(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से सम्बंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से सम्बंधित विषय)
पृष्ठभूमि
देश कि सभी राज्य सरकारों ने कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिये मार्च के दूसरे सप्ताह से ही अस्थाई रूप से विद्यालयों और कॉलेजों को बंद करना शुरू कर दिया था। तब से लेकर अब तक 2 महीने से ज़्यादा हो गए हैं लेकिन अभी भी यह निश्चित नहीं है कि ये स्कूल कब खुलेंगे। शिक्षा क्षेत्र के लिये यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण लेकिन कठिन समय है। जैसा कि स्पष्ट है कि कोविड-19 के प्रकोप को रोकने के लिये अभी तक कोई तत्काल समाधान नहीं खोजा जा सका है, स्कूलों को बंद होने कि वजह से निकट व दूरगामी दोनों तरह के परिणामों का सामना करना पड़ रहा है। इस बंदी की वजह से शिक्षण संस्थाओं और शिक्षण प्रक्रिया की बुनियादी संरचना भी विशेष रूप से प्रभावित हुई है।
प्राथमिक शिक्षा पर महामारी का प्रभाव
1. इंटरनेट कनेक्टिविटी और संसाधन आदि के मुद्दे :
- गाँवों के छात्र और आर्थिक रूप से पिछड़े पृष्ठभूमि के कई छात्र ऑनलाइन शिक्षा से जुड़ी अनेक गम्भीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं। कुछ निजी विद्यालयों के पास ही ऑनलाइन विधि द्वारा शिक्षण से जुड़े सभी संसाधन उपलब्ध हैं। दूसरी ओर, कम आय वाले उनके समकक्ष निजी और सरकारी विद्यालय ई-लर्निंग संसाधनों तक पहुँच नहीं होने के कारण पूरी तरह से बंद ही चल रहे हैं।
- इन कारणों से छात्र न सिर्फ कुछ नया सीखने का अवसर खो रहे हैं बल्कि सरकारी प्राथमिक विद्यालयों के संदर्भ में वो स्वस्थ भोजन से भी वंचित हैं क्योंकि प्राथमिक विद्यालयों में उन्हें मिड-डे-मील के रूप में भोजन मिल जाता था जो अब नहीं मिल पा रहा, इसके आलावा आर्थिक स्थिति ख़राब होने कि वजह से उन्हें घरेलू स्तर पर भी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
- इसके अलावा महामारी की वजह से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी बाधा उत्पन्न हुई है, जो कि देश के आर्थिक भविष्य का एक महत्त्वपूर्ण निर्धारक है।
2. डिजीटल सुविधाओं के लिये आवश्यक तैयारी में कमी :
- यह लगातार देखने में आ रहा है कि कई शिक्षक और माता-पिता ऑनलाइन शिक्षण के नए तरीकों को सीखने में काफी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
- डिजिटल इंडिया कार्यक्रम में इतना ज़ोर देने के बावजूद, शिक्षा के डिजिटलीकरण और इससे निपटने के लिये शिक्षकों कि तैयारी अभी बहुत कम है और अभी भी इसमें बड़े स्तर पर बदलाव की ज़रूरत है।
- यह भी देखा गया है कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में निवेश हमेशा से कम ही रहा है और सरकार से लेकर निजी संस्थानों तक ने इस क्षेत्र में ज्यादा ध्यान नही दिया है।
3. पारिवारिक माहौल से जुड़े मुद्दे :
- अनेक बच्चों को घर में नकारात्मक वातावरण का भी सामना करना पड़ा रहा है। पूरे देश से घरेलू हिंसा की और बाल अत्याचार जैसी ख़बरें लगातार आ रही हैं।
- इस तरह का परिवेश बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और उनके सीखने के नए आयामों को भी को भी कम कर देता है।
अवसर और चुनौतियाँ
1. शिक्षा का प्रतिनिधित्त्व करती प्रौद्योगिकी :
- लॉकडाउन के दौरान तकनीकी प्लेटफार्मों की ओर ज़्यादा ध्यान दिये जाने कि वजह से शिक्षा और इससे जुड़े हुए क्षेत्रों में आमूलचूल बदलाव आ सकता है और सम्पूर्ण विश्व इन बदलावों की और देख रहा है।
- खेल-आधारित या पहेली-आधारित शिक्षा, छात्रों में शिक्षा के प्रति दिलचस्पी बढ़ाने में कारगर साबित हो सकती है।
- घर पर ज़्यादा से ज़्यादा पारिवारिक भागीदारी बढ़ाकर बोर्ड-गेम या अनौपचारिक चर्चाओं के द्वारा छात्रों को शिक्षा से जुड़े आयामों को और ज़्यादा जानने और समझने में मदद मिलेगी।
- शिक्षक स्मार्टफोन या सरल मोबाइल फोन के माध्यम से छात्रों के माता-पिता को विभिन्न रचनात्मक कार्यों के बारे में आसानी से समझा सकते हैं।
- उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन के इस समय में शिक्षकों और अभिभावकों के बीच सकारात्मक सम्वाद की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है।
2. तकनीक-आधारित प्लेटफ़ार्मों के माध्यम से इंटरएक्टिव लर्निंग :
- कई तकनीक-आधारित प्लेटफॉर्म जैसे गो-प्रेप आदि शिक्षा को ज़्यादा प्रभावी और आकर्षक बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
- एनिमेटेड वीडियो और तकनीक-आधारित कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाले कार्यक्रमों के माध्यम गो-प्रेप जैसे मंच शिक्षण और इसके मूल्यों में मूल्यवर्धन करते हैं।
