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कपास उत्पादन के समक्ष चुनौतियां एवं समाधान

संदर्भ

भारतीय कपास महासंघ के अनुसार, वर्ष 2024 में उत्तरी राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में कपास की बुवाई का रकबा (Area under cotton sowing) 25% कम रहने की उम्मीद है।

भारतीय कपास के बारे में  

  • कपास भारत की नकदी फसलों में से सबसे महत्वपूर्ण रेशे वाली फसल है और देश की औद्योगिक और कृषि अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख भूमिका निभाती है। 
  • देश के अधिकांश भागों में कपास एक खरीफ की फसल है, कपास की बुआई का मौसम उत्तरी भारत में अप्रैल-मई में होता है और दक्षिणी क्षेत्र में मानसून आधारित होता है।
  • भारत एकमात्र ऐसा देश है जो कपास की सभी चार प्रजातियों को उगाता है। 
    • गॉसिपियम आर्बोरियम और गॉसिपियम हर्बेसियम (एशियाई कपास), गॉसिपियम बारबाडेंस (मिस्र का कपास) और गॉसिपियम हिरसुटम (अमेरिकी अपलैंड कपास)। 
    • भारत में उत्पादित संकर कपास का 90% हिस्सा गॉसिपियम हिरसुटम है। 

कपास उत्पादन के लिए अनुकूल परिस्थितियां 

  • कपास, उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय परिस्थितियों में उगाया जाता है। 
  • वर्षा:  75 से 100 सें. मी. 
  • मिट्टी: काली व रेतीली मृदा (मध्य क्षेत्र), गहरी जलोढ़ मृदा(उत्तर क्षेत्र), मिश्रित काली व लाल मृदा(दक्षिण क्षेत्र)
  • तापमान : अंकुरण के लिए न्यूनतम 15°C तापमान की आवश्यकता।
    • विकास के लिए इष्टतम तापमान 21-27°Cहै , 43°Cतक तापमान सहनशीलता।
    • फसल के पकने की अवधि के दौरान बड़े दैनिक बदलाव (ठंडी रातों के साथ गर्म दिन) अच्छे कपास फूलों और फाइबर के विकास के लिए अनुकूल होते हैं।

कपास उद्योग के बारे में 

  • यह फसल सूती कपड़ा उद्योग को बुनियादी कच्चा माल (कपास रेशा) प्रदान करती  है।  
  • कपड़ा और संबंधित निर्यात, जिसमें कपास का लगभग 65% हिस्सा है, हमारे देश की कुल विदेशी मुद्रा आय में लगभग 33%योगदान देते है, जो वर्तमान में लगभग 12 बिलियन डॉलर है। 
  • भारत में कपास 6 मिलियन किसानों को प्रत्यक्ष आजीविका प्रदान करता है और लगभग 40-50 मिलियन लोग कपास व्यापार और इसके प्रसंस्करण में कार्यरत हैं। 

भारत में प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्र 

  • भारत में, दस प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं जिन्हें तीन अलग-अलग कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, अर्थात उत्तरी क्षेत्र, मध्य क्षेत्र और दक्षिण क्षेत्र। 
    • उत्तरी क्षेत्र में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान शामिल हैं। 
    • मध्य क्षेत्र में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात शामिल हैं। 
    • दक्षिण क्षेत्र में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु शामिल हैं। 
  • कपास की खेती गैर-पारंपरिक राज्यों जैसे- उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और त्रिपुरा के छोटे क्षेत्रों में भी की जाती है।
  • भारत का लगभग 65% कपास शुष्क भूमि पर और 35% सिंचित भूमि पर उत्पादित होता है।
  • भारत में कपास के अंतर्गत सबसे बड़ा रकबा (लगभग 113.29 लाख हेक्टेयर) है, जो वैश्विक कपास क्षेत्र का 33% है और इसकी उत्पादकता 517 किलोग्राम लिंट/हेक्टेयर है। 
    • यह वैश्विक कपास उत्पादन में 23% का योगदान देता है। 
  • 2023-2024 के कपास सत्र में भारतीय कपास उत्पादन लगभग 320 लाख गांठ (Bales : unit for a large bundle of goods) के अनुमानित स्तर पर रहने की उम्मीद है।

KAPAS

(वित्तीय वर्ष 2014 से 2022 तक भारत में कपास की खेती का कुल क्षेत्रफल) (मिलियन हेक्टेयर में)

कपास उत्पादन के समक्ष क्या-क्या चुनौतियां हैं?

