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कृषि विधेयक और किसान आंदोलन

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ,  आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, सम्बंधित विषय और बाधाएँ; किसानों की सहायता के लिये ई-प्रौद्योगिकी, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से सम्बंधित विषय)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संसद द्वारा कृषकों और कृषि गतिविधियों से सम्बंधित तीन विधेयकों को पारित किया गया।

पृष्ठभूमि

संसद द्वारा पारित ‘कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक’, ‘कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक’ एवं ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक’ को राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिल गई है। इन तीनों विधेयकों को 5 जून को अध्यादेशों के रूप में जारी किया गया था। इसके विरोध में प्रदर्शनकारियों की कोई एकीकृत माँग नहीं है, परंतु किसानों की मुख्य चिंता ‘व्यापार क्षेत्र’, ‘व्यापारी’, ‘विवाद समाधान’ और ‘बाज़ार शुल्क’ से सम्बंधित है।

विधेयक के मुख्य बिंदु :

  • प्रथम विधेयक के अनुसार, किसी राज्य के ‘कृषि उपज मंडी समिति’ (APMC) अधिनियम या राज्य के किसी अन्य कानून के तहत कोई भी बाज़ार शुल्क, उपकर या लगान किसी भी किसान पर या इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग और लेनदेन पर नहीं लगाया जाएगा।
  • दूसरे विधेयक में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की बात की गई है। यह निर्णय छोटे किसानों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। इसमें किसान किसी भी रोपण या फसली मौसम से पहले खरीदारों के साथ अनुबंध कर सकते हैं।
  • ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक’ के अनुसार, असाधारण परिस्थितियों, जैसे- युद्ध और गम्भीर प्राकृतिक आपदाओं को छोड़कर खाद्य पदार्थों के स्टॉकहोल्डिंग या भंडारण की सीमा खत्म कर दी गई है। इस विधेयक के ज़रिये अनाज, दलहन, खाद्य तेल, आलू और प्याज को अनिवार्य वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है, अर्थात अब इनका भंडारण किया जा सकेगा।

विधेयक के मुख्य प्रावधान :

1) कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक, 2020

  • यह विधेयक किसानों को उनकी उपज के विक्रय की स्वतंत्रता प्रदान करते हुए राज्यों की अधिसूचित मंडियों के अतिरिक्त राज्य के भीतर एवं बाहर देश के किसी भी स्थान पर निर्बाध रूप से बेचने के लिये अवसर एवं व्यवस्थाएँ प्रदान करेगा। इसके तहत किसान एवं व्यापारी कृषि उपज मंडी के बाहर भी अन्य माध्यम से उत्पादों का सरलतापूर्वक क्रय-विक्रय कर सकेंगे।
  • किसानों को उनके उत्पाद के लिये कोई उपकर नहीं देना होगा और उन्हें माल ढुलाई का खर्च भी वहन नहीं करना होगा।
  • विधेयक किसानों को ई-ट्रेडिंग मंच उपलब्ध कराएगा, जिससे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से निर्बाध व्यापार सुनिश्चित किया जा सके।
  • मंडियों के अतिरिक्त व्यापार क्षेत्र में फॉर्मगेट, कोल्ड स्टोरेज, वेयरहाउस, प्रसंस्करण इकाइयों पर भी व्यापार की स्वतंत्रता होगी।
  • किसान खरीददार से सीधे जुड़ सकेंगे, जिससे बिचौलियों को मिलने वाले लाभ की बजाय किसानों को उनके उत्पाद का पूरा व उचित मूल्य मिल सके।

