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भारत के परमाणु परीक्षण के 50 वर्ष एवं परमाणु नीति

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : अंतर्राष्ट्रीय संबंध- वैश्विक समूह एवं भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ

  • 50 वर्ष पूर्व भारत ने 18 मई, 1974 में राजस्थान के पोखरण में 'स्माइलिंग बुद्धा' नामक ऑपरेशन के तहत अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था। स्माइलिंग बुद्धा इस ऑपरेशन का कूट नाम था।
  • यद्यपि परमाणु शक्ति संपन्न होने से भारत को रणनीतिक रूप से निर्णयन की शक्ति एवं स्वायत्तता प्राप्त हुई किंतु परमाणु हथियारों के जोखिम को कम करने के लिए भारत हमेशा से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ प्रतिबद्ध रहा हैं।

ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा : भारत का प्रथम परमाणु परीक्षण 

  • स्माइलिंग बुद्धा (पोखरण-1) भारत द्वारा किए गए प्रथम सफल परमाणु परीक्षण का कूटनाम है। यह संयुक्त राष्ट्र के पाँच स्थायी सदस्यों के अतिरिक्त किसी अन्य देश (भारत) द्वारा किया गया परमाणु हथियारों का पहला परीक्षण था।
  • भारत के परमाणु परीक्षणों की शृंखला में दूसरा परीक्षण मई 1998 में पोखरण में ही किया गया था।
    • वर्ष 1998 में 11 मई को तीन भूमिगत परमाणु परीक्षण एवं 13 मई को दो परीक्षण किए गए। इसका कूट नाम ‘ऑपरेशन शक्ति’ था।
    • पोखरण नामक स्थल पश्चिमी राजस्थान में पाकिस्तान की सीमा से लगे जैसलमेर जिले में स्थित है। 

भारत द्वारा परमाणु हथियार कार्यक्रम के तत्कालीन कारण

  • वर्ष 1962 में चीन से युद्ध के बाद भारत का बाह्य स्थिति का अधिक चुनौतीपूर्ण होना 
  • वर्ष 1964 में चीन द्वारा परमाणु हथियार का परीक्षण करना 
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी स्थायी सदस्यों द्वारा परमाणु हथियारों का परीक्षण
    • वर्ष 1945 में अमेरिका के बाद वर्ष 1949 में यू.एस.एस.आर., वर्ष 1952 में यू.के., वर्ष 1960 में फ्रांस ने और फिर चीन ने परमाणु परीक्षण किया था। 
  • वर्ष 1965 में पाकिस्तान से युद्ध 

भारत का परमाणु सिद्धांत 

नो फर्स्ट यूज़ पॉलिसी या पहले उपयोग नहीं नीति (No First Use Doctrine)

  • भारत ने वर्ष 1999 में परमाणु नीति का ड्राफ्ट प्रस्तुत किया। वर्ष 2003 में भारत ने परमाणु नीति का मूल सिद्धांत ‘पहले उपयोग नहीं’ (नोफोरस्ट यूज़) अपनाया। 
  • इस नीति के अनुसार, भारत किसी भी देश पर तब तक परमाणु हमला नहीं करेगा जब तक कि शत्रु देश भारत के ऊपर परमाणु हमला नहीं करता है।
  • परमाणु हमले की कार्यवाही का अधिकार सिर्फ जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों अर्थात् देश के राजनीतिक नेतृत्व के माध्यम से ही होगा। हालाँकि, इसमें परमाणु कमांड अथॉरिटी का सहयोग जरूरी है।
  • जिन देशों के पास परमाणु हथियार नहीं हैं, उनके खिलाफ परमाणु हथियारों का प्रयोग नहीं किया जाएगा।
  • यदि भारत के खिलाफ या भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ कोई रासायनिक या जैविक हमला होता है तो भारत इसकी प्रतिक्रिया में परमाणु हमले का विकल्प खुला रखेगा। 
  • परमाणु एवं प्रक्षेपास्त्र संबंधी सामग्री तथा प्रौद्योगिकी के निर्यात पर कड़ा नियंत्रण जारी रहेगा तथा परमाणु परीक्षणों पर रोक जारी रहेगी।
  • भारत परमाणु मुक्त विश्व बनाने की वैश्विक पहल का समर्थन करता रहेगा तथा भेदभाव मुक्त परमाणु निःशस्त्रीकरण के विचार को आगे बढ़ाएगा।