सरकारी समर्थन का अभाव

  • कपास किसानों को सरकार से मिलने वाली सब्सिडी और वित्तीय सहायता में कमी या जटिल प्रक्रियाएं भी एक बड़ी चुनौती होती है।
  • वर्ष 2023 में  किसानों को कपास का औसतन मूल्य लगभग 5,500 प्रति क्विंटल ही मिला, जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य 6,700-7,000 प्रति क्विंटल था।
  • वर्ष 2023 में राज्य सरकार ने बीटी कॉटन के बीज पर 33% सब्सिडी शुरू की थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल स्वीकृत किस्मों का ही उपयोग किया जाए। लेकिन आदर्श आचार संहिता लगने के कारण यह सब्सिडी मई 2024 तक किसानों को प्रदान नहीं की गई।

बुनियादी ढाँचा एवं बाजार संबंधी समस्याएं

  • कई क्षेत्रों में उचित बुनियादी ढांचे की कमी, जैसे भंडारण, परिवहन, और विपणन सुविधाएं, किसानों के लिए उत्पादन और विपणन में कठिनाइयां पैदा करती हैं।
  • कपास उत्पादन की लागत में वृद्धि, जैसे बीज, उर्वरक, और कीटनाशकों की कीमतों में वृद्धि, किसानों के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा करती है।
  • कपास के बाजार में मूल्य अस्थिरता, मांग और आपूर्ति में बदलाव किसानों की आय को प्रभावित कर सकते हैं।

मौसम संबंधी समस्याएं

  • कपास उत्पादन मौसम पर अत्यधिक निर्भर होता है। जलवायु परिवर्तन के कारण अनिश्चित मौसम पैटर्न, जैसे अचानक बारिश या सूखा, कपास की फसलों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

जल संसाधनों की कमी

  • कपास उत्पादन के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। कई क्षेत्रों में पानी की कमी के कारण सिंचाई के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध नहीं हो पाता, जिससे फसल उत्पादन प्रभावित होता है।
  • कपास उत्पादन में जल संरक्षण के आधुनिक तकनीकों और पद्धतियों का अभाव भी एक बड़ी चुनौती है।

भूमि की उर्वरता में गिरावट

  • बार-बार फसलों की खेती के कारण मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट आती है। इससे कपास की उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी फसल की वृद्धि को प्रभावित करती है। इसके लिए उचित उर्वरकों और सुधारक पदार्थों का उपयोग करना आवश्यक है।

कीट और रोग प्रबंधन की कमी

  • कपास की फसलों पर कीटों का आक्रमण एक बड़ी समस्या है। कीटों की विभिन्न प्रजातियां कपास की फसल को नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे उत्पादन में कमी आती है।
  • कपास की फसलों में विभिन्न प्रकार के रोग भी लगते हैं, जो फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को प्रभावित करते हैं।

तकनीकी ज्ञान और सुविधाओं की कमी

  • कई किसानों के पास आधुनिक कृषि तकनीकों और प्रथाओं की जानकारी नहीं होती, जिससे वे उत्पादकता को बढ़ाने में असमर्थ होते हैं।
  • सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा किसानों को पर्याप्त प्रशिक्षण और समर्थन नहीं मिल पाता, जिससे उन्हें नई तकनीकों और विधियों को अपनाने में कठिनाई होती है।

भारत में कपास उत्पादन की चुनौतियों के समाधान के लिए क्या करने की आवश्यकता है?