सम्बंधित शंकाएँ

  • पहली शंका ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) पर अनाज की खरीद बंद हो जाने की है। हालाँकि, MSP पर पहले की तरह ही खरीद जारी रहेगी। आगामी रबी मौसम के लिये MSP भी घोषित की जा चुकी है।
  • दूसरी शंका है कि यदि कृषक उपज को पंजीकृत ‘कृषि उत्पाद बाज़ार समिति’ (APMC) के बाहर बेचेंगे तो मंडियाँ समाप्त हो जाएँगी। हालाँकि, वहाँ पूर्ववत व्यापार होता रहेगा। इस व्यवस्था में किसानों को मंडी के साथ ही अन्य स्थानों पर अपनी उपज बेचने का विकल्प प्राप्त होगा।
  • तीसरी शंका है कि कीमतें तय करने की कोई प्रणाली ना होने और निजी क्षेत्र की ज़्यादा हस्तक्षेप से समान कीमत तय करने में दिक्कत होगी। हालाँकि, सरकार का कहना है कि किसान देश में किसी भी बाज़ार या ऑनलाइन ट्रेडिंग से फसल बेच सकता है। कई विकल्पों से बेहतर कीमत मिलेगी। मंडियों में ई-नाम (e-NAM) ट्रेडिंग व्यवस्था भी जारी रहेगी। इलेक्ट्रॉनिक मंचों पर कृषि उत्पादों का व्यापार बढ़ेगा। इससे पारदर्शिता आएगी और समय की बचत होगी।

2) कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020

  • कृषकों को व्यापारियों, कम्पनियों, प्रसंस्करण इकाइयों, निर्यातकों से सीधे जोड़ना और कृषि करार के माध्यम से बुवाई से पूर्व ही किसान को उसकी उपज का मूल्य निर्धारित करना।
  • बुवाई से पूर्व किसान को मूल्य का आश्वासन और मूल्य वृद्धि होने पर न्यूनतम मूल्य के साथ अतिरिक्त लाभ।
  • इस विधेयक की मदद से बाज़ार की अनिश्चितता का जोखिम किसानों से हटकर प्रायोजकों पर चला जाएगा। मूल्य पूर्व में ही तय हो जाने से बाज़ार में कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव का प्रतिकूल प्रभाव किसान पर नहीं पड़ेगा।
  • इससे किसानों की पहुँच अत्याधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी, कृषि उपकरण एवं उन्नत खाद बीज तक होगी।
  • इससे विपणन की लागत कम होगी और किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित होगी।
  • किसी भी विवाद की स्थिति में उसका निपटारा 30 दिन के अंदर स्थानीय स्तर पर करने की व्यवस्था की गई है।
  • कृषि क्षेत्र में शोध एवं नई तकनीकी को बढ़ावा देना।

सम्बंधित शंकाएँ

  • पहली शंका है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किसानों का पक्ष कमज़ोर होगा और वे कीमतों का निर्धारण नहीं कर पाएँगे। हालाँकि, किसान को अनुंबध में पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी कि वह अपनी इच्छा के अनुरूप दाम तय कर उपज बेच सकेंगे । उन्हें अधिक-से-अधिक 3 दिन के भीतर भुगतान प्राप्त होगा।
  • दूसरी शंका है कि प्रायोजक द्वारा परहेज करने के कारण छोटे किसान अनुबंध कृषि (कांट्रेक्ट फार्मिंग) कर पाने में असमर्थ हो सकते हैं। इसके लिये देश में 10 हज़ार कृषक उत्पादक समूह का गठन किया जा रहा है। यह समूह छोटे किसानों को जोड़कर उनकी फसल को बाज़ार में उचित लाभ दिलाने की दिशा में कार्य करेंगे।

आंदोलन की व्यापकता

  • वर्तमान में यह आंदोलन काफी हद तक पंजाब व हरियाणा तक ही सीमित है। महाराष्ट्र में इसका स्वागत करते हुए इसको किसानों के लिये वित्तीय स्वतंत्रता की दिशा में पहला कदम बताया जा रहा है।
  • पंजाब और हरियाणा में भी किसान समूहों द्वारा विरोध का कारण मुख्य रूप से पहला विधेयक है, जो राज्य सरकार द्वारा विनियमित कृषि उपज बाज़ार समिति (APMC) के बाहर भी फसलों की बिक्री और खरीद की अनुमति देता है।
  • उनके पास सम्भवतः अन्य दो विधेयकों के विरोध का कोई वास्तविक मुद्दा नहीं है। सरकार का मानना है कि किसानों की अच्छी पैदावार होने के बावजूद कोल्ड स्टोरेज (शीत गृह) या निर्यात की सुविधाओं के अभाव में और आवश्यक वस्तु अधिनियम के चलते फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है।

