New
July Offer: Upto 75% Discount on all UPSC & PCS Courses | Offer Valid : 5 - 12 July 2024 | Call: 9555124124

नकारात्मक सामाजिक मानदंडों को चुनौती

(प्रारंभिक परीक्षा : आर्थिक और सामाजिक विकास- सतत् विकास, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि)
(मुख्य परीक्षा, प्रश्नपत्र 1 : भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ, महिलाओं की भूमिका)

संदर्भ

कोविड-19 महामारी के मुश्किल समय में, 11 जुलाई (विश्व जनसंख्या दिवस) कुछ सकारात्मक खबरें लेकर आया है - भारत एक जनसांख्यिकीय के बेहतर स्थान में प्रवेश कर गया है, जो अगले ‘दो से तीन दशकों’ तक जारी रहेगा।

पृष्ठभूमि

  • भारत की आधी जनसंख्या 29 वर्ष से कम आयु की है, जिसका अर्थ है कि इस अवधि में युवाओं का अधिक अनुपात भारत के आर्थिक संवृद्धि और सामाजिक प्रगति का वाहक बनेगा।
  • अतः उन्हें न केवल स्वस्थ, शिक्षित और कुशल होना चाहिये, बल्कि उन्हें अपनी पूरी क्षमता के विकास के अधिकार और विकल्प भी प्रदान किये जाने चाहिये, जिनमें विशेष रूप से ‘यौन, प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार’ (SRHR) शामिल है।
  • ‘गुट्टमाकर-लांसेट आयोग’ ने जनसंख्या में एस.आर.एच.आर. में सुधार करने के तरीके को देखते हुए इसकी की एक व्यापक परिभाषा तैयार की है।
  • एस.आर.एच.आर. में ‘हिंसा, कलंक और शारीरिक स्वायत्तता’ के लिये सम्मान जैसे मुद्दे शामिल हैं, जो व्यक्तियों के ‘मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक तथा सामाजिक कल्याण’ को बहुत हद तक प्रभावित करते हैं।

विकासात्मक लक्ष्य

  • भारत की जनसंख्या वृद्धि अब स्थिर हो रही है। समग्र प्रजनन क्षमता में गिरावट के बावजूद, ‘जनसंख्या गति’ (Population Momentum) के प्रभाव के कारण जनसंख्या बढ़ती रहेगी।
  • यह एक ‘जंबो जेट’ की तरह है, जो उतरना शुरू हो गया है, लेकिन रुकने में कुछ समय लगेगा।
  • वर्तमान में 2.2 बच्चों की कुल प्रजनन दर (TFR) जल्द ही प्रतिस्थापन स्तर (2.1) तक पहुँच जाएगी।
  • हालाँकि, टी.एफ.आर. ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं में 2.2 बच्चों के राष्ट्रीय औसत से अधिक है, जिनकी औपचारिक शिक्षा कम है तथा वे सबसे कम आय वाले वर्ग में हैं, उनमें से अधिकांश गरीब राज्यों में रहते हैं।

सामाजिक मानदंड की चुनौतियाँ

  • अगली पीढ़ी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये सामाजिक मानदंडों को बदलना भारत की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
  • उदाहरणार्थ, भारत की जनसंख्या स्थिरीकरण रणनीति को महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए समायोजित किया जाना चाहिये। साथ ही, अपने परिवार के आकार को चुनने में महिलाओं की अधिक भूमिका होनी चाहिये।
  • निर्देशात्मक या ज़बरदस्ती, जैसे कि ‘एक या दो बच्चे के मानदंड’ ने शायद ही कभी दीर्घकाल तक कहीं भी अच्छे परिणाम दिये हों
  • महिलाओं और लड़कियों के लिये परिवार के चयन से संबंधित निर्णय बेहतर स्वास्थ्य परिणामों की ओर ले जाता है, जैसे यह जानना कि अनपेक्षित गर्भावस्था को कैसे रोका जाए? या कुशल जन्म परिचारक की मदद से जन्म देना।

कमज़ोर स्वास्थ्य प्रणाली

  • महामारी ने स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में व्याप्त कमज़ोरियों को उजागर किया है तथा ‘यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य’ (SRH) पर सूचना व सेवाओं के प्रावधान में गंभीर अंतराल तथा चुनौतियों को उत्पन्न किया है।
  • महामारी से पूर्व भी, व्यापक नकारात्मक सामाजिक मानदंड, स्वास्थ्य प्रणाली की बाधाएँ तथा लैंगिक असमानता ने एस.आर.एच.आर. तक सार्वभौमिक पहुँच में बाधा उत्पन्न की, जैसा कि ‘जनसंख्या और विकास पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, 1994 (ICPD) की कार्रवाई के कार्यक्रम के तहत कल्पना की गई थी।
  • इस वर्ष विश्व जनसंख्या दिवस पर, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) यह मानता है कि भले ही स्वास्थ्य प्रणाली काफी तनावपूर्ण स्थिति में हो फिर भी इन सेवाओं से संबंधित प्रावधानों की प्रतीक्षा नहीं की जा सकती है।

