(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : संघीय ढाँचे से सम्बंधित विषय एवं चुनौतियाँ)
पृष्ठभूमि
हाल ही में राष्ट्रपति द्वारा कृषि विधेयकों को मंज़ूरी प्रदान कर दी गई है। छत्तीसगढ़ और पंजाब सहित कुछ राज्यों ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि वे नए कानूनों को लागू नहीं कर सकते हैं। साथ ही केरल और पंजाब ने इसको उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने का इरादा जताया है। इससे सम्बंधित प्रमुख और मूल प्रश्न है कि क्या कानूनों का अधिनियमित होना संघीय सिद्धांत का उल्लंघन है?
कानून के पक्ष और विपक्ष में तर्क
- सरकार का दावा है कि ये अधिनियम भारतीय कृषि क्षेत्र में परिवर्तन लाएंगें और निजी निवेश को आकर्षित करेंगे।
- किसानों का (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अनुबंध अधिनियम, 2020 अनुबंध खेती के लिये आधार प्रदान करता है, जिसके अंतर्गत किसान कॉर्पोरेट निवेशकों के साथ अनुबंध के तहत फसलों का उत्पादन कर सकेंगें।
- किसानों को डर है कि प्रभावशाली निवेशक उन्हें बड़े कॉर्पोरेट कानून फर्मों द्वारा तैयार किये गए प्रतिकूल अनुबंधों के लिये बाध्य करेंगे और इसमें देयताओं व दायित्त्वों से सम्बंधित ज़्यादातर मामलें किसानों की समझ से परे होंगें।
- सरकार के अनुसार यह विधेयक किसानों को अपनी उपज को कहीं भी बेचने की स्वतंत्रता देता है।विपक्ष का कहना है कि इससे कृषि का निगमीकरण होगा।
- पंजाब और हरियाणा इस विरोध के केंद्रबिंदु है। यहाँ पर बाज़ार शुल्क, ग्रामीण विकास शुल्क और आढ़तिया कमीशन 2 से 3 प्रतिशत के बीच है। ये इन राज्यों में राजस्व के बड़े स्रोत हैं। राज्यों को नए कानूनों के तहत ए.पी.एम.सी.क्षेत्रों के बाहर बाज़ार शुल्क/उपकर लगाने की अनुमति नहीं है, जिससे अनुमानत: पंजाब और हरियाणा को क्रमश: 3,500 करोड़ रुपये और 1,600 करोड़ रुपये की क्षति हो सकती हैं।
कानूनों की संवैधानिकता सम्बंधी सवाल
- ‘भारत संघ बनाम एच. डी. फिलोन’ (वर्ष 1972) मामले के अनुसार, संसदीय कानूनों की वैधानिकता को केवल दो आधारों पर चुनौती दी जा सकती है।पहला वह विषय राज्य सूची में शामिल हो तथा दूसरा वह कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो।
- आम तौर पर सर्वोच्च न्यायालय संसदीय कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक नहीं लगाता है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सी.ए.ए. और यू.ए.पी.ए.पर भी रोक नहीं लगाई गई थी।
- कृषि सम्बंधी दोनों अधिनियमों के उद्देश्यों और कारणों के विवरण में उस संवैधानिक प्रावधान का उल्लेख नहीं किया गया है, जिसके तहत संसद को इन विषयों पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है।
संघवाद का मुद्दा
- संघवाद का वास्तविक मतलब यह है कि केंद्र और राज्यको एक-दूसरे के मध्य समन्वय के साथ उनके लिये आवंटित क्षेत्रों में कार्य करने की स्वतंत्रता है।सातवीं अनुसूची मेंकेंद्र और राज्यों के बीच शक्ति का वितरणकरने वाली तीन सूचियाँहैं।
