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सी.बी.आई. जाँच के लिये ‘सामान्य सहमति’

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों आदि का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ, सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय)

संदर्भ

हाल ही में, मेघालय ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को राज्य में जाँच करने (कार्य) के लिये प्राप्त ‘सामान्य सहमति’ को वापस लेने का निर्णय लिया है। इस प्रकार, मेघालय सी.बी.आई. से सामान्य सहमति वापस लेने वाला नौवां राज्य बन गया है। इससे पूर्व मिज़ोरम, महाराष्ट्र, पंजाब और राजस्थान के अतिरिक्त पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ तथा केरल सहमति वापस ले चुके हैं। मिज़ोरम वर्ष 2015 में इसे वापस लेने वाला पहला राज्य बना था।

क्या है सामान्य सहमति (General Consent)

  • ‘राष्ट्रीय जाँच एजेंसी’ (NIA) ‘एन.आई.ए. अधिनियम’ द्वारा शासित होती है और इसका अधिकार क्षेत्र देश भर में है। इसके विपरीत, सी.बी.आई. को ‘दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946’ के द्वारा शक्तियाँ प्राप्त हैं।
  • इस प्रकार, सी.बी.आई. द्वारा किसी राज्य में जाँच करने के लिये उस राज्य सरकार की सहमति अनिवार्य हो जाती है। इसमें दो तरह की सहमति होती है : किसी विशिष्ट मामले से संबंधित सहमति और सामान्य सहमति।
  • ‘दिल्ली पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946’ की धारा 6 के अंतर्गत सी.बी.आई. को प्राप्त सामान्य सहमति को वापस लिया जा सकता है।

सहमति की आवश्यकता

  • ध्यातव्य है कि सी.बी.आई. का अधिकार क्षेत्र केवल केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारियों तक सीमित है। हालाँकि, राज्य सरकार द्वारा सहमति देने के बाद यह राज्य सरकार के कर्मचारियों या किसी राज्य में हिंसक अपराध से संबंधित या अन्य मामलों की जाँच कर सकती है।
  • सामान्यत: सी.बी.आई. को संबंधित राज्य में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार की जाँच में सहायता के लिये सामान्य सहमति प्रदान की जाती है। अधिकांश राज्यों ने इस तरह की सहमति प्रदान की है अन्यथा सी.बी.आई. को प्रत्येक मामले में सहमति की आवश्यकता होगी।

सामान्य सहमति वापस लेने का तात्पर्य

  • इसका तात्पर्य है कि सी.बी.आई. केंद्र सरकार के किसी अधिकारी या इन राज्यों में तैनात किसी निजी व्यक्ति के विरुद्ध कोई भी ताजा मामला दर्ज नहीं कर सकती है।
  • सामान्य सहमति को वापस लेने का सीधा अर्थ है कि सी.बी.आई. अधिकारी द्वारा उस राज्य में प्रवेश करते ही एक अधिकारी के रूप में प्राप्त उसकी सभी शक्तियाँ समाप्त हो जाएंगी, जब तक कि राज्य सरकार ने उन्हें अनुमति नहीं दी है।

ऐसे राज्यों में सी.बी.आई. द्वारा किसी मामले की जाँच की स्थिति

  • सामान्य सहमति वापस लेने वाले राज्यों में सी.बी.आई. के पास अब भी पुराने मामलों की जाँच करने की शक्ति होगी।
  • यद्यपि सी.बी.आई. अभी भी दिल्ली से जुड़े किसी अपराध या उससे संबंधित मामलों में दिल्ली में मामला दर्ज कर सकती है और गिरफ्तारी व मुकदमे की कार्रवाई कर सकती है।
  • सी.बी.आई. राज्य की किसी स्थानीय अदालत से वारंट प्राप्त कर सकती है और जाँच आदि का कार्य कर सकती है।

राज्यों द्वारा ऐसे निर्णयों का कारण

यदि कोई राज्य सरकार यह मानती है कि केंद्र के आदेशों से मंत्रियों, निर्वाचित सदस्यों या अधिकारियों को सी.बी.आई. द्वारा लक्षित किया जा रहा है और सामान्य सहमति वापस लेने से उनकी रक्षा हो सकती है तो राज्य सरकारें ऐसा करती हैं। हालाँकि, यह बहस की एक राजनीतिक धारणा है।

सी.बी.आई. : प्रमुख तथ्य

  • भारत सरकार ने 1 अप्रैल, 1963 को एक संकल्प पारित कर निम्नलिखित प्रभागों के साथ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो का गठन किया :
    • अन्वेषण तथा भ्रष्टाचार निरोधक प्रभाग
    • तकनीकी प्रभाग
    • अपराध अभिलेख और सांख्यिकी प्रभाग
    • अनुसंधान प्रभाग
    • विधि तथा सामान्य प्रभाग
    • प्रशासन प्रभाग
  • सी.बी.आई. कोई सांविधिक निकाय नहीं है क्योंकि इसे संसद के किसी अधिनियम द्वारा स्थापित नहीं किया गया है। सी.बी.आई. आर्थिक अपराधों, विशेष अपराधों, भ्रष्टाचार के मामलों और अन्य मामलों की जाँच करती है। सी.बी.आई. कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है।
  • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) और राष्ट्रीय आसूचना ग्रिड (नैटग्रिड) आदि की तरह सी.बी.आई. को भी सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम से छूट प्राप्त है। यह इंटरपोल सदस्य देशों की ओर से जाँच का समन्वय करने वाली भारत की नोडल पुलिस एजेंसी भी है।
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