विरोध का कारण

  • इन विधेयकों के विरोध के दो मूल कारण हैं। इसमें किसानों का एक वर्ग ऐसा है, जो APMC के एकाधिकार को खत्म या कम करने को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी अनाज खरीद की मौजूदा प्रणाली को समाप्त करने के एक अग्रग्रामी कदम के रूप में देखता है।
  • हालाँकि, विधेयक में MSP आधारित सरकारी खरीद को समाप्त करने या चरणबद्ध तरीके से खत्म करने के संकेत के रूप में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया है। किसान नेताओं का मानना ​​है कि नवीनतम सुधारों का असली उद्देश्य भारतीय खाद्य निगम के पुनर्गठन पर शांता कुमार की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति की सिफारिशों को लागू करना है।
  • वर्ष 2015 में प्रस्तुत इस रिपोर्ट में पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में भारतीय खाद्य निगम की सभी खरीद संचालन को राज्य सरकार की एजेंसियों को सौंपने को कहा गया था।
  • दूसरा विरोध मंडियों में राज्य सरकारों और आढ़तियों (कमीशन एजेंट) का है। उन्हें MSP के ऊपर लगभग 2.5% कमीशन प्राप्त होता है। ये भुगतान पिछले वर्ष पंजाब और हरियाणा में 2,000 करोड़ रुपए से अधिक रहा है।
  • इसके अतिरिक्त, राज्य APMC में उपज के मूल्यों के लेनदेन पर विभिन्न प्रकार की लेवी से भी पर्याप्त धन अर्जित करते हैं। पंजाब को मंडी शुल्क और 'ग्रामीण विकास' उपकर से लगभग 3,500-3,600 करोड़ रु. वार्षिक राजस्व प्राप्त होता है।

सरकार का तर्क

  • कृषि मंत्री के अनुसार, पहला विधेयक केवल APMC की भौतिक सीमाओं के बाहर ‘व्यापार क्षेत्रों’ पर लागू होता है। यह किसानों के लिये ‘अतिरिक्त विपणन चैनल’ के रूप में काम करेगा, साथ ही APMC अधिनियम भी जारी रहेगा।
  • विनियमित मंडियों के बाहर उपज बेचने की स्वतंत्रता से किसानों को उचित कीमत प्राप्त होगी, साथ ही यह APMC के संचालन की दक्षता में सुधार को भी प्रेरित करेगा।
  • APMC पहले की तरह मंडी शुल्क और अन्य शुल्क लगा सकती है ,परंतु ये शुल्क केवल उनके प्रमुख मार्केटिंग यार्ड या सब-यार्ड की भौतिक सीमा के भीतर होने वाले लेनदेन के सम्बंध में होंगे।
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के सम्बंध में चिंता है कि कॉरपोरेट या व्यापारी अपने अनुसार उर्वरक प्रयोग करने से ज़मीन बंजर भी हो सकती है, हालाँकि, इससे किसान को तय न्यूनतम मूल्य मिलेगा। कॉन्ट्रैक्ट किसान की फसल और अवसंरचना तक ही सीमित रहेगा और किसान की भूमि पर कोई नियंत्रण नहीं होगा। विवाद की स्थिति में ए.डी.एम. 30 दिन में फैसला देगा।