- इनका मुख्य उद्देश्य सीखने की विधि को और सुखद बनाना तथा छात्रों में नया सीखने की इच्छा को ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ाना है।
3. एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा पहल :
- नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) ने स्कूल के छात्रों के लिये वैकल्पिक शैक्षणिक कैलेंडर विकसित किया है ताकि वे लॉकडाउन के दौरान घर पर रहते हुए लगातार सीखते भी रहें।
- यह कैलेंडर शिक्षकों को विभिन्न तकनीकी उपकरण और सोशल मीडिया टूल का उपयोग करके मज़ेदार, दिलचस्प तरीकों से शिक्षा प्रदान करने के लिये निर्देशित करता है, जिनका उपयोग कोई भी छात्र घर पर बैठकर कर सकता है।
- इसमें इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी को भी ध्यान में रखा गया है और अतः शिक्षकों को मोबाइल कॉल या एस.एम.एस. के माध्यम से माता-पिता और छात्रों को मार्गदर्शन करने के निर्देश भी दिये गए हैं।
- मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एनसीईआरटी के साथ मिलकर ई-पाठशाला ऑनलाइन पोर्टल और मोबाइल ऐप लॉन्च किया है, जिसके माध्यम से छात्र एनसीईआरटी अध्यायों को आसानी से पढ़ सकते हैं।
- केंद्रीय विद्यालय संगठन ने भी छात्रों की मदद के लिये अपने स्वयं प्रभा पोर्टल को भी नए रूप में लॉन्च किया है जिसमें छात्रों की सुविधा के हिसाब से डी.टी.एच. (Direct To Home) और ऑनलाइन दोनों माध्यमों में विडियो लेक्चर उपलब्ध हैं।
ई-पाठशाला
- ई-पाठशाला की शुरुआत 2015 में स्कूली छात्रों के बीच स्व-शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी।
- पोर्टल विभिन्न स्कूली शिक्षकों, शोधकर्ताओं, विशेषज्ञों, माता-पिता और छात्रों को आपसे में जोड़ता है ताकि छात्रों की शंका का समाधान भी हो सके और उन्हें हर तरह के आवश्यक दिशानिर्देश मिलते रहें।
- जिन छात्रों ने ई-पाठशाला ऑनलाइन पोर्टल या मोबाइल ऐप में पंजीकरण किया है, वे पाठ्यपुस्तक, ऑडियो, वीडियो और अन्य प्रिंट और गैर-प्रिंट सामग्री सहित अनेक प्रकार की शैक्षणिक सामग्रियों का उपयोग कर सकते हैं।
- ई-लर्निंग स्रोत तक पहुँचने के लिये कोई शुल्क नहीं है।
- इसे डेस्कटॉप, लैपटॉप या मोबाइल के जरिये एक्सेस किया जा सकता है।
स्वयं-प्रभा
- यह 24X7 आधार पर डी.टी.एच. के माध्यम से उच्च गुणवत्ता वाले 32 शैक्षिक चैनल चलाने के लिये मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक अभिनव पहल है।
- इसमें विविध विषयों का समावेश करने वाली पाठ्यक्रम आधारित पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराई गई है।
- इसका मुख्य उद्देश्य उच्च गुणवत्ता वाले शैक्षणिक संसाधनों की दूरदराज़ क्षेत्रों तक उपलब्धता को सुनिश्चित करना है, जहाँ इंटरनेट की उपलब्धता अभी भी एक चुनौती है।
- डी.टी.एच. चैनल कार्यक्रम के प्रसारण के लिये जीसैट -15 उपग्रह का उपयोग किया जा रहा है।
आगे की राह
तकनीक आधारित शिक्षा की स्वीकार्यता :
- लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी, व्यक्तिगत परीक्षण और गतिविधियों के साथ ऑनलाइन शिक्षण को जारी रखने की आवश्यकता है क्योंकि यह शिक्षा के परिणाम में आपेक्षिक सुधार ला सकता है और भारत के डिजिटल इंडिया सपने को साकार करने में भी सहायक साबित होगा।
- हालाँकि, इसका मतलब यह बिलकुल भी नहीं है कि शिक्षक आधारित शिक्षण समाप्त कर देना चाहिये। वास्तव में, शिक्षा और अवधारणाओं की अधिक स्पष्टता के लिये शिक्षकों का होना भी आवश्यक है।
- इसलिये शिक्षकों को इस प्रकार प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है कि वे पारम्परिक कक्षा के आलावा ऑनलाइन इंटरनेट के माध्यम से भी छात्रों की सहायता कर सकें।
पहुँच को और ज्यादा बढ़ाना :
- महामारी ने हमें रचनात्मक तरीकों में बदलाव के साथ ही समायोजन के बारे में बहुत कुछ सिखाया है। लेकिन कमज़ोर वर्गों को अपने साथ आगे बढ़ाना भी उतना ही आवश्यक है।
- बिजली की आपूर्ति, शिक्षकों और छात्रों के डिजिटल कौशल, और इंटरनेट कनेक्टिविटी के आधार पर डिजिटल सीखने के लिये उच्च और निम्न प्रौद्योगिकियों के समाधान की नई सम्भावनाओं का पता लगाने की भी आवश्यकता है।
- दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों में कम आय वाले समूहों से आने वाले छात्रों या विकलांग छात्र छात्राओं की उपस्थिति को सुनिश्चित करना।
- शिक्षकों को तथा विद्यालयों को ऐसे प्लेटफार्मों के माध्यम से सभी शिक्षण सामग्री मुफ्त में उपलब्ध कराकर छात्रों की ज़्यादा से ज़्यादा सहायता को सुनिश्चित करना चाहिये।
COVID-19 के बाद शिक्षकों, अभिभावकों और प्रशासकों के लिये एक बड़ी ज़िम्मेदारी होगी कि वे बच्चों को इस बीमारी के मानसिक प्रभाव से बाहर निकालने में मदद करें।