राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड की स्थापना, जो असंगठित श्रमिकों, गिग श्रमिकों और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के विभिन्न वर्गों के लिये उपयुक्त योजना तैयार करने के लिये केंद्र सरकार को सिफारिश करेगा।
  • अधिक स्पष्टता : विधेयक में ‘कैरियर सेंटर’, ‘एग्रीगेटर’, ‘गिग वर्कर’, ‘प्लेटफॉर्म वर्कर’ तथा ‘वेज सीलिंग’ जैसे कई अन्य शब्दों को अधिक स्पष्टता के साथ परिभाषित किया गया है।
  • गिग श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा: गिग श्रमिकों को रोज़गार देने वाले एग्रीगेटरों को ऐसे श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा के लिये अपने वार्षिक कारोबार का 1-2% योगदान देना होगा।
  • असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों तथा स्वरोज़गार श्रमिकों के लिये ‘सामाजिक सुरक्षा कोष’ के निर्माण का प्रावधान किया गया है।

कर्मचारी राज्य बीमा निगम की सुविधाओं का विस्तार

  • अब असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले श्रमिकों, गिग श्रमिकों (ऐसे श्रमिक, जिन्हें केवल ज़रूरत के समय ही रखा जाता है) और प्रवासी श्रमिकों तक किया जाएगा।
  • जोखिम से जुड़े क्षेत्रों में कार्य करने वाले सभी प्रतिष्ठान कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) के दायरे में आएंगे तथा किसी संगठन में 20 से अधिक कर्मचारी कार्य करते हैं तो वहाँ कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के प्रावधान भी लागू होंगे।

व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता विधेयक, 2020 में निम्नलिखित प्रावधान किये गए हैं :

  • सभी प्रकार के कार्यों के लिये तथा सभी प्रतिष्ठानों में महिलाओं को रोज़गार प्रदान करना। महिलाएँ रात में भी काम कर सकती हैं अर्थात् शाम 7 बजे के बाद और सुबह 6 बजे से पहले, नियोक्ताओं को केवल यह ध्यान रखना होगा कि उनकी सुरक्षा, अवकाश, काम के घंटे और उनकी सहमति से जुड़ी सभी शर्तें पूरी हों।
  • श्रमिक की परिभाषा में अंतर-राज्यीय प्रवासी श्रमिकों को शामिल करना : अंतर-राज्यीय प्रवासी श्रमिकों को उस श्रमिक के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो किसी अन्य राज्य से आकर दूसरे राज्य में रोज़गार प्राप्त करता है और जो 18,000 रुपये प्रति माह तक कमाता है।
  • श्रमिकों को नए रूप से परिभाषित करना इसे और अधिक समावेशी बनाता है, क्योंकि इसके पहले मात्र संविदात्मक रोज़गार को ही परिभाषित किया गया था।
  • पोर्टेबिलिटी बेनिफिट्स : एक अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगार/श्रमिक को राशन सम्बंधी लाभ प्राप्त करने के लिये पोर्टेबिलिटी प्रदान की गई है अर्थात् वह जिस राज्य में कार्य कर रहा है, उस राज्य में राशन, भवन निर्माण एवं श्रमिक उपकर आदि से जुड़े लाभों के लिये अर्ह्य होगा।
  • हालाँकि, नई संहिता में कार्यस्थल के पास श्रमिकों के लिये अस्थायी आवास निर्माण के पुराने प्रावधान को ख़त्म कर दिया गया है।
  • इस संहिता में यात्रा भत्ता भी प्रस्तावित किया गया है, जिसमें नियोक्ता द्वारा श्रमिक को उसके रोज़गार के स्थान से उसके मूल निवास स्थान पर जाने व वहाँ से आने के लिये एकमुश्त राशि का भुगतान किये जाने का प्रावधान है।
  • इस संहिता में मुख्यतः कर्मचारियों के लिये नियोक्ता के कर्तव्यों का ज़िक्र किया गया है, जैसे- सुरक्षित कार्यस्थल, कर्मचारियों की मुफ्त सालाना स्वास्थ्य जाँच व्यवस्था और असुरक्षित कार्य स्थितियों के बारे में सम्बंधित श्रमिकों को सूचित करना आदि।
  • अवकाश के नए नियमों के अनुसार कोई श्रमिक 240 दिन के स्थान पर अब 180 दिन कार्य करने के पश्चात् भी छुट्टी प्राप्त कर सकता है।
  • कार्यस्थल पर किसी कर्मचारी को चोट लगने पर उसे 50% का हर्ज़ाना दिये जाने का प्रावधान है।