- संघ सूची में 97 विषय हैं, जिन पर संसद को अनुच्छेद 246 के अनुसार कानून बनाने की विशेष शक्ति है। राज्य सूची में 66 विषय हैं। समवर्ती सूची में 47 विषय हैं, जिन पर केंद्र और राज्य दोनों ही कानून बना सकते हैं परंतु अनुच्छेद 254 के अनुसार किसी मतभेद की स्थिति में संसद द्वारा बनाया गया कानून लागू होता है।
- संसद संविधान में निर्धारित कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बना सकती है।
- ‘पश्चिम बंगाल राज्य बनाम भारत संघ’(वर्ष 1962) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि भारतीय संविधान संघीय नहीं है। हालाँकि, ‘एस. आर.बोम्मई बनाम भारत संघ’ (वर्ष1994) मामले में नौ-न्यायाधीशों वाली बेंच ने संघवाद को संविधान के बुनियादी ढ़ाँचे का हिस्सा बताया।
- केंद्र व राज्य से सम्बंधित विधाई शक्तियों का उल्लेख अनुच्छेद 245 से 254 में किया गया है। राज्य की स्थिति संविधान संरचना में संघीय है और वह अपने विधायी व कार्यकारी शक्ति के मामलें में स्वतंत्र है।
विधायी शक्तियों की योजना और कृषि
- संघ सूची में कृषि से सम्बंधित आय और परिसम्पत्तियों को छोड़कर अन्य विषयों पर कर और शुल्क लगाने का प्रावधान है।
- राज्य सूची में कृषि शिक्षा, अनुसंधान व बीमारी, भूमि पर अधिकार, पट्टेदारी,कृषि भूमि का हस्तांतरण और कृषि ऋण का उल्लेख है। साथ ही बाज़ार, कृषि ऋणग्रस्तता से मुक्ति,भूमि राजस्व, भूमि रिकॉर्ड,कृषि आय पर कर, कृषि भूमि का उत्तराधिकार और कृषि भूमि के सम्बंध में सम्पत्ति शुल्क का भी उल्लेख है।
- यह स्पष्ट है कि केंद्रीय सूची और समवर्ती सूची कृषि से सम्बंधित मामलों को संसद के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखती हैतथा राज्य विधान सभाओं को विशेष शक्ति प्रदान करती है।
समवर्ती सूची की प्रविष्टि के अधीन राज्य सूची की प्रविष्टि
- समवर्ती सूची में व्यापार और वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति और घरेलू तथा आयातित उत्पादों के वितरण का उल्लेख है, जिस पर संसद का सार्वजनिक हित के संदर्भ में नियंत्रण है। इसमें तिलहन और तेल सहित खाद्य पदार्थों, पशुओं के चारे,कच्चे कपास और जूटभी शामिल हैं।
- इसलिये केंद्र तर्क दे सकता है कि अनुबंध कृषि और अंत:राज्य व अंतर-राज्य व्यापार पर कानूनों को पारित करना और राज्यों को ए.पी.एम.सी. क्षेत्रों के बाहर शुल्क/उपकर लगाने से रोकना उसकी शक्तियों के अंतर्गत आता है।
- हालाँकि,शिक्षा की तरहखेती भी एक व्यवसाय ही है, न कि व्यापार या वाणिज्य। यदि खाद्य पदार्थों को कृषि का पर्याय माना जाता है,तो कृषि के सम्बंध में राज्यों की सभी शक्तियाँ निरर्थक हो जाएंगी।
- ‘राजस्थान राज्य बनाम जी. चावला’ (वर्ष 1959) जैसे मामलों में अदालतों ने सूचियों की प्रविष्टियों के बीच ओवरलैप होने वाले कानून के चरित्र व स्थिति को निर्धारित करने हेतु ‘तत्त्व व सार’ (Pith and Substance) के
सिद्धांत का उपयोग किया है।