विश्वसनीय न्यूनतम निरोध (Credible Minimum Deterrence : CMD)

यह भारत के परमाणु सिद्धांत का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है, जो संभावित परमाणु विरोधियों को रोकने के लिए भारत को आवश्यक परमाणु बलों की मात्रा को संदर्भित करता है।

न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी

  • इसके अंतर्गत प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक राजनीतिक परिषद् एवं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) की अध्यक्षता में एक कार्यकारी परिषद् होती है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी को निर्णय लेने के लिए जरूरी सूचनाएँ उपलब्ध कराते हैं तथा राजनीतिक परिषद् द्वारा दिए गए निर्देशों का क्रियान्वयन करते हैं।

परमाणु हथियार निःशस्त्रीकरण से संबंधित वैश्विक संगठन एवं संधियाँ

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA)

  • संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर विश्व में शांति व स्थिरता बनाए रखने के लिए परमाणु निःशस्त्रीकरण की मांग के प्रयासों को गति देते हुए वर्ष 1957 में इसका गठन किया गया।
  • यह परमाणु विज्ञान व प्रौद्योगिकी के सुरक्षित एवं शांतिपूर्ण उपयोग के लिए काम करता हैयह अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा तथा संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों में योगदान देता है। 

परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (Nuclear Suppliers Group : NSG)

  • 48 देशों के इस समूह की स्थापना भारत द्वारा वर्ष 1974 में किए गए परमाणु परीक्षण के प्रतिक्रियास्वरूप वर्ष 1975 में की गई थी।
  • यह समूह परमाणु हथियार निरस्त्रीकरण के लिए प्रयासरत है तथा शस्त्र निर्माण योग्य सामग्री के निर्यात एवं पुनः हस्तांतरण को नियंत्रित करता है। 
    • इसका वास्तविक लक्ष्य है कि जिन देशों के पास नाभिकीय क्षमता नहीं है, वे इसे अर्जित न कर सकें।
  • यह समूह ऐसे परमाणु उपकरण, सामग्री एवं प्रौद्योगिकी के निर्यात पर रोक लगाता है जिसका प्रयोग परमाणु हथियार के निर्माण में होता है। इस प्रकार, यह परमाणु प्रसार को रोकता है।

भारत के लिए परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की सदस्यता की आवश्यकता

  • देश में ऊर्जा की मांग पूरी करने के लिए भारत का इस ग्रुप में प्रवेश जरूरी है।
  • एन.एस.जी. की सदस्यता मिलने से भारत परमाणु प्रौद्योगिकी के साथ-साथ यूरेनियम भी बिना किसी विशेष समझौते के प्राप्त कर सकेगा।
  • परमाणु संयंत्र अपशिष्ट के निस्तारण में भी सदस्य राष्ट्रों से मदद मिलेगी।
  • हालाँकि, परमाणु हथियारों के शांतिपूर्ण उपयोग के प्रति भारत की प्रतिबद्धता एवं नो फर्स्ट यूज़ पॉलिसी के कारण परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह के 45 सदस्य (अमेरिका सहित) भारत से द्विपक्षीय परमाणु समझौता करने पर सहमत हैं अर्थात वे चाहे तो भारत से द्विपक्षीय समझौता कर सकते हैं। 
    • यह प्रस्ताव अमेरिका ने प्रस्तुत किया था।
  • इसी के अंतर्गत भारत ने अमेरिका एवं फ्रांस के साथ परमाणु समझौता किया है जबकि ऑस्ट्रेलिया एवं जापान के साथ परमाणु समझौते को लेकर बातचीत जारी है।
    • फ्रांसीसी परमाणु कंपनी अरेवा द्वारा महाराष्ट्र के जैतापुर में परमाणु बिजली संयंत्र स्थापित किया जा रहा है।
    • अमेरिकी कंपनियां गुजरात के मिठी वर्डी और आंध्र प्रदेश के कोवाडा में संयंत्र स्थापित करने की तैयारी में है।

