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आईपीसी, सीआरपीसी और इंडियन एवीडेंस एक्ट में संशोधन

प्रारंभिक परीक्षा - समसामयिकी, आईपीसी, सीआरपीसी , इंडियन एवीडेंस एक्ट, भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय साक्ष्य विधेयक
मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन, पेपर-2

संदर्भ-

  • केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने 11 अगस्त 2023को भारतीय न्याय संहिता, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 लोक सभा में पेश किया।

मुख्य बिंदु-

  • 15 अगस्त से आज़ादी का अमृत महोत्सव समाप्त होगा और 16 अगस्त से आज़ादी की 75 से 100 वर्षों की यात्रा शुरू होगी, जो निश्चित रूप से महान भारत की रचना करेगी।
  • प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा 15 अगस्त 2022 को देश के सामने रखे गए पांच प्रण में से एक प्रण था - गुलामी की सभी निशानियों को समाप्त करना। ये तीनों विधेयक एक प्रकार से मोदी जी के इस एक प्रण की अनुपालन करने वाले हैं।
  • ये तीनों पुराने कानून गुलामी की निशानियों से भरे हुए थे, इन्हें ब्रिटेन की संसद ने पारित किया था और हमने सिर्फ इन्हें अडॉप्ट किया था। 
  • इन कानूनों में पार्लियामेंट ऑफ यूनाइटेड किंगडम, प्रोविंशियल एक्ट, नोटिफिकेशन बाई द क्राउन रिप्रेज़ेन्टेटिव, लंदन गैज़ेट, ज्यूरी और बैरिस्टर, लाहौर गवर्नमेंट, कॉमनवेल्थ के प्रस्ताव, यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड पार्लियामेंट का ज़िक्र है।
  • कुल 475 जगह ग़ुलामी की इन निशानियों को समाप्त कर तीन नए कानून लाए गए हैं।
  • अंग्रेज़ों द्वारा बनाए गए और अंग्रेज़ी संसद द्वारा पारित किए गए इंडियन पीनल कोड, 1860, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (1898), 1973 और इंडियन एवीडेंस एक्ट, 1872 कानूनों को समाप्त कर तीन नए कानून लाए गए हैं।
  • इंडियन पीनल कोड, 1860 की जगह भारतीय न्याय संहिता, 2023 स्थापित होगा, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, 1898 की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और इंडियन एवीडेंस एक्ट, 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 स्थापित होगा।
  • समाप्त होने वाले ये तीनों कानून अंग्रेज़ी शासन को मज़बूत करने और उसकी रक्षा करने के लिए बनाए गए थे और उनका उद्देश्य दंड देने का था, न्याय देने का नहीं।
  • भारतीय नागरिकों को संविधान द्वारा दिए गए सभी अधिकारों की रक्षा करना इन नए कानूनों की आत्मा होगी। इनका उद्देश्य दंड देना नहीं बल्कि न्याय देना होगा।
  • भारतीय आत्मा के साथ बनाए गए इन तीनों कानूनों से क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा।
  • सरकार, शासन की जगह नागरिक को केन्द्र में लाने का बहुत बड़ा सैद्धांतिक निर्णय कर ये कानून लाई है।
  • प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 2019 में कहा था, अंग्रेज़ों के समय के बनाए गए जितने भी कानून जिस विभाग में भी हैं, उन पर पर्याप्त चर्चा और विचार कर आज के समय के अनुरूप और भारतीय समाज के हित में बनाना चाहिए।
  • 18 राज्यों, 6 संघशासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 16 हाई कोर्ट, 5 न्यायिक अकादमी, 22 विधि विश्वविद्यालय, 142 सांसद, लगभग 270 विधायकों और जनता ने इन नए कानूनों पर अपने सुझाव दिए हैं।
  • गृह मंत्री ने कहा कि 4 सालों तक इस कानून पर गहन विचार विमर्श हुआ और वे स्वयं इस पर हुई 158 बैठकों में उपस्थित रहे।
  • प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने  ‘नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी’ बनाने का एक ऐतिहासिक निर्णय लिया, जिससे दोष सिद्धि के प्रमाण को बढ़ाने में फॉरेंसिक साइंस को बढ़ावा दिया जा सके।
  • तीन साल बाद हर साल 33 हज़ार फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट्स और साइंटिस्ट्स देश को मिलेंगे. कानून में लक्ष्य रखा गया है कि दोष सिद्धि के प्रमाण (Conviction Ratio) को 90 प्रतिशत से ऊपर लेकर जाना है।
  • वर्ष 2027 से पहले देश की सभी अदालतों को कंप्यूटराइज़्ड कर दिया जाएगा। 