उद्देश्य व लाभ

  • इन विधेयकों का मूल उद्देश्य एक देश, एक कृषि बाज़ार की अवधारणा को बढ़ावा देना और APMC बाज़ारों की सीमाओं से बाहर किसानों को कारोबार के साथ ही अवसर मुहैया कराना है, जिससे किसानों को फसल की अच्छी कीमत मिल सके।
  • सरकार का कहना है कि ये सुधार किसानों को शोषण के भय के बिना समानता के आधार पर प्रोसेसर्स, एग्रीगेटर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम बनाएँगे।
  • इनसे किसानों पर बाज़ार की अनिश्चितता का जोखिम नहीं रहेगा। साथ ही किसानों की आधुनिक तकनीक और बेहतर इनपुट्स तक पहुँच भी सुनिश्चित होगी, जिससे किसानों की आय में सुधार होगा।
  • सरकार के अनुसार ये विधेयक किसानों की उपज की वैश्विक बाजारों में आपूर्ति के लिये ज़रूरी आपूर्ति चैन तैयार करने हेतु निजी क्षेत्र से निवेश आकर्षित करने में एक उत्प्रेरक के रूप में काम करेंगे।
  • किसानों की उच्च मूल्य वाली कृषि के लिये तकनीक और परामर्श तक पहुँच सुनिश्चित होगी, साथ ही उन्हें ऐसी फसलों के लिये तैयार बाज़ार भी मिलेगा।
  • बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी और किसानों को अपनी फसल का बेहतर मूल्य मिलेगा। हालाँकि, किसान नेताओं का कहना है कि अनुबंध में समय-सीमा तो बताई गई है, परंतु न्यूनतम समर्थन मूल्य का जिक्र नहीं किया गया है।
  • इन प्रावधानों से लेन-देन की लागत कम होगी और किसानों तथा व्यापारियों दोनों को लाभ होगा।

निष्कर्ष

नए कानून से कुछ बड़े किसानों और जमाखोरों को ज़्यादा लाभ होने की उम्मीद है, जबकि सरकार के अनुसार ये प्रावधान किसान, उपभोक्ता और व्यापारी सभी के लिये फायदेमंद होंगे। केंद्र मॉडल APMC अधिनियम, 2002-03 को लागू करने के लिये राज्यों को भी राजी कर रहा था, परंतु राज्यों ने इसे पूरी तरह से नहीं अपनाया, अत: केंद्र को यह रास्ता अपनाना पड़ा। लगभग सभी कृषि विशेषज्ञ और अर्थशास्त्री कृषि क्षेत्र में इन सुधारों के पक्ष में थे।

पी.टी. फैक्ट :

  • संसद द्वारा पारित तीनों विधेयक : कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक’, ‘कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक’ एवं ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक’ हैं।
  • अब किसान किसी भी रोपण या फसली मौसम से पहले खरीदारों के साथ अनुबंध कर सकते हैं। किसी भी विवाद की स्थिति में उसका निपटारा 30 दिन के अंदर स्थानीय स्तर पर करने की व्यवस्था की गई है।
  • किसान को अनुंबध में पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी और उन्हें अधिक-से-अधिक 3 दिन के भीतर भुगतान प्राप्त होगा।
  • छोटे किसान को अनुबंध कृषि (कांट्रेक्ट फार्मिंग) में सहायता के लिये देश में 10 हज़ार कृषक उत्पादक समूह का गठन किया जा रहा है।
  • असाधारण परिस्थितियों, जैसे- युद्ध और गम्भीर प्राकृतिक आपदाओं को छोड़कर खाद्य पदार्थों के स्टॉकहोल्डिंग या भंडारण की सीमा खत्म कर दी गई है।
  • किसानों को राज्यों की अधिसूचित मंडियों के अतिरिक्त राज्य के भीतर एवं बाहर देश के किसी भी स्थान पर निर्बाध रूप से उपज के विक्रय की स्वतंत्रता।
  • किसानों को उनके उत्पाद के लिये कोई उपकर नहीं देना होगा और उन्हें माल ढुलाई का खर्च भी वहन नहीं करना होगा।
  • विधेयक किसानों को ई-ट्रेडिंग मंच उपलब्ध कराएगा, जिससे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से निर्बाध व्यापार सुनिश्चित किया जा सके।
  • भारतीय खाद्य निगम के पुनर्गठन पर वर्ष 2015 में प्रस्तुत शांता कुमार की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति की सिफारिशों में पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में भारतीय खाद्य निगम की सभी खरीद संचालन को राज्य सरकार की एजेंसियों को सौंपने को कहा गया था।

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