नई कृषि पद्धति की आवश्यकता

  • भारत के कपास उत्पादन को पुनर्जीवित करने के लिए, कृषि पद्धतियों में आमूलचूल परिवर्तन की तत्काल आवश्यकता है। 
  • यह बेहतर प्रभावकारिता वाले आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों, जलवायु-प्रतिरोधी फसल किस्मों और सबसे महत्वपूर्ण रूप से उच्च गुणवत्ता वाले कृषि रसायनों को अपनाकर किया जा सकता है।

कृषि प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना 

  • किसानों को आधुनिक तकनीकोंएवं प्रौद्योगिकियों को अपनाने की आवश्यकता है। 
  • कृषि प्रौद्योगिकी के बारे में जागरूकता और शिक्षा बढ़ाना एक समृद्ध कृषि समुदाय को विकसित करने के लिए अनिवार्य है। 
  • प्रौद्योगिकी को एकीकृत करके, किसान न केवल उच्च गुणवत्ता वाली कपास की पैदावार प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित एवंसंसाधनों का संरक्षण कर अपनी आजीविका को बढ़ावा दे सकते हैं।

वित्तीय प्रोत्साहन

  • किसानों को कपास की फसलों में अधिक निवेश करने और सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने के लिए सब्सिडी, अनुदान या प्रत्यक्ष भुगतान के द्वारा प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के सहयोग से उच्च उपज वाली और जलवायु-लचीली कपास किस्मों के विकास में निवेश करने से उत्पादकता और स्थिरता में वृद्धि हो सकती है।

जल प्रबंधन में सुधार

  • ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिस्टम जैसी कुशल सिंचाई विधियों को लागू करने से पानी की बर्बादी को काफी हद तक कम किया जा सकता है। 

मृदा स्वास्थ्य में सुधार

  • फसल चक्रण, कवर क्रॉपिंग और जैविक उर्वरकों के उपयोग जैसी जैविक खेती की प्रथाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करने से मिट्टी की उर्वरता और संरचना में सुधार हो सकता है। 
  • नियमित मृदा परीक्षण से किसानों को अपने खेतों की पोषक तत्व स्थिति को समझने में मदद मिल सकती है। 

कीट और रोग प्रबंधन

  • एकीकृत कीट प्रबंधन (आई.पी.एम.) रणनीतियों को लागू करने से रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम हो सकती है। 
    • आई.पी.एम. में कीटों और रोगों के प्रबंधन के लिए जैविक नियंत्रण एजेंटों, प्रतिरोधी किस्मों, फसल चक्रण और यांत्रिक नियंत्रण विधियों का उपयोग शामिल है।

गुणवत्ता वाले बीजों तक पहुंच

  • बीज उत्पादन और वितरण के लिए कड़े गुणवत्ता नियंत्रण उपायों की स्थापना यह सुनिश्चित कर सकती है कि किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीजों तक पहुंच हो। 
  • बीजों का प्रमाणन और लेबलिंग मानकों को बनाए रखने में मदद कर सकता है।

बाजार संपर्क में वृद्धि 

  • सहकारी समितियों और किसान-उत्पादक संगठनों के माध्यम से बाजार संपर्क को मजबूत करने से कपास किसानों के लिए उचित मूल्य सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है। 
  • अनुबंध खेती और प्रत्यक्ष विपणन चैनलों को बढ़ावा देने से भी किसानों की आय में सुधार हो सकता है।

अनुसंधान एवंक्षमता निर्माण 

  • मौसम पूर्वानुमान, बाजार के रुझान और कपास की खेती में सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में किसानों को समय पर और सटीक जानकारी प्रदान करने के लिए कृषि विस्तार सेवाओं को मजबूत करने से, उनके निर्णय लेने में सुधार हो सकता है।
  • अनुसंधान संस्थानों, सरकारी एजेंसियों और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग से कपास उत्पादन में प्रगति हो सकती है।

निष्कर्ष

भारत में कपास उत्पादन की चुनौतियों का समाधान करने के लिए जल प्रबंधन, मृदा स्वास्थ्य, कीट नियंत्रण, गुणवत्ता वाले बीजों तक पहुँच, वित्तीय सहायता, बाज़ार पहुँच, क्षमता निर्माण और अनुसंधान एवं विकास में सुधार सहित बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। भारत में कपास की खेती की स्थिरता और लाभप्रदता सुनिश्चित करने के लिए सरकार, अनुसंधान संस्थानों, निजी क्षेत्र और किसानों के सहयोगात्मक प्रयास की आवश्यकता है।

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