- यदि कोई विषय किसी एक सूची में काफी हद तक कवर होता हैऔर दूसरी सूची में केवल प्रसंगवश शामिल है, तो कानून की संवैधानिकता को पहली सूची के अनुसार बरकरार रखा जाता है। हालाँकि, दो नए कृषि अधिनियम उससे परे हैं और वे राज्य सूची में प्रविष्टियों पर लागू होते हैं।
- सूचियों की व्याख्या करने में‘बिहार बनाम कामेश्वर सिंह’ (वर्ष1952) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘छद्म विधायन’ (ColourableLegislation) के सिद्धांत को लागू किया, जिसका अर्थ है कि आप अप्रत्यक्ष रूप से वह नहीं कर सकते जो प्रत्यक्ष रूप से कर सकते हैं।
- ‘आई.टी.सी. लि.बनाम APMC ’मामले (वर्ष 2002) में उच्चतम न्यायालय ने कृषि उपज विपणन से सम्बंधित कई राज्य कानूनों की वैधता को बरकरार रखा और कहा कि कच्चे माल या गतिविधि, जिसमें निर्माण या उत्पादन शामिल नहीं है, को 'उद्योग' के तहत कवर नहीं किया जा सकता है।
सरकार का पक्ष
- अशोक दलवई और रमेश चंद की अध्यक्षता वाली समितियों ने सिफारिश की कि 'कृषि बाज़ार' को समवर्ती सूची में रखा जाए। सिफारिशों में यह निहित है कि समवर्ती सूची की प्रविष्टि के तहत ‘खाद्य पदार्थ’ कृषि बाज़ारों पर कानून बनाने के लिये संसद को समर्थ नहीं करता है।
- वर्ष 2015 में सरकार ने लोकसभा को बताया कि ‘राष्ट्रीय किसान आयोग’(स्वामीनाथन आयोग) ने ‘कृषि बाज़ार’को समवर्ती सूची में शामिल करने की सिफारिश की थी। हालाँकि, मार्च 2018 में सरकार ने फिर से लोकसभा को बताया कि उसका 'कृषि बाज़ार' को समवर्ती सूची में सम्मिलित करने का कोई इरादा नहीं है।
निष्कर्ष
राज्य सूची में कृषि के सम्बंध में कोई भी प्रविष्टि, संघ या समवर्ती सूची में किसी भी प्रविष्टि के अधीन नहीं है। संविधानवाद और शक्तियों के पृथक्करण की तरह संघवाद का उल्लेख संविधान में नहीं हैलेकिन यह भारत की संवैधानिक योजना का सार है।
प्री फैक्ट :
I. किसानों का (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अनुबंध अधिनियम, 2020 अनुबंध खेती के लिये आधार प्रदान करता है।
II. पंजाब और हरियाणा में बाज़ार शुल्क, ग्रामीण विकास शुल्क और आढ़तिया कमीशन 2 से 3 प्रतिशत के बीच है।
III. ‘भारत संघ बनाम एच. डी. फिलोन’ (वर्ष 1972) के अनुसार, संसदीय कानूनों की वैधानिकता को केवल दो आधारों पर चुनौती दी जा सकती है। ये आधार हैं- वह विषय राज्य सूची में शामिल हो या वह कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो।
IV. संघ सूची में 97 विषय हैं, जिन पर संसद को अनुच्छेद 246 के अनुसार कानून बनाने की विशेष शक्ति है। राज्य सूची में 66 विषय हैं। समवर्ती सूची में 47 विषय हैं, जिन पर केंद्र और राज्य दोनों ही कानून बना सकते हैं परंतु अनुच्छेद 254 के अनुसार किसी टकराव की स्थिति में संसद द्वारा बनाया गया कानून लागू होता है।
V. ‘बिहार बनाम कामेश्वर सिंह’ (वर्ष 1952) मामलें में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘छद्म विधायन’ (Colourable Legislation) के सिद्धांत को लागू किया, जिसका अर्थ है कि आप अप्रत्यक्ष रूप से वह नहीं कर सकते जो आपप्रत्यक्ष रूप से कर सकते हैं।
|