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सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक, 2020

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोजमर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

संदर्भ

सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक, 2020 को हस्ताक्षर के लिये राष्ट्रपति के पास भेजा गया है। यह विधेयक में इस क्षेत्र में सेवारत/कार्यरत सभी क्लीनिकों और चिकित्सा पेशेवरों के लिये एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री और पंजीकरण प्राधिकरण की स्थापना का प्रस्ताव है।

प्रमुख प्रावधान

  • यह विधेयक सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (Assisted Reproductive Technology: ART) में उन सभी तकनीकों को शामिल करता है, जो मानव शरीर के बाहर शुक्राणु (Sperm) या भ्रूण (Embryo) को महिला प्रजनन प्रणाली में स्थानांतरित कर गर्भधारण करना चाहते हैं। इसमें शुक्राणु या युग्मक (Gamete) का दान, इन-विट्रो निषेचन तथा गर्भकालीन सेरोगेसी शामिल है।
  • ए.आर.टी. क्लीनिक (जो सम्बंधित उपचार और प्रक्रियाएँ सम्पन्न करते है) तथा ए.आर.टी. बैंक (जो भ्रूण का भंडारण तथा आपूर्ति करते है) के माध्यम से ए.आर.टी. सेवाएँ प्रदान की जाएगी।
  • विधेयक में प्रावधान है कि प्रत्येक ए.आर.टी. क्लीनिक एवं बैंक को भारत के बैंकों और क्लीनिकों की राष्ट्रीय रजिस्ट्री के तहत पंजीकृत होना चाहिये। यह राष्ट्रीय रजिस्ट्री देश में स्थित सभी ए.आर.टी. क्लीनिकों तथा बैंकों के लिये केंद्रीय डाटाबेस के रूप में कार्य करेगी।
  • राज्य सरकारें इन क्लीनिकों व बैंकों के पंजीकरण हेतु एक पंजीकरण प्राधिकरण की नियुक्ति करेंगी। साथ ही, पंजीकरण के लिये विशेष जनशक्ति, भौतिक बुनयादी ढाँचे तथा नैदानिक सुविधाओं जैसे कुछ मानकों का पालन करना आवश्यक है।
  • यह पंजीकरण 5 वर्ष के लिये वैध होगा और इसे अगले 5 वर्ष के लिये नवीनीकृत भी किया जा सकेगा। उल्लंघन की स्थिति में पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।
  • युग्मक दाताओं की जाँच, वीर्य (Semen) का संग्रहण व भंडारण का कार्य केवल पंजीकृत ए.आर.टी. बैंक कर सकते हैं। इसके तहत 21-55 वर्ष की आयु के पुरुषों से वीर्य तथा 23-35 वर्ष की आयु की महिलाओं से अंडाणु (Oocyte- अंडाशय में एक कोशिका, जिसमें अंडाणु के विकास के लिये अर्धसूत्रीविभाजन संभव है) प्राप्त किया जा सकता है।
  • अंडाणु दाता महिला कम-से-कम एक बार विवाहित होनी आवश्यक है। साथ ही, उस महिला का स्वयं का न्यूनतम 3 वर्ष का कम से कम एक जीवित बच्चा भी होना आवश्यक है। महिला अपने जीवनकाल में केवल एक बार और अधिकतम सात अंडाणुओं (Oocytes) का दान कर सकती है।
  • ए.आर.टी. की प्रक्रिया इस सेवा का उपयोग करने वालों के साथ-साथ अंडाणु या युग्मक दाता की लिखित सहमति के बाद ही प्रारंभ की जा सकती है। साथ ही, ए.आर.टी. सेवा का उपयोग करने वाला पक्ष युग्मक दाता को होने वाली किसी भी क्षति या दाता की मृत्यु के लिये बीमा कवरेज प्रदान करेगा।
  • आरोपण से पहले भ्रूण के आनुवांशिक रोगों की जाँच भी आवश्यक है। ए.आर.टी. के माध्यम से जन्म लेने वाले बच्चे को इस सेवा का उपयोग करने वाले दंपत्ति का जैविक बच्चा माना जाएगा और वह दंपत्ति के सामान्य प्राकृतिक बच्चे की तरह ही अधिकारों व विशेषाधिकारों का हक़दार होगा। दाता का बच्चे पर किसी भी प्रकार का अभिभावकीय अधिकार नहीं होगा।
  • विधेयक में सेरोगेसी के विनियमन के लिये राष्ट्रीय और राज्य बोर्ड के गठन का भी प्रावधान है जो परस्पर समन्वय स्थापित कर विधेयक के प्रावधानों को लागू करेंगे।

