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असम-अरुणाचल प्रदेश सीमा विवाद

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2; संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान)

संदर्भ

हाल ही में, असम और अरुणाचल प्रदेश के मध्य दशकों पुराने सीमा विवाद को सुलझाने हेतु इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक संपन्न हुई। 

प्रमुख बिंदु

  • हालिया विवाद का मुख्य कारण प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पी.एम.जी.एस.वाई) के तहत निर्मित की जा रही लिकाबली-दुरपई सड़क (निचले सियांग ज़िले में स्थित) थी।
  • इस संदर्भ में असम का तर्क है कि वर्ष 2019 से निर्माणाधीन सड़क का कुछ हिस्सा राज्य के धेमाजी ज़िले के अंतर्गत आता है।

विवाद की पृष्ठभूमि

  • यह विवाद औपनिवेशिक काल का है, जब अंग्रेजों ने वर्ष 1873 में मैदानी और सीमांत पहाड़ियों के बीच एक काल्पनिक सीमा का निर्धारण करते हुए ‘इनर लाइन’ विनियमन की घोषणा की थी। इसे वर्ष 1915 में नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर ट्रैक्ट्स (एन.ई.एफ.ए) के रूप में नामित किया गया था।
  • स्वतंत्रता के पश्चात् असम सरकार ने नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर ट्रैक्ट्स पर प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र ग्रहण किया, जिसे बाद में 1954 में नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) बनाया गया। तत्पश्चात् वर्ष 1972 में अरुणाचल प्रदेश को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। वर्ष 1987 में इसे राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ।
  • अरुणाचल प्रदेश, असम के साथ 804.1 किमी. की सीमा साझा करता है।

बोरदोलोई समिति

  • असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई की अध्यक्षता वाली एक उप-समिति ने नेफा (असम के तहत) के प्रशासन के संबंध में कुछ सिफारिशें कीं और वर्ष 1951 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • बोरदोलोई समिति की रिपोर्ट के आधार पर अरुणाचल प्रदेश (तत्कालीन नेफा) से लगभग 3,648 वर्ग किमी. बालीपारा और सादिया तलहटी (Foothill) के समतल क्षेत्र को असम के तत्कालीन दरांग और लखीमपुर ज़िलों में मिला दिया था।
  • अरुणाचल प्रदेश इस अधिसूचना को सीमांकन का आधार मानने से इंकार करता है। लंबे समय से अरुणाचल प्रदेश का तर्क है कि उसके लोगों के परामर्श के बिना स्थानांतरण किया गया था।
  • भूमि हस्तांतरण से पहले अरुणाचल प्रदेश से किसी भी प्रकार की बातचीत नहीं की गई थी। 

सीमांकन के प्रयास

  • वर्ष 1979 में एक उच्चाधिकार प्राप्त त्रिपक्षीय समिति का गठन किया गया, जिसने भारत के सर्वेक्षण के नक्शे के आधार पर सीमा को चित्रित करने के साथ-साथ दोनों पक्षों के साथ विचार-विमर्श भी किया था।
  • वर्ष 1983-84 तक ज्यादातर ब्रह्मपुत्र के उत्तरी तट के क्षेत्र (लगभग 489 किमी.) सीमांकित किये गए थे। हालाँकि, आगे का सीमांकन नहीं हो सका क्योंकि, अरुणाचल प्रदेश ने सिफारिशों को स्वीकार करने से मना कर दिया। इसके अलावा, वर्ष 1951 की अधिसूचना के अनुसार स्थानांतरित किये गए 3,648 वर्ग किमी. में से कई किलोमीटर क्षेत्र का दावा किया।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

दोनों राज्यों के बीच विवाद को सुलझाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2006 में अपने एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक स्थानीय सीमा आयोग की नियुक्ति की। वर्ष 2014 में स्थानीय आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसमें यह सिफारिश की गई कि अरुणाचल प्रदेश को कुछ क्षेत्र वापस किये जाएँ, जिन्हें वर्ष 1951 में स्थानांतरित किया गया था। इसके अतिरिक्त, दोनों राज्यों को चर्चा के माध्यम से आम सहमति पर पहुँचने के लिये भी कहा गया। यह चिंताजनक है कि दोनों राज्यों ने इन सुझावों पर अभी तक अमल नहीं किया है।

विवादित क्षेत्र

  • कई बार असम ने अरुणाचल प्रदेश के द्वारा राज्य की वन भूमि पर अतिक्रमण का मुद्दा उठाया है।
  • वर्ष 2005 में अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग ज़िले के भालुकपोंग में और वर्ष 2014 में बेहाली रिज़र्व फॉरेस्ट क्षेत्र में असम के सोनितपुर और अरुणाचल प्रदेश के पापुमपारे जिलों के बीच की तलहटी में विवाद स्वरूप आगजनी की घटनाएँ दर्ज की गई हैं।

आगे की राह

  • पिछले कुछ महीनों में असम सरकार न केवल अरुणाचल प्रदेश के साथ बल्कि पड़ोसी राज्यों के साथ सीमा विवादों को हल करने में सक्रिय भूमिका निभाई है। जबकि, असम और मेघालय ने कुछ प्रगति भी की है।
  • असम सरकार निरंतर नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्रियों से भी बात कर रही है। हालाँकि, अभी तक कोई ठोस कार्ययोजना नहीं बनाई गई है। हाल ही में, गुवाहाटी में हुई बैठक को सकारात्मक माना जा रहा है और दोनों राज्य सीमा की स्थिति पर जमीनी स्तर का सर्वेक्षण करने के लिये तैयार हैं।
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