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स्थगन प्रस्ताव, नियम 267: संसद में तत्काल चर्चा कराने के तरीके

प्रारम्भिक परीक्षा - स्थगन प्रस्ताव, नियम 267
मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र - 2

पृष्ठभूमि

  • स्थगन प्रस्ताव एक प्रकार से सरकार की निंदा है। इसकी उत्पत्ति यूनाइटेड किंगडम में हाउस ऑफ कॉमन्स में हुई थी । भारत में इसकी शुरुआत भारत सरकार अधिनियम,1919 के तहत हुई थी ।
  • केंद्रीय विधानसभा और विधान परिषद के सदस्य अपने सदनों में स्थगन प्रस्ताव पेश कर सकते थे।
  • इन सदनों के पीठासीन अधिकारियों ने स्थगन प्रस्तावों की अनुमति दी क्योंकि सदस्यों के पास अत्यावश्यक सार्वजनिक महत्व के मामलों को उठाने के लिए अन्य प्रक्रियात्मक उपकरण नहीं थे।
  • चूंकि ब्रिटिश प्रशासन विधायिका के नियंत्रण में नहीं था, इसलिए यह सदस्यों के लिए किसी विशेष गंभीर मामले पर अपनी चिंता व्यक्त करने के कुछ प्रक्रियात्मक उपायों में से एक था।

स्वतंत्र भारत में प्रारंभ

  • 1952 में लोकसभा और राज्यसभा ने अपने-अपने प्रक्रिया नियम प्रकाशित किये।
  • इन नियमों में यह विवरण दिया गया कि दोनों सदन कैसे कार्य करेंगे। साथ ही, विभिन्न प्रक्रियात्मक तंत्रों को भी निर्दिष्ट किया, जिसके तहत संसद सदस्य (सांसद) दोनों विधायी सदनों के कामकाज में भाग ले सकते हैं। 
  • पिछले सात दशकों में ये नियम बदल गए हैं, लेकिन बुनियादी सिद्धांत आज भी अपरिवर्तित हैं।

स्थगन प्रस्ताव का प्रयोग

  • सदन में मामले उठाने के लिए सांसदों को पीठासीन अधिकारियों (राज्यसभा के सभापति और लोकसभा अध्यक्ष) को पहले से सूचित करना होगा। सूचित करने कि आवश्यकता इसलिए है कि सरकार सांसदों को जवाब देने के लिए आवश्यक जानकारी एकत्र कर सके ।
  • सरकार के पास विधेयकों और बजटों का भी अपना एजेंडा है। इसमें भी पहले से जानकारी देना जरूरी है ताकि सांसद बहस के लिए खुद को तैयार कर सकें।

  • प्रत्येक सदन का सचिवालय सरकार और व्यक्तिगत सांसदों के नोटिस को संसद में एक दिन के कामकाज की सूची में संकलित करता है।

  • सांसद केवल उस मामले पर चर्चा कर सकते हैं जो दिन के कामकाज की सूची में है।

स्थगन प्रस्ताव का महत्त्व

  • निर्धारित कार्य को स्थगन प्रस्ताव नामक एक प्रक्रियात्मक तंत्र से अलग रखा जा सकता है।
  • लोकसभा में यह नियम एक सांसद को अत्यावश्यक सार्वजनिक महत्व के मामले पर चर्चा करने की अनुमति देता है।
  • स्पीकर को यह तय करना होगा कि सांसद को प्रस्ताव पेश करने की अनुमति दी जाए या नहीं।
  • इसके परिणामस्वरूप सदन को इस अत्यावश्यक मामले पर चर्चा करने के लिए कार्य की अपनी निर्धारित सूची को रद्द कर दिया जाता है ।

असाधारण शक्ति

  • भारतीय संविधान के पारित होने के बाद दो परिवर्तन आये।

  • पहला , मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी हो गई। परिणामस्वरूप, 1952 में स्थगन प्रस्ताव को लोकसभा नियम पुस्तिका में स्थान मिला। इसलिए इसे राज्यसभा से बाहर कर दिया गया।

  • दूसरा, सदस्यों द्वारा स्थगन प्रस्तावों के प्रयोग पर लोकसभा अध्यक्षों का दृष्टिकोण था।

  • लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष ने स्थगन प्रस्ताव को असाधारण कहा। उनका मानना था कि सदस्यों को इस प्रक्रियात्मक उपकरण का सहारा लेना चाहिए। जब अवसर इस तरह का हो कि कुछ गंभीर मुद्दा हो,जो पूरे देश की सुरक्षा एवं देश हितों को प्रभावित करता है, तो तुरंत इस पर सदन को ध्यान देना चाहिए ।