विधेयक के तहत घोषित अपराध 

  • इस विधेयक में गैर-कानूनी गतिविधियों की रोकथाम के लिये कुछ उपाय किये गए हैं-
    • ए.आर.टी. के माध्यम से पैदा हुए बच्चे के त्याग या उनके शोषण पर रोक।
    • मानव भ्रूण या युग्मक को खरीदने, बेचने या आयात करने पर प्रतिबंध।
    • दलालों के माध्यम से दाताओं से संपर्क करने पर रोक।
    • इस सेवा का उपयोग करने वाले दंपत्ति, महिला या युग्मक दाता का किसी भी रूप में शोषण पर प्रतिबंध।
    • मानव भ्रूण को जानवर में स्थानांतरित करने पर रोक।
  • उपरोक्त अपराधों में दोषी पाए जाने के अतिरिक्त किसी भी ए.आर.टी. क्लिनिक या बैंक द्वारा लिंग-चयन के विज्ञापन पर आर्थिक दंड के साथ-साथ कारावास का भी प्रावधान है।
  • राष्ट्रीय या राज्य बोर्डों द्वारा अधिकृत किसी अधिकारी द्वारा की गयी शिकायत को छोड़कर कोई भी न्यायालय इस विधेयक के तहत अपराधों का संज्ञान नहीं लेगी।

      चुनौतियाँ

      • यह विधेयक विवाहित विषमलैंगिक युगल (Married Heterosexual Couple) और विवाह की आयु से अधिक वाली महिलाओं को ए.आर.टी. का उपयोग करने की अनुमति देता है, जबकि एकल पुरुषों, बिना विवाह के साथ रहने वाले विषमलैंगिक युगलों एवं ‘एल.जी.बी.टी.क्यू.+’ (LGBTQ+) समुदायों को ए.आर.टी. का उपयोग करने से रोकता है।
      • यह विधेयक वर्ष 2017 में पुट्टास्वामी वाद के तहत निजता के अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करता हुआ प्रतीत होता है।
      • इससे चयनात्मक लिंग परीक्षण तथा डिज़ाइनर बेबी जैसे मुद्दों से निपटने में जटिलता आएगी।
      • इस संदर्भ में न्यायालयों के स्वत: संज्ञान पर प्रतिबंध लगाया गया है जो इस विधेयक की सीमा को दर्शाता है।

      आगे की राह

      • सेरोगेसी के दायरे को बढ़ाते हुए इसमें ‘एकल पुरुष’ तथा ‘एलजीबीटीक्यू+’ समुदायों को शामिल किया जाना चाहिये।
      • प्रत्येक क्लीनिक में नैतिक समितियाँ होनी चाहिये जो इससे संबंधित विभिन्न नैतिक मुद्दों पर अपनी राय प्रस्तुत करके उसका अनुपालन सुनिश्चित कर सकें।
      • इसमें शामिल विभिन्न हितधारकों को गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिये निजता के अधिकार पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
      • पूर्व लिंग-चयन जैसे मुद्दों से निपटने हेतु एक आवश्यक तंत्र का गठन किया जाना चाहिये जो इस पर त्वरित कार्यवाई करने में सक्षम हो। साथ ही, न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में भी वृद्धि की जानी चाहिये।

      निष्कर्ष

      यह विधेयक सेरोगेसी के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होने के साथ-साथ भारत में चिकित्सा पर्यटन को भी बढ़ावा देगा। हालाँकि, इससे उत्पन्न विभिन्न मुद्दों पर सरकार द्वारा व्यापक रणनीति की आवश्यकता है ताकि इसका बेहतर तरीके से कार्यान्वयन सुनिश्चित करते हुए अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सके।

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