विधेयक के बारे में- 

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (जो CrPC को रिप्लेस करेगी) में अब 533 धाराएं रहेंगी। 160 धाराओं को बदल दिया गया है , 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 धाराओं को निरस्त किया गया है।
  • भारतीय न्याय संहिता (जो IPC को रिप्लेस करेगी) में पहले की 511 धाराओं के स्थान पर अब 356 धाराएं होंगी। 175 धाराओं में बदलाव किया गया है, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराओं को निरस्त किया गया है। 
  • भारतीय साक्ष्य विधेयक (जो Evidence Act को रिप्लेस करेगा) में पहले की 167 के स्थान पर अब 170 धाराएं होंगी। 23 धाराओं में बदलाव किया गया है, 1 नई धारा जोड़ी गई है और 5 धाराएं निरस्त की गई हैं।
  • कानून में दस्तावेज़ों की परिभाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड्स, ई-मेल, सर्वर लॉग्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप्स, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिवाइस पर उपलब्ध मेल, मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है।
  • FIR से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट और चार्जशीट से जजमेंट तक की सारी प्रक्रिया को डिजिटलाइज़ करने का प्रावधान इस कानून में किया गया है।
  • सर्च और ज़ब्ती के वक़्त वीडियोग्राफी को कंपल्सरी कर दिया गया है, जो केस का हिस्सा होगी और इससे निर्दोष नागरिकों को फंसाया नहीं जा सकेगा। पुलिस द्वारा ऐसी रिकॉर्डिंग के बिना कोई भी चार्जशीट वैध नहीं होगी 
  • 7 वर्ष या इससे अधिक सज़ा वाले अपराधों के क्राइम सीन पर फॉरेंसिक टीम की विज़िट को कंपल्सरी किया जा रहा है। इसके माध्यम से पुलिस के पास एक वैज्ञानिक साक्ष्य होगा जिसके बाद कोर्ट में दोषियों के बरी होने की संभावना बहुत कम हो जाएगी।
  • सरकार नागरिकों की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए आज़ादी के 75 सालों के बाद पहली बार ज़ीरो एफआईआर को शुरू करने जा रही है। अपराध कहीं भी हुआ हो उसे अपने थाना क्षेत्र के बाहर भी रजिस्टर किया जा सकेगा।
  • पहली बार ई-FIR का प्रावधान जोड़ा जा रहा है। हर ज़िले और पुलिस थाने में एक ऐसा पुलिस अधिकारी नामित किया जाएगा जो गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के परिवार को उसकी गिरफ्तारी के बारे में ऑनलाइन और व्यक्तिगत रूप से सूचना करेगा 
  • यौन हिंसा के मामले में पीड़ित का बयान कंपल्सरी कर दिया गया है और यौन उत्पीड़न के मामले में बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग भी अब कंपल्सरी कर दी गई है। 
  • पुलिस को 90 दिनों में शिकायत का स्टेटस और उसके बाद हर 15 दिनों में फरियादी को स्टेटस देना कंपल्सरी होगा 
  • पीड़ित को सुने बिना कोई भी सरकार 7 वर्ष या उससे अधिक के कारावास का केस वापस नहीं ले सकेगी। इससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा होगी। 
  • छोटे मामलों में समरी ट्रायल का दायरा भी बढ़ा दिया गया है। अब 3 साल तक की सज़ा वाले अपराध समरी ट्रायल में शामिल हो जाएंगे। इस अकेले प्रावधान से ही सेशन्स कोर्ट्स में 40 प्रतिशत से अधिक केस समाप्त हो जाएंगे। 