एन.एस.जी. सदस्यता की प्रक्रिया 

    • यद्यपि एन.एस.जी. की सदस्यता सभी देशों के लिए उपलब्ध है किंतु नए सदस्यों को कुछ नियम मानने होते हैं।
    • केवल उन्हीं देशों को सदस्यता प्राप्त होती है जिन्होंने एन.पी.टी. या सी.टी.बी.टी. जैसी संधियों पर हस्ताक्षर किया है।

परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty : NPT), 1968

  • 1 जुलाई, 1968 को परमाणु अप्रसार संधि संपन्न हुई और मार्च 1970 में यह संधि कार्यशील हुई। पाँच परमाणु हथियार संपन्न राज्यों (राष्ट्रों) सहित कुल 191 राज्य इस संधि में शामिल हैं। 
  • इस बहुपक्षीय संधि का उद्देश्य परमाणु हथियारों के प्रसार को सीमित करना है जिसमें तीन तत्व शामिल हैं : (1) अप्रसार (2) निरस्त्रीकरण (3) परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग। 
    • अप्रसार अर्थात परमाणु हथियार रहित देश इन्हें हासिल नहीं करेंगे।
    • निरस्त्रीकरण अर्थात परमाणु हथियार संपन्न राज्य निरस्त्रीकरण का प्रयास करेंगे।
    • शांतिपूर्ण उपयोग अर्थात सुरक्षा उपायों के तहत सभी राज्य शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सकते हैं।
  • भेदभावपूर्ण नीतियों के कारण ही भारत उन पाँच देशों में शामिल है जिन्होंने या तो इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं अथवा बाद में इस संधि से बाहर हो गए हैं। 
    • भारत के अतिरिक्त इस संधि में पाकिस्तान, इजराइल, उत्तर कोरिया एवं दक्षिण सूडान शामिल नहीं हैं।

व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि ( Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty : CTBT)

  • व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि (CTBT) सभी परमाणु विस्फोटों को प्रतिबंधित करती है। यह संधि 24 सितंबर, 1996 को अस्तित्व में आयी। 
  • उस समय इस पर 71 देशों ने हस्ताक्षर किया था। अब तक इस पर 181 देशों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। भारत इसका सदस्य नहीं है।

जैविक हथियार अभिसमय (Biological Weapons Convention)

  • यह 26 मार्च, 1975 को लागू हुआ। यह वर्ष 1925 जिनेवा प्रोटोकॉल का पूरक है जिसने केवल जैविक हथियारों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया था। 
  • यह जैविक एवं विषैले हथियारों के विकास, उत्पादन, अधिग्रहण, हस्तांतरण, भंडारण व उपयोग को प्रभावी ढंग से प्रतिबंधित करता है। 
  • भारत सहित इसके सदस्यों की संख्या 183 है। 

रासायनिक हथियार अभिसमय (Chemical Weapon Convention)

  • रासायनिक हथियार अभिसमय एक सार्वभौमिक गैर-भेदभावपूर्ण, बहुपक्षीय, निरस्त्रीकरण संधि है जो सभी रासायनिक हथियारों के विकास, उत्पादन, अधिग्रहण, हस्तांतरण, उपयोग एवं भंडारण को प्रतिबंधित करता है। 
  • भारत रासायनिक हथियार निषेध संगठन (OPCW) के रासायनिक हथियार अभिसमय (CWC) का एक हस्ताक्षरकर्ता एवं पक्षकार हैं। इसका मुख्यालय द हेग, नीदरलैंड में है।
  • भारत ने 14 जनवरी, 1993 को पेरिस में संधि पर हस्ताक्षर किए। इस अभिसमय के अनुसार, भारत ने रासायनिक हथियार अभिसमय अधिनियम, 2000 को अधिनियमित किया। 

ऑस्ट्रेलियाई समूह (AUSTRALIAN GROUP)

ऑस्ट्रेलिया समूह एक अनौपचारिक संघ है जिसका उद्देश्य रासायनिक एवं जैविक हथियारों के प्रसार जोखिम को कम करने के लिए राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण कानूनों का समन्वय करना है। भारत द्वारा वर्ष 2018 में इस समूह में शामिल होने के साथ अब इसमें 43 सदस्य हैं।

वासेनार व्यवस्था (WG)

यह एक स्वैच्छिक निर्यात नियंत्रण व्यवस्था है। जुलाई 1996 में औपचारिक रूप से स्थापित इस व्यवस्था में 42 सदस्य हैं जो पारंपरिक हथियारों एवं दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं व प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण पर जानकारी का आदान-प्रदान करते हैं। भारत ने आधिकारिक तौर पर 1 जनवरी, 2023 को इसकी अध्यक्षता ग्रहण की।

मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR) 

यह एक बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था है। यह 35 सदस्य देशों के मध्य एक अनौपचारिक राजनीतिक समझ है जो मिसाइलों एवं मिसाइल प्रौद्योगिकी के प्रसार को सीमित करना चाहता है। इसका गठन वर्ष 1987 में G-7 औद्योगिक देशों ने किया था। 27 जून, 2016 को भारत इसका पूर्ण सदस्य बना।

भारत की परमाणु नीति में परिवर्तन की आवश्यकता 

परमाणु नीति परिवर्तन के पक्ष में तर्क 

  • ‘नो फर्स्ट यूज़ पॉलिसी’ के परिणाम नुकसानदायक हो सकते हैं और भारत की जनसंख्या, शहर एवं बुनियादी ढांचे को क्षति पहुँच सकती है।
  • अधिकांश रिपोर्ट्स के अनुसार पाकिस्तान लगातार अपनी परमाणु क्षमता में वृद्धि कर रहा है। उसके पास वर्तमान में भारत से भी अधिक परमाणु हथियार हैं।
  • परमाणु नीति सिद्धांत में पर्याप्त संशोधन करने से भारतीय सुरक्षा को अधिक लाभ मिल सकता है क्योंकि नो फर्स्ट यूज़ पॉलिसी पाकिस्तान द्वारा छद्म रूप से उप-पारंपरिक युद्ध (आतंकवाद) का मुकाबला नहीं कर पाएगी। 
  • भारत का पड़ोसी देश चीन भी परमाणु शक्ति संपन्न हैं। ऐसे में भारत की नीति में परिवर्तन भारत की सुरक्षा में वृद्धि करेगा।
    • हिमालयी क्षेत्र में चीन के लगातार बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत में कुछ सामरिक विश्लेषक के अनुसार देश को ‘नो फर्स्ट यूज पॉलिसी’ का परित्याग करना चाहिए।
  • परमाणु हथियारों के ‘नो फर्स्ट यूज’ के विचार को कुछ परमाणु हथियार संपन्न राज्यों ने खारिज कर दिया है और अधिकांश ने इसे केवल घोषणा के स्तर पर स्वीकार किया गया है जबकि अन्य सभी ने इसे नहीं स्वीकार नहीं किया है।

परमाणु नीति परिवर्तन के विपक्ष में तर्क 

  • यह नीति हथियारों की होड़ को रोककर परमाणु हथियार उपयोग की संभावना को सीमित करती है। 
  • यह ग्लोबल नो फर्स्ट यूज़ (GNFU) व्यवस्था की दिशा में संयुक्त रूप से काम करने के लिए चीन के साथ सहयोग का अवसर प्रस्तुत करती है।
  • एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में भारत की छवि उसकी परमाणु कूटनीति के केंद्र में है जिसने भारत को वैश्विक मुख्यधारा में स्वीकार किया जाता है।
  • यह सामरिक हथियारों तथा एक जटिल कमांड एवं नियंत्रण प्रणाली के बिना नियंत्रित परमाणु हथियार कार्यक्रम की सुविधा प्रदान करता है।
  • यह नीति एन.एस.जी. और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सदस्यता हासिल करने के भारत के प्रयासों को मजबूत कर सकता है।

निष्कर्ष

हाल ही में भारत के रक्षा मंत्री के बयान के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में भारत की परमाणु नीति में बदलाव हो सकता है। हालाँकि, भारत ने हमेशा से दुनिया को परमाणु हथियार विहीन बनाने के पक्ष में बात की है। परमाणु युद्ध एक भयावह स्थिति है क्योंकि इसमें कोई पक्ष विजेता नहीं होता है। परमाणु हथियार राजनीतिक प्रकृति के होते हैं और इन्हें रोकना ही भारत का एकमात्र उद्देश्य रहा है। 

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