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IAS Foundation New Batch, Starting from 27th Aug 2024, 06:30 PM | Optional Subject History / Geography | Call: 9555124124

कार्बन उत्सर्जन और दुनिया की जैवविविधता के नुकसान के लिए कृषि जिम्मेदार 

प्रारम्भिक परीक्षा- GM फसल, जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन, गरीबी एवं भूख से संबंधित विषय

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में ऑनलाइन विज्ञान पत्रिका आवर वर्ल्ड इन डाटा के एक रिसर्च के मुताबिक, पर्यावरण में एक चौथाई कार्बन उत्सर्जन और दुनिया की जैवविविधता के नुकसान के लिए खेती जिम्मेदार है। 

प्रमुख बिन्दु 

  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2057 तक विश्व की आबादी दस अरब होने की संभावना है। 
  • वर्ष 2057 तक वर्तमान खाद्य जरूरतों में 50 फीसदी बढ़ोत्तरी की आवश्यकता है ऐसे में जैवविविधता के नुकसान और जलवायु संकट की आपदा को कम करते हुए यह लक्ष्य हासिल करना मुश्किल है। 
  • विशेषज्ञों का मानना है कि इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दो अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं-
    • उपभोग को अधिक टिकाऊ बनाने के लिए हमें अपने आहार-संबंधी व्यवहार में बदलाव लाना होगा। 
    • हमें बेहतर तकनीक की जरूरत है जिससे खेती के लिए और अधिक पर्यावरण अनुकूल तरीके अपनाए जाएं। जैसे-जेनेटिक तकनीक से उत्पन्न फसलें।

दो अलग-अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता क्यों?

भोजन और कृषि के पर्यावरणीय प्रभाव

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प्रति किलोग्राम खाद्य उत्पादों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन

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GM फसलें क्या है?

  • जेनेटिक इजीनियरिंग के ज़रिये किसी भी जीव या पौधे के जीन को अन्य पौधों में डालकर एक नई फसल प्रजाति विकसित की जाती है 
  • जीएम फसल उन फसलों को कहा जाता है जिनके जीन को वैज्ञानिक तरीके से रूपांतरित किया जाता है।

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पृष्ठभूमि 

  • जीएम जीवों को पहली बार 1994 में अमेरिका में पेश किया गया था जिसके तहत टमाटर के ऐसे पौधे विकसित किए गए थे जिनमें लगने वाले फल देर से पकते थे और इस तरह वो देर तक पौधे पर लगे रहते थे
  • अब तक सोयाबीन, गेहूं, चावल जैसी तमाम फसलों को ज्यादा प्रोटीन उत्पादन के लिए जीएम बैक्टीरिया के साथ खेती करने की मंजूरी दी जा चुकी है

GM फसलों के लाभ

  • जेनेटिकली मोडिफाइड फसलों के बीजों में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग कर वांछित बदलाव किये जा सकते है। 
  • अधिक उत्पादकता, कम कार्बन उत्सर्जन 
  • फसल उत्पादन का स्तर में वृद्धि 
  • कम भूमि की आवश्यकता में अधिक पैदावार 
  • अत: ये फसलें सूखा-रोधी होती है, जिससे प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में भी इनका उत्पादन किया जा सकता है। 
  • इनमें कीटनाशक तथा फर्टिलाइजर डालने की भी आवश्यकता भी परंपरागत फसलों की तुलना में कम पड़ती है।

जीएम फसलों के नुकसान

  • इन फसलों का सबसे बड़ा नकारात्मक पक्ष है, कि इनके बीज फसलों से विकसित नहीं किए जा सकते, तथा बीजों का दोबारा प्रयोग नहीं किया जा सकता है। 
  • इनके बीजों को कंपनीयों से ही खरीदना पड़ता है, कंपनियां इन बीजों पर अपना एकाधिकार रखती हैं, तथा महंगे दामों पर बेचती हैं। 
  • इनकी वजह से फसलों की स्थानीय किस्मों के लिए खतरा पैदा हो जाता है, तथा जैव-विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

जीएम फसलों को लेकर विवाद

  • 2020 में हुए एक ओपिनियन पोल से पता चलता है कि करीब पचास फीसदी लोग जीएम खाद्य को असुरक्षित मानते हैं. यह ओपिनियन पोल करीब 20 देशों के लोगों पर किया गया था

भारत में उपयोग की जा रही GM फसलें

  • BT कपास (एकमात्र उपयोग की जा रही GM फसल), GM सरसों, BT बैंगन (विवादित)
  • गोल्डेन राइस भी एक जीएम किस्म है जिसमें विटामिन ए की मात्रा ज्यादा है 
  • इसे एशिया और अफ्रीका के उन हिस्सों के लिए खासतौर से विकसित किया गया है जहां भोजन में विटामिन ए की कमी है

भारत में जीएम फसलों को विनियमित करने वाले अधिनियम और नियम

  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 
  • जैविक विविधता अधिनियम, 2002 
  • खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 
  • औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम (8वां संशोधन), 1988

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC)

  • यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करती है।
  • यह पर्यावरण के दृष्टिकोण से अनुसंधान एवं औद्योगिक उत्पादन में सूक्ष्मजीवों और पुनः संयोजकों के उपयोग से जुड़ी गतिविधियों का मूल्यांकन करती है।
  • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों और उनसे प्राप्त उत्पादों के व्यावसायिक प्रयोग से पहले जीईएसी की मंजूरी अनिवार्य होती है।
  • यह भारत में खतरनाक सूक्ष्मजीवों या आनुवंशिक रूप से संसोधित जीवों के उपयोग, निर्माण, भंडारण, आयात और निर्यात को नियंत्रित करती है।
  • इस समिति के पास पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम,1986  के तहत दंडात्मक कार्रवाई करने का अधिकार भी है।
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