  • आरोप पत्र दाखिल करने के लिए 90 दिनों की समय सीमा तय कर दी गई है। परिस्थिति देखकर अदालत आगे 90 दिनों की परमीशन और दे सकेंगी। इस प्रकार 180 दिनों के अंदर जांच समाप्त कर ट्रायल के लिए भेज देना होगा 
  • कोर्ट अब आरोपित व्यक्ति को आरोप तय करने का नोटिस 60 दिनों में देने के लिए बाध्य होंगे। बहस पूरी होने के 30 दिनों के अंदर माननीय न्यायाधीश को फैसला देना होगा। इससे सालों तक निर्णय पेंडिंग नहीं रहेगा और फैसला 7 दिनों के अंदर ऑनलाइन उपलब्ध कराना होगा 
  • सिविल सर्वेंट या पुलिस अधिकारी के विरूद्ध ट्रायल के लिए सरकार को 120 दिनों के अंदर अनुमति पर फैसला करना होगा वरना इसे डीम्ड परमीशन माना जाएगा और ट्रायल शुरू कर दिया जाएगा 
  • घोषित अपराधियों की संपत्ति की कुर्की का भी प्रावधान है। अंतर्राज्यीय गिरोह और संगठित अपराधो के विरूद्ध अलग प्रकार की कठोर सज़ा का नया प्रावधान भी इस कानून में जोड़ा जा रहा है 
  • शादी, रोज़ग़ार और पदोन्नति के झूठे वादे और गलत पहचान के आधार पर यौन संबंध बनाने को पहली बार अपराध की श्रेणी में लाया गया है। गैंग रेप के सभी मामलों में 20 साल की सज़ा या आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है। 
  • 18 वर्ष से कम आयु की बच्चियों के साथ अपराध के मामले में मृत्यु दंड का भी प्रावधान रखा गया है। मॉब लिंचिग के लिए 7 साल, आजीवन कारावास और मृत्यु दंड के तीनों प्रावधान रखे गए हैं 
  • मोबाइल फोन या महिलाओं की चेन की स्नेचिंग के लिए कोई प्रावधान नहीं था, लेकिन अब इसके लिए भी प्रावधान रखा गया है 
  • हमेशा के लिए अपंगता आने या ब्रेन डेड होने की स्थिति में 10 साल या आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान किया गया है 
  • बच्चों के साथ अपराध करने वाले व्यक्ति के लिए सज़ा को 7 साल से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दिया गया है। अनेक अपराधों में जुर्माने की राशि को भी बढ़ाने का प्रावधान किया गया है। 
  • सज़ा माफी को राजनीतिक फायदे के लिए उपयोग करने के कई मामले देखे जाते थे। अब मृत्यु दंड को आजीवन कारावास, आजीवन कारावास को कम से कम 7 साल की सज़ा और 7 साल के कारावास को कम से कम 3 साल तक की सज़ा में ही बदला जा सकेगा और किसी भी गुनहगार को छोड़ा नहीं जाएगा 
  • सरकार राजद्रोह को पूरी तरह से समाप्त करने जा रही है क्योंकि भारत में लोकतंत्र है और सबको बोलने का अधिकार है 
  • पहले आतंकवाद की कोई व्याख्या नहीं थी, अब सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियां, अलगाववाद, भारत की एकता, संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देने जैसे अपराधों की पहली बार इस कानून में व्याख्या की गई है। 
  • अनुपस्थिति में ट्रायल के बारे में एक ऐतिहासिक फैसला किया है, सेशन कोर्ट के जज द्वारा भगोड़ा घोषित किए गए व्यक्ति की अनुपस्थिति में ट्रायल होगा और उसे सज़ा भी सुनाई जाएगी, चाहे वो दुनिया में कहीं भी छिपा हो, उसे सज़ा के खिलाफ अपील करने के लिए भारतीय कानून और अदालत की शरण में आना होगा।

