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वैश्विक कार्यबल अंतराल को पाटना

संदर्भ 

भारत में श्रम बल में गतिशीलता जारी है। यद्यपि भारत में श्रम बल की उत्पादकता निम्न है किंतु भारत की जनसांख्यिकी उपलब्धि इसे कई उन्नत देशों में श्रम की बढ़ती हुई कमी को दूर करने के लिए अद्वितीय स्थिति में है। 

भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश 

  • 1.4 बिलियन से अधिक की आबादी के साथ भारत की युवा जनसांख्यिकी प्रोफ़ाइल वैश्विक श्रम बाज़ार को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने की महत्वपूर्ण क्षमता रखती है।
    •  इस आबादी में से लगभग 65% कार्यशील आयु (15-64 वर्ष) वर्ग के हैं। इनमें से भी 27% से अधिक 15 से 24 वर्ष की आयु वर्ग के हैं। 
  • भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश पर्याप्त संभावित कार्यबल प्रदान करता है। अनुमान है कि भारत सहित निम्न आय वाले देशों में वर्ष 2050 तक दो बिलियन नए कार्यशील आयु वर्ग के व्यक्ति होंगे। 
    •  यह अधिशेष श्रम शक्ति उन्नत देशों में श्रम मांग एवं आपूर्ति अंतराल को पाटने का अवसर प्रदान करती है।

भारत का बदलता रोज़गार बाज़ार 

तीव्र आर्थिक संवृद्धि 

  • भारत का रोज़गार बाज़ार महत्वपूर्ण बदलावों से गुज़र रहा है क्योंकि यह कोविड-19 के बाद दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है। 
    •  इसकी जी.डी.पी. वृद्धि दर लगभग 7.8% है। 
  • मज़बूत निजी उपभोग एवं सार्वजनिक निवेश द्वारा संचालित तीव्र आर्थिक विस्तार भारत को वर्ष 2026-27 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकता है। 

उच्च आय वाले देशों में जनसांख्यिकीय बदलाव

  • वर्तमान में उच्च आय वाले कई देश तेजी से जनसांख्यिकीय बदलाव का अनुभव कर रहे हैं और इसकी विशिष्टता वृद्ध आबादी एवं घटती जन्म दर है। 
    •  वर्ष 2050 तक इन देशों में कार्यशील आयु वर्ग की आबादी लगभग 92 मिलियन तक कम हो जाएगी। 
    •  यह बदलाव एक महत्वपूर्ण असंतुलन उत्पन्न करता है क्योंकि कार्यशील आयु वर्ग के व्यक्ति (कर आदि के रूप में) पेंशन व स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में योगदान के लिए आवश्यक हैं जो वित्तीय व सामाजिक स्थिरता बनाए रखते हैं।

विकसित देशों में श्रम बल की कमी 

  • उन्नत देशों को अगले 30 वर्षों में 400 मिलियन से अधिक नए श्रमिकों की आवश्यकता होगी जिसे केवल घरेलू कार्यबल से पूरा नहीं किया जा सकता है। 
    •  ऐसे में भारत रणनीतिक रूप से अपने श्रम आपूर्ति को उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की मांगों के साथ जोड़ सकता है। 
    •  इससे पारस्परिक आर्थिक विकास एवं एकीकरण सुनिश्चित हो सकेगा। 
  • श्रम गतिशीलता संभावित प्रवासियों को ज़रूरतमंद नियोक्ताओं से संबद्ध कर सकती है, जिससे वैश्विक समानता एवं उत्पादकता में वृद्धि होगी। 
    • उच्च आय वाले देशों में जाने से श्रमिकों की आय में 6 से 15 गुना की वृद्धि संभव हैं, जिससे निर्धनता में उल्लेखनीय कमी आ सकती है। 

श्रम गतिशीलता के लाभ 

  • श्रम गतिशीलता के सकारात्मक प्रभाव व्यक्तिगत प्रवासियों से कहीं अधिक विस्तृत हैं। प्रवासी श्रमिकों द्वारा घर भेजा गया धन (Remittance) उनके गृह देशों की अर्थव्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है। 
  • वर्ष 2022 में, भारत को 111 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का धन प्रेषण प्राप्त हुआ था और 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर धन प्रेषण प्राप्त करने वाला पहला देश बना। 
    • भारत के बाद मेक्सिको, चीन, फिलीपींस और फ्रांस का स्थान रहा। 
    • यह दक्षिण एशिया के प्रवासी श्रमिकों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है, जिसमें भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश शीर्ष प्रेषण प्राप्तकर्ताओं में शामिल हैं। 
  • यह धन गरीबी में कमी, बेहतर स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और समग्र आर्थिक विकास में योगदान करता है। 