  • अब स्थितियां पूरी तरह से बदल गई हैं। इसलिए इस व्यवस्था में विभिन्न अवसरों पर सरकार को उत्तरदायी और जिम्मेदार बनाने के लिए साथ ही साथ किसी भी महत्वपूर्ण मामले पर चर्चा शुरू करने के लिए स्थगन प्रस्ताव को एक सामान्य उपकरण के रूप में नहीं देख सकते हैं।

स्थगन प्रस्ताव के प्रति अनिच्छा

  • सांसदों के लिए जरूरी मामलों को उठाने के लिए नियम पुस्तिका में अन्य प्रक्रियात्मक उपकरणों की उपलब्धता के कारण लोकसभा अध्यक्ष स्थगन प्रस्तावों की अनुमति देने में अनिच्छुक ही रहे हैं।
  • अधिकांश लोकसभाओं ने स्थगन प्रस्तावों पर अपना 3% से भी कम समय खर्च किया है।
  • एकमात्र अपवाद 9वीं लोकसभा थी, जिसने अपना लगभग 5% (36 घंटे) समय इस पर खर्च किया। अपने अल्पकालिक कार्यकाल के दौरान इस लोकसभा ने पंजाब में आतंकवादी गतिविधियों, राजनीति के अपराधीकरण और मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के निर्णय से उत्पन्न हिंसा जैसे विषयों पर आठ स्थगन प्रस्ताव लाए गए थे ।

राज्यसभा में विकल्प

  • राज्यसभा नियम पुस्तिका स्थगन प्रस्ताव का प्रावधान नहीं करती है। वर्षों से, राज्यसभा सांसद जरूरी मामलों को उठाने के लिए सदन में प्रश्नकाल को निलंबित करने के लिए नियम 267 का इस्तेमाल करते रहे हैं।
  • 1952 में, इस नियम में कहा गया था, कोई भी सदस्य, अध्यक्ष की सहमति से, यह प्रस्ताव कर सकता है कि परिषद के समक्ष किसी विशेष प्रस्ताव पर लागू होने पर किसी भी नियम को निलंबित किया जा सकता है और यदि प्रस्ताव पारित हो जाता है तो विचाराधीन नियम को कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया जाएगा।

नियम 267 में बदलाव

  • वर्ष 2000 में राज्यसभा की नियम समिति ने इस नियम में संशोधन कर दिया।
  • समिति में राज्यसभा के तत्कालीन सभापति कृष्णकांत ,डॉ. मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी, अरुण शौरी, एम वेंकैया नायडू, स्वराज कौशल और फली नरीमन जैसे 15 अन्य राज्यसभा सांसद शामिल थे।
  • समिति ने पाया कि सांसद नियम 267 का उपयोग किसी विशेष दिन के एजेंडे में सूचीबद्ध नहीं किए गए मामले पर या अभी तक स्वीकार नहीं किए गए विषय पर चर्चा के लिए कर रहे थे।
  • इसलिए समिति ने नियम 267 को कड़ा करने के लिए एक संशोधन की सिफारिश की।
  • इसमें एक प्रावधान भी जोड़ा गया है कि यदि मौजूदा प्रक्रिया में नियमों को निलंबित करने की अनुमति है (जैसे प्रश्नकाल का निलंबन) तो सांसद नियम 267 का उपयोग नहीं कर सकता है।
  • इसलिए अब 267 का उपयोग केवल नियम को निलंबित करने के लिए किया जा सकता है, केवल उन मामलों को लेने के लिए जो पहले से ही कार्यसूची में हैं।

प्रश्न : निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए

1. स्थगन प्रस्ताव लोक सभा सांसद को अत्यावश्यक सार्वजनिक महत्व के मामले पर चर्चा करने की अनुमति देता है।
2. भारत में इसकी शुरुआत 1935 के भारत सरकार अधिनियम के तहत हुई।
3. नियम 267 राज्यसभा में स्थगन प्रस्ताव का प्रावधान करती है।

उपर्युक्त में से कितने कथन सही हैं?
(a) केवल कथन 1
(b) केवल कथन 2
(c) सभी तीनों

(d) कोई भी नहीं

उत्तर: (a)

मुख्य परीक्षा प्रश्न : स्थगन प्रस्ताव से क्या आशय है ? यह क्यों महत्वपूर्ण है? चर्चा कीजिए ।

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