समीक्षा- 

  • कौन सा कृत्य अपराध है और उसके लिए क्या सज़ा होनी चाहिए ये भारतीय दंड संहिता के तहत तय होता है।
  • दंड प्रक्रिया संहिता में गिरफ़्तारी, अन्वेषण और मुकदमा चलाने की विधि लिखी हुई है। 
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम बताता है कि केस के तथ्यों को कैसे साबित किया जाएगा, बयान कैसे दर्ज होंगे और सबूत पेश की जिम्मेदारी (बर्डन ऑफ़ प्रूफ़) किस पर होगी।
  • कानून में कुल 313 बदलाव किए गए हैं जो हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में एक आमूलचूल परिवर्तन लाएंगे और किसी को भी अधिकतम 3 वर्षों में न्याय मिल सकेगा।
  • इस कानून में महिलाओं और बच्चो का विशेष ध्यान रखा गया है, अपराधियों को सज़ा मिले ये सुनिश्चित किया गया है और पुलिस अपने अधिकारों का दुरुपयोग ना कर सके, ऐसे प्रावधान भी किए गए हैं 
  • एक तरफ राजद्रोह जैसे कानूनों को निरस्त किया गया है, तो दूसरी ओर धोखा देकर महिला का शोषण करने और मॉब लिंचिग जैसे जघन्य अपराधों के लिए दंड का प्रावधान एवं संगठित अपराधों तथा आतंकवाद पर नकेल कसने का काम भी किया है।
  • गृह मंत्री ने कहा कि इन कानूनों में आधुनिकतम तकनीकों को समाहित किया गया है।
  • दस्तावेज़ों के डिजिटलाइजेशन से अदालतों में लगने वाले कागज़ों के अंबार से मुक्ति मिलेगी।
  • अभी सिर्फ आरोपी की पेशी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हो सकती है, लेकिन अब पूरा ट्रायल, क्रॉस क्वेश्चनिंग (cross questioning) सहित, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से होगा।
  • शिकायतकर्ता और गवाहों का परीक्षण, जांच-पड़ताल और मुक़दमे में साक्ष्यों की रिकॉर्डिंग और उच्च न्यायालय के मुक़दमे और पूरी अपीलीय कार्यवाही भी अब डिजिटली संभव होगी।
  • इसी प्रकार मोबाइल फॉरेंसिक वैन का भी अनुभव किया जा चुका है।
  • दिल्ली में एक सफल प्रयोग किया गया है कि 7 वर्ष से अधिक सज़ा के प्रावधान वाले किसी भी अपराध के स्थल को एफएसएल टीम विज़िट करती है। 
  • इसके लिए मोबाइल एफएसएल के कॉन्सेप्ट को लॉंच किया गया है जो कि एक सफल कॉन्सेप्ट है और हर ज़िले में 3 मोबाइल एफएसएल रहेंगी और अपराध स्थल पर जाएंगी।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए

  1. ‘नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी’ बनाने का निर्णय लिया गया है, जिससे दोष सिद्धि के प्रमाण को बढ़ाने में फॉरेंसिक साइंस को बढ़ावा दिया जा सके।
  2. वर्ष 2027 से पहले देश की सभी अदालतों को कंप्यूटराइज़्ड कर दिया जाएगा। 
  3. क्रिमिनल प्रोसीजर कोड को 1860 में लागू किया गया था।

उपर्युक्त में से कितना/कितनें कथन सही हैं?

(a) केवल एक

(b) केवल दो

(c) सभी तीनों 

उत्तर- (b)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न - आईपीसी, सीआरपीसी और इंडियन एवीडेंस एक्ट में किए जा रहे संशोधन किस प्रकार वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप हैं? समीक्षा करें।     

Source : Pib

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