श्रम गतिशीलता के समक्ष चुनौतियाँ 

  • कई उच्च आय वाले देशों में अप्रवासी विरोधी भावनाएँ और प्रतिबंधात्मक आव्रजन नीतियाँ
  •  अप्रवासियों की संख्या को सीमित करने वाले सांस्कृतिक मुद्दे
  •  प्रवासन से जुड़ी कानूनी और नौकरशाही बाधाएँ 
  • कई देशों में जटिल आव्रजन प्रक्रियाएँ 
  • प्रवासियों के हितों के अनुकूल व्यापक एकीकरण कार्यक्रमों की कमी

समाधान 

  •  श्रम गतिशीलता को सुविधाजनक बनाने के लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों को आगे बढ़ाना
  • आव्रजन प्रक्रियाओं को सरल बनाना
  •  प्रवास के अवसरों के बारे में स्पष्ट जानकारी प्रदान करना
  •  प्रवासियों के लिए सहायता सेवाएँ प्रदान करना 
  • जन जागरूकता अभियानों के माध्यम से नकारात्मक सार्वजनिक धारणाओं को संबोधित करना 
  • प्रवासियों के सकारात्मक योगदान को उजागर करना 

भारतीय श्रम का रणनीतिक एकीकरण 

कौशल पहल में निवेश

  • भारत का लक्ष्य सहयोग और पारस्परिक लाभ पर ध्यान केंद्रित करते हुए विश्व गुरु से विश्व बंधु बनने का है। 
    • वैश्विक श्रम बाजार की मांगों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए यह बदलाव आवश्यक है। 
  • इस बदलाव को सुविधाजनक बनाने के लिए भारत को अपने कार्यबल को अंतर्राष्ट्रीय बाजार की जरूरतों को पूरा करने के लिए कौशल पहल में निवेश करना चाहिए। 
  • अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भारतीय श्रमिकों की रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए कौशल पहल महत्वपूर्ण हैं। 
    • इन पहलों को उच्च मांग वाले क्षेत्रों जैसे प्रौद्योगिकी क्षेत्रों, पेशेवर स्वास्थ्य सेवा प्रशिक्षण व संचार कौशल और सांस्कृतिक अनुकूलनशीलता को बढ़ाने के लिए भाषा एवं सांस्कृतिक प्रशिक्षण में तकनीकी कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। 
  • भारतीय शैक्षणिक और व्यावसायिक संस्थानों में निवेश करके एक मजबूत कौशल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सकता है जो वैश्विक मानकों को पूरा करता है। 

उन्नत देशों में उच्च मांग वाले क्षेत्रों की पहचान 

  • उन्नत देशों में उच्च मांग वाले क्षेत्रों की पहचान करने की आवश्यकता है जो तीव्र श्रम की कमी का सामना करते हैं। 
    • इसमें मुख्य रूप से स्वास्थ्य सेवा, सूचना प्रौद्योगिकी, शिक्षा और विनिर्माण जैसे क्षेत्र शामिल हैं। 

आर्थिक निहितार्थों का विश्लेषण 

  • श्रम बाजार ढांचे का उपयोग करके इन क्षेत्रों में भारतीय श्रम को एकीकृत करने के आर्थिक निहितार्थों का विश्लेषण करना आवश्यक है। 
    • इसमें मुख्य रूप से भारतीय श्रमिकों की उत्पादकता और समग्र वैश्विक वित्तीय प्रभाव का आकलन करना शामिल है। 

प्रवास की सक्षम परिस्थितियों की पहचान 

भारत से वैश्विक श्रम प्रवास के लिए सक्षम स्थितियों की पहचान करके श्रम गतिशीलता लागत को कम करना और भारतीय श्रम बाजार में लौटने वाले श्रमिकों का सुचारू रूप से पुनः एकीकरण सुनिश्चित करना शामिल है।

निष्कर्ष 

भारत के प्रचुर कार्यबल को वैश्विक मांग के साथ प्रभावी रूप से संरेखित करने के लिए लक्षित कौशल पहल, उन्नत श्रम गतिशीलता ढांचे और प्रवासी श्रमिकों के लिए मजबूत समर्थन प्रणालियों को शामिल करने वाले बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। ऐसे रणनीतिक प्रयासों के माध्यम से भारत वैश्विक कार्यबल अंतराल को कम कर सकता है और स्वयं को अंतर्राष्ट्रीय श्रम बाजार में एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में स्थापित कर सकता है।

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