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ऑकस का गठन और क्वाड: संबंधित पहलू 

(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्न पत्र – 2 द्विपक्षीय,क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ

हाल ही में अमेरिका, ब्रिटेन एवं ऑस्ट्रेलिया ने ‘ऑकस’ नामक एक नई त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी का गठन किया है। इस साझेदारी से ‘क्वाड’ की प्रासंगिकता पर सवाल उठने लगे हैं। दोनों साझेदारियों की प्रकृति एवं क्षेत्र के कारण यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि ‘ऑकस’ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ‘क्वाड’ के महत्त्व को कम कर सकता है।

क्वाड की प्रासंगिकता

  • क्वाड का गठन सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिये नहीं किया गया, जबकि ऑकस स्पष्ट रूप से घोषित सैन्य गठबंधन है। क्वाड का वाशिंगटन शिखर सम्मलेन 2021 भी मुख्यतः कोविड-19 महामारी तथा जलवायु परिवर्तन से संबंधित चुनौतियों पर ही केंद्रित रहा है।
  • साथ ही, इसके किसी सदस्य राष्ट्र ने किसी सैन्य गठबंधन के रूप में कार्य करने की इच्छा जाहिर नहीं की। इससे स्पष्ट होता है कि क्वाड के किसी सैन्य गठबंधन के रूप में परिवर्तित होने की संभावना नहीं है। जबकि ऑकस के द्वारा इसी कमी को पूरा करने का प्रयास किया गया है।
  • क्वाड का दृष्टिकोण अधिक व्यापक है। इसके एजेंडे में जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, मुक्त व्यापार, वैश्विक महामारी जैसे विषय शामिल हैं। परंतु अन्य वैश्विक संगठनों की भांति इसका कोई चार्टर तथा सचिवालय भी नहीं है। जबकिऑकसके पास उसकी गतिविधियों का स्पष्ट प्रारूप है। इसके कारण क्वाड के अपनी उपयोगिता से कम प्रदर्शन करने की संभावना बढ़ जाती है।

ारत का रुख

  • भारत ने स्पष्ट किया है कि ‘ऑकस’ के गठन से क्वाड के कामकाज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। ऑकस एवं क्वाड के मध्य कोई संबंध अथवा प्रतिस्पर्धा नहीं है। ‘ऑकस’ एक सुरक्षा गठबंधन है, जबकि क्वाड एक स्वतंत्र, खुले, पारदर्शी एवं समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये कार्य करता है।
  • भारत ने पहले भी मालाबार नौसैनिक अभ्यास एवं क्वाड के मध्य किसी भी प्रकार के संबंध से इनकार किया है। हालाँकि, मालाबार अभ्यास में भाग लेने वाले सभी देश क्वाड के सदस्य भी हैं। इनमें से अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलियाऑकसके सदस्य देश भी हैं।   

ारत का संशय

  • भारत क्वाड के गैर-सैन्य मुद्दों से आगे बढ़कर एक सैन्य गठबंधन के रूप में परिवर्तित होने के पक्ष में नहीं है। इसका प्रमुख कारण भारत की सैन्य गठबंधनों के प्रति पारंपरिक अनिच्छा एवं रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने की इच्छा है।
  • भारत को संदेह है कि क्वाड के सैन्यीकरण से उसकी सैन्य गठबंधनो से दूर रहने की परंपरा खंडित हो सकती है। हालाँकि, क्वाड को औपचारिक सैन्य गठबंधन में परिवर्तित किये बिना भी सैन्य एवं सुरक्षा आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है।
  • इसके अतिरिक्त भारत ऐसी किसी भी गतिविधि से बचने का प्रयास कर रहा है जो चीन को उत्तेजित करती हो। भारत क्वाड का एकमात्र देश है, जो चीन के साथ स्थलीय सीमा साझा करता है। हाल के वर्षों में दोनों देशों के मध्य सीमा पर तनाव में वृद्धि हुई है।

िंद-प्रशांत क्षेत्र में संभावना

  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र से संबंधित प्रमुख क्षेत्रीय आर्थिक गठबंधनों में शामिल होने को लेकर भारत संशय की स्थिति मे है। भारत न तो क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी का सदस्य है और ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों से ही उसके आर्थिक संबंध हैं। इसलिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के कमजोर आर्थिक प्रभाव एवं प्रदर्शन को देखते हुए यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि किसी सुरक्षा गठबंधन  से भारत को क्या लाभ हो सकता है।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की वर्तमान भागीदारी तो इसे राष्ट्रीय सुरक्षा में योगदान देने में सक्षम है और ही इसके आर्थिक प्रभाव में वृद्धि करने में।
  • ऑकस के गठन के बाद इस क्षेत्र की सुरक्षा संरचना में एक गंभीर भूमिका निभाने के लिये भारत और क्वाड का संभावित स्थान और भी कम हो गया है।

िष्कर्ष

ऑकस की तुलना में क्वाड का दृष्टिकोण अत्यधिक व्यापक है। भारत के लिये क्वाड अधिक उपयोगी साबित हो सकता है। ऑकस जैसी रक्षा साझेदारियों में भाग न लेना भारत के अनुकूल है। इससे भारत के लिये वैश्विक भागीदारी एवं सहयोग प्राप्त करना आसान होगा।

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