नए प्रावधानों से लाभ:

  • नए प्रावधानों से श्रमिकों, उद्योग जगत और अन्य सम्बंधित पक्षों के मध्य सामंजस्य स्थापित होगा।
  • सामाजिक सुरक्षा कोष की सहायता से असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले श्रमिकों को मृत्यु बीमा, दुर्घटना बीमा, मातृत्व लाभ और पेंशन का लाभ प्राप्त होगा।
  • प्रवासी श्रमिक की परिभाषा में विस्तार से उन्हें कई सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सकेगा। साथ ही, प्रवासी मज़दूरों के लिये मालिक को वर्ष में एक बार यात्रा भत्ता देना होगा।
  • नए परिवर्तनों से मज़दूरों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार होने के साथ ही कारोबारी सुगमता के कारण विदेशी निवेशक भारत में निवेश के लिये आकर्षित होंगे।

नई श्रम संहिताओं से जुड़ी चिंताएँ

  • श्रमिकों के अधिकारों में कमी : छोटे प्रतिष्ठानों (300 श्रमिकों तक के) के श्रमिकों को उनके प्रमुख अधिकारों से विमुख कर दिया गया है, विशेषकर उनकी ट्रेड यूनियनों और श्रम कानूनों से प्राप्त संरक्षणों को समाप्त कर दिया गया है।
  • श्रमिकों की सुरक्षा के उपायों को कम करना : नए प्रावधानों द्वारा कम्पनियाँ श्रमिकों के लिये मनमानी सेवा शर्तें लागू कर सकती हैं।
  • कॉर्पोरेट अनुकूल: नए नियम नियोक्ताओं को सरकारी अनुमति के बिना श्रमिकों को काम पर रखने और काम से निकालने के लिये अधिक लचीलापन प्रदान करते हैं, अर्थात् नियोक्ताओं का जब मन हो वे श्रमिकों को कार्य से विमुक्त कर सकते हैं।
  • नई श्रम संहिताएँ अभिव्यक्ति एवं वाक् स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने वाली हैं, जिनके द्वारा परोक्ष रूप से हड़ताल और प्रदर्शनों पर प्रतिबंध की बात की गई है।
  • री-स्किलिंग फण्ड के बारे में अस्पष्टता: विधयेक में में री-स्किलिंग फण्ड से जुड़े ठोस और प्रक्रियात्मक पहलुओं में स्पष्टता का अभाव है, जो 1990 के दशक में राष्ट्रीय नवीकरण निधि की तरह फिज़ूल साबित हो सकता है।
  • महिला सुरक्षा: विभिन्न सुरक्षा उपायों के बावजूद महिलाओं को रात के समय काम करने की अनुमति देने से उनके यौन-शोषण (या कार्य स्थल पर यौन शोषण) की सम्भावना बढ़ सकती है।

निष्कर्ष

  • काफी समय से लम्बित और बहुप्रतीक्षित श्रम सुधार संसद द्वारा पारित कर दिये गये हैं। ये सुधार श्रमिकों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के साथ ही आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देंगे। वास्तव में ये श्रम सुधार न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन का बेहतरीन उदाहरण हैं।
  • कोविड-19 महामारी के बाद बदले हुए आर्थिक परिदृश्य में श्रमिकों के अधिकारों और आर्थिक सुधारों में संतुलन आवश्यक है। किसी एक पक्ष का समर्थन करने से दीर्घकाल में देश के समावेशी विकास के लक्ष्य पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
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