जनसांख्यिकीय आँकड़ों में सुधार

  • पिछले दो दशकों में, भारत ने एस.आर.एच. संकेतकों के संदर्भ में ठोस प्रगति की है।
  • ‘नमूना पंजीकरण प्रणाली’ (SRS) के आँकड़ों के अनुसार, मातृ स्वास्थ्य के लिये प्रगतिशील नीतियों के परिणामस्वरूप ‘संस्थागत प्रसव’ की दर में सुधार हुआ है।
  • ‘मातृ मृत्यु अनुपात’ (MMR) वर्ष 1999-2001 के 327 से घटकर वर्ष 2016-18 में प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 113 हो गई है।
  • विगत एक दशक में परिवार नियोजन में भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं, और वर्ष 2019-20 के लिये
  • ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण-5’ (NHFS -5) के आँकड़े बताते हैं कि अधिकांश राज्यों में ‘गर्भनिरोधक प्रसार’ में काफी सुधार हुआ है।

बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओ

  • ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (BBBP) जैसे कार्यक्रमों के साथ वर्तमान सरकार ने मौजूदा सामाजिक मानदंडों को चुनौती देने का प्रयास किया है तथा यह रेखांकित किया है कि सामाजिक कारणों (Social Causes) में निवेश आर्थिक प्रगति के साथ ही होना चाहिये।
  • समाज के सभी वर्गों को सकारात्मक बदलाव के लिये इस आह्वान को स्वीकार करना चाहिये कि प्रत्येक ‘व्यक्ति से लेकर संस्थागत स्तर’ तक अपनी भूमिका निभा रहा है।
  • यू.एन.एफ.पी.ए. भारत के सफलता मॉडल को आगे ले जाने तथा ‘दक्षिण-दक्षिण सहयोग’ को और मज़बूत करने का इच्छुक है।

खराब संकेतक

  • सफलता कड़ी मेहनत से ही अर्जित की जाती है क्योंकि वह कभी भी सुनिश्चित नहीं होती है। इसी प्रकार, सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को वर्ष 2030 तक प्राप्त करने के रास्ते पर कई चुनौतियाँ हैं।
  • विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा जारी ‘ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2021’ में भारत, दक्षिण एशिया में तीसरा सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला देश है, जो 28 स्थान फिसल कर समग्र रूप में 156 देशों में से 140वें स्थान पर गया है।
  • प्रत्येक वर्ष दो मिलियन किशोरियाँ (15-19 वर्ष)  गर्भवती होती हैं, जिनमें लगभग 63% गर्भ अवांछित या अनपेक्षित होते हैं (गुट्टमाकर इंस्टीट्यूट, 2021)।
  • उक्त तथ्य इस आयु वर्ग के लिये अपर्याप्त जानकारी और एस.आर.एच. सेवाओं तक पहुँच की ओर इशारा करता है। एन.एफ.एच.एस.-4 के अनुसार, 15-19 वर्ष की आयु की 22.2 प्रतिशत लड़कियों को गर्भनिरोधक की आवश्यकता पूरी नहीं हो पाती है।
  • अभी भी लड़कियों की बहुत कम उम्र में शादी हो रही है 20-24 वर्ष की उम्र की 26.8 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले हो जाती है। इसके अतिरिक्त, अक्सर विवाह के पहले वर्ष के भीतर उनका पहला बच्चा भी हो जाता है।
  • बहुत-सी लड़कियों और महिलाओं को ‘लैंगिक हिंसा और सामाजिक रूप से स्वीकृत हानिकारक प्रथाओं’ का सामना करना पड़ता है।
  • उक्त सभी प्रथाएँ सामाजिक मानदंडों, विश्वासों और प्रथाओं में निहित हैं, जो महिलाओं को उनकी ‘शारीरिक स्वायत्तता’ से वंचित करती हैं।

भावी राह 

  • एस.डी.जी. के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने का समय समाप्त हो रहा है, अतः भारत को अपनी प्राथमिकताएँ सावधानी से तय करनी होंगी
  • विभिन्न विश्लेषण बताते हैं कि नीति निर्धारण और सेवाओं के केंद्र में युवाओं, महिलाओं तथा लड़कियों को रखने से सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न हो सकता है।
  • यदि युवाओं और विशेष रूप से किशोरियों के पास एस.आर.एच. से संबंधित स्वस्थ विकल्प चुनने के लिये शिक्षा, प्रासंगिक कौशल, सूचना और सेवाओं तक पहुँच है, तो उन्हें अपने अधिकारों का प्रयोग करने और रोज़गार के अवसरों तक पहुँच प्राप्त करने का अधिकार होगा।
  • शोध और व्यावहारिक अनुभव बताते हैं कि जब महिलाएँ अपने ‘यौन और प्रजनन स्वास्थ्य’ के बारे में उचित विकल्प चुन सकती हैं तथा जब उनके पास अपनी पसंद की सेवाओं तक पहुँच होती है, तो समाज समग्रतः ‘स्वस्थ और अधिक उत्पादक’ होता है।

निष्कर्ष

  • एक महिला, जो अपने शरीर पर नियंत्रण रखती है, न केवल स्वायत्तता के मामले में, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, आय और सुरक्षा के मामले में भी प्रगति हासिल करती है। 
  • यू.एन.एफ.पी.ए. सभी हितधारकों से इस मिशन को चलाने तथा सामाजिक मानदंडों का एक ‘नया सेट’ बनाने में मदद करने का आह